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चीकू के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चीकू का पेड़ मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका के उष्ण कटिबंध का वेस्टंइडीज द्वीप समूह का है। वहां यह `चीकोज पेटी` के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु चीकू वर्तमान समय में सभी देशों में पाया जाता है। चीकू मुख्य रूप से तीन प्रकार के होता है। 1. लम्बा गोल। 2. साधारण लम्बा गोल। 3. गोल। कच्चे चीकू बिना स्वाद के और पके चीकू बहुत मीठे और स्वादिष्ट होते हैं। गोल चीकू की अपेक्षा लम्बे गोल चीकू श्रेष्ठ माने जाते हैं। पके चीकू का नाश्ते और फलाहार में उपयोग होता है। कुछ लोग पके चीकू का हलुवा बनाकर खाते हैं। इसका हलुवा बहुत ही स्वादिष्ट होता है। चीकू खाने से शरीर में विशेष प्रकार की ताजगी और फूर्ती आती है। इसमें शर्करा की मात्रा अधिक होती है। यह खून में घुलकर ताजगी देती है। चीकू खाने से आंतों की शक्ति बढ़ती है और आंतें अधिक मजबूत होती हैं।

गुण (Property)

चीकू के फल शीतल, पित्तनाशक, पौष्टिक, मीठे और रुचिकारक हैं। इसमें शर्करा का अंश ज्यादा होता है। यह पचने में भारी होता है। चीकू ज्वर के रोगियों के लिए पथ्यकारक है। भोजन के बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ प्रदान करता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चीकू के फल में थोड़ी सी मात्रा में “संपोटिन“ नामक तत्व रहता है। चीकू के बीज दस्तावर और मूत्रकारक माने जाते हैं। चीकू के बीज में सापोनीन एवं संपोटिनीन नामक कड़वा पदार्थ होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

  1. दस्त : चीकू की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त और बुखार आदि रोग समाप्त हो जाते हैं।

    2. धातुपुष्टि : चीकू को शर्करा के साथ खाने से शरीर में धातु की पुष्टि होती है।

    3. पेशाब की जलन : चीकू के सेवन करने से पेशाब की जलन शान्त हो जाती है।

    4. पित्त प्रकोप : चीकू को रातभर मक्खन में भिगोकर सुबह के समय खाने से पित्त प्रकोप शांत होता है तथा यह बुखार में भी लाभकारी होता है।

    5. खून की कमी : शरीर में खून की कमी को दूर करने के लिए रोजाना 3 से 4 चीकू 8 से 10 दिन तक लगातार खाने से लाभ होता है।

चिलगोजा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चिलगोजा का छिलका लाल, भूरा और मींगी सफेद रंग की होती है। यह कुछ मीठी और स्वादिष्ट होती है। चिलगोजा एक मशहूर मेवा होती है। इसकी तासीर गर्म होती है।

गुण (Property)

चिलगोजा धातुवर्द्धक होता है। भूख को बढ़ाता है। गुर्दे-मसाने और लिंगेद्री को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। चिलगोजे अत्यधिक मर्दाना शक्तिवर्द्धक होते हैं। इसलिए 15 चिलगोजे रोजाना खाना चाहिए।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चिलगोजा भारी होता है तथा देर में हजम होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

नपुंसकता : रोजाना 15 चिलगोजे खाने से नपुंसकता का रोग दूर हो जाता है।
सिर का दर्द : चिलगोजे का तेल कनपटियों पर लगाने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
शरीर को शक्तिशाली बनाना : चिलगोजा की मींगी और मुनक्का को लगभग 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रख दें, और इसके बाद इसमें शक्कर मिलाकर खाने से शरीर की कमजोरी के दूर होने के साथ ही साथ शरीर में ताकत आ जाती है। चिलगोजा खाने से व्यक्ति के शरीर में चुस्ती और फुर्ती के साथ ही साथ अधिक ताकत भी आती है।

चुकन्दर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चुकन्दर एक कन्दमूल है। चुकन्दर में `प्रोटीन` भी मिलती है। यह जठर और आंतों को साफ रखने में उपयोगी है। चुकन्दर रक्तवर्द्धक , शक्तिदायक (शरीर मे ताकत देने वाला), शरीर को लाल बनाने वाला और कमजोरी को दूर करने वाला है। चुकन्दर का सेवन करने से शरीर का फीकापन दूर हो जाता है। शरीर लाल बनता है एवं शरीर में एक विशेष प्रकार की शक्ति और चेतना उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त चुकन्दर दूध पिलाने वाली स्त्रियों के स्तनों में दूध को बढ़ाता है, यह जोड़ों के दर्द को दूर करता है। यह यकृत (जिगर) को शक्ति देता है और दिमाग को तरोताजा रखता है।

गुण (Property)

चुकन्दर शरीर को शुद्ध और स्वस्थ करता है। यह बलगम को गलाकर बाहर निकालता है तथा गुर्दे के दर्द, झनकबाई और गठिया के लिए लाभदायक होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चुकन्दर का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेचिश (खूनी दस्त) रोग हो जाता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

जननांगों के रोग:

गाजर के लगभग 1 गिलास रस में चुकन्दर का रस मिलाकर रोजाना 2 बार पीने से स्त्रियों के जननांगों से संबन्धित सारे रोग समाप्त हो जाते हैं।

पथरी:

चुकन्दर का रस या चुकन्दर को पानी में उबालकर इसका सूप सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है। इसकी मात्रा 3 ग्राम तक दिन में 4 बार है। यह प्रयोग कुछ सप्ताह तक निरन्तर जारी रखें। इस प्रयोग से गुर्दे की सूजन भी दूर हो जाती है। अत: गुर्दे के रोगों में लाभदायक है। इससे पेशाब अधिक मात्रा में आता है।
50 मिलीलीटर गाजर का रस, 50 मिलीलीटर चुकन्दर का रस, 50 मिलीलीटर ककड़ी या खीरा का रस मिलाकर पीने से सभी प्रकार की पथरी गलकर बाहर आ जाती है।
चुकन्दर का रस निकालकर या चुकन्दर को पानी में उबालकर उसका सूप 30 मिलीलीटर 2-3 सप्ताह तक दिन में 4 बार बनाकर पीने से पथरी गल जाती है।

बलगम:

चुकन्दर बलगम को निकालकर श्वास नली (सांस की नली) को साफ रखता है।

बालों में रूसी और जुएं:

चुकन्दर के पत्तों को पानी में उबालकर सिर धोने से फरास दूर हो जाती है और जुएं भी मर जाते हैं।

गंजापन:

चुकन्दर के पत्तों का रस निकालकर या पत्तों को पीसकर उसमें हल्दी मिलाकर गंजे सिर पर लगाने से बाल उगने लगते हैं और बालों का टूटकर गिर जाना या बालों का उड़ना भी बंद हो जाता है।

बवासीर:

चुकन्दर खाने या इसका रस पीते रहने से बवासीर के मस्से समाप्त हो जाते हैं।

गांठ:

गांठ के रोगी को शुरुआत के 2 दिन में मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करना चाहिए। तीसरे दिन प्रात:काल 1 गिलास पानी में नींबू का रस और 4 चम्मच शहद मिलाकर पिलाएं। दिन में 4 बार एक कप अंगूर का रस तथा मुसम्मी का रस दिन में 1-2 बार पिलाएं। तथा रोगी को शारीरिक श्रम (मेहनत) न करने दें और उसे पूर्ण रूप से आराम करने दें। चौथे दिन से लगातार कुछ दिनों तक आधा गिलास गाजर का रस और आधा चम्मच चुकन्दर का रस मिलाकर दें। सामान्य, हल्का और अंकुरित अन्न ग्रहण करना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में गांठ पिघल जाएंगी।

शारीरिक सौन्दर्य:

चुकन्दर और गाजर का रस रोजाना सेवन करने से शरीर में खून तेजी से बनता है और शरीर का सौन्दर्य निखरता है।

मानसिक निर्बलता:

चुकन्दर का रस रोजाना पीने और सलाद खाने से मानसिक निर्बलता (दिमागी कमजोरी) नष्ट हो जाती है और इसकी स्मरण शक्ति (याददाश्त) भी बढ़ जाती है।

स्तनों में दूध की वृद्धि:

चुकन्दर का रस रोजाना सेवन करने से स्त्री के स्तनों के दूध में वृद्धि होती है।

पाचनशक्ति:

चुकन्दर का रस रोजाना सेवन करने से पाचन क्रिया (भोजन पचाने की क्रिया) को अधिक शक्ति मिलती है।

कैंसर:

चुकन्दर का रस कैंसरनाशक व शक्तिवर्द्धक माना जाता है। चुकन्दर के रस का सेवन करने से वजन भी बढ़ता है।
आधा कप चुकन्दर का रस रोजाना दिन में 3 या 4 बार रोगी को देने से खून के कैंसर में बहुत लाभ मिलता है।

रक्तविकार:

चुकन्दर का रस रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला) होता है और शरीर को लालसुर्ख बनाये रखता है।

रक्ताल्पता (खून की कमी):

चुकन्दर थेरेपी के तहत पहले दो दिन उपवास रखें। इसके बाद 3 दिन तक किसी भी फल के जूस पर रहें। इसके बाद 200 मिलीलीटर चुकन्दर, 200 मिलीलीटर गाजर व 50 मिलीलीटर पालक का रस दिया जाता है। यह मात्रा एक दिन के लिए होती है। शरीर में खून की कमी होने पर यह प्रयोग बहुत ही लाभकारी होता है।

सिर की रूसी:

चुकन्दर की जड़ और चुकन्दर के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा नमक मिलाकर सिर में मालिश करने से सिर की रूसी कम हो जाती है।

कब्ज:

चुकन्दर को खाने से कब्ज दूर हो जाती है।

कान का दर्द:

चुकन्दर के पत्तों के रस को गुनगुना करके बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है।

मासिक-धर्म सम्बंधी परेशानियां:

1 कप चुकन्दर का रस गर्म करके इसमें थोड़ा सा सेंधानमक मिलाकर कुछ दिनों तक पीने से रुका हुआ मासिक-धर्म खुलकर आने लगता है।

मूत्ररोग:

1 चुकन्दर का रस, 1 चम्मच आंवले का रस तथा 1 चम्मच चौलाई के साग का रस पीने से मूत्र विकार (पेशाब के रोग) दूर हो जाते हैं।

गठिया रोग:

घुटने के दर्द को दूर करने के लिए 1 चम्मच पत्तागोभी का रस, 1 चम्मच चुकन्दर का रस और 1 चम्मच गांठगोभी का रस लेकर उसमें थोड़ा-सा कालानमक और पिसी हुई 2 लौंग डालकर सेवन करने से लाभ होता है

चौलाई के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर खायी जाती है किन्तु इसके सम्पूर्ण लाभ के लिए इसके रस को निकालकर पीना चाहिए। चौलाई की मुख्य रूप से दो किस्में होती हैं। 1. लाल 2. हरी लाल चौलाई के पौधे का तना लालिमा लिए हुए होता है। इसके पत्तों की रेखाएं भी लाल होती हैं। इसके पत्ते लम्बे गोल तथा ज्यादा बड़े न होकर मध्यम आकार के होते हैं। हरी किस्म के चौलाई के पौधों की डण्डी और पत्ते का पूरा भाग हरे रंग का होता है। इसके पत्ते बड़े होते हैं। जल चौलाई इसकी एक कांटेदार किस्म है। इसके गुण कुछ अंशों में बढ़कर परन्तु चौलाई के समान ही होते हैं। औषधि रूप में इसके पंचांग, जड़ और पत्तों का उपयोग होता है।

गुण (Property)

चौलाई में विटामिन `सी´, विटामिन `बी´ व विटामिन `ए´ की अधिकता होती है। विटामिनों की कमी से होने वाले सारे रोगों में चौलाई का रस विशेष लाभ प्रदान करता है। चौलाई का रस शरीर को स्वस्थ करता है तथा शरीर को तरावट देता है। गर्मी को शान्त करती है तथा शुद्ध खून पैदा करती है। यह प्यास को रोकती है। खांसी के लिए लाभदायक होती है तथा पेशाब अधिक मात्रा में लाती है। गर्भावस्था के बाद अथवा अधिक मासिकस्राव या किसी भी कारण से हुए रक्तस्राव (खून बहना) से आई कमजोरी दूर करने में चौलाई का रस बहुत लाभदायक रहता है। शरीर की शिथिलता, कमजोरी दूर करने में, आंखों के रोगों में व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में चौलाई का रस बहुत लाभदायक होता है। यह पेशाब के रोगों को नष्ट करती है और पेशाब की मात्रा भी बढ़ाती है। चौलाई एक बहुत ही उत्तम जहर को खत्म करने वाली सब्जी है यदि भूलवश कोई जहर या जहरीली दवा खा ली गई हो तो चौलाई का 1 गिलास रस उस जहर के असर को खत्म कर देता है। परन्तु ऐसे मामलों में योग्य चिकित्सक की राय भी ले लेनी चाहिए। चौलाई की सब्जी कब्ज को दूर करती है और मुंह के छालों को ठीक कर देती है। चौलाई का कच्चा रस 1 महीने तक नियमित रूप से कम से कम 150 मिलीलीटर तक लेते रहने से बाल टूटकर गिरने, झड़ने बंद हो जाते हैं और नये बाल उगने लगते हैं।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

इसकी सब्जी खाने से देर में हजम होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पथरी:

रोजाना चौलाई के पत्तों की सब्जी खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।

रक्तचाप, बलगम, बवासीर और गर्मी के दुष्प्रभाव:

रोजाना चौलाई की सब्जी खाते रहने से रक्तचाप, बलगम, बवासीर और गर्मी के रोग दूर हो जाते हैं।

भूख:

चौलाई की सब्जी भूख को बढ़ाती है।

विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल):

चौलाई (गेन्हारी) साग के पत्तों को पीसकर विसर्प और जलन युक्त त्वचा पर पर लगाने से जलन मिट जाती है।

दमा:

चौलाई की सब्जी बनाकर दमा के रोगी को खिलाने से बहुत लाभ मिलता है। 5 ग्राम चौलाई के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर चटाने से सांस की पीड़ा दूर हो जाती है।

पागल कुत्ते का काटना:

पागल कुत्ते के काटने के बाद जब रोगी पागल हो जाए, दूसरों को काटने लगे, ऐसी हालत में कांटे वाली जंगली चौलाई की जड़ 50 ग्राम से 125 ग्राम तक पीसकर पानी में घोलकर बार-बार पिलाने से मरता हुआ रोगी बच जाता है। यह विषनाशक होती है। सभी प्रकार के विषों व दंशों पर इसका लेप लाभकारी होता है। चौलाई रूखी होती है तथा यह नशा और जहर के प्रभाव को नष्ट कर देती है। चौलाई की सब्जी रक्तपित्त में भी लाभदायक होती है।

कब्ज:

चौलाई की सब्जी खाने से कब्ज में लाभ मिलता है।

गर्भपात की चिकित्सा:

10 से 20 ग्राम चौलाई (गेन्हारी का साग) की जड़ सुबह-शाम 60 मिलीग्राम से 120 मिलीग्राम “हीराबोल“ के साथ सिर्फ 4 दिन (मासिकस्राव के दिनों में) सेवन कराया जाए तो गर्भधारण होने पर गर्भपात या गर्भश्राव का भय नहीं रहता है।

गुर्दे की पथरी:

रोज चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।

बवासीर (अर्श):

चौलाई की सब्जी खाने से बवासीर ठीक हो जाती है।

मासिक-धर्म संबन्धी विकार:

चौलाई की जड़ को छाया में सुखाकर पीसकर छान लेते हैं। इसकी लगभग 5 ग्राम मात्रा की मात्रा को सुबह के समय खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग 1 सप्ताह पहले सेवन कराना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी रोग दूर हो जाते हैं।

प्रदर रोग:

लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में चौलाई के जड़ के चूर्ण को चावलों के पानी में शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है।
चौलाई की जड़ को चावल धुले हुए पानी के साथ पीसकर उसमें पिसी हुई रसौत और शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।

रक्तप्रदर:

15 ग्राम वन चौलाई की जड़ का रस दिन में 2-3 बार रोजाना पीने से रक्तप्रदर की बीमारी मिट जाती है।चौलाई (गेन्हारी का साग), आंवला, अशोक की छाल और दारूहल्दी के मिश्रित योग से काढ़ा तैयार करके 40 ग्राम की मात्रा में रोजाना 2-3 बार सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की पीड़ा भी दूर हो जाती है और रक्तस्राव (खून का बहना) भी बंद हो जाता है।

स्तनों की वृद्धि:

चौलाई (गेन्हारी) की सब्जी के पंचाग को अरहर की दाल के साथ अच्छी तरह से मिलाकर स्त्री को सेवन कराने से स्त्री के स्तनों में बढ़ोत्तरी होती है।

पेट के सभी प्रकार के रोग:

चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से पेट के रोगों में आराम मिलता है।

गठिया रोग:

गठिया के रोगी के जोड़ों का दर्द दूर करने के लिए चौलाई की सब्जी का सेवन करना चाहिए।

उच्चरक्तचाप:

उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए चौलाई, पेठा, टिण्डा, लौकी आदि की सब्जियों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए, क्योंकि इनमें रक्तचाप को नियन्त्रित करने की शक्ति होती है।

दिल का रोग:

चौलाई की हरी सब्जी का रस पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।

नासूर (नाड़ी) के लिए:

यदि नाड़ी व्रण (जख्म) में ज्यादा दर्द हो और वह पक न रहा हो तो उस पर चौलाई के पत्तों की पट्टी बांधने से लाभ होता है।

नहरूआ (स्यानु):

नहरूआ के रोगी को चौलाई की जड़ को पीसकर घाव पर बांधने से रोग दूर हो जाता है।
चौलाई की सब्जी खाने से नहरूआ के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

चावल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

धान को ओखली में या मशीनों द्वारा पीसकर उसके ऊपर छिल्कों को अलग किया जाता है। बिना छिलके के धान के दानों को चावल कहा जाता है। चावल के शीतल एवं शक्तिवर्द्धक होने के कारण दुनिया भर के लोग चावल का उपयोग दैनिक भोजन के रूप में करते हैं। चावल मुख्यत: बारिश के मौसम की फसल होती है। कामोद, पंखाली, पंचसाल, आम्रमोर, राजभोग, जीरासार, कालीसार, रातीसार, बेरसाल, वॉकसाल, राजावल, हन्सराज, बासमती, इलायची, पी.आर 12, पी.आर 13 साबरमती आदि पतले और जाया, पन्त 4 आदि मोटे चावल की प्रमुख किस्में हैं। आयुर्वेद के अनुसार केवल 60 दिनों में तैयार होने वाले साठी चावल अधिक गुणकारी माने जाते हैं। साठी चावल संग्रहणी, पेचिश और मंदाग्नि (भूख कम लगना) को समाप्त करता है। ये चावल पाचक और बलकारी होते हैं तथा वायु पैदा नहीं करते हैं अत: इन्हें निर्दोष एवं पथ्यकर माना गया है। कारखाने में पालिश किए हुए चावलों की अपेक्षा हाथकूट (घर में ओखली-मूसल के द्वारा कूटना) के चावल बहुत ही उत्तम होते हैं। ऐसे चावल मधुर तथा पुष्टकारक और अति उत्तम होते हैं। चावलों में चर्बी (स्निग्धता) का तत्व बहुत कम होने से ये पचने में अतिशय लघु और हल्के होते हैं। अत: बच्चों व बीमारों के लिए पके हुए चावल और मूंग की दाल लाभदायक होती है। चावल के साथ दाल मिलाने से उसका वायुकारक गुण कम हो जाता है और पौष्टिक गुण बढ़ता है। चावल में अरहर, मूंग व चना आदि की दाल की खिचड़ी बनायी जाती है। केवल भात की अपेक्षा खिचड़ी अधिक पौष्टिक है। खिचड़ी की अपेक्षा चावल और दाल अलग-अलग पकाकर मिश्रण करके खाने से पाचन जल्दी होता है तथा ये अधिक स्वादिष्ट लगती है। कुछ लोग चावल को पकाते समय उसके माण्ड को निकालकर बाहर निकाल देते हैं। यह ठीक नहीं हैं। चावल का मांड अत्यंत शीतल और पौष्टिक होता है।

गुण (Property)

चावल प्यास को रोकता है। शरीर को ताजा और मोटा करता है। वीर्य को बढ़ाता है तथा पेचिश, मरोड़, आंव, खूनी आंव, खूनी दस्तों आदि को रोकता है। यह गुर्दे तथा मसानों के रोगों को नष्ट करता है। यदि हम चावल को पीसकर मुंह पर मले तो यह निशान को मिटाता है। इसके धानयुक्त छिलका खाना हानिकारक होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चावल का अधिक मात्रा में सेवन गांठे पैदा करता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

यकृत शक्तिवर्द्धक:

सूर्योदय से पहले उठकर 1 चुटकी कच्चे चावल मुंह में रखकर पानी से सेवन करने से यकृत (जिगर) बहुत मजबूत होता है।

गर्मीनाशक:

चावल की प्रकृति ठण्डी होती है। पेट में गर्मी भारी होने पर एवं गर्मी के मौसम में रोजाना चावल खाने से शरीर को ठण्डक मिलती है।

पेचिश व रक्तप्रदर:

एक गिलास चावल के पानी में मिश्री मिलाकर पीने से पेचिश व रक्तप्रदर नष्ट हो जाता है।

दस्त:

चावल पकाने पर इसका उबला हुआ पानी जिसे माण्ड कहा जाता है। यह दस्तों के लिए लाभदायक होता है। बच्चों को आधा कप और जवानों को 1 कप हर घंटे के बाद पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं। इसे छोटे बच्चों को कम मात्रा में पिला सकते हैं। इस माण्ड में थोड़ा-सा नमक मिलाकर सेवन करने से यह स्वादिष्ट, पौष्टिक और सुपाच्य होता है। इसमें नमक मिलाकर इसे दस्तों में पीने से लाभ मिलता है। इस माण्ड को 6 घंटे से अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए।
उबले हुए चावल में सेंधानमक को मिलाकर छाछ या दही के साथ प्रयोग करने से अतिसार (दस्त) में आराम होता है।
चावल के पके हुए पानी को 2 चम्मच और 1 कप पानी में मिलाकर हर घंटे के बाद पीने से लाभ मिलता है।
चावलों को पकाकर प्राप्त मांड को या चावल को दही के साथ खाने से दस्त में लाभ मिलता है।

माण्ड बनाने की सरल विधि:

100 ग्राम चावल आटे की तरह पीस लेते हैं। इसे 1 लीटर पानी में उबालते हैं। भली प्रकार उबालने के पश्चात इसे छानकर स्वाद के अनुसार नमक मिला लेते हैं। इसे बच्चों को आधा कप और जवानों को 1 कप हर घंटे के बाद पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं। इसे छोटे बच्चों को कम मात्रा में पिला सकते हैं। दस्तों में यह बहुत लाभकारी होता है।

कोलेस्ट्राल व रक्तचाप:

लम्बे समय तक चावल खाते रहने से कोलेस्ट्राल कम हो जाता है और रक्तचाप भी ठीक रहता है।

फोड़ा:

पिसे हुए चावलों की पोटली सरसों के तेल में बनाकर बांधने से फोड़ा फूट जाता है एवं पस निकल जाती है।

कब्ज:

1 भाग चावल और 2 भाग मूंग की दाल की खिचड़ी में घी मिलाकर खाने से कब्ज दूर हो जाती है।

गर्भावस्था की वमन (उल्टी):

50 ग्राम चावल को लेकर 250 मिलीलीटर पानी में भिगो देते हैं। आधा घंटा बीतने के बाद इसमे 5 ग्राम धनिया भी डाल देते हैं। 10 मिनट के बाद इसे मलकर छानकर निकाल लेते हैं। 4 बार में इसे 4 हिस्से करके पिलाएं। इसके प्रयोग से गर्भवती स्त्री की उल्टी तुरन्त ही बंद हो जाती है।

भांग का नशा:

चावलों का पानी पीने से भांग का नशा उतर जाता है।

पेशाब में जलन व रुकावट:

आधा गिलास चावल के माण्ड में चीनी मिलाकर सेवन करने से पेशाब मे रुकावट और जलन दूर हो जाती है।

चेहरे की झांई:

सफेद चावलों को पानी में भिगोकर उस पानी से चेहरे को धोने से चेहरे की झांई और कालिमा मिटकर चेहरे का रंग साफ और सुन्दर हो जाता है।
चावल का आटा लेकर उसकी लेई बना लें। इसके अन्दर 1 चुटकी चंदन का चूरा, 1 चुटकी पिसी हुई हल्दी और 2 चम्मच गुलाबजल डालकर बहुत अच्छी तरह मिलाते रहना चाहिए। इसके बाद आधे घंटे के लिए इसे धूप में रख दें। मेकअप करने से आधा घंटा पहले इसे चेहरे पर लगाये और अच्छी तरह से रगड़ते रहे। बाद में हल्के गुनगुने पानी से अच्छी तरह धोकर मेकअप कर लें। चेहरे में एक नयी खूबसूरती नज़र आयेगी।

शीतला (मसूरिका) ज्वर:

चावल का पानी बनाकर पांवों के तलवों की फुंसियों पर लगाने से जलन शांत हो जाती हैं।

वमन (उल्टी):

चावलों को पानी में भिगोकर रख लें। 4 घंटे के बाद चावलों को पानी में मसलकर छान लें। फिर उस छने हुए पानी में थोड़ा-सा धनिया मिलाकर पीने से उल्टी आना बंद हो जाती है। गर्भावस्था में (मां बनने के समय में) उल्टी को बंद करने के लिए यह बहुत लाभकारी है।
चावलों के पानी में 3 चम्मच बेलगिरी का रस मिलाकर पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।

अतिक्षुधा भस्मक रोग (भूख अधिक लगना):

सफेद चावल और सफेद कमल का दाना बकरी के दूध में खीर बनाकर उसका सेवन करने से भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) में लाभ होता है।
100 ग्राम सफेद चावल को 500 मिलीलीटर ऊंटनी के दूध में डालकर खीर बना लें और उसमें घी डालकर खाने से 12 दिन में भस्मक-रोग मिट जाता है।

हिचकी का रोग:

चावल के चिरवे (भाड़ पर भुने हुए) पानी में 10 मिनट तक भिगोकर पीस लें। जिससे चटनी बन जाये। उसमें सेंधानमक और कालीमिर्च मिलाकर खिलायें। इससे हिचकी बंद हो जाती है।

गर्भवती स्त्री का अतिसार:

चावल के सत्तू, आम या जामुन की छाल के काढ़े के साथ गर्भवती स्त्री को सेवन कराने से अतिसार (दस्त) और ग्रहणी नष्ट हो जाती है।

संग्रहणी के आने पर:

2 से 3 ग्राम चावल दिन में 2 बार खाने से संग्रहणी अतिसार (दस्त) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

खूनी अतिसार के आने पर:

चावल के पानी में 20 ग्राम चंदन को घिसकर, मिश्री और शहद मिलाकर सेवन करने से रक्तातिसार मिट जाता है।
50 ग्राम चावलों को 250 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। 2 घंटों के बाद इस पानी में मिश्री को मिलाकर पीने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

आंवरक्त (पेचिश):

चावलों को उबालकर दही में मिलाकर और उसमें भुना हुआ जीरा और स्वाद के अनुसार सेंधानमक भी डालककर खाने से पेचिश के रोगी को लाभ मिलता है।

चाय के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चाय एक प्रकार के पेड़ की पत्ती होती है। यह बहुत प्रसिद्ध है। चाय नियमित पीने के लिए नहीं है। यह आवश्यकतानुसार पीने पर लाभदायक होती है। चाय वायु और ठंडी प्रकृति वालों के लिए हितकारी है। भूखे पेट चाय पीने से पाचन शक्ति खराब होती है तथा सोते समय चाय पीने से नींद कम आती है। चाय से स्नायुविक दर्द न्यूरेल्जिया और रक्तचाप बढ़ता है। अत: ऐसे रोगियों के लिए चाय हानिकारक होती है।

यद्यपि चाय को दवा के रूप में विभिन्न कष्टों में प्रयोग करके लाभान्वित हो सकते हैं, किन्तु फिर भी इसे दैनिक पेय के रूप में प्रयोग करने से हानियां होती हैं। चाय आजकल संसार भर में घर-घर आतिथ्य सत्कार का प्रतीक है। घर, प्रवास, खेलकूद के मैदानों, महफिलों, सेमिनारों, राजनीतिक बैठक या सम्मेलनों, कवि सम्मेलन या मुशायरा आदि किसी भी आयोजनों में देखें। सभी जगहों पर चाय का प्रवेश हो चुका है।

नियमित रूप से चाय पीने से यह बहुत अधिक नुकसान करती है। यह पाचनशक्ति को नष्ट करती है और रक्त को जलाकर शरीर को सुखा देती है। चाय बुद्धिजीवियों, मस्तिष्क से काम लेने वालों और ठंडे प्रदेश के निवासियों का पेय माना जाता है। ज्ञान तन्तुओं को यह क्षणिक उत्तेजना देती है। चाय मस्तिष्क की अपेक्षा मांस, धातु पर उत्तेजक प्रभाव डालती है। चाय पीने के बाद शारीरिक थकान कम लगती है। परन्तु अधिक चाय पीने से पाचनशक्ति खराब हो जाती है। चाय में कोई पोषक तत्व नहीं होता है। इसकी पत्तियों में प्रोटीन होता है। परन्तु चाय जिस विधि से बनाई जाती है। उस तरीके से बनी हुई चाय हानिकारक होती है।

गुण (Property)

  1. जुखाम: यदि जुकाम, सिर दर्द, बुखार तथा खांसी ठण्ड से हो, आंख से पानी निकलता हो या पतला झागदार, श्लेष्मा (कफ, बलगम) नाक से निकलता हो तो चाय पीना लाभदायक होता है। इससे ठण्ड दूर होकर पसीना आता है तथा सर्दी में आराम मिलता है। यदि जुखाम खुश्क हो जाए, कफ गाढ़ा, पीला बदबूदार हो और सिरदर्द हो तो चाय पीना हानिकारक होता है।
  2. पेशाब अधिक लानाः चाय पेशाब अधिक लाती है जहां पेशाब कराना ज्यादा जरूरी हो, चाय पीना लाभदायक होता है।
  3. जलना: किसी भी तरह कोई अंग जल गया हो, झुलस गया हो तो चाय के उबलते हुए पानी को ठण्डा करके उसमें साफ कपड़ा भिगोकर जले हुए अंग पर रखें एवं पट्टी बांधे। यह पट्टी बार-बार बदलते रहें। इससे जले हुए अंगों पर फफोले नहीं पड़ते और त्वचा पर जलने का निशान भी खत्म हो जाता है।
  4. बवासीर: चाय की पत्तियों को पानी में पीसकर गर्म करें और गर्म-गर्म पिसी हुई चाय का बवासीर पर लेप करें। इससे बवासीर का दर्द दूर हो जाता है। चाय की पत्तियों को पीसकर मलहम बना लें और इसे गर्म करके मस्सों पर लगायें। इस मलहम को लगाने से मस्से सूखकर गिरने लगते हैं।
  5. पेचिश: चाय में पालिफिनोल तत्व पाया जाता है जो पेचिश के कीटाणुओं को नष्ट करता है। पेचिश के रोगी चाय पी सकते हैं। इससे लाभ मिलता है।
  6. अम्लपित्त: अम्लपित्त के रोगी के लिए चाय बहुत ही हानिकारक होता है।
  7. मोटापा दूर करना: चाय में पोदीना डालकर पीने से मोटापा कम हो जाता है।
  8. अवसाद उदासीनता सुस्ती: पानी में चाय की पत्तियों को उबालकर इस पानी को गर्म-गर्म पीने से शरीर के अन्दर जोश आ जाता है और आलस्य या अवसाद खत्म हो जाता है। आग से जलने पर: चाय के उबले हुए पानी को ठण्डा करके किसी साफ कपड़े के टुकड़े या रूई से शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जलन और दर्द समाप्त हो जाता है। 10. गले में गांठ का होना: चाय की पत्तियों को उबालकर और छानकर इसके पानी से गरारे करने से भी गले में आराम मिलता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

अनिद्रा के रोगी तथा नशीली दवा खाने वालों के लिए चाय हानिकारक है। ऐसे रोगी यदि चाय पिये तो रोग बहुत गंभीर बन जाएगा। चाय पीने से नींद कम आती है। चाय अम्ल पित्त और परिणाम शूल वालों के लिए हानिकारक है। यह खुश्की लाती है तथा दमा पैदा करती है। भूख न लगना : चाय को ज्यादा देर तक उबालने से उसमें से टैनिन नामक रसायन निकलता है जो पेट की भीतरी दीवार पर जमा हो जाता है जिसके कारण भूख लगना बंद हो जाता है। वात : चाय पेशाब में यूरिक एसिड बढ़ाती है। यूरिक एसिड से गठिया, जोड़ों की ऐंठन बढ़ती है। अत: वात के रोगियों को चाय नहीं पीना चाहिए। चाय वीर्य को पतला करती है अत: नवयुवक इसे सोचसमझकर पीयें। चाय यकृत को कमजोर करती है तथा खून को सुखाती है। चाय त्वचा में सूखापन, खुश्की लाता है जिससे सूखी खुजली चलती है और त्वचा सख्त होती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

चाय का विभिन्न रोगों में उपयोग :

  1. जुखाम: यदि जुकाम, सिर दर्द, बुखार तथा खांसी ठण्ड से हो, आंख से पानी निकलता हो या पतला झागदार, श्लेष्मा (कफ, बलगम) नाक से निकलता हो तो चाय पीना लाभदायक होता है। इससे ठण्ड दूर होकर पसीना आता है तथा सर्दी में आराम मिलता है। यदि जुखाम खुश्क हो जाए, कफ गाढ़ा, पीला बदबूदार हो और सिरदर्द हो तो चाय पीना हानिकारक होता है।
  2.  पेशाब अधिक लानाः चाय पेशाब अधिक लाती है जहां पेशाब कराना ज्यादा जरूरी हो, चाय पीना लाभदायक होता है।
  3. जलना: किसी भी तरह कोई अंग जल गया हो, झुलस गया हो तो चाय के उबलते हुए पानी को ठण्डा करके उसमें साफ कपड़ा भिगोकर जले हुए अंग पर रखें एवं पट्टी बांधे। यह पट्टी बार-बार बदलते रहें। इससे जले हुए अंगों पर फफोले नहीं पड़ते और त्वचा पर जलने का निशान भी खत्म हो जाता
  4. बवासीर :चाय की पत्तियों को पानी में पीसकर गर्म करें और गर्म-गर्म पिसी हुई चाय का बवासीर पर लेप करें। इससे बवासीर का दर्द दूर हो जाता है
    चाय की पत्तियों को पीसकर मलहम बना लें और इसे गर्म करके मस्सों पर लगायें। इस मलहम को लगाने से मस्से सूखकर गिरने लगते हैं
  5. पेचिश: चाय में पालिफिनोल तत्व पाया जाता है जो पेचिश के कीटाणुओं को नष्ट करता है। पेचिश के रोगी चाय पी सकते हैं। इससे लाभ मिलता है
  6. अम्लपित्त: अम्लपित्त के रोगी के लिए चाय बहुत ही हानिकारक होता है।
  7. मोटापा दूर करना: चाय में पोदीना डालकर पीने से मोटापा कम हो जाता है।
  8. अवसाद उदासीनता सुस्ती: पानी में चाय की पत्तियों को उबालकर इस पानी को गर्म-गर्म पीने से शरीर के अन्दर जोश आ जाता है और आलस्य या अवसाद खत्म हो जाता है।
  9. आग से जलने पर: चाय के उबले हुए पानी को ठण्डा करके किसी साफ कपड़े के टुकड़े या रूई से शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जलन और दर्द समाप्त हो जाता है।
  10. गले में गांठ का होना: चाय की पत्तियों को उबालकर और छानकर इसके पानी से गरारे करने से भी गले में आराम मिलता है।

चुकन्दर के बीज के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चुकन्दर के बीज कलौंछी रंग लिए हुए होते हैं। इसके बीजों का स्वाद बहुत ही प्रसिद्ध है। चुकन्दर के बीज बहुत ही प्रसिद्ध है।

गुण (Property)

चुकन्दर के बीजों के प्रयोग से पेशाब और मासिक-धर्म खुलकर आता है तथा यह कफ को छांटता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चुकन्दर के बीजों का अधिक मात्रा में सेवन आमाशय के लिए हानिकारक होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग) : चुकन्दर के पत्ते का रस सिर में मालिश करने से गंजेपन का रोग मिट जाता है और सिर में नये बाल आना शुरू हो जाते हैं।

दही के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction

दही में प्रोटीन की क्वालिटी सबसे अच्छी होती हैं। दही जमाने की प्रक्रिया में बी विटामिनों में विशेषकर थायमिन, रिबोफ्लेवीन और निकोटेमाइड की मात्रा दुगुनी हो जाती है। दूध की अपेक्षा दही आसानी से पच जाता है।

दही पांच प्रकार की होती है।

1. मन्द

2. स्वादु

3. स्वाद्वम्ल

4. अम्ल

5. अत्यम्ल

1. मन्द दही : जो दही दूध की तरह अस्पष्ट रस वाला अर्थात आधा जमा हो और आधा न जमा हो, वह मन्द (कच्चा दही) कहलाता है। मन्द (कच्चे दही) का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके सेवन से विष्ठा तथा मूत्र की प्रवृत्ति, वात, पित्त, कफ तथा जलन आदि रोग पैदा होते हैं।

2. स्वादु दही : जो दही अच्छी तरह से जमा हुआ हो, मधुर खट्टापन लिए हुए हो उसे स्वादु दही कहा जाता है। स्वादु दही नाड़ियों को अत्यन्त रोकने वाला और रक्तपित्त को साफ करने वाला होता है।

3. स्वाद्वम्ल दही : जो दही अच्छी तरह जमा हुआ मीठा और कषैला होता है। वह `स्वाद्वम्ल` कहलाता है। `स्वाद्वम्ल` दही के गुण साधारण दही के गुणों के जैसे ही होते हैं।

4. अम्ल दही : जिस दही में मिठास नहीं होती है और खट्टापन ज्यादा होता है। वह दही अम्ल यानि खट्टा दही कहलाता है। अम्ल दही (खट्टा दही) पाचन शक्ति को बढ़ाने  वाला रक्तपित्त को बिगाड़ने वाला और रक्तपित्त तथा कफ (बलगम) को बढ़ाने वाला होता है।

5. अत्यम्ल दही : जिस दही को खाने से दांत खट्टे हो जाएं, रोंगटे खडे़ हो जाए और कंठ आदि में जलन हो, वह दही अत्यम्ल कहलाता है। यह दही पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला एवं गैस तथा पित्त (गर्मी) को पैदा करता है।

गुण (Property)

गर्म दिमाग वालों के लिए दही बहुत गुणकारी है। दही प्यास को रोकता है, दही की मलाई को सिर पर मसाज करने से वही फायदा मिलता जो घिया, लौकी के बीज से मिलता है। दही को अगर चेहरे पर लगाया जाये तो चेहरे की झांई, रूखापन और कालापन दूर होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

खट्टा दही पित और बलगम को पैदा करता है। ज्यादा खट्टा दही खाने से दांत खट्टे होते हैं और शरीर के रोये खड़े हो जाते हैं, पेट में जलन भी होती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

अपच:

दही में भुना हुआ पिसा जीरा, नमक और कालीमिर्च डालकर रोजाना खाने से अपच (भोजन न पचना) ठीक हो जाता है और भोजन जल्दी पच जाता है।

आधासीसी का दर्द:

यदि सिर दर्द सूर्य के साथ बढ़ता और घटता है तो इस तरह के सिर दर्द को आधासीसी (आधे सिर का दर्द) कहते हैं। आधासीसी (आधे सिर का दर्द) का दर्द दही के साथ चावल खाने से ठीक हो जाता है। सुबह सूरज उगने के समय सिर दर्द शुरू होने से पहले रोजाना चावल में दही मिलाकर खाना चाहिए।

बवासीर:

जब तक बवासीर में खून आता रहे तब तक केवल दही ही खाते रहें बाकी सारी चीजे बंद कर दें। इससे बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।

बच्चों का भोजन:

दही, मां के दूध के बाद बच्चे का सबसे अच्छा भोजन होता है। बुल्गोरिया में जिन बच्चों को मां का दूध उपलब्ध नहीं हो पाता है। उन बच्चों को खाने के लिए दही ही दिया जाता है।

फरास:

1 कप दही में नमक मिलाकर मिला लें। इस दही को बालों में लगाने से सिर की फरास दूर हो जाती है।

फोड़े, सूजन, दर्द जलन:

अगर शरीर में फोड़े, सूजन, दर्द जलन हो तो पानी निकाला हुआ दही बांधे, एक कपड़े में दही डालकर पोटली बांधकर लटका देते हैं। इससे दही का पानी निकल जाएगा। फिर इसे फोड़े पर लगाकर पट्टी बांध देते हैं। 1 दिन में 3 बार पट्टी को बदलने से लाभ होता है।

अनिद्रा:

दही में पिसी हुई कालीमिर्च, सौंफ, तथा चीनी मिलाकर खाने से नींद आ जाती है।

भांग का नशा:

ताजा दही खिलाते रहने से भांग का नशा उतर जाता है।

काली खांसी:

2 चम्मच दही, 1 चम्मच चीनी तथा लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कालीमिर्च को शहद में मिलाकर बच्चे को चटाने से बच्चों की काली खांसी मिट जाती है।

बालों का झड़ना:

खट्टे दही को बालों की जड़ों में लगाकर थोड़ी देर मालिश करने के बाद उसे ठण्डे पानी से धो लें। इससे बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।
गंजेपन का रोग:

दही को तांबे के बर्तन से ही इतनी देर रगडे़ कि वह हरा हो जाए। इसको सिर में लगाने से सिर की गंजेपन की जगह बाल उगना शुरू हो जाते हैं।

अफारा (पेट में गैस का बनना):

दही की छाछ (दही का खट्टा पानी) को पीने से अफारा (पेट की गैस) में लाभ होता है।

रतौंधी:

दही के पानी में कालीमिर्च को पीसकर आंखों में काजल की तरह लगाने से रतौंधी के रोग में आराम आता है।

जीभ की प्रदाह और सूजन:

  • दही में पानी मिलाकर रोजाना गरारे करने से जीभ की जलन खत्म हो जाती है।
  • दही के साथ पका हुआ केला सूर्योदय (सूरज उगने से पहले) से पहले खाने से जीभ में होने वाली फुन्सियां खत्म हो जाती है।

दशमूल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

लघु पंचमूल और बृहतपंचमूल दोनों को मिलाकर दशमूल बनता है।

गुण (Property)

दशमूल त्रिदोषनाशक, श्वास (दमा), खांसी, सिर दर्द, सूजन, बुखार, पसली का दर्द, अरुचि (भोजन का मन न करना) और अफारा (पेट में गैस) को दूर करता है। स्त्रियों के प्रसवकाल में यह बहुत उपयोगी है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

  1. अंडकोष की सूजन: 14 से 28 मिलीलीटर दशमूल के काढ़े को 7 से 14 मिलीलीटर एरंड के तेल में मिलाकर रोजाना सुबह सेवन करने से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।

    2. दांत मजबूत करना: सरसों के तेल में दशमूल काढ़ा डालकर आग पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर इससे दाँत एवं मसूढ़ों पर मलने से मसूढ़े मजबूत होते हैं।

    3. गर्भवती स्त्री का बुखार: दशमूल के गर्म काढ़े में शुद्ध घी को मिलाकर सेवन करने से गर्भवती स्त्री का प्रसूत ज्वर मिट जाता है।

    4. बहरापन: दशमूल काढ़े को तेल में पकाकर ठंडा कर लें। फिर इस तेल को चम्मच में लेकर गुनगुना करके 2-2 बूंद करके दोनो कानों में डालने से बहरापन दूर होता है।

    5. कमरदर्द: 14 से 28 मिलीलीटर दशमूल काढे़ को 7-14 मिलीलीटर एरण्ड के तेल के साथ मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से कमर दर्द से आराम मिलता है।

    6. कनफेड: फिटकरी, माजूफल, पलाश, पापड़ी और मुर्दासंग को एक साथ लेकर खिरनी के रस में मिलाकर कनफेड पर लगाने से आराम आता है।

    7. जनेऊ (हर्पिस) रोग: दशमूल रस 40 से 90 ग्राम रोजाना 4 बार प्रयोग में लाने से जनेऊ रोग में लाभ मिलता है।

    8. सभी प्रकार के दर्द होने पर: दशमूल ( बेल, श्योनाक, गंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) को पकाकर काढ़ा बना लें, फिर इसमें जवाखार और सेंधानमक मिलाकर खाने से दिल के दर्द (हृदय शूल), श्वास (दमा), खाँसी, हिचकी और पेट में गैस के गोले आदि रोग समाप्त होते हैं।

    9. पेट में दर्द: दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) को पीसकर काढ़ा बनाकर गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से पित्तोदर यानी पित्त के कारण होने वाले पेट के दर्द में राहत मिलती है।

    10. गठिया रोग: घुटने के दर्द में एरण्ड के तेल को दशमूल काढ़े के साथ सेवन करना चाहिए। इससे रोगी को तुरन्त फायदा मिलता है।

    11. पीलिया का रोग: दशमूल काढ़े का एक कप रस लेकर उसमें आधा चम्मच सोंठ तथा 2 चम्मच शहद मिलाकर सुबह 8-10 दिन तक सेवन करने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।

    12. शरीर का सुन्न पड़ जाना: दशमूल के काढ़े में पुष्कर की जड़ को मिलाकर पीने से शरीर का सुन्न होना दूर हो जाता है।

    13. सिर का दर्द: दशमूल के काढ़े में घी और सेंधानमक को मिलाकर सूंघने से सिर दर्द के अलावा आधासीसी (आधे सिर का दर्द) का दर्द भी खत्म हो जाता है।

    14. लिंगोद्रेक (लिंग उत्तेजित होने पर): 10 से 100 ग्राम दशमूल का रस दिन में 4 बार 6-6 घंटों पर सेवन करने से लिंग उत्तेजित होने का रोग दूर हो जाता है।

    15. शोथ (सूजन) का ज्वर:

    दशमूल और सोंठ का काढ़ा बनाकर पीने से सूजन के बुखार में लाभ होता है।
    शहद मिलाकर रोजाना सुबह-सुबह रोगी को पिलाने से सूजन के बुखार, प्रसूति बुखार, सन्निपात ज्वर और अनेक प्रकार के वात रोगों में लाभ होता है।

    16. सन्निपात ज्वर:

  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) के काढ़े में छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से नींद (तन्द्रा यानी अनिद्रा), खाँसी, श्वास (दमा), कण्ठ अवरोध (गले की खराबी), हृदयावरोध (दिल का रोग), पसलियों का दर्द तथा वात, पित्त और कफ दूर होता है। साथ ही साथ सन्निपात बुखार नष्ट हो जाता है।
  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) के काढ़े में उतना ही अदरक का रस, कायफल, पोहकरमूल, सोंठ, कालीमिर्च, काकड़ासिंगी, पीपल, जवासा तथा अजवायन आदि को मिलाकर पिलाने से सन्निपात बुखार से पीडि़त मरीज को छुटकारा मिलता है।
  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरियवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) और कचूर, काकड़ासिंगी, पोहकरमूल, धमासा, भांरगी, कुड़े के बीज़, पटोल के पत्ते और कुटकी आदि को मिलाकर पकाकर काढ़ा बना लें। इस बने काढ़े को पीने से त्रिदोष बुखार, खाँसी, नींद व आना, प्रलाप, दाह (जलन) और अरुचि (भूख न लगना) के रोग समाप्त हो जाते हैं।
  • दशमूल (बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय), त्रिकुटा, सोंठ, भारंगी और गिलोय को मिलाकर काढ़ा बना लें, इस बने काढ़े को सेवन करने से सन्निपात बुखार में लाभ होता है।
  1. वात-पित्त का बुखार: बेल, श्योनाक, खंभारी, पाढ़ल, अरलू, सरिवन, पिठवन, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी और गिलोय) और अडू़से के काढ़े में शहद मिलाकर रोगी को पिलाने से कफ के बुखार में लाभ मिलता है।

दालचीनी के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

दालचीनी विश्व में मसालों के रूप में काम में ली जाती है। यह एक पेड़ की छाल होती है।

गुण (Property)

दालचीनी मन को प्रसन्न करती है। सभी प्रकार के दोषों को दूर करती है। यह पेशाब और मैज यानी की मासिक-धर्म को जारी करती है। धातु को पुष्ट करती है। मानसिक उन्माद यानी कि पागलपन को दूर करती है। इसका तेल सर्दी की बीमारियों और सूजनों तथा दर्दो को शान्त करता है। सिरदर्द के लिए यह बहुत ही गुणकारी औषधि होती है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

दालचीनी का अधिक मात्रा में सेवन मसानों के लिए हानिकारक होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

हकलाना तुतलाना:

दालचीनी को रोजाना सुबह-शाम चबाने से हकलापन दूर होता है।

वीर्यवर्द्धक:

दालचीनी को बहुत ही बारीक पीस लेते हैं। इसे 4-4 ग्राम सुबह व शाम को सोते समय दूध से फांके। इससे दूध पच जाता है और वीर्य की वृद्धि होती है।

पेट में गैस:

  • दालचीनी पेट की गैस को नष्ट करती है तथा पाचनशक्ति (भोजन पचाने की क्रिया) को बढ़ाती है।
  • 2 चुटकी दालचीनी को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर पानी के साथ लेने से पेट की गैस नष्ट हो जाती है।
  • दालचीनी के तेल में 1 चम्मच चीनी (शक्कर) डालकर पीने से पेट की गैस में लाभ होता हैं। ध्यान रहे कि अधिक मात्रा में लेने से हानिकारक होती है।

पित्त की उल्टी:

दालचीनी को पीसकर शहद में मिलाकर रोगी को पिलाने से पित्त की उल्टी बंद हो जाती है।

कब्ज:

दालचीनी, सोंठ, जीरा और इलायची थोड़ी सी मात्रा में मिलाकर खाते रहने से कब्ज और अजीर्ण (भूख न लगना) में लाभ होता है।

इनफ्लुएंजा:

5 ग्राम दालचीनी, 2 लौंग और चौथाई चम्मच सोंठ को लेकर पीसकर 1 लीटर पानी में उबालें। चौथाई पानी के शेष रहने पर छानकर इस पानी के 3 हिस्से करके दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से इनफ्लुएंजा में लाभ मिलता है।

गले का काग (कौआ) की वृद्धि हो जाना:

दालचीनी को बारीक पीसकर अंगूठे से सुबह के समय काग पर लगाएं और रोगी को लार टपकाने के लिए बोलें। इस प्रयोग से गले की कागवृद्धि दूर हो जाएगी।

अपच:

दालचीनी की 2 ग्राम छाल के चूर्ण को दिन में दो बार पानी से लेने से अपच (भोजन का न पचना) का रोग ठीक हो जाता है।

भूख न लगना:

2 ग्राम दालचीनी और अजवायन को बराबर मात्रा में लेकर 3 भाग करके भोजन से पहले चबाने से भूख लगने लगती है।

खांसी:

  • दालचीनी को चबाने से सूखी खांसी में आराम मिलता है और यदि गला बैठ गया हो तो आवाज साफ हो जाती है।
    • चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर को 1 कप पानी में उबालकर 3 बार पीते रहने से खांसी ठीक हो जाती है तथा बलगम बनना बंद हो जाता है।
    • 20 ग्राम दालचीनी, 320 ग्राम मिश्री, 80 ग्राम पीपल, 40 ग्राम छोटी इलायची, 160 ग्राम वंशलोचन को बारीक पीसकर मिलाकर मैदा की छलनी से छान लेते हैं। इसके बाद एक चम्मच शहद को आधा चम्मच मिश्रण में मिलाकर सुबह-शाम चाटे जो लोग शहद नहीं लेते हैं वे गर्म पानी से फंकी करें। यह मिश्रण घर में रखते हैं। जब कभी किसी को खांसी हो इसे देने से लाभ होता है।
    • 50 ग्राम दालचीनी पाउडर, 25 ग्राम पिसी मुलहठी, 50 ग्राम मुनक्का, 15 ग्राम बादाम की गिरी, 50 ग्राम शक्कर को लेकर बारीक पीसकर पानी मिलाकर मटर के दाने के आकार की गोलियां बना लेते हैं। जब भी खांसी हो 1 गोली चूसे अथवा हर 3 घंटे बाद एक गोली चूसे। इससे खांसी नहीं चलेगी और मुंह का स्वाद हल्का होगा।
    • कायफल के चूर्ण को दालचीनी के साथ खाने से पुरानी खांसी और बच्चों की कालीखांसी दूर हो जाती है।

दमा:

दालचीनी का छोटा सा टुकड़ा, चौथाई अंजीर या तुलसी के पत्ते, नौसादर (खाने वाला) ज्वार के दाने के बराबर, 1 बड़ी इलायची, काली दाख 4 (काले मुनक्के) थोड़ी सी मिश्री को मिलाकर बारीक पीसकर सेवन करने से दमे के रोग में लाभ होता है। विधि : एक कप पानी में सभी चीजों को लेकर उबाल लेते हैं। जब आधा पानी शेष रह जाए तो छानकर रोजाना सुबह व शाम को पीना चाहिए। पीने के आधा घंटे बाद तक कुछ न खाएं, पानी भी न पियें। इसके सेवन करने से दमे का दौरा समाप्त हो जाता है।

गठिया (जोड़ों का दर्द/सूजन):

  • 1 भाग शहद, 2 भाग हल्का गर्म पानी और 1 छोटी चम्मच दालचीनी पाउडर को मिला लेते हैं। जिस जोड़ में दर्द कर रहा हो, उस पर धीरे-धीरे इसकी मालिश करें। दर्द कुछ ही मिनटों में मिट जाएगा।
  • 1 गिलास दूध में 1 गिलास पानी मिलाकर इसमें 1 चम्मच पिसी हुई दालचीनी, 4 छोटी इलायची, 1-1 चम्मच सोंठ व हरड़ तथा लहसुन की 3 कली के छोटे-छोटे टुकडे़ डालकर उबालें जब दूध आधा शेष रह जाए तो इसे गर्म ही पीना चाहिए। लहसुन को भी दूध के साथ ही निगल जाना चाहिए। इससे आमवात व गठिया में लाभ मिलता है।

बालों का झड़ना:

आलिव ऑयल गर्म करके इसमें 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर, लेप बनाकर, सिर में बालों की जड़ों व त्वचा पर स्नान करने से 15 मिनट पहले लगा लें। जिन लोगों के सिर के बाल गिरते हो और जो गंजे हो गये हो उन्हें लाभ होता है।

बालों का दोमुंहा होना:

  • बालों पर एक चमकदार और सुरक्षित परत होती है जिसे क्यूटिकल कहते हैं। जब यह परत टूटती है, तो बालों के सिरे भी टूटने लगते हैं। कई बार बालों के अत्यधिक सूखे और कमजोर होने के कारण भी बाल दोमुंहे होने लगते हैं। गीले बालों में कंघी करने से भी बालों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचता है और यह भी बालों के दोमुंहे होने का कारण बनते हैं। इसी तरह तेज-तेज कंघी करने और धूप में ज्यादा देर रहने से भी बाल कमजोर हो जाते हैं।
  • दोमुंहे बालों का सबसे अच्छा यही उपचार है कि उन्हें काट दें। बालों को नियमित रूप से काट-छांटकर उन्हें दोमुंहा होने से बचाया जा सकता है। बालों की सुरक्षा हेतु दालचीनी का प्रयोग करें। इससे बाल मजबूत और सुरक्षित रहेंगे।

मूत्राशय संक्रमण:

2 चम्मच दालचीनी पाउडर और 1 चम्मच शहद को 1 गिलास हल्के गर्म पानी में घोलकर पीना चाहिए। इससे मूत्राशय के रोग नष्ट हो जाते हैं।

दांत दर्द:

  • एक चम्मच दालचीनी पाउडर को 5 चम्मच शहद में मिला लेते हैं। इसे दांतों पर रोजाना दिन में 3 बार लगाना चाहिए। इससे दांत दर्द ठीक हो जाता है। जब तक दर्द पूरा ठीक न हो जाए तो इसे लगाना चाहिए।
  • दालचीनी का तेल दुखते दांत पर लगाने से दांत दर्द ठीक हो जाता है। चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर की फंकी गर्म पानी से दिन में 3 बार लेने से लाभ मिलता है। इसे 1 चम्मच शहद में भी मिलाकर दे सकते हैं।

जुकाम:

  • 1 ग्राम दालचीनी, 3 ग्राम मुलहठी और 7 छोटी इलायची को अच्छी तरह से पीसकर 400 मिलीलीटर पानी में मिलाकर आग पर पकाकर रख दें। पकने के बाद जब पानी आधा बाकी रह जाये तो इसमें 20 ग्राम मिश्री डालकर पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
  • एक बड़े चम्मच शहद में चौथाई चम्मच दालचीनी का पाउडर मिलाकर एक बार रोजाना खाने से तेज व पुराना जुकाम, पुरानी खांसी और साइनसेज ठीक हो जाते हैं। इसे दिन में कम से कम 3 बार लेना चाहिए तथा रोग ठीक होने तक लेते रहें। रोग की प्रारम्भ में इसे 2 बार रोजाना लेना चाहिए।
  • 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को मिश्री के साथ रोजाना 2-3 बार सेवन करने से जुकाम में आराम आता है। थोड़ी सी बूंदे इस तेल की रूमाल में डालकर सूंघने से भी लाभ होता है।

कंधे में दर्द :

  • कभी-कभी कंधे में दर्द होता है। दालचीनी का प्रयोग करने से कंधे का दर्द ठीक हो जाता है।
  • शहद और दालचीनी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर रोजाना 1 चम्मच सुबह के समय सेवन करने से शरीर में रोगाणुओं और वायरल संक्रमण से लड़ने की शक्ति बढ़ती है, शरीर की प्रतिरोधी शक्ति बढ़ती है। कंधे पर इसी मिश्रण की मालिश करके अन्त में लेप करना चाहिए।

सन्तानहीनता, बांझपन:

  • वह पुरुष जो बच्चा पैदा करने में असमर्थ होता है, यदि रोजाना सोते समय 2 बड़े चम्मच दालचीनी ले तो वीर्य में वृद्धि होती है और उसकी यह समस्या दूर हो जाती है।
  • जिस स्त्री के गर्भाधारण ही नहीं होता, वह चुटकी भर दालचीनी पाउडर 1 चम्मच शहद में मिलाकर अपने मसूढ़ों में दिन में कई बार लगायें। थूंके नहीं। इससे यह लार में मिलकर शरीर में चला जाएगा। इससे स्त्रियां कुछ ही दिनों में गर्भवती हो जाती हैं।

गर्भस्राव:

कमजोर गर्भाशय के कारण बार-बार गर्भस्राव होता रहता है। गर्भधारण से कुछ महीने पहले दालचीनी और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच रोजाना सेवन करने से गर्भाशय शक्तिशाली हो जाएगा।