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बड़ी इलायची के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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Introduction

इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर खाते हैं। सुगन्ध के लिए इसे शर्बतों और मिठाइयों में मिलाते हैं। मसालों तथा औषधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इलायची दो प्रकार की होती है। छोटी और बड़ी। छोटी इलायची मालाबार और गुजरात में अधिक पैदा होती है, और बड़ी इलायची उत्तर प्रदेश व उत्तरांचल के पहाड़ी क्षेत्रों तथा नेपाल में उत्पन्न होती है। दोनों प्रकार की इलायची के गुण समान होते हैं। छोटी इलायची अधिक सुगन्ध वाली होती है।

गुण (Property)

बड़ी इलायची पाचन शक्ति को बढ़ाती है, भूख को बढ़ाती है, दस्त और जी मिचलाने को रोकती है। इसके दाने मसूढ़ों को स्वस्थ व मजबूत बनाते हैं।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

 बड़ी इलायची को अधिक मात्रा में सेवन करने से आंतों को नुकसान हो सकता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

सिर दर्द :

इलायची को पीसकर सिर पर लगाने से सिर दर्द दूर हो जाता है। इसके चूर्ण को सूंघने से भी सिर दर्द दूर हो जाता है।

पेट दर्द के लिए :

2 इलायची को पीसकर शहद में मिलाकर खाने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।

पथरी :

पथरी होने पर इलायची का सेवन करने से लाभ मिलता है।

रक्तपित्त :

सुबह उठते ही खाली पेट रहकर 2 इलायची रोजाना चबाएं इसके बाद ऊपर से दूध या पानी पियें। इससे रक्तपित्त में लाभ मिलता है।

नेवले का विष :

इलायची का चूर्ण दही के साथ सेवन करने से नेवले का जहर उतर जाता है।

घबराहट व जी मिचलाना :

इलायची के दानों को पीसकर खाने से या शहद में मिलाकर चाटने से घबराहट व जी मिचलाना दूर हो जाता है।

हृदय रोग :

इलायची के दाने और पीपरामूल को बराबर मात्रा में लेकर घी के साथ रोजाना सुबह के समय चाटने से दिल के रोग मिट जाते हैं।

धातु की पुष्टि :

इलायची के दाने, जावित्री, बादाम की गिरी, गाय का मक्खन और चीनी को एक साथ मिलाकर रोजाना सुबह के समय खाने से धातु पुष्ट होती है और वीर्य गाढ़ा होता है।

धातु की वृद्धि :

असगंध, शतावरी, गोखरू, सफेद मूसली, क्रौंच (शुद्ध), खिरेंटी के बीज, एखरा, इलायची के दाने और बादाम बराबर मात्रा में लेकर शक्कर मिलाकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। यह 5-5 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम गाय के दूध के साथ लेने से वीर्य की वृद्धि होती है।

शीघ्रपतन :

इलायची के दाने और ईसबगोल बराबर मात्रा में लेकर आंवले के रस में खरल करके बेर के आकार की गोलियां बना लेते हैं। यह एक-एक गोली सुबह-शाम लेने से शीघ्रपतन के रोग में लाभ होता है।

पेशाब में धातु का जाना :

इलायची के दाने और सेंकी हुई हींग का लगभग 360 मिलीग्राम चूर्ण घी और दूध के साथ रोगी को देने से पेशाब में धातु का आना बंद हो जाता है।

पेशाब का खुलकर आना :

इलायची के दाने और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर अनार के रस या दही के छने हुए पानी में सेंधानमक मिलाकर पीने से पेशाब खुलकर आता है और मूत्राघात दूर हो जाता है।

कफजन्य खांसी :

लगभग 500 मिलीग्राम इलायची के दानों का बारीक चूर्ण और सोंठ का चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर चाटने से या इलायची के तेल की 4-5 बूंद चीनी के साथ लेने से कफजन्य खांसी मिटती है।

कफ :

इलायची के दाने, कालानमक, घी तथा शहद को एक साथ मिलाकर चाटने से कफ रोग दूर हो जाता है।

ज्वर और जीर्ण ज्वर :

इलायची के दाने, बेलफल, साठी, दूध और पानी को एक साथ उबाल लें तथा दूध के शेष रहने रहने पर इसे उतारकर पी लेते हैं। इससे सभी प्रकार के बुखार और पुराने बुखार ठीक हो जाते हैं।

अफारा :

इलायची को आंवले के रस या चूर्ण के साथ 120 मिलीग्राम सेंकी हुई हींग और नींबू के थोड़े से रस में मिलाकर सेवन करने से पेट की गैस, पेट का दर्द और अफारा का रोग मिट जाता है।

सभी प्रकार के दर्द :

इलायची के दाने सेंकी हुई हींग, जवाक्षार और सेंधानमक का काढ़ा बनाकर उसमें एरंड का तेल मिलाकर रोगी को देने से कमर, दिल, नाभि, पीठ, मस्तक, कान, आंख आदि स्थानों के सभी प्रकार के दर्द तुरन्त ही मिट जाते हैं।

कफजन्य हृदय रोग :

इलायची के दाने, पीपरामूल और पटोलपत्र को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लेते हैं। यह चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक शुद्ध घी के साथ चाटने से कफजन्य दिल रोग व दिल का दर्द दूर हो जाता है।

वातनाड़ी दर्द :

2 ग्राम इलायची के दाने का ताजा चूर्ण और लगभग 120 मिलीग्राम से 180 मिलीग्राम क्विनाइन मिलाकर वातनाड़ी शूल के रोगी को देने से शीघ्र लाभ मिलता है।

मुंह का रोग :

10-10 ग्राम छालिया और बड़ी इलायची लेकर पीसकर और कपड़े में छानकर पॉउडर बना लें। रोजाना 2 से 3 बार इस पॉउडर को मुंह के घाव, छाले पर लगाने से मुंह के दाने और जख्म ठीक हो जाते हैं।

पित्ताशय की पथरी :

लगभग आधा ग्राम बड़ी इलायची को खरबूजे के बीज के साथ पीसकर खाने से पथरी के रोग में फायदा होता है।

बैंगन के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

बैंगन का लैटिन नाम-सोलेनम मेलोजिना है। इसे अंग्रेजी भाषा में इगपलेंट नाम से जाना जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही बैंगन सभी जगह होता है। बैंगन की लोकप्रियता स्वाद और गुण के नज़र से ठंड तक ही रहती है। इसलिए पूरे सर्दी के मौसम की सब्जी-भाजियों में बैंगन को राजा के रूप में माना जाता है। गर्मी के महीनों में इसका स्वाद भी बदल जाता है। बैंगन में खासतौर पर 2 किस्में पायी जाती हैं। काले और सफेद काले बैंगन ज्यादा गुणकारी माने जाते हैं। बैगन की एक अन्य किस्म भी है, परन्तु गुण की दृष्टि से यह निम्न किस्म है। ज्यादा बीज वाले बैंगन और नर्म कुंहड़ा जहर का रूप हैं। बैंगन जितने ज्यादा कोमल और मुलायम होते हैं। उतने ही ज्यादा गुण वाले और बलवर्धक माने जाते हैं। गर्मी के महीनों मे पैदा होने वाले ज्यादा बीज वाले बैगन का उपयोग नहीं करना चाहिए। दीपावली के त्यौहार में बैंगन नही खाना चाहिए। ऐसा करना आरोग्य की दृष्टि से फायदेमंद है। शरद के महीने में पित्त का प्रकोप होता है। इसलिए इस ऋतु में पित्तकर बैंगन खाने से अनेकों रोग उत्त्पन्न होते है। बसंत के महीनों में बैंगन को खाने से लाभ होता है।

तेल और हींग में बनायी हुआ बैंगन की सब्जी वायु प्रकृति वालों के लिए बहुत ही फायदेमंद है। कफ (बलगम) प्रकृतिवालों और समप्रकृति वालों के लिए भी सर्दी के मौसम में बैंगन का सेवन गुणकारी है।

गुण (Property)

बैंगन मेदा (आमाशय) को बलवान बनाता है, गांठों को तोड़कर सिख्तयों को नर्म करता है, पेशाब जारी करता है, गर्मी के दर्दों को शांत करता है, बैंगन का सिरा रगड़कर बवासीर में लगाना लाभदायक है, आंबाहल्दी के साथ इसकी सेंक देना हल्दी के साथ इसकी सेंक चोट को लाभ करती है। बैंगन कड़वा है, रुचि को बढ़ाता है, मधुर है, पित्त को पैदा करता है, बल को बढ़ाता है और धातु (वीर्य) को बढ़ाता है। यह दिल के लिए फायदेमंद, भारी और वात रोगों में लाभदायक है। बैंगन नींद लाता है, खांसी पैदा करता है, कफ (बलगम) और सांस को बढ़ाता है। लंबा बैंगन श्रेष्ठ होता है, यह पाचनशक्ति और खून को बढ़ाता है। कच्चा बैंगन कफ (बलगम), पित्त को खत्म करता है। पका बैंगन क्षारयुक्त, पित्तकारक तथा मध्यम बैंगन त्रिदोषनाशक, रक्त-पित्त को निर्मल करने वाला है। आग पर भुने हुए बैंगन का भर्ता पित्त को शांत करता है, वात और पित्त रोग को खत्म करता है। सफेद प्रकार का बैंगन बवासीर वाले रोगी के लिए विशेषरूप से लाभकारी होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

यह पेट में बादी पैदा करता है और बवासीर को बढ़ाता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पसीना अधिक आना :

हाथ की हथेलियों व पैरों के तलवों में पसीना आने पर बैंगन का रस निकाल कर हथेलियों व तलुवों पर लगाने से पसीना आना कम हो जायेगा।

बाला (नारू) रोग :

  • बैंगन को सेंककर दही में पीसकर 10 दिनों तक जहां बाला निकल रहा हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
  • एक गोल आकार के मोटे बैंगन को भूनकर पीस लें और दही में मिला लें फिर जहां पर बाला निकल रहा हो वहां पर लगातार 10 दिन तक लगाने से बाला रोग में लाभ होता है।

दिल के रोग में :

दिल के रोग में बैंगन का बराबर सेवन करने से लाभ होता है।

मन्दाग्नि (पाचनशक्ति का कमजोर होना) :

बैंगन और टमाटर का सूप पीने से मन्दाग्नि मिटती है और खाना सही से पचने लगता है।

मलेरिया बुखार में :

कोमल बैंगन को आग पर सेंककर रोज सुबह के समय खाली पेट गुड़ के साथ खाने से मलेरिया बुखार में तिल्ली बढ़ गई हो और शरीर पीला पड़ गया हो तो इससे लाभ होता है।

धतूरे के जहर पर :

बैंगन का 40 मिलीलीटर रस पीने से धतूरे का जहर उतर जाता है।

पथरी :

  • बैंगन का साग खाने से पेशाब ज्यादा आकर शुरुआत हुई छोटी पथरी गलकर पेशाब के साथ बाहर आ जाती है।
  • बैगन को आग में पकाकर उसका बीज निकाल लें। फिर उसका भर्ता बनाकर 15 से 20 दिन खायें। इससे पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।

अनिद्रा :

बैंगन को आग पर सेंककर, शहद में मिलाकर शाम को चाटने से नींद अच्छी आती है। इस प्रयोग को रोज करते रहने से अनिद्रा का रोग में लाभ होता है।

बंद मासिक-धर्म :

मासिक-धर्म कम मात्रा में आता हो या साफ न आता हो तो सर्दियों में बैंगन की सब्जी, बाजरे की रोटी और गुड़ का बराबर मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है। ध्यान रहें गर्म प्रकति की स्त्रियों को यह प्रयोग न करायें।

पेट का भारी होना :

बैंगन को आग पर सेंककर उसमें सज्जीखार मिलाकर पेट पर बांधने से, भारी पेट कुछ ही समय में हल्का हो जाता है।

फोड़े, फुन्सी :

बैंगन की पट्टी फोड़े, फुन्सियों पर बांधने से फोड़े जल्दी पककर फूट जाते हैं।

अंडकोष की सूजन :

बैंगन की जड़ को पानी में मिलाकर अंडकोषों पर कुछ दिनों तक लेप करने से अंडकोषों की सूजन और वृद्धि ठीक नष्ट हो जाती है।

अफारा (गैस का बनना) :

बैंगन की सब्जी में ताजे लहसुन और हींग का छौंका लगाकर खाने से आध्यमान (अफारा, गैस) आदि दूर हो जाती है।

कब्ज (गैस) का बनना:

  • बैंगन और पालक का सूप पीने से कब्ज मिट जाती है और पाचन-शक्ति को बढ़ती है।
  • बैंगन को धीमी आग पर पकाकर खाने से कब्ज दूर हो जाती है।

कान का दर्द :

बैंगन को आग में भूनकर उसका रस निकाल लें। फिर उसके अंदर नीम का गोंद मिलाकर गुनगुना करके कान में बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है।

जिगर का रोग :

यकृत वृद्धि में रोगी को बैंगन का भर्ता बनाकर खिलाने से बहुत फायदा होता है। भर्ता को लोहे की कड़ाही में सरसों के तेल के साथ बनाएं और इसमें लाल मिर्च का प्रयोग करें इससे जिगर का बढ़ना कम हो जाता है।

जलोदर के लिए :

1 बड़े बैंगन को चीरकर उसके अंदर ठंडा नौसादार रखकर रात में खुली हुई जगह में रख दें। सुबह-सुबह इसे निचोड़कर इस रस की 4 से 5 बूंद रस को बतासे में भरकर रोगी को सेवन कराने से अधिक पेशाब आकर जलोदर (पेट में पानी भरना) के रोग से छुटकारा मिल जाता है।

प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :

ताजे लंबे बैंगन की सब्जी खाने से तिल्ली (प्लीहा) बढ़ने के रोग में आराम मिलता है।

योनि का आकार छोटा होना :

सूखे हुए बैंगन को पीसकर योनि में रखने से योनि सिकुड़कर छोटी हो जाती है।

आन्त्रवृद्धि का बढ़ना :

मारू बैंगन को गर्मराख में भूनकर बीच से चीरकर अंडकोषों पर बांधने से आन्त्रवृद्धि व दर्द दोनों बंद हो जाते हैं। बच्चों की अंडवृद्धि को ठीक करने के लिए यह बहुत ही उपयोगी है।

सूखा रोग :

बैंगन को अच्छी तरह से पीसकर उसका रस निकालकर उसके अंदर थोड़ा सा सेंधानमक मिला लें। इस एक चम्मच रस को रोजाना दोपहर के भोजन के बाद कुछ दिनों तक बच्चे को पिलाने से सूखा रोग (रिकेट्स) में लाभ मिलता है।

बादाम के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

बादाम के पेड़ पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक पाये जाते हैं। इसके तने मोटे होते हैं। इसके पत्ते लम्बे, चौडे़ और मुलायम होते हैं। इसके फल के अंदर की मींगी को बादाम कहते हैं। बादाम के पेड़ एशिया में ईरान, ईराक, सउदी अरब, आदि देशों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। हमारे देश में जम्मू कश्मीर में इसके पेड़ पाये जाते हैं। इसका पेड़ बहुत बड़ा होता है। बादाम की दो जातियां होती हैं एक कड़वी तथा दूसरी मीठी। बादाम पौष्टिक होती है। बादाम का तेल भी निकाला जाता है। कड़वी बादाम हमें उपयोग में नहीं लानी चाहिए क्योंकि यह शरीर के लिए हानिकारक होती है।

गुण (Property)

बादाम गर्म, चिकना, वीर्य को बढ़ाने वाला तथा वात नाशक होती है। मीठी भीगी बादाम वीर्यवर्द्धक होती है तथा पित्त एवं वात को खत्म करती है तथा कफ को बढ़ाती है। इसका उपयोग रक्तपित्त के रोगियों के लिए हानिकारक होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

कड़वे बादाम में एक प्रकार का जहर होता है अत: यह ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि इसका खाने में उपयोग न किया जाए। इसके अतिरिक्त रक्तविकार से पीड़ित लोगों के लिए लोगों के लिए भी बादाम का सेवन लाभकारी नहीं है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पागल कुत्ते के काटने पर :

4 ग्राम बादाम की मींगी की मात्रा को शहद के साथ मिलाकर खाने से पागल कुत्ते का जहर दूर हो जाता है।

दांतों का मंजन :

  • बादाम का छिलका जलाकर उसमें नमक मिलाकर दांतों पर रगड़ने से दांत साफ और चमकीले हो जाते हैं। सुगन्ध के लिए इसमें कपूर और इलायची भी मिला लेते हैं।
  • बादाम के फल के छिलके को जलाकर, कोयला बनाकर उसकी बुकनी 100 ग्राम लेनी चाहिए। इसमें माजूफल, छोटी इलायची के दाने, फुलाई हुई फिटकरी और कपूर का 10-10 ग्राम चूर्ण मिलाकर खरल में बारीक पीसकर सुरक्षित रख लेते हैं। इस दंत मंजन को दांतों पर घिसने से दांत साफ होते हैं तथा मसूढ़े भी मजबूत होते हैं।
  • बादाम का छिलका जलाकर ढक दें। दूसरे दिन पीसें और जितनी राख हो उसका पांचवा भाग फिटकरी या सेंधानमक मिलाकर पीस लेते हैं। इस पाउडर से मंजन करने से दांत तो साफ होते ही हैं इसके साथ ही दांतों के सारे रोग भी दूर हो जाते हैं।

भिलावां (एक जंगली पेड़) से उठे हुए छालों :

बादाम को घिसकर भिलावां (एक जंगली पेड़) से उठे हुए छालों पर लगाने से लाभ मिलता है।

कनखजूरे के कांटे चुभ जाने पर :

कनखजूरे के कांटे चुभ जाने पर बादाम का तेल लगाने से लाभ मिलता है।

सिर का दर्द

  • बादाम और केसर को गाय के घी में मिलाकर सिर में लगाना चाहिए या तीन दिन तक बादाम की खीर खानी चाहिए अथवा बादाम और घी को दूध में मिलाकर सिर में लगाना चाहिए। इससे सिर का दर्द कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
  • बादाम और कपूर को दूध में पीसकर मस्तक पर उसका लेप करने से मस्तक का दर्द और सिर दर्द मिट जाता है। मस्तिष्क पर बादाम के तेल की मालिश करने से लाभ होता है।
  • 10 ग्राम बादाम की गिरी, 1 ग्राम कपूर, 1 ग्राम केसर, मिश्री और गाय के घी को मिलाकर हल्की आग पर पकायें और केवल घी बाकी रहने पर इसे छानकर शीशी में भर कर रख लें इसको रोगी को देने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
  • बादाम रोगन की सिर पर मालिश करने से सिर दर्द दूर हो जाता है। बादाम की एक गिरी को सरसों के तेल में पीसकर मलने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
  • 10 गिरी बादाम की, 6 ग्राम ब्राह्मी बूटी और 7 साबुत कालीमिर्च को रात को सोते समय भिगो दें और सुबह इनका छिलका उतार कर पीसकर ठंडाई बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर 40 दिन तक लगातार पीने से किसी भी प्रकार का सिर का दर्द हो वह दूर हो जाता है।
  • सिर में तेज दर्द होने पर बादाम के तेल की मालिश करने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
  • बादाम के बीजों को सिरके के साथ पीसकर इसको गाढ़े पदार्थ के रूप में बना लें और जहां सिर में दर्द हो वहां पर इसे लगाने से सिर का दर्द, साइटिका और नशे का चढ़ना दूर हो जाता है।
  • 10 गिरी बादाम की, 6 ग्राम ब्राह्मी बूटी और 7 साबुत कालीमिर्च को रात को सोते समय भिगो दें और सुबह इनका छिलका उतार कर पीसकर ठंडाई बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर 40 दिन तक लगातार पीने से किसी भी प्रकार का सिर का दर्द हो वह दूर हो जाता है।
  • सिर में तेज दर्द होने पर बादाम के तेल की मालिश करने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
  • बादाम के बीजों को सिरके के साथ पीसकर इसको गाढ़े पदार्थ के रूप में बना लें और जहां सिर में दर्द हो वहां पर इसे लगाने से सिर का दर्द, साइटिका और नशे का चढ़ना दूर हो जाता है।

धातु वृद्धि के लिए :

15 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम मक्खन या ताजा खोवा, बादाम, चीनी, कंकोल, शहद और इलायची मिलाकर 7 दिन तक लेना चाहिए। बादाम की गिरी को गर्म पानी में भिगो देते हैं। इसके बाद बादाम के छिलके निकालकर बारीक पीस लेते हैं। इसे दूध में मिलाकर उबालें और खीर बनाएं। इसमें चीनी और घी मिलाकर खाने से बल और वीर्य की वृद्धि होती है और दिमाग भी तेज होता है।

बाजीकरण अनुभूत योग :

  • असगंध, बड़े गोखरू, सालेमंपजा, सफेद मूसली, विदारीकंद, अकरकरा, शतावरी को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लेते हैं। इस चूर्ण को 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम मिश्री मिले हुए गर्म दूध के साथ लेते रहने पर कामोत्तेजना जागृत होती है और स्तम्भन शक्ति में वृद्धि होती है। इस योग को सेब के रस के साथ मिलाकर 1 कप की मात्रा में रोजाना लेते रहने से पौरुष शक्ति की वृद्धि होने लगती है ।
  • 500 ग्राम मुलहठी, 200 ग्राम आंवला चूर्ण, 200 ग्राम शुद्ध कौंच के बीज का चूर्ण, 200 ग्राम इमली के बीज की गिरी, 50 ग्राम छोटी पीपल को लेकर एकसाथ पीसकर एक जगह मिलाकर रख लेते हैं। 25 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम इसको लेकर मिश्री मिले हुए दूध के साथ खाते रहने से पुरुषों में अपूर्व कामशक्ति बढ़ती है। स्त्रियों की कामशिथिलता, स्तनों का ढीलापन, शीघ्रपतन आदि में भी यह प्रयोग लाभकारी होता है। इस प्रयोग के आधे घंटे बाद 1 गिलास सेब का जूस पीना लाभकारी होता है।

मस्तिष्क को शीतलता (ठंडक) के लिए :

बादाम को छीलकर आग पर सेंककर चीनी के साथ खाना चाहिए। इसके एक घन्टे के बाद मक्खन और चीनी खानी चाहिए। इसके बाद दिन में तीन बार बादाम का तेल सिर में लगाने से दिमाग मे ठंडक पैदा होती है।

शक्ति के लिए :

750 ग्राम बादाम, 250 ग्राम खोवा, डेढ़ किलो चीनी, 5-5 ग्राम जायफल और जावित्री, 5 ग्राम केसर, 5 ग्राम वंशलोचन, 5 ग्राम कमलाक्ष, 10 ग्राम इलायची, 10 ग्राम दालचीनी, 1 किलो तेजपात, 10 ग्राम नागकेसर, 45 ग्राम बिहीदाना और 3 ग्राम लौंग को लेकर एकसाथ बारीक पीस लेते हैं। इसके बाद बादाम और खोये को घी में भून लेते हैं। इसके पश्चात चीनी की चाशनी में सभी औषधियों को डालकर पका लेते हैं। इसको खाने से वीर्य की वृद्धि होती है। शरीर शक्तिशाली और मजबूत होता है। वायु रोग दूर होता है। बुखार खत्म होने के बाद जो कमजोरी शरीर में आती है उस समय इसको खाने से बहुत अधिक आराम मिलता है।

पेशाब में जलन :

बादाम की 5 गिरी को पानी में भिगो दें। इसके बाद छीलकर इनमें 7 छोटी इलायची और स्वाद के अनुसार मिश्री मिलाकर तथा पीसकर 1 गिलास पानी में घोलकर सुबह-शाम दिन में दो बार पीने पेशाब की जलन में लाभ मिलता है।

मासिक-धर्म सम्बंधी विकार :

1 बादाम और छुहारा रात के समय पानी में भिगो दें। सुबह के समय दोनों को पीसकर मक्खन और मिश्री के साथ 3 महीने तक सेवन करने से मासिक-धर्म खुलकर आने लगता है।

स्मरणशक्तिवर्द्धक :

10 ग्राम बादाम को पानी को रात को भिगो दें और सुबह इसका छिलका उतारकर 12 ग्राम मक्खन और मिश्री मिलाकर 1-2 माह तक लगातार खाते रहने से मस्तिष्क की कमजोरी दूर होती है। यदि यह सम्भव न हो तो 40 दिनों तक 7 बादाम, 10 ग्राम मिश्री और सौंफ को पीसकर रात के सोते समय गर्म दूध के साथ पीने से दिमाग की कमजोरी दूर हो जाती है तथा आंखों की रोशनी बढ़ जाती है। यदि यह प्रयोग भी सम्भव न हो तो 10 ग्राम बादाम को बारीक पीसकर आधा किलो दूध में मिलाएं। जब दूध में 3 बार उबाल आ जाए तो इसे उतारकर, ठंडा करके चीनी मिलाकर पीना चाहिए। बादाम की गिरी और सौंफ समान मात्रा में बारीक पीस लेते हैं। इसे एक चम्मच रात को सोते समय लेते हैं। इस प्रयोग से भी दिमाग की ताकत भी बढ़ती है इससे सिर दर्द और शारीरिक कमजोरी भी दूर होती है।

आंखों के सभी प्रकार के रोग :

आंखों से पानी गिरना, आंखें आना, आंखों की दुर्बलता, आंखों का थकना आदि रोगों में बादाम को भिगोकर सुबह के समय पीसकर पानी मिलाकर पी जाएं तथा ऊपर से दूध पीने से लाभ होता है।

चेचक :

5 बादाम को पानी में सुबह के समय पीने से चेचक के दाने शीघ्र भर जाते हैं एवं जल्दी ठीक भी हो जाते हैं।

बांस के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction

बांस का पेड़ भारत में सभी जगहों पर पाया जाता है। यह कोंकण (महाराष्ट्र) में अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह 25-30 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। इसका तना बहुत मजबूत होता है। इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता कि अचानक तोप से वार करने पर भी इस पर कोई असर नहीं होता है। जब बांस 60 वर्ष का हो जाता है तो इसमें बीज आने लगते हैं। प्रत्येक बांस में थोड़ी-थोड़ी दूर पर बीजों के झुण्ड लगते हैं। बीजों के पक जाने पर बांस सूखने लगता है। एक बांस के सूखने से कई बांस सूख जाते हैं। बीस पच्चीस वर्ष बाद नये बीज आ जाते हैं। इसके बीज गेहूं के बीज के समान होते हैं। गरीब और आदिवासी लोग उसकी रोटी बनाकर खाते हैं। बांस से टोकरी, चटाई, सूप, पंखे आदि अनेक वस्तुएं बनाई जाती हैं। इसमें कपूर की तरह का एक पदार्थ निकलता है जिसे वंशलोचन कहा जाता है।

गुण (Property)

बांस की जड़ें शरीर को स्वच्छ और शुद्ध बनाती हैं। इसकी जड़ों को जलाकर बारीक पीसकर चमेली के तेल में मिलाकर यदि हम गंजे सिर में लगाते हैं तो इससे गंजे सिर में आराम मिलता है। शहद के साथ बांस के पत्तों का रस मिलाकर लेने से खांसी खत्म हो जाती है। पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से स्त्रियों में रुका हुआ मासिक-धर्म पुन: शुरू हो जाता है। इसकी जड़ों का अचार बनाकर खाने से वात, कफ और खून के विकार दूर होते हैं तथा पित्त, सफेद दाग, सूजन और शरीर के जख्मों को भर जाते हैं।

बांस के अंकुर रूखे भारी दस्त तथा कफ को बढ़ाते हैं तथा ये वात और पित्त को भी पैदा करते हैं।

बांस के चावल कषैले मीठे और स्वादिष्ट होते हैं। ये शरीर की धातु को गाढ़ा और पुष्ट करते हैं। शरीर को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह कफ, पित्त को खत्म करता है तथा बहुमूत्रता को रोकने के काम आता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

बांस फेफड़ों के लिए हानिकारक होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

मूत्राघात (पेशाब के साथ धातु का आना) :

मूत्राघात होने पर (पेशाब में धातु आने पर) चावल के पानी में बांस की राख और चीनी को मिलाकर रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

पारा खा लेने पर :

बांस के थोड़े पत्तों के रस में चीनी डालकर पीने से पारा खा लेने वाले रोगी को लाभ मिलता है।

रक्तजन्य दाह पर (खून में जलन) :

बांस की छाल के काढ़े को ठंडा करके शहद के साथ पीने से रक्तजन्य दाह (खून में जलन) शांत हो जाती है।

बहुमूत्र रोग पर :

बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) के रोग में बांस के हरे और सूखे पत्तों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से आराम मिलता है। रोगी को प्यास लगने पर भी इसे ही पिलाना चाहिए।

बच्चों की खांसी और सांस के लिए :

वंशलोचन का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर देने से बच्चों की खांसी और सांस (दमा) का रोग ठीक हो जाता है। बांस की गांठ को पानी में मिलाकर देने से भी लाभ होता है।

शक्ति के लिए :

दालचीनी, इलायची, छोटी पीपल, वंशलोचन और मिश्री, इन सब चीजों को क्रमानुसार एक दूसरे से दुगुनी मात्रा में लेकर पीस लेते हैं। इसे सितोपलादि चूर्ण कहा जाता है। यह शक्तिवर्द्धक होता है तथा क्षय (टी.बी), बुखार, खांसी के लिए यह बहुत उपयोगी है।

पेशाब साफ न होना :

वंशलोचन, शीतल चीनी (कंकोल) और इलायची का कपडे में छना हुआ चूर्ण बराबर-बराबर तीन चुटकी भर लेकर दूध और मिश्री के साथ लेना चाहिए इससे पेशाब साफ आने लगता है।

विसर्प सुर्खवाद :

बांस की ताजी जड़ को पीसकर लगाने से विसर्प सुर्खवाद में लाभ होता है।

आंख का फड़कना :

बांस की मुलायम पत्तियों का रस लगाने से आंख फड़कना बंद हो जाती है।

खांसी :

6-6 मिलीलीटर बांस का रस, अदरक का रस और शहद को एक साथ मिलाकर कुछ समय तक सेवन करने से खांसी, दमा आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

गुहेरी :

बांस की कोपल (मुलायम पत्तियों) का रस लगाने से आंख की गुहेरी ठीक हो जाती है।

Jumbler कष्टार्तव (मासिक-धर्म का कष्ट से आना) :

बांस के पत्ते तथा बांस की कोमल गांठ का काढ़ा पिलाने से गर्भाशय का संकोचन और आर्तव (मासिक-धर्म) की शुद्धि होती है। इसे 40 ग्राम की मात्रा में प्रत्येक 6 घंटे पर सूखे पानी में घुले पुराने गुड़ के साथ दें। इसे मासिकस्राव से पांच दिन पहले ही पिलाना चाहिए।

बहरापन :

बांस के फूल के रस की 2-3 बूंदे रोजाना 3-4 बार कान में डालने से बहरेपन के रोग में धीरे-धीरे लाभ होने लगता है।

घाव :

बांस के प्रांकुर यानी कोपल का रस निकालकर कीड़े पड़े घाव पर डाला जाये और बाद में इसी की पोटली घाव पर बांधी जायें तो घाव जल्दी ठीक हो जाता है।

गर्भाशय का संकोचन और शुद्धि :

बांस के पत्तों और कोमल गांठों के काढ़े में रोजाना 40 ग्राम गुड़ मिलाकर 4 बार लेने से गर्भाशय का संकोचन और गर्भाशय की शुद्धि हो जाती है।

रक्तपित्त :

बलगम में खून आने के रोग में बांस के कोमल पत्तों का चूर्ण 1 ग्राम दिन में दो बार लेने से आराम आता है।

गोली लगने पर :

गोली लगे रोगी को कोपस (बांस के प्रांकुर) के रस से घाव को रोजाना साफ करने से घाव फैलता नहीं है और घाव जल्द ही ठीक हो जाता है।

टीके से होने वाले दोष :

बांस की नई पत्तियों को पीसकर घाव पर लेप करने से रोगी सही हो जाता है।

गठिया रोग :

गठिया के रोगी के लिए बांस के कोमल गांठों को पीसकर जोड़ों पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।

दाद के रोग में :

बांस की जड़ को घिसकर दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

चमेली के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

पूरे भारत में चमेली की बेल आमतौर पर घरों और बगीचों में लगाई जाती है जिसके फूलों की खुशबू बड़ी मादक और मन को प्रसन्न करती है। उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद, जौनपुर और गाजीपुर जिले में इसे विशेषतौर पर अधिक मात्रा में उगाया जाता है। सुपरिचित बेल होने के कारण सभी लोग इसे पहचानते हैं। चमेली के फूल सफेद रंग के होते हैं। लेकिन किसी-किसी स्थान पर पीले रंग के फूलों वाली चमेली की बेलें भी पायी जाती हैं। चमेली के फूल, पत्ते तथा जड़ तीनों ही औषधीय कार्यों में प्रयुक्त किये जाते हैं। इसके फूलों से तेल और इत्र (परफ्यूम) का निर्माण भी किया जाता है।

गुण (Property)

चमेली के उपयोग से मन प्रसन्न रहता है। इसके रस को पीने से वात और कफ दस्त के द्वारा बाहर निकल जाता है। यह शरीर को चुस्त-दुरुस्त करती है तथा वात और लकवा में लाभकारी है। इसकी सुगन्ध दिमाग को शक्तिशाली बनाती है। यह बालों को सफेद कर देती है। इसके तेल का लेप लिंग पर करने से शीघ्रपतन दूर होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चमेली का अधिक मात्रा में उपयोग करने से गर्म स्वभाव वालों के लिए सिर दर्द में दर्द उत्पन्न हो सकता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

मुंह के छाले:

चमेली के पत्तों को मुंह में रखकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले, घाव व मुंह के सभी प्रकार के दाने नष्ट हो जाते हैं।

मसूढ़ों के दर्द में:

चमेली के पत्तों से बने काढ़े से बार-बार गरारे करते रहने से मसूढ़ों के दर्द में लाभ मिलता है।

त्वचा रोग:

  • चमेली के फूलों को पीसकर बनी लुगदी को त्वचा रोगों (जैसे दाद, खाज, खुजली) पर रोजाना 2-3 बार लगाने से त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं।
  • चमेली का तेल चर्मरोगों की एक अचूक व चामत्कारिक दवा है। इसको लगाने से सभी प्रकार के जहरीले घाव, खाज-खुजली, अग्निदाह (आग से जलना), मर्मस्थान के नहीं भरने वाले घाव आदि अनेक रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
  • चर्मरोग (त्वचा के रोग) तथा रक्तविकार से उत्पन्न रोगों में चमेली के 6-10 फूलों को पीसकर लेप करने से बहुत लाभ मिलता है।

नपुसंकता और शीघ्रपतन:

चमेली के पत्तों का रस तिल के तेल को बराबर की मात्रा में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पानी उड़ जाए और केवल तेल शेष रह जाए तो इस तेल की मालिश शिश्न पर रोजाना सुबह-शाम करना चाहिए। इससे नपुंसकता और शीघ्रपतन नष्ट हो जाता है।

खूनी बवासीर:

चमेली के पत्तों का रस तिल के तेल की बराबर की मात्रा में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पानी उड़ जाए और केवल तेल शेष रह जाए तो इस तेल को गुदा में 2-3 बार नियमित रूप से लगाएं। इससे खूनी बवासीर नष्ट हो जाती है।

मासिक-धर्म की रुकावट (नष्टार्तव) :

चमेली के पत्ते, फूल व जड़ सभी को बराबर मात्रा में लेकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाते हैं। इसे छानकर लगभग आधा कप की मात्रा में सुबह-शाम पीना चाहिए। इससे नष्टार्तव (मासिक धर्म की रुकावट) नष्ट हो जाता है।

सिर दर्द:

चमेली के फूलों का लेप या चमेली का तेल कपाल (मस्तक) पर लगाएं और थोड़ी मालिश करने से सिर दर्द दूर हो जाता है।

आंखों का दर्द:

आंखों को बंद करके ऊपर से चमेली के फूलों का लेप करने से आंखों के दर्द में आराम मिलता है।

वात विकार:

चमेली की जड़ का लेप या चमेली का तेल पीड़ित स्थान पर लगाने से वात विकार में लाभ मिलता है।

कान से पीप आना:

कान में यदि दर्द और पीप निकलता हो तो चमेली के 20 ग्राम पत्तों को 100 ग्राम तिल के तेल में उबालकर तेल की 1-1 बूंद दिन में तीन बार डालने से लाभ मिलता है।

डिप्रेशन (मानसिक तनाव):

चमेली डिप्रेशन की गुणकारी औषधि होती है।

नाक की फुंसियां:

चमेली के फूल सूंघने से नाक के अन्दर की फुंसियां ठीक हो जाती हैं।

चमेली का तेल :

  • चमेली के फूलों की खुशबू से दिमाग की गर्मी दूर होती है। चमेली का तेल बालों में लगाने से दिमाग में तरावट आ जाती है। तेल बनाने के लिए चमेली के फूलों की तह (परत) एक सूती कपड़े पर बिछाकर इस पर तिलों की पतली सी तह बिछा देते हैं। 2 दिन बाद छलनी से छानकर तिल अलग कर लेते हैं। दुबारा चमेली के फूलों की तह बनाकर फिर तिलों की तह बना लेते हैं। 2 दिन बाद दुबारा तिल को छान लेते हैं और तीसरी बार इसी प्रकार चमेली के फूलों और तिलों का सम्पुट देकर, 2 दिन बाद छानकर तिल निकालकर, इन तिलों का तेल निकाले। यह तेल सिर में लगायें और मालिश करें।
  • चर्म रोगों (त्वचा सम्बंधी रोगों), दांतों का दर्द, पायरिया, घाव और आंखों के रोगों में चमेली का तेल देने से लाभ होता है। यह रक्तसंचार बढ़ाकर स्फूर्ति देता है और मानसिक प्रसन्नता लाता है।

चेहरे की चमक:

चमेली के 10-20 फूलों को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे की चमक बढ़ जाती है।

आंख की फूली:

चमेली के फूलों की 5-6 सफेद कोमल पंखुड़ियों को थोड़ी सी मिश्री के साथ खरल करके, आंख की फूली पर लगाने से कुछ दिनों में फूली कट जाती है।

पक्षाघात:

पक्षाघात (लकवा), अर्दित आदि रोगों में चमेली की जड़ को पीसकर लेप करने तथा तेल की मालिश करने से लाभ मिलता है।

पेट के कीडे़:

चमेली के 10 ग्राम पत्तों को पीसकर पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं और मासिक धर्म (माहवारी) भी साफ होता है।

उपदंश:

  • 20 मिलीलीटर चमेली के पत्तों का रस और 125 मिलीग्राम राल के चूर्ण को मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से 15-20 दिन में उपदंश का नष्ट हो जाता है। पथ्य में सिर्फ गेहूं की रोटी, दूध, चावल और घी एवं चीनी का ही प्रयोग करना चाहिए।
  • चमेली के पत्तों के काढे़ से उपदंश के घाव धोने से लाभ होता है। इसके पत्तों का काढ़ा पेट के कीड़ों को खत्म करता है और इससे पेशाब खुलकर आता है।
  • चमेली के ताजे पत्तों का रस, गाय का घी और राल 20-20 मिलीलीटर मिलाकर पीने से पुराना उपदंश मिट जाता है।

बिवाई:

चमेली के पत्तों के ताजा रस को पैरों की बिवाई (फटी एड़िया) पर लगाने से बिवाई (फटी एड़िया) ठीक हो जाती है।

कुष्ठ :

  • चमेली की नई पत्तियां, इन्द्रजौ, सफेद कनेर की जड़, करंज के फल और दारूहल्दी की छाल का लेप करने से कुष्ठ (कोढ़ को दूर करना) दूर होता है।
  • चमेली की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग में लाभ मिलता है।

चना के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चना शरीर में ताकत लाने वाला और भोजन में रुचि पैदा करने वाला होता है। सूखे भुने हुए चने बहुत रूक्ष और वात तथा कुष्ठ को नष्ट करने वाले होते हैं। उबले हुए चने कोमल, रुचिकारक, पित्त, शुक्रनाशक, शीतल, कषैले, वातकारक, ग्राही, हल्के, कफ तथा पित्त नाशक होते हैं।

गुण (Property)

चना शरीर को चुस्त-दुरुस्त करता है। खून में जोश पैदा करता है। यकृत (जिगर) और प्लीहा के लिए लाभकारी होता है। तबियत को नर्म करता है। खून को साफ करता है। धातु को बढ़ाता है। आवाज को साफ करता है। रक्त सम्बन्धी बीमारियों और वादी में लाभदायक होता है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है। इसको पानी में भिगोकर चबाने से शरीर में ताकत आती है। चना विशेषकर किशोरों, जवानों तथा शारीरिक मेहनत करने वालों के लिए पौष्टिक नाश्ता होता है। इसके लिए 25 ग्राम देशी काले चने लेकर अच्छी तरह से साफ कर लें। मोटे पुष्ट चने को लेकर साफ-सुथरे, कीडे़ या डंक लगे व टूटे चने निकालकर फेंक देते हैं। शाम के समय इन चनों को लगभग 125 ग्राम पानी में भिगोकर रख देते हैं। सुबह के समय शौचादि से निवृत्त होकर एवं व्यायाम के बाद चने को अच्छी तरह से चबाकर खाएं और ऊपर से चने का पानी वैसे ही अथवा उसमें 1-2 चम्मच शहद मिलाकर पी जाएं। देखने में यह प्रयोग एकदम साधारण लगता है किन्तु यह शरीर को बहुत ही स्फूर्तिवान और शक्तिशाली बनाता है। चने की मात्रा धीरे-धीरे 25 से 50 ग्राम तक बढ़ाई जा सकती है। भीगे हुए चने खाने के बाद दूध पीने से वीर्य पुष्ट होता है। व्यायाम के बाद रात के भीगे हुए चने, चने का पानी के साथ पीने से स्वास्थय अच्छा बना रहता है। जिसकी पाचक शक्ति (भोजन पचाने की शक्ति) कमजोर हो, या चना खाने से पेट में अफारा (गैस) होता है तो उन्हें चने का सेवन नहीं करना चाहिए।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

इसका अधिक मात्रा में सेवन मसाने के लिए हानिकारक हो सकता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

गुलकन्द, चने में मौजूद दोषों को दूर करता है।

चौलाई के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर खायी जाती है किन्तु इसके सम्पूर्ण लाभ के लिए इसके रस को निकालकर पीना चाहिए। चौलाई की मुख्य रूप से दो किस्में होती हैं। 1. लाल 2. हरी लाल चौलाई के पौधे का तना लालिमा लिए हुए होता है। इसके पत्तों की रेखाएं भी लाल होती हैं। इसके पत्ते लम्बे गोल तथा ज्यादा बड़े न होकर मध्यम आकार के होते हैं। हरी किस्म के चौलाई के पौधों की डण्डी और पत्ते का पूरा भाग हरे रंग का होता है। इसके पत्ते बड़े होते हैं। जल चौलाई इसकी एक कांटेदार किस्म है। इसके गुण कुछ अंशों में बढ़कर परन्तु चौलाई के समान ही होते हैं। औषधि रूप में इसके पंचांग, जड़ और पत्तों का उपयोग होता है।

गुण (Property)

चौलाई में विटामिन `सी´, विटामिन `बी´ व विटामिन `ए´ की अधिकता होती है। विटामिनों की कमी से होने वाले सारे रोगों में चौलाई का रस विशेष लाभ प्रदान करता है। चौलाई का रस शरीर को स्वस्थ करता है तथा शरीर को तरावट देता है। गर्मी को शान्त करती है तथा शुद्ध खून पैदा करती है। यह प्यास को रोकती है। खांसी के लिए लाभदायक होती है तथा पेशाब अधिक मात्रा में लाती है। गर्भावस्था के बाद अथवा अधिक मासिकस्राव या किसी भी कारण से हुए रक्तस्राव (खून बहना) से आई कमजोरी दूर करने में चौलाई का रस बहुत लाभदायक रहता है। शरीर की शिथिलता, कमजोरी दूर करने में, आंखों के रोगों में व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में चौलाई का रस बहुत लाभदायक होता है। यह पेशाब के रोगों को नष्ट करती है और पेशाब की मात्रा भी बढ़ाती है। चौलाई एक बहुत ही उत्तम जहर को खत्म करने वाली सब्जी है यदि भूलवश कोई जहर या जहरीली दवा खा ली गई हो तो चौलाई का 1 गिलास रस उस जहर के असर को खत्म कर देता है। परन्तु ऐसे मामलों में योग्य चिकित्सक की राय भी ले लेनी चाहिए। चौलाई की सब्जी कब्ज को दूर करती है और मुंह के छालों को ठीक कर देती है। चौलाई का कच्चा रस 1 महीने तक नियमित रूप से कम से कम 150 मिलीलीटर तक लेते रहने से बाल टूटकर गिरने, झड़ने बंद हो जाते हैं और नये बाल उगने लगते हैं।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

इसकी सब्जी खाने से देर में हजम होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पथरी:

रोजाना चौलाई के पत्तों की सब्जी खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।

रक्तचाप, बलगम, बवासीर और गर्मी के दुष्प्रभाव:

रोजाना चौलाई की सब्जी खाते रहने से रक्तचाप, बलगम, बवासीर और गर्मी के रोग दूर हो जाते हैं।

भूख:

चौलाई की सब्जी भूख को बढ़ाती है।

विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल):

चौलाई (गेन्हारी) साग के पत्तों को पीसकर विसर्प और जलन युक्त त्वचा पर पर लगाने से जलन मिट जाती है।

दमा:

चौलाई की सब्जी बनाकर दमा के रोगी को खिलाने से बहुत लाभ मिलता है। 5 ग्राम चौलाई के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर चटाने से सांस की पीड़ा दूर हो जाती है।

पागल कुत्ते का काटना:

पागल कुत्ते के काटने के बाद जब रोगी पागल हो जाए, दूसरों को काटने लगे, ऐसी हालत में कांटे वाली जंगली चौलाई की जड़ 50 ग्राम से 125 ग्राम तक पीसकर पानी में घोलकर बार-बार पिलाने से मरता हुआ रोगी बच जाता है। यह विषनाशक होती है। सभी प्रकार के विषों व दंशों पर इसका लेप लाभकारी होता है। चौलाई रूखी होती है तथा यह नशा और जहर के प्रभाव को नष्ट कर देती है। चौलाई की सब्जी रक्तपित्त में भी लाभदायक होती है।

कब्ज:

चौलाई की सब्जी खाने से कब्ज में लाभ मिलता है।

गर्भपात की चिकित्सा:

10 से 20 ग्राम चौलाई (गेन्हारी का साग) की जड़ सुबह-शाम 60 मिलीग्राम से 120 मिलीग्राम “हीराबोल“ के साथ सिर्फ 4 दिन (मासिकस्राव के दिनों में) सेवन कराया जाए तो गर्भधारण होने पर गर्भपात या गर्भश्राव का भय नहीं रहता है।

गुर्दे की पथरी:

रोज चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।

बवासीर (अर्श):

चौलाई की सब्जी खाने से बवासीर ठीक हो जाती है।

मासिक-धर्म संबन्धी विकार:

चौलाई की जड़ को छाया में सुखाकर पीसकर छान लेते हैं। इसकी लगभग 5 ग्राम मात्रा की मात्रा को सुबह के समय खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग 1 सप्ताह पहले सेवन कराना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी रोग दूर हो जाते हैं।

प्रदर रोग:

लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में चौलाई के जड़ के चूर्ण को चावलों के पानी में शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है।
चौलाई की जड़ को चावल धुले हुए पानी के साथ पीसकर उसमें पिसी हुई रसौत और शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।

रक्तप्रदर:

15 ग्राम वन चौलाई की जड़ का रस दिन में 2-3 बार रोजाना पीने से रक्तप्रदर की बीमारी मिट जाती है।
चौलाई (गेन्हारी का साग), आंवला, अशोक की छाल और दारूहल्दी के मिश्रित योग से काढ़ा तैयार करके 40 ग्राम की मात्रा में रोजाना 2-3 बार सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की पीड़ा भी दूर हो जाती है और रक्तस्राव (खून का बहना) भी बंद हो जाता है।

स्तनों की वृद्धि:

चौलाई (गेन्हारी) की सब्जी के पंचाग को अरहर की दाल के साथ अच्छी तरह से मिलाकर स्त्री को सेवन कराने से स्त्री के स्तनों में बढ़ोत्तरी होती है।

पेट के सभी प्रकार के रोग:

चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से पेट के रोगों में आराम मिलता है।

गठिया रोग:

गठिया के रोगी के जोड़ों का दर्द दूर करने के लिए चौलाई की सब्जी का सेवन करना चाहिए।

उच्चरक्तचाप:

उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए चौलाई, पेठा, टिण्डा, लौकी आदि की सब्जियों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए, क्योंकि इनमें रक्तचाप को नियन्त्रित करने की शक्ति होती है।

दिल का रोग:

चौलाई की हरी सब्जी का रस पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।

नासूर (नाड़ी) के लिए:

यदि नाड़ी व्रण (जख्म) में ज्यादा दर्द हो और वह पक न रहा हो तो उस पर चौलाई के पत्तों की पट्टी बांधने से लाभ होता है।

नहरूआ (स्यानु):

नहरूआ के रोगी को चौलाई की जड़ को पीसकर घाव पर बांधने से रोग दूर हो जाता है।
चौलाई की सब्जी खाने से नहरूआ के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

कॉफी के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

कॉफी, चाय जैसा ही दूसरा पेय है। परन्तु कॉफी में गुण की अपेक्षा अवगुण अधिक होते हैं। कुछ लोग तो कॉफी को जहर के समान मानते हैं। दिमाग की थकान मिटाने हेतु काफी का सेवन किया जाता है। काफी मूत्रवर्द्धक (पेशाब लाने वाली) होती है। कॉफी पीने से आंखों, पाचन क्रिया तथा ज्ञान तन्तुओं पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। कॉफी का मूल देश एबीसीनिया है। यह अरब निवासियों के साथ भारत आयी। चाय और काफी अलग-अलग पदार्थ हैं। इन दोनों के गुण-अवगुण एक दूसरे से मिलते हैं। सामान्यत: चाय और कॉफी की विशेषताएं समान होती हैं। हमारे देश में कॉफी केवल दक्षिण भारत में पैदा की जाती है। नीलगिरी पर 300-400 फीट ऊंचाई पर इसके बाग पाये जाते हैं। इसके पेड़ के बीज से कॉफी तैयार की जाती है। उन बीजों को बून्ददाना कहा जाता है। बून्द दानों को सेंका जाता है। इसमें विशेष प्रकार की सुगंध होती है। कॉफी में चाकोरी का मिश्रण किया जाता है। अधिकांशत: कॉफी सेवन करने वाले लोग मिश्रित किस्म ही पसन्द करते हैं। कॉफी की अनेक किस्में होती हैं। इसमें नेसकाफी अच्छी मानी जाती है। बूंददानों को सेंककर या कुछ लोग सुपारी के बदले भोजन के बाद चबाकर मुंह साफ करते हैं। बून्ददाने सेंकने पर खुशबूदार और मसालेदार बनते हैं। कॉफी पीने से शरीर में गर्मी और चुस्ती फुर्ती आती है। ठण्ड के मौसम में तथा ठण्डे प्रदेश की यात्रा के दौरान कॉफी का सेवन किया जाए तो शरीर की ठण्ड से रक्षा होती है और ज्ञानतन्तु जाग्रत होते हैं। कॉफी बहुत गर्म होने के कारण रोजाना पीने की आदत नहीं डालनी चाहिए।

गुण (Property)

कॉफी पीने से शरीर में गर्मी और चुस्ती फुर्ती आती है। ठण्ड के मौसम में तथा ठण्डे प्रदेश की यात्रा के दौरान कॉफी का सेवन किया जाए तो शरीर की ठण्ड से रक्षा होती है और ज्ञानतन्तु जाग्रत होते हैं। कॉफी बहुत गर्म होने के कारण रोजाना पीने की आदत नहीं डालनी चाहिए।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चाय-कॉफी में पोषक तत्वों का अभाव होता है। अत: टॉनिक के रूप में यह सर्वथा अनावश्यक है। यदि चाय-कॉफी में चीनी अधिक मात्रा में डाली जाए तो यह निर्बल पाचन (कमजोर पाचन शक्ति) शक्ति वालों को अधिक नुकसान करती है। भारत जैसे गर्म देश में काफी गर्मी उत्पन्न करती है और नींद का नाश करती है। अत: रात में कॉफी नहीं पीनी चाहिए। कॉफी के अधिक सेवन से वीर्य पतला हो जाता है, ज्ञानतन्तु निर्बल बनते हैं और पाचनशक्ति कम होकर अजीर्ण आदि रोग हो जाते हैं। लगातार लंबे समय तक कॉफी का सेवन करते रहने से स्नायु दुर्बल हो जाते हैं। स्वास्थ्य खराब रहता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

यदि कॉफी पीने से हार्निया (आन्त उतरना) प्रतीत होने लगे तो होम्योपैथिक औषधि `नक्सवोमिका 30` की 4 खुराकें रोजाना 1 सप्ताह तक लेने से इसके सभी प्रकार के दुष्प्रभाव दूर हो जाते हैं। काफी पेशाब अधिक लाती है। कॉफी पीने से दिल व सांस की नलियां फैलती हैं। यदि तेज खांसी और दमा का दौरा पड़ा हो तो बिना दूध की गर्म कॉफी का सेवन लाभकारी सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त कहीं भी कैसा भी दर्द हो काफी पीने से दर्द दूर हो जाता है। कॉफी में कैफीन तत्व होता है जो दिमाग के अनुभव केन्द्र को प्रभावित कर उत्तेजना लाता है। इससे दर्द कम हो जाता है।

चिरौंजी के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चिरौंजी के पेड़ विशाल होते हैं। चिरौंजी के पेड़ महाराष्ट्र, नागपुर और मालाबार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके पत्ते लम्बे-लंबे महुवे के पत्ते के समान मोटे होते हैं। इसकी पत्तल भी बनाई जाती है। इसकी छाया बहुत ही ठण्डी होती है। इसकी लकड़ी से कोई चीज नहीं बनती है। इसमें छोटे-छोटे फल लगते हैं। फलों के अन्दर से अरहर के समान बीज निकलते हैं। इसी को चिरौंजी कहा जाता है। चिरौंजी एक मेवा होती है। इसे विभिन्न प्रकार के पकवानों और मिठाइयों में डाला जाता है। इसका स्वाद मीठा होता है। इसका तेल भी निकलता है। यह बादाम के तेल के समान ठण्डा और लाभदायक होता है।

गुण (Property)

चिरौंजी मलस्तम्भक, चिकना, धातुवर्द्धक, कफकारक, बलवर्द्धक और वात विनाशकारी होता है। यह शरीर को मोटा और शक्तिशाली बनाता है। चिरौंजी कफ को दस्तों के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देता है। यह चेहरे के रंग को साफ करता है। चिरौंजी का हरीरा बादाम और चीनी के साथ उपयोग करने से बहुत अधिक मात्रा में धातु की वृद्धि होती है। इसका तेल बालों में लगाने से बाल गिरना बंद हो जाते हैं।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चिरौंजी भारी है तथा देर में हजम होती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

रक्तातिसार (खूनी दस्त):

चिरौंजी के पेड़ की छाल को दूध में पीसकर शहद मिलाकर पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) बंद हो जाता है।

पेचिश:

चिरौंजी के पेड़ की छाल को दूध में पीसकर शहद में मिलाकर पीने से पेचिश रोग ठीक हो जाता है।

खांसी:

  • खांसी में चिरौंजी का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से लाभ मिलता है। चिरौंजी पौष्टिक भी होती है। इसे पौष्टिकता की दृष्टि से बादाम के स्थान पर उपयोग करते हैं।
  • छठवें महीने के गर्भाशय के रोग: चिरौंजी, मुनक्का और धान की खीलों का सत्तू, ठण्डे पानी में मिलाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भ का दर्द, गर्भस्राव आदि रोगों का निवारण हो जाता है।

शीतपित्त:

  • चिरौजी की 50 ग्राम गिरी खाने से शीत पित्त में जल्दी आराम आता है।
  • चिरौंजी को दूध में पीसकर शरीर पर लेप करने से शीतपित्त ठीक होती है।
  • चिरौंजी और गेरू को सरसों के तेल में पीसकर मलने से पित्ती शान्त हो जाती है।

शारीरिक सौंदर्यता:

ताजे गुलाब के फूल की पंखुड़िया, 5 चिरौंजी के दाने और दूध की मलाई को पीसकर होठों पर लगा लें और सूखने के बाद धो लें। इससे होठों का रंग लाल हो जाता है और फटे हुए होंठ मुलायम हो जाते हैं।

चेहरे की फुंसियां:

चेहरे की फुंसियों पर चिरौंजी को गुलाबजल में पीसकर मालिश करने से चेहरे की फुंसियां ठीक हो जाती हैं।

रंग को निखारने के लिए:

2 चम्मच दूध में आधा चम्मच चिरौंजी को भिगोकर लेप बनाकर चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट के बाद चेहरे को धो लें। यह क्रिया लगातार 45 दिन तक करने से चेहरे का रंग निखर जाता है और चेहरे की चमक बढ़ जाती है। इसको लगाने से रूखी और सूखी त्वचा भी कोमल हो जाती है।

सौंदर्यप्रसाधन:

  • त्वचा के किसी भी तरह के रोग में चिरौंजी का उबटन (लेप) बनाकर लगाने से आराम आता है।
  • चिरौंजी के तेल को रोजाना बालों में लगाने से बाल काले हो जाते है।

अकूते के फोड़े:

चिरौंजी को दूध के साथ पीसकर लगाने से अकूते के फोड़े में आराम आ जाता है।

छुहारा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

छुहारा का लैटिन नाम फीनिक्स डेक्टाइलीफेरा है। यह प्रसिद्ध मेवाओं में से एक है। छुहारे एक बार में चार से अधिक नहीं खाने चाहिए, वरना इससे गर्मी होती हैं। दूध में भिगकर छुहारा खाने से इसके पौष्टिक गुण बढ़ जाते हैं। छुहारा स्याही लिए हुए लाल रंग का होता है। यह मीठा होता है। सका पेड़ खजूर के पेड़ के समान होता है। छुहारे शीतल, रूखे और गर्म प्रकृति के होते है।

गुण (Property)

: छुहारा रुचिकारक, हृदय के लिए लाभकारी, तृप्तकारी, पुष्टकारक, वीर्य-बलवर्द्धक, क्षय (टी.बी.), रक्तपित्त, वातज्वर, अभिघात वमन, वात और कफरोगों को दूर करता है। यह खून को शुद्ध करता है तथा शरीर को मोटा करता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

इसका अधिक मात्रा में सेवन मलस्तंभकारक होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

शीघ्रपतन:

2 छुहारे रोजाना खाने से शीघ्रपतन के रोग में लाभ मिलता है और जिन लोगों का वीर्य पतला निकलता है वह गाढ़ा हो जाता है।

बिस्तर में पेशाब होना:

यदि बच्चे बिस्तर में पेशाब करते हो तो रोजाना रात को सोते समय 2 छुहारे खिलाने से लाभ होता है।
250 मिलीलीटर दूध में 1 छुहारा डालकर उबाल लें। जब दूध अच्छी तरह से उबल जाये और उसके अन्दर का छुआरा फूल जाये तो इस दूध को ठण्डा करके छुआरे को चबाकर खिलाने के बाद ऊपर से बच्चे को दूध पिला दें। ऐसा रोजाना करने से कुछ दिनों में ही बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है।

बुजुर्गों का बार-बार पेशाब आना:

बूढे़ आदमी बार-बार पेशाब जाते हो तो उन्हें रोजाना 2 छुहारे खिलाना चाहिए तथा रात को 2 छुहारे खिलाकर दूध पिलाना चाहिए।

स्वर भंग (आवाज साफ करना):

सोते समय 1 छुहारा दूध में उबालकर खा लेते हैं और दूध को पी लेते हैं इसके सेवन के 2 घंटे बाद पानी न पिये। ऐसा करने से आवाज साफ हो जाएगी।

कब्ज:

सुबह-शाम 3 छुहारे खाकर गर्म पानी पियें। छुहारे सख्त होने से खाना सम्भव न हो तो दूध में उबालकर ले सकते हैं। छुहारे रोजाना खाते रहने से बवासीर, स्नायुविक दुर्बलता, तथा रक्तसंचरण ठीक होता है। सुबह के समय 2 छुहारे पानी में भिगोकर रात को इन्हें चबा-चबाकर खाएं। भोजन कम मात्रा में करें या रात को 2 छुहारे उबालकर भी ले सकते हैं। इससे कब्ज दूर हो जाती है।

मोटापा:

छुहारा शरीर में खून को बनाता है। शरीर को बलवान व मोटा बनाता है। दूध में 2 छुहारे उबालकर खाने से मांस, बल और वीर्य बढ़ता है। बच्चे के लिए छुहारा दूध में भिगो देते हैं। जब दूध में रखा छुहारा फूल जाता है तो इसे छानकर, पीसकर बच्चों को पिलाना चाहिए।
पथरी, लकवा, पीठदर्द: पथरी, लकवा, पीठदर्द में छुहारा सेवन करना लाभदायक होता है। यह मासिक-धर्म को शुरू करता है। छुहारा अवरोधक अर्थात बाहर निकालने वाली चीजों को रोकता है। जैसे दस्त, आंसू, लार, वीर्य और पसीना आदि सभी को रोकता है। छुहारे में कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। कैल्शियम की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग जैसे हडि्डयों की कमजोरी, दांतों का गलना आदि छुहारा खाने से ठीक हो जाते हैं।

नपुंसकता:

छुहारे को दूध में देर तक उबालकर खाने से और दूध पीने से नपुंसकता खत्म हो जाती है।
बराबर मात्रा में मिश्री मिले दूध में छुहारों को उबालकर गुठली हटाकर खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है और इससे वीर्य, बल, बुद्धि भी बढ़ती है।
रात को पानी में 2 छुहारे और 5 ग्राम किशमिश भिगो दें। सुबह को पानी से निकालकर दोनों मेवे दूध के साथ खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है।

दमा या श्वास का रोग:

रोजाना 2 से 4 छुहारा मिश्री मिले हुए दूध में उबालकर गुठली हटाकर छुहारा खाने के बाद वहीं दूध पीने से बहुत लाभ होता है। इससे शरीर में ताकत आती है तथा बलगम निकल जाता है जिससे श्वास रोग (दमा) में राहत मिलती है।
छुहारा गर्म होता है। यह फेफड़ों और सीने को बल देता है। कफ व सदी में इसका सेवन लाभकारी होता है।
पान में छुहारा और सोंठ रखकर कुछ दिनों तक चूसने से श्वास रोग (दमा) दूर हो जाता है।

अंजनहारी, गुहेरी:

छुहारे के बीज को पानी के साथ पीसकर गुहेरी पर दिन में 2 से 3 बार लेप करने से अंजनहारी में बहुत लाभ होता है।

गैस:

एक छुहारा बिना गुठली का और 30 ग्राम जयपाल खोपरा, 2 ग्राम सेंधानमक को पीसकर और छानकर 3 खुराक बना लें। 3 दिन तक इस खुराक को 1-1 करके गर्म पानी के साथ सुबह लेने से गैस के रोग समाप्त हो जाते हैं।

मसूढ़ों से खून आना:

2 से 4 छुहारों को गाय के दूध में उबाल लें। उबल जाने पर छुहारे निकालकर खायें तथा बचे हुए दूध में मिश्री मिलाकर पीयें। रोजाना सुबह-शाम इसका सेवन करने से मसूढ़ों से खून व पीव का निकलना बंद हो जाता है।

दस्त:

छुहारे के पेड़ से प्राप्त गोंद को 3 ग्राम से लेकर 6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम चाटने से अतिसार (दस्त) में आराम मिलता है।

हकलाना, तुतलाना:

रोजाना रात को सोते समय छुहारों को दूध में उबालकर पीयें। इसको पीने के 2 घण्टे बाद तक पानी न पीयें। इसके रोजाना प्रयोग से तीखी, भोंड़ी, आवाज साफ हो जाती है।

कमरदर्द:

छुहारे से गुठली निकालकर उसमें गुग्गुल भर दें। इसके बाद छुहारे को तवे पर सेंककर दूध के साथ सेवन करें। सुबह-शाम 1-1 छुहारा खाने से कमर दर्द मिट जाता है।
सुबह-शाम 2 छुहारों को खाने से कमर दर्द में लाभ होता है।
बिना बीज वाले छुहारे को पीसकर इसके साथ पिस्ता, बादाम, चिरौंजी और मिश्री मिलाकर, इसमें शुद्ध घी मिलाकर रख दें। 1 सप्ताह बाद इसे 20-20 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करने से कमजोरी दूर हो जाती है।
2-3 छुहारों को स्टील या चीनी मिट्टी के बर्तन में रात-भर पानी में भिगोए रखने के बाद सुबह गुठली अलग कर दें और छुहारे को दूध में पकाकर सेवन करें। इससे कमजोरी मिट जाती है।
250 ग्राम गुठलीरहित छुहारे, 250 ग्राम भुने चने, 250 ग्राम गेहूं का आटा, 60-60 ग्राम चिलगोजा, बादाम की गिरी, 500 ग्राम गाय का घी, 500 ग्राम शक्कर और 2 लीटर गाय का दूध। दूध में छुहारों को कोमल होने तक उबालें, फिर निकालकर बारीक पीस लें और फिर उसी दूध में हल्की आग पर खोवा बनने तक तक पकाएं। अब घी को आग पर गर्म करके गेहूं का आटा डालकर गुलाबी होने तक धीमी आग में सेंक लें, इसके बाद उसमें चने का चूर्ण और खोवा डालकर फिर धीमी आग पर गुलाबी होने तक भूने। जब सुगंध आने लगे तो इसमें शक्कर डालकर खूब अच्छी तरह मिलाएं। हलवा तैयार हो गया। इसमें और सारी चीजों को डालकर रखें। इसे 50-60 मिलीलीटर की मात्रा में गाय के गर्म दूध के साथ रोजाना 1 बार सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है।

पक्षाघात-लकवा-फालिस फेसियल परालिसिस:

दूध में भिगोकर छुहारा खाने से लकवे के रोग में लाभ प्राप्त होता है। एक बार में 4 से अधिक छुहारे नहीं खाने चाहिए।

अग्निमान्द्यता (अपच):

छुहारे की गुठली और ऊंटकटोरे की जड़ की छाल का चूर्ण खाने से अग्निमान्द्यता (भूख का न लगना) में आराम मिलता है।

मधुमेह के रोग:

गुठली निकालकर छुहारे के टुकड़े दिन में 8-10 बार चूसें। कम से कम 6 महीने तक इसका सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।

सोते समय पेशाब निकलना:

एक छुहारे के 4 हिस्से करके उसको दो बार सुबह और शाम रोगी को देने से सोते समय पेशाब का निकलना बंद हो जाता है।

रक्तपित्त:

2-4 छुहारों को दूध में डालकर ऊपर से मिश्री मिलाकर दूध को उबाल दें गुठली हटाकर खाने से और दूध को पी लेने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

वीर्य की कमी में:

छुहारा बराबर रूप से दूध में उबालकर खाने से वीर्य बढ़ता है।