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अरबी के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

अरबी अत्यंत प्रसि़द्ध और सभी की परिचित वनस्पति है। अरबी की प्रकृति ठंडी और तर होती है। अरबी के पत्तों से बनी सब्जी बहुत स्वादिष्ट होती है। अरबी के फल, कोमल पत्तों और पत्तों की तरकारी बनती है। अरबी वस्तुत: गर्मी के मौसम की फसल है तथा गर्मी और वर्षा की ऋतु में होती है। अरबी अनेकों किस्म की होती है जैसे- राजाल, धावालु, काली-अलु, मंडले-अलु, गिमालु और रामालु। इन सबमें काली अरबी उत्तम है। कुछ अरबी में बड़े और कुछ में छोटे कन्द लगते हैं। इससे विभिन्न प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं। अरबी रक्तपित्त को मिटाने वाली, दस्त को रोकने वाली है।

गुण

अरबी शीतल, अग्निदीपक (भूख को बढ़ाने वाली), बल की वृद्धि करने वाली और स्त्रियों के स्तनों में दूध बढ़ाने वाली है। अरबी के सेवन से पेशाब अधिक मात्रा में होता है एवं कफ और वायु की वृद्धि होती है। अरबी के फल में धातुवृद्धि की भी शक्ति है। अरबी के पत्तों का साग वायु तथा कफ बढ़ाता है। इसके पत्तों में बेसन लगाकर बनाया गया पकवान स्वादिष्ट और रुचिकर होता है, फिर भी उसका अधिक मात्रा में सेवन उचित नहीं है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

अरबी की सब्जी बनाकर खायें। इसकी सब्जी में गर्म-मसाला, दालचीनी और लौंग डालें। जिन लोगों को गैस बनती हो, घुटनों के दर्द की शिकायत और खांसी हो, उनके लिए अरबी का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक हो सकता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पित्त प्रकोप :

अरबी के कोमल पत्तों का रस और जीरे की बुकनी मिलाकर देने से पित्त प्रकोप मिटता है।

वायुगुल्म (वायु का गोला) :

अरबी के पत्ते डण्ठल के साथ उबालकर उसका पानी निकालकर उसमें घी मिलाकर 3 दिन तक सेवन से वायु का गोला दूर होता है।

पेशाब की जलन :

अरबी के पत्तों का रस 3 दिन तक पीने से पेशाब की जलन मिट जाती है।

फोड़े-फुंसी :

अरबी के पत्ते के डंठल जलाकर उनकी राख तेल में मिलाकर लगाने से फोड़े मिटते हैं।

महिलाओं के स्तनों में दूध की वृद्धि :

अरबी की सब्जी खाने से दुग्धपान कराने वाली स्त्रियों के स्तनों में दूध बढ़ता है।

झुर्रियां :

अरबी त्वचा के सूखेपन और झुर्रियों को भी दूर करती है। सूखापन चाहे आंतों में हो या सांस-नली में अरबी खाने से लाभ होता है।

हृदय रोग :

हृदय रोग के रोगी को अरबी की सब्जी प्रतिदिन खाते रहने से लाभ होता है।

गिल्टी (ट्यूमर) :

अरुई के पत्तों के डाली को पीसकर लेप करने से रोग में लाभ होता है।

अनार के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

हमारे देश में अनार का पेड़ सभी जगह उगाया जाता है। अफगानिस्तान और भारत के उत्तरी भाग में पैदा होने वाले अनार बहुत रसीले और अच्छी किस्म के होते हैं। अनार के पेड़ कई शाखाओं से युक्त लगभग 6 मीटर ऊंचे होते हैं। इसकी छाल चिकनी, पतली, पीली या गहरे भूरे रंग की होती है। इसके पत्ते कुछ लंबे व कम चौड़े होते हैं तथा फूल नारंगी व लाल रंग के, कभी-कभी पीले 5-7 पंखुड़ियों से युक्त एकल या 3-4 के गुच्छों में होते हैं। अनार के फल गोलाकार, लगभग 2 इंच व्यास का होता है। इसके फल का छिलका हटाने के बाद सफेद, लाल या गुलाबी रंग के रसीले दाने होते हैं। रस की दृष्टि से यह फल मीठा, खट्टा-मीठा और खट्टा तीन प्रकार का होता है। अनार का केवल फल ही नहीं बल्कि इसका पेड़ भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है। फल की अपेक्षा कली व छिलके में अधिक गुण पाये जाते हैं।

गुण (Property)

अनार के सेवन से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है, यह पेट को नरम करता है, मूत्र लाता है, हृदय के लिए लाभदायक होता है। प्यास को खत्म करता है। धातु को पुष्ट करता है, शरीर के प्रत्येक अंग का पोषण करता है। यह विभिन्न रोगों में उपयोगी होता है। अनारदाना का बारीक चूर्ण स्वादिष्ट, भोजन पचाने वाला और भूख बढ़ाने वाला होता है तथा यह मंदाग्नि, वायुगोला, अपच, अतिसार, गले के रोग, कमजोरी और खांसी में लाभकारी होता है।

वैज्ञानिक मतानुसार अनारदाने में आद्रता 78 प्रतिशत, कार्बोहाईट्रेट 14.5 प्रतिशत, प्रोटीन 1.6 प्रतिशत, वसा 0.1 प्रतिशत होती है। इसके अलावा फास्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, आक्जैलिक अम्ल, तांबा, लोहा, गंधक, टेनिन, शर्करा, विटामिन्स होते हैं। फल की छाल में 25 प्रतिशत, तने के गूदे में 25 प्रतिशत तक, पत्तियों में 11 प्रतिशत और जड़ की छाल में 28 प्रतिशत टैनिन होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

सभी प्रकार के अनार शीत प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होते हैं। मीठा अनार बुखार वालों को, खट्टा और फीका अनार सर्द मिजाज वालों के लिए हानिकारक हो सकता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

नाक से खून आना या नकसीर :

  • अनार के रस को नाक में डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।
  • अनार के फूल और दूर्वा (दूब नामक घास) के मूल रस को निकालकर नाक में डालने और तालु पर लगाने से गर्मी के कारण नाक से निकलने वाले खून का बहाव तत्काल बंद हो जाता है।
  • 100 ग्राम अनार की हरी पत्तियां, 50 ग्राम गेंदे की पत्तियां, 100 ग्राम हरा धनिया और 100 ग्राम हरी दूब (घास) को एक साथ पीसकर पानी में मिलाकर शर्बत बना लें। इस शर्बत को दिन में 4 बार पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
  • 100 मिलीलीटर अनार का रस नकसीर (नाक से खून बहना) के रोगी को कुछ दिनों तक लगातार पिलाने से लाभ होता है।
  • आधे कप खट्टे-मीठे अनार के रस में 2 चम्मच मिश्री मिलाकर रोजाना दोपहर के समय पीने से गर्मी के मौसम की नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
  • नथुनों में अनार का रस डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है। 7 दिन से अधिक रहने वाला बुखार, एपेन्डीसाइटिस में अनार लाभदायक है। अनार की कली जो निकलते ही हवा के झोंकों से नीचे गिर पड़ती है, अतिसंकोचन और गीलेपन को दूर करने वाली होती है। इनका रस 1-2 बूंद नाक में टपकाने से या सुंघाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है। यह नकसीर के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि है।
  • अनार के छिलके को छुहारे के पानी के साथ पीसकर लेप करने से सूजन में तथा इसके सूखे महीन चूर्ण को नाक में टपकाने से नकसीर में लाभ होता है।
  • अनार के पत्तों के काढ़े को या 10 ग्राम रस पिलाने से तथा मस्तक पर लेप करने से नकसीर में लाभ होता है।

गर्मी के कारण नाक से खून आना :

अनार के फूल और दूब की जड़ का रस निकालकर नाक में डालना चाहिए अथवा केवल अनार के फूल का रस नाक में डालना और मस्तिष्क पर लगाना चाहिए। इससे नाक से खून आना बंद हो जाता है।

पेशाब का अधिक मात्रा में आना (बहुमूत्र) :

1 चम्मच अनार के छिलकों का चूर्ण एक कप पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इससे बहुमूत्र का रोग नष्ट हो जाता है।
अनार के छिलकों को छाया में सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें। 3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से बार-बार पेशाब जाने से छुटकारा मिलता है।

चेहरे का सौंदर्य :

गुलाब जल में अनार के छिलकों के बारीक चूर्ण को मिलाकर अच्छी तरह लेप बनाएं। इस लेप को सोते समय नियमित रूप से लगाकर सुबह चेहरा धो लें। इससे दाग के निशान, झांइयों के धब्बे दूर हो जाएंगे और चेहरे में चमक आ जायेगी।
अनार के ताजे हरे 100 मिलीलीटर पत्तों के रस को 1 किलो सरसों में मिला लेते हैं। चेहरे पर इस तेल की मालिश करने से चेहरे की कील, झांईयां और काले धब्बे नष्ट हो जाते हैं।

शरीर की गर्मी :

अनार का रस पानी में मिलाकर पीने से गर्मी के दिनों में बढ़ी शरीर की गर्मी दूर होती है।

अजीर्ण :

  • 3 चम्मच अनार के रस में 1 चम्मच जीरा और इतना ही गुड़ मिलाकर भोजन के बाद सेवन करने से अजीर्ण का रोग नष्ट हो जाता है।
  • छाया में सुखाया हुआ अनार के पत्ते का चूर्ण 40 ग्राम और सेंधानमक 10 ग्राम दोनों को महीन पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 4-4 ग्राम सुबह-शाम भोजन से पहले पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण दूर होता है।
  • अनार का रस, शहद और तिल का तेल समान मात्रा में लेकर, कुल मिश्रण 50 ग्राम की मात्रा में तैयार करते हैं। इसमें 6 ग्राम जीरा और 6 ग्राम खांड मिलाकर मुंह में भरे और थोड़ी देर तक मुंह को चलाते रहे। जब आंख नाक से पानी निकलने लगे तो कुल्ला कर दें और फिर दुबारा नया रस मुंह में भरें। दिन में 8-10 बार ऐसा करें। इसके अलावा जब बिल्कुल भूख न हो तथा यकृत में विकार हो तब उस अवस्था में भी लाभ होता है।
  • खट्टे मीठे अनार का रस 1 ग्राम मुंह में भरकर धीरे-धीरे चलाकर पीयें। इस प्रकार 8 या 10 बार करने से मुंह का स्वाद सुधरकर आंत्रदोषों (आंतों के विकारों) का पाचन होता है तथा बुखार के कारण से हुई अरुचि भी दूर होती है।
  • मीठे अनार के रस में शहद मिलाकर पिलाने से अरुचि में लाभ होता है।

दांत से खून आना :

अनार के फूल छाया में सुखाकर बारीक पीस लेते हैं। इसे मंजन की तरह दिन में 2 या 3 बार दांतों में मलने से दांतों से खून आना बंद होकर दांत मजबूत हो जाते हैं।

उल्टी :

  • अनार के बीज को पीसकर उसमें थोड़ी-सी कालीमिर्च और नमक मिलाकर खाने से पित्त की वमन और घबराहट में आराम मिलता है।
  • अनार का रस पीने से गर्भवती स्त्रियों की वमन विकृति (उल्टी) नष्ट होती है।
  • अनार के रस में शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
  • सूखे अनारदाने को पानी में भिगो दें। थोड़ी देर के बाद इस पानी को पीने से उल्टी आने के रोग मे लाभ होता है।
  • खट्टे-मीठे अनार के 200 मिलीलीटर रस में 25 ग्राम मुरमुरे का आटा और 25 ग्राम शर्करा मिलाकर सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है। इसके प्रयोग से शारीरिक गर्मी भी दूर होती है और पित्तज्वर को शांत करने हेतु भी यह प्रयोग गुणकारी है। लू लगने से आए हुए बुखार की जलन, व्याकुलता, उल्टी और प्यास भी इसके सेवन से मिट जाता है।

बच्चों की खांसी :

बच्चों को खांसी होने पर अनार की छाल खाने के लिए देनी चाहिए अथवा अनार के रस में घी, शक्कर, इलायची और बादाम मिलाकर देना चाहिए।

बच्चों की दस्त एवं पेचिश :

बच्चों को दस्त या पेचिश की शिकायत होने पर अनार की छाल को घिसकर पिलाने से लाभ मिलता है।

पेट के कीड़े :

  • अनार की जड़ और तने की छाल का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए अथवा अनार की छाल के काढ़े में तिल का तेल मिलाकर 3 दिन तक पिलाना चाहिए। इससे पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
  • यदि कद्दू दाना कृमि ही हो तो 50 ग्राम अनार के जड़ की छाल दरदरा कूटकर 2 लीटर पानी में उबालते हैं जब आधा पानी शेष बचे तो इसे उतार लें। इसके बाद 50 ग्राम सुबह खाली पेट, आधा-आधा घंटे के अंतर से 4 बार सेवन करें। फिर एक बार एरंड तेल का सेवन करें। बालकों को काढे़ की 10 मिलीलीटर तक की मात्रा देनी चाहिए।
  • छाया में सुखाये हुए अनार के पत्तों को बारीक पीस छानकर 6 ग्राम की मात्रा में सुबह गाय की छाछ के साथ या ताजे पानी के साथ प्रयोग करें। इससे पेट के सभी कीड़े दूर हो जाते हैं।
  • अनार की जड़ की छाल 10 ग्राम, वायबिडंग और इन्द्रजौ 6-6 ग्राम कूटकर काढ़ा तैयार कर लेते हैं। इसके बाद काढ़े का सेवन करने से पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
  • खट्टे अनार के छिलके और शहतूत की 20-20 ग्राम मात्रा को 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
  • अनार के पेड़ की जड़ की तरोताजा छाल 50 ग्राम लेकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर लें। इसमें पलास बीज का चूर्ण 5 ग्राम, बायविडंग 10 ग्राम को एक लीटर पानी में उबालें। आधा पानी शेष रहने तक उसे उबालते रहें। उसके बाद नीचे उतारकर ठंडा होने पर छान लें। यह जल दिन में चार बार आधा-आधा घंटे के अन्तराल पर 50-50 ग्राम की मात्रा में पिलाने से और बाद में एरंड तेल का जुलाब देने से सभी प्रकार के पेट के कीड़े निकल जाते हैं।
  • अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करें। इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। यही प्रयोग खूनी दस्त, खूनी बवासीर, स्वप्नदोष, अत्यधिक मासिकस्राव में भी लाभकारी होता है।
  • अनार के फल की छाल को उतार लें, फिर इससे काढ़ा बनाकर उसमें 1 ग्राम तिल का तेल मिलाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
  • अनार की जड़ की छाल, पलास बीज और वायविंडग को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ को शहद के साथ पीने से पेट के अंदर के सूती, चपटे और गोल आदि कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकाल जाते हैं।
  • अनार की जड़ के काढ़े में मीठे तेल को मिलाकर 3 दिन तक सेवन करने से आंतों के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
  • 50 ग्राम अनार की जड़ की छाल को 250 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, जब पानी 100 ग्राम की मात्रा में बचे, तब इस बने काढे़ को दिन में 3-4 दिन बार पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
  • 3 ग्राम अनार के छिलकों का चूर्ण दही या छाछ (मट्ठे) के साथ सेवन करें। अनार की छाल को 24 घंटे पानी में भिगोकर रख दें, फिर उसी पानी को उबालकर खाली पेट सुबह पीने से पेट की फीताकृमि (कीड़) मर जाते हैं।

उष्णपित्त :

शक्कर की चाशनी में अनार-दानों का रस डालकर कपडे़ से छान लें। आवश्यकता होने पर 20 ग्राम शर्बत, 20 मिलीलीटर पानी के साथ पी लें। इससे उष्णपित्त नष्ट हो जाता है।

आलू के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

आलू सब्जियों का राजा माना जाता है क्योंकि दुनिया भर में सब्जियों के रूप में जितना आलू का उपयोग होता है, उतना शायद ही अन्य किसी सब्जी का होता होगा। आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन “बी” तथा फॉस्फोरस बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। आलू खाते रहने से रक्त वाहिनियां बड़ी आयु तक लचकदार बनी रहती हैं तथा कठोर नहीं होने पाती। इसलिए आलू खाकर लम्बी आयु प्राप्त की जा सकती है।

आलू को अनाज के पूरक आहार का स्थान प्राप्त है। सभी प्रकार के आलू शीतल, मलरोधक, मधुर, भारी, मल तथा मूत्र को उत्पन्न करने वाले, मुश्किल से पचने वाले और रक्तपित्त को मिटाने वाले हैं। यह कफ और वायु करने वाले, बलप्रद, वीर्यवर्धक और अल्पमात्रा में पाचनशक्तिवर्धक भी हैं। अधिक परिश्रम के कारण उत्पन्न निर्बलता, रक्तपित्त से पीड़ित, शराबी और तेज जठराग्नि वाले लोगों के लिए आलू अत्यंत ही पोषक है।

गुण (Property)

तत्व  –  मात्रा
प्रोटीन  –  1.6%
कार्बोहाइड्रेट  –  22.9%
पानी  –  74.7%
विटामिन-’  –  40 I.U./100 ग्राम
कैल्शियम  –  0.01%
फास्फोरस  –  0.03%
लौह   –  लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बेरी-बेरी :

बेरी-बेरी का सरलतम् सीधा-सादा अर्थ है-”चल नहीं सकता” इस रोग से जंघागत नाड़ियों में कमजोरी का लक्षण विशेष रूप से होता है। आलू पीसकर या दबाकर रस निकालें, एक चम्मच की मात्रा के हिसाब से प्रतिदिन चार बार पिलाएं। कच्चे आलू को चबाकर रस निगलने से भी यह लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

रक्तपित्त :

यह रोग विटामिन “सी” की कमी से होता है। इस रोग की प्रारिम्भक अवस्था में शरीर एवं मन की शक्ति कमजोर हो जाती है अर्थात् रोगी का शरीर निर्बल, असमर्थ, मन्द तथा पीला-सा दिखाई देता है। थोड़े-से परिश्रम से ही सांस फूल जाती है। मनुष्य में सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता आ जाती है। रोग के कुछ प्रकट रूप में होने पर टांगों की त्वचा पर रोमकूपों के आसपास आवरण के नीचे से रक्तस्राव होने (खून बहने) लगता है। बालों के चारों ओर त्वचा के नीचे छोटे-छोटे लाल चकत्ते निकलते हैं फिर धड़ की त्वचा पर भी रोमकूपों के आस-पास ऐसे बड़े-बड़े चकत्ते निकलते हैं। त्वचा देखने में खुश्क, खुरदुरी तथा शुष्क लगती है। दूसरे शब्दों में-अति किरेटिनता (हाइपर केराटोसिस) हो जाता है। मसूढ़े पहले ही सूजे हुए होते हैं और इनसे खून निकलने लगता है बाद में रोग बढ़ने पर टांगों की मांसपेशियों विशेषकर प्रसारक पेशियों से रक्तस्राव होने लगता है और तेज दर्द होता है। हृदय मांस से भी स्राव होकर हृदय शूल का रोग हो सकता है। नासिका आदि से खुला रक्तस्राव भी हो सकता है। हडि्डयों की कमजोरी और पूयस्राव भी बहुधा विटामिन “सी” की कमी से प्रतीत होता है। कच्चा आलू रक्तपित्त को दूर करता है।

त्वचा की झुर्रियां :

ठंडी सूखी हवाओं से हाथों की त्वचा पर झुर्रियां पड़ने पर कच्चे आलू को पीसकर हाथों पर मलना गुणकारी हैं। नींबू का रस भी इसके लिए समान रूप से उपयोगी है। कच्चे आलू का रस पीने से दाद, फुन्सियां, गैस, स्नायुविक और मांसपेशियों के रोग दूर होते हैं।

आंखों का जाला एवं फूला :

कच्चा आलू साफ-स्वच्छ पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम आंख में काजल की भांति लगाने से पांच से छ: वर्ष पुराना जाला और चार वर्ष तक का फूला तीन महीने में साफ हो जाता है।

मोटापा :

  • आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू को तलकर तीखे मसाले घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख में भूनकर खाना लाभकारी है।
  • सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि सूखे चावलों में 6-7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस प्रकार आलू में अधिक प्रोटीन पाया जाता है। आलू में मुर्गियों के चूजों जैसी प्रोटीन होती है। बड़ी आयु वालों के लिए प्रोटीन आवश्यक है। आलू की प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाली और वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने वाली होती है।

बच्चों का पौष्टिक भोजन :

  • आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं।
  • आलू का रस निकालने की विधि : आलू को ताजे पानी से अच्छी तरह धोकर छिलके सहित कद्दूकस करके इस लुगदी को कपड़े में दबाकर रस निकाल लें। इस रस को 1 घंटे तक ढंककर रख दें। जब सारा कचरा, गूदा नीचे जम जाए तो ऊपर का निथरा रस अलग करके काम में लें।

सूजन :

  • कच्चे आलू को सब्जी की तरह काट लें। जितना वजन आलू का हो, उसके लगभग 2 गुना पानी में उसे उबालें। जब मात्र एक भाग पानी शेष रह जाए तो उस पानी से चोट से उत्पन्न सूजन वाले अंग को धोकर सेंकने से लाभ होगा।
  • नोट : गुर्दे या वृक्क (किडनी) के रोगी भोजन में आलू खाएं। आलू में पोटैशियम की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है और सोडियम की मात्रा कम। पोटैशियम की अधिक मात्रा गुर्दों से अधिक नमक की मात्रा निकाल देती है। इससे गुर्दे के रोगी को लाभ होता है। आलू खाने से पेट भर जाता है और भूख में सन्तुष्टि अनुभव होती है। आलू में वसा (चर्बी) यानि चिकनाई नहीं पाई जाती है। यह शक्ति देने वाला है और जल्दी पचता है। इसलिए इसे अनाज के स्थान पर खा सकते हैं।

उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर) :

इस बीमारी के रोगियों को आलू खाने से रक्तचाप को सामान्य बनाने में अधिक लाभ प्राप्त होता है। पानी में नमक डालकर आलू उबालें। (छिलका होने पर आलू में नमक कम पहुंचता है।) और आलू नमकयुक्त भोजन बन जाता है। इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप में लाभ करता है क्योंकि आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है।

अम्लता (एसीडिटी) :

आलू की प्रकृति क्षारीय है जो अम्लता को कम करती है। जिन रोगियों के पाचन अंगों में अम्लता की अधिकता है, खट्टी डकारें आती है और वायु (गैस) अधिक बनती है, उनके लिए गरम-गरम राख या रेत में भुना हुआ आलू बहुत ही लाभदायक है। भुना हुआ आलू गेहूं की रोटी से आधे समय में पच जाता है। यह पुरानी कब्ज और अन्तड़ियों की दुंर्गध को दूर करता है। आलू में पोटैशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त को रोकता है।

गुर्दे की पथरी (रीनल स्टोन) :

एक या दोनों गुर्दों में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक मात्रा में पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियां और रेत आसानी से निकल जाती हैं। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो पथरी को निकालता है तथा पथरी बनने से रोकता है।

त्वचा का सौंदर्य:

जले हुए स्थान पर कच्चा आलू पीसकर लगाएं तथा तेज धूप, लू से त्वचा झुलस गई हो तो कच्चे आलू का रस झुलसी त्वचा पर लगाने से सौंदर्य में निखार आ जाता है।

हृदय की जलन :

  • इस रोग में आलू का रस पीएं। यदि रस निकाला जाना कठिन हो तो कच्चे आलू को मुंह से चबाएं तथा रस पी जाएं और गूदे को थूक दें। आलू का रस पीने से हृदय की जलन दूर होकर तुरन्त ठंडक प्रतीत होती है।
  • आलू का रस शहद के साथ पीने से हृदय की जलन मिटती है।

गठिया या जोड़ों का दर्द :

गर्म राख में चार आलू सेंक ले और फिर उनका छिलका उतारकर नमक मिर्च डालकर नित्य खाएं। इस प्रयोग से गठिया ठीक हो जाती है।

आमवात :

पैंट, पाजामे या पतलून की दोनों जेबों में लगातार एक छोटा-सा आलू रखें तो यह प्रयोग आमवात से रक्षा करता है। आलू खाने से भी बहुत लाभ होता है।

कटि वेदना (कमर दर्द) :

कच्चे आलू के गूदे को पीसकर पट्टी में लगाकर कमर पर बांधने से कमर दर्द दूर हो जाता है।

विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल):

यह एक ऐसा संक्रामक रोग है जिसमें सूजनयुक्त छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं, त्वचा लाल दिखाई देती है तथा साथ में बुखार भी रहता है। इस रोग में पीड़ित अंग पर आलू को पीसकर लगाने से फुन्सियां ठीक हो जाती हैं और लाभ होता है।

सब्ज मोतियाबिंद :

कच्चे आलू को ऊपर से छीलकर साफ पत्थर पर घिस लें और सलाई के सहारे आंखों में लगायें इससे आराम आता है।

पेट की गैस बनना :

  • कच्चे आलू को पीसकर उसका रस पीने से आराम मिलता है।
  • कच्चे आलू का रस आधा-आधा कप दो बार पीने से पेट की गैस में आराम मिलता है।

मुंह का सौंदर्य :

कच्चे आलू का रस निकालकर आंखों के काले घेरों पर लगाने से आंखों के नीचे की त्वचा का कालापन दूर हो जाता है।

अमरुद के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

अमरूद का पेड़ आमतौर पर भारत के सभी राज्यों में उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश का इलाहाबादी अमरूद विश्वविख्यात है। यह विशेष रूप से स्वादिष्ट होता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 10 से 20 फीट होती है। टहनियां पतली-पतली और कमजोर होती हैं। इसके तने का भाग चिकना, भूरे रंग का, पतली सफेद छाल से आच्छादित रहता है। छाल के नीचे की लकड़ी चिकनी होती है। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के, खुरदरे, 3 से 4 इंच लंबे, आयताकार, सुगंधयुक्त और डंठल छोटे होते हैं।

अमरूद लाल और पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं। बीज वाले  और बिना बीज वाले तथा अत्यंत मीठे और खट्टे-मीठे प्रकार के अमरूद आमतौर पर देखने को मिलते हैं। सफेद की अपेक्षा लाल रंग के अमरूद गुणकारी होते हैं। सफेद गुदे वाले अमरूद अधिक मीठे होते हैं। फल का भार आमतौर पर 30 से 450 ग्राम तक होता है।

आमतौर पर देखा जाता है कि जब लोग फल खरीदने जाते हैं तो उनकी नज़र में केला, सेब, अंगूर तथा आम आदि फल ही पोशक तत्वों से भरपूर नज़र आते हैं। अमरूद जैसा सस्ता तथा सर्वसुलभ फल उन्हें बेकार और गरीबों के खाने योग्य ही लगता है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अमरूद में सेब से भी अधिक पोशक तत्व होते हैं। इसीलिए इसे `गरीबों का सेब´ भी कहा गया है। अमरूद मधुर और रेचक (दस्त लाकर पेट साफ करने वाला) फल है तथा इसके नियमित प्रयोग से मल अवरोध तो दूर होता ही है, साथ ही वात-पित्त, उन्माद (पागलपन), मूर्छा (बेहोशी), मिर्गी, पेट के कीडे़, टायफाइड और जलन आदि का नाश होता है। आयुर्वेद में इसे शीतल, तीक्ष्ण, कसैला, अम्लीय तथा शुक्रजनक (वीर्यवर्द्धक) बताया गया है। यहां सेब और अमरूद में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की तुलना की जा रही है जिससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अमरूद कितना अधिक पौष्टिक है।

गुण

अमरूद में विटामिन सी और शर्करा काफी मात्रा में होती है। अमरूद में पेक्टिन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। अमरूद को इसके बीजों के साथ खाना अत्यंत उपयोगी होता है, जिसके कारण पेट साफ रहता है। अमरूद का उपयोग चटनियां, जेली, मुरब्बा और फल से पनीर बनाने में किया जाता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

शीत प्रकृति वालों को और जिनका आमाशय कमजोर हो, उनके लिए अमरूद हानिकारक होता है। वर्षा के सीजन में अमरूद के अंदर सूक्ष्म धागे जैसे सफेद कीडे़ पैदा हो जाते हैं जिसे खाने वाले व्यक्ति को पेट दर्द, अफारा, हैजा जैसे विकार हो सकते हैं। इसके बीज सख्म होने के कारण आसानी से नहीं पचते और यदि ये एपेन्डिक्स में चले जाए, तो एपेन्डिसाइटिस रोग पैदा कर सकते हैं। अत: इनके बीजों के सेवन से बचना चाहिए। इसकी दो किस्में होती हैं:- पहला सफेद गर्भवाली और दूसरा लाल-गुलाबी गर्भवाली। सफेद किस्म अधिक मीठी होती है। कलमी अमरूद में अच्छी किस्म के अमरूद भी होते हैं। वे बहुत बड़े होते हैं और उसमें मुश्किल से 4-5 बीज निकलते हैं। बनारस (उत्तर प्रदेश) में इस प्रकार के अमरूद होते हैं।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

  • सूखी खांसी : गर्म रेत में अमरूद को भूनकर खाने से सूखी, कफयुक्त और काली खांसी में आराम मिलता है। यह प्रयोग दिन में तीन बार करें। एक बड़ा अमरूद लेकर उसके गूदे को निकालकर अमरूद के अंदर थोड़ी-सी जगह बनाकर अमरूद में पिसी हुई अजवायन तथा पिसा हुआ कालानमक 6-6 ग्राम की मात्रा में भर देते हैं। इसके बाद अमरूद में कपड़ा भरकर ऊपर से मिट्टी चढ़ाकर तेज गर्म उपले की राख में भूने, अमरूद के भुन जाने पर मिट्टी और कपड़ा हटाकर अमरूद पीसकर छान लेते हैं। इसे आधा-आधा ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम मिलाकर चाटने से सूखी खांसी में लाभ होता है।
  • जुकाम : रुके हुए जुकाम को दूर करने के लिए बीज निकला हुआ अमरूद खाएं और ऊपर से नाक बंदकर 1 गिलास पानी पी लें। जब 2-3 दिन के प्रयोग से स्राव (बहाव) बढ़ जाए, तो उसे रोकने के लिए 50-100 ग्राम गुड़ खा लें। ध्यान रहे- कि बाद में पानी न पिएं। सिर्फ 3 दिन तक लगातार अमरूद खाने से पुरानी सर्दी और जुकाम दूर हो जाती है। लंबे समय से रुके हुए जुकाम में रोगी को एक अच्छा बड़ा अमरूद के अंदर से बीजों को निकालकर रोगी को खिला दें और ऊपर से ताजा पानी नाक बंद करके पीने को दें। 2-3 दिन में ही रुका हुआ जुकाम बहार साफ हो जायेगा। 2-3 दिन बाद अगर नाक का बहना रोकना हो तो 50 ग्राम गुड़ रात में बिना पानी पीयें खा लें।
  • पुराने दस्त : अमरूद की कोमल पत्तियां उबालकर पीने से पुराने दस्तों का रोग ठीक हो जाता है। दस्तों में आंव आती रहे, आंतों में सूजन आ जाए, घाव हो जाए तो 2-3 महीने लगातार 250 ग्राम अमरूद रोजाना खाते रहने से दस्तों में लाभ होता है। अमरूद में-टैनिक एसिड होता है, जिसका प्रधान काम घाव भरना है। इससे आंतों के घाव भरकर आंते स्वस्थ हो जाती हैं।
  • घुटनों के दर्द में : अमरूद के कोमल पत्तों को पीसकर गठिया के वेदना युक्त स्थानों पर लेप करने से लाभ होता है।
  • मुंह के छाले : रोजाना भोजन करने के बाद अमरूद का सेवन करने से छाले में आराम मिलता है। अमरूद के पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
  • गठिया रोग : गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 5-6 नई पत्तियों को पीसकर उसमें जरा-सा काला नमक डालकर प्रतिदिन सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है।
  • मलेरिया : मलेरिया बुखार में अमरूद का सेवन लाभकारी है। नियमित सेवन से तिजारा और चौथिया ज्वर में भी आराम मिलता है। अमरूद और सेब का रस पीने से बुखार उतर जाता है। अमरूद को खाने से मलेरिया में लाभ होता है।
  • हृदय : अमरूद के फलों के बीज निकालकर बारीक-बारीक काटकर शक्कर के साथ धीमी आंच पर बनाई हुई चटनी हृदय के लिए अत्यंत हितकारी होती है तथा कब्ज को भी दूर करती है।
  • पुरानी सर्दी : 3 दिनों तक केवल अमरूद खाकर रहने से बहुत पुरानी सर्दी की शिकायत दूर हो जाती है।
  • मुंह का रोग : मुंह के रोग में जौ, अमरूद के पत्ते एवं बबूल के पत्ते। इस सबको जलाकर इसके धुंए को मुंह में भरने से गला ठीक होता है तथा मुंह के दाने नष्ट होते हैं।
  • मधुमेह के रोग : पके अमरूद को आग में डालकर उसे निकाल लें, और उसका भरता बना लें, उसमें अवश्कतानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा, मिलाकर सेवन करें। इससे मधुमेह रोग से लाभ होता है।

आम के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

आम के फल को शास्त्रों में अमृत फल माना गया है इसे दो प्रकार से बोया (उगाया) जाता है पहला गुठली बोकर उगाया जाता है जिसे बीजू या देशी आम कहते हैं। दूसरा आम का पेड़ जो कलम द्वारा उगाया जाता है। इसका पेड़ 30 से 120 फुट तक ऊंचा होता है।

इसके पत्ते 10 से 30 सेमी लम्बे तथा 2.5 से 7 सेमी चौडे़ होते हैं। आम के फूल देखने में छोटे-छोटे और हरे-पीले होते हैं। वसंत ऋतु में फूल (मौर) और ग्रीष्म ऋतु में फल उगते हैं। इस पेड़ के सभी भाग दवाइयों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।

गुण (Property)

ग्रन्थों के अनुसार आम का फल खट्टा, स्वादिष्ट, वात, पित्त को पैदा करने वाला होता है, किन्तु पका हुआ आम मीठा, धातु को बढ़ाने वाला (वीर्यवर्धक), शक्तिवर्धक, वातनाशक, ठंडा, दिल को ताकत देने वाला, पित्त को बढ़ाने वाला और त्वचा को सुन्दर बनाने वाला होता है।

यूनानियों के अनुसार कच्चे आम का स्वाद खट्टा, पित्तनाशक, भूख बढ़ाने वाला, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला और कब्ज दूर करने वाला होता है।

वैज्ञानिकों द्वारा आम पर विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसमें पानी की मा़त्रा 86 प्रतिशत, वसा 0.4 प्रतिशत, खनिज 0.4 प्रतिशत, प्रोटीन 0.6 प्रतिशत, कार्बोहाड्रेट 11.8 प्रतिशत, रेशा 1.1 प्रतिशत, ग्लूकोज आदि पाया जाता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

अधिक मात्रा में कच्चे आम का सेवन करने पर वीर्य में पतलापन, मसूढ़ों में कष्ट, तेज बुखार, आंखों का रोग, गले में जलन, पेट में गैस और नाक से खून आना इत्यादि विकार उत्पन्न हो जाते हैं। खाली पेट आम खाना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। भूखे पेट आम नहीं खाना चाहिए। आम के अधिक सेवन से अपच की शिकायत होती है। रक्त विकार, कब्ज बनती है। अधिक अमचूर खाने से धातु दुर्बल होकर नपुंसकता आ जाती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

सूखी खांसी :

  • पके आम को गर्म राख में भूनकर खाने से सूखी खांसी खत्म हो जाती है।

नींद न आना :

  • दूध के साथ पका आम खाने से अच्छी नींद आती है।

भूख न लगना :

  • आम के रस में सेंधानमक तथा चीनी मिलाकर पीने से भूख बढ़ती है।

खून की कमी :

  • एक गिलास दूध तथा एक कप आम के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर नियमित रूप से सुबह-शाम पीने से लाभ प्राप्त होगा।
  • 300 मिलीलीटर आम का जूस प्रतिदिन पीने से खून की कमी दूर होती है।

दांत व मसूढ़े के लिए :

  • आम की गुठली की गिरी (गुठली के अंदर का बीज) पीसकर मंजन करने से दांत के रोग तथा मसूढ़ों के रोग दूर हो जाते हैं।
  • आम के फल की छाल व पत्तों को समभाग पीसकर मुंह में रखने से या कुल्ला करने से दांत व मसूढ़े मजबूत होते हैं।

मिट्टी खाने की आदत :

  • बच्चों को पानी के साथ आम की गुठली की गिरी का चूर्ण मिलाकर दिन में 2-3 बार पिलाने से ये आदत छूट जाती है और पेट के कीड़े भी मर जाते हैं।
  • बच्चे को मिट्टी खाने की आदत हो तो आम की गुठली का चूर्ण ताजे पानी से देना लाभदायक है। गुठली को सेंककर सुपारी की तरह खाने से भी मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है।

नाक से खून आना:

  • रोगी के नाक में आम की गुठली की गिरी का रस एक बूंद टपकाएं।

मकड़ी का जहर :

  • मकड़ी के जहर पर कच्चे आम के अमचूर को पानी में मिलाकर लगाने से जहर का असर दूर हो जाता है।
  • गुठली को पीसकर लगाने से अथवा अमचूर को पानी में पीसकर लगाने से छाले मिट जाते हैं।

रक्तस्राव :

  • आम की गुठली की गिरी का एक चम्मच चूर्ण बवासीर तथा रक्तस्राव होने पर दिन में 3 बार प्रयोग करें।

आग से जलने पर :

  • आम के पत्तों को जलाकर इसकी राख को जले हुए अंग पर लगायें। इससे जला हुआ अंग ठीक हो जाता है।
  • गुठली की गिरी को थोड़े पानी के साथ पीसकर आग से जले हुए स्थान पर लगाने से तुरन्त शांति प्राप्त होती है।

धातु को पुष्ट करने के लिए :

  • आम के बौर (आम के फूल) को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच दूध के साथ नियमित रूप से लें। इससे धातु की पुष्टि (गाढ़ा) होती है।

हाथ-पैरों की जलन :

  • हाथ-पैरों पर आम के फूल को रगड़ने पर लाभ पहुंचेगा।
  • आम की बौर (फल लगने से पहले निकलने वाले फूल) को रगड़ने से हाथों और पैरों की जलन समाप्त हो जाती है।

प्लीहा वृद्धि (तिल्ली के बढ़ने पर) :

  • 15 ग्राम शहद में लगभग 70 मिलीलीटर आम का रस रोजाना 3 हफ्ते तक पीने से तिल्ली की सूजन और घाव में लाभ मिलता है। इस दवा को सेवन करने वाले दिन में खटाई न खायें।

सूखा रोग (रिकेटस):

  • कच्चे आम के अमचूर को भिगोकर उसमें 2 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 चम्मच दिन में 2 बार लेने से सूखा रोग में आराम मिलता है।

गुर्दे की दुर्बलता :

  • प्रतिदिन आम खाने से गुर्दे की दुर्बलता दूर हो जाती है।

अजीर्ण :

  • लगभग 10-15 ग्राम आम की चटनी को अजीर्ण रोग में रोगी को दिन में दो बार खाने को दें।
  • 3-6 ग्राम आम की गुठली का चूर्ण अजीर्ण में दिन में 2 बार दें।

तृष्णा (बार-बार प्यास लगना) :

  • लगभग 7 से 15 मिलीलीटर आम के ताजे पत्तों का रस या 15 से 30 मिलीलीटर सूखे पत्तों का काढ़ा चीनी के साथ दिन में 3 बार पीयें।
  • गुठली की गिरी के 50-60 मिलीलीटर काढ़े में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से भयंकर प्यास शांत होती है।

शरीर में जलन:

  • भुने हुए या उबाले हुए कच्चे आम के गूदे का लेप बनाकर लेप करें।
  • आम के फल को पानी में उबालकर या भूनकर इसका लेप बना लें और शरीर पर लेप करें इससे जलन में ठंडक मिलती है।

बच्चों के दस्त :

  • 7 से 30 ग्राम आम के बीज की मज्जा तथा बेल के कच्चे फलों की मज्जा का काढ़ा दिन में 3 बार प्रयोग करें।
  • आम के गुठली की गिरी भून लें। 1-2 ग्राम की मात्रा में चूर्ण कर 1 चम्मच शहद के साथ दिन में 2 बार चटावें। यदि रक्तातिसार (खूनी दस्त) हो तो आम की अन्तरछाल को दही में पीस कर पेट पर लेप करें।

यकृत-प्लीहा का बढ़ना :

  • 10 मिलीलीटर फलों का रस शहद के साथ दिन में 3 बार लेने से रोग ठीक होता है।

सुन्दर, सिल्की और लंबे बाल

  • आम की गुठलियों के तेल को लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा काले बाल जल्दी सफेद नहीं होते हैं। इससे बाल झड़ना व रूसी में भी लाभ होता है।

स्वरभंग :

  • आम के 50 ग्राम पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर चौथाई भाग शेष काढ़े में मधु मिलाकर धीरे-धीरे पीने से स्वरभंग में लाभ होता है।

खांसी और स्वरभंग :

  • पके हुए बढ़िया आम को आग में भून लें। ठंडा होने पर धीरे-धीरे चूसने से सूखी खांसी मिटती है।

लीवर की कमजोरी :

  • लीवर की कमजोरी में (जब पतले दस्त आते हो, भूख न लगती हो) 6 ग्राम आम के छाया में सूखे पत्तों को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें। 125 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर छानकर थोड़ा दूध मिलाकर सुबह पीने से लाभ होता है।

गर्भिणी के आमातिसार :

  • पुराने आम की गुठली की गिरी का चूर्ण 5-5 ग्राम को शहद या पानी के साथ भोजन के 2 घंटे पहले दिन में 3 बार सेवन कराने से लाभ होता है। भोजन में नमकीन चावल बिना घी डाले ले सकते हैं।

बालों का झड़ना :

  • नरम टहनी के पत्तों को पीसकर लगाने से बाल बड़े व काले होते हैं। पत्तों के साथ कच्चे आम के छिलकों को पीसकर तेल मिलाकर धूप में रख दें। इस तेल के लगाने से बालों का झड़ना रुक जाता है व बाल काले हो जाते हैं।

उल्टी-दस्त :

  • आम के ताजे कोमल 10 पत्ते और 2-3 कालीमिर्च दोनों को पानी में पीसकर गोलियां बना लें। किसी भी दवा से बंद न होने वाले, उल्टी-दस्त इससे बंद हो जाते हैं।

भूख बढ़ना :

  • आम के फूलों (बौर) का काढ़ा या चूर्ण सेवन करने से अथवा इनके चूर्ण में चौथाई भाग मिश्री मिलाकर सेवन करने से अतिसार, प्रमेह, भूख बढ़ाने में लाभदायक है।

प्रमेह (वीर्य विकार):

  • आम के फूलों के 10-20 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम खांड मिलाकर सेवन करने से प्रमेह में बहुत लाभ होता है।

स्त्री के प्रदर में:

  • कलमी आम के फूलों को घी में भूनकर सेवन करने से प्रदर में बहुत लाभ होता है। इसकी मात्रा 1-4 ग्राम उपयुक्त होती है।

बथुआ के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड वास्तूक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे पत्ते होने के भेद से दो प्रकार का होता है। बथुए के पौधे 1 हाथ से लेकर कहीं-कहीं चार हाथ तक ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते मोटे, चिकने, हरे रंग के होते हैं। बडे़ बथुए के पत्ते बड़े होते हैं और पुष्ट होने पर लाल रंग के हो जाते हैं। बथुए के पौधे गेहूं तथा जौ के खेतों में अपने आप उग जाते हैं। इसके फूल हरे होते हैं। इसमें काले रंग के बीज निकलते हैं। बथुआ एक मशहूर साग है। इसमें लोहा, पारा, सोना और क्षार पाया जाता है। यह पथरी होने से बचाता है। आमाशय को बलवान बनाता है। अगर गर्मी से बढ़े हुए लीवर को ठीक करना है तो बथुए का प्रयोग करें। बथुए का साग जितना ज्यादा खाया जाये उतना ही फायदेमंद और लाभदायक है। बथुआ के साग में कम से कम मसाला और नमक डालकर या नमक न ही मिलायें और खाया जाये तो फायदेमंद होता है। यदि स्वादिष्ट बनाने की जरूरत पड़े तो सेंधानमक मिलायें और गाय या भैंस के घी में छौंका लगायें। बथुआ का उबाला हुआ पानी अच्छा लगता है और दही में बनाया हुआ रायता भी स्वादिष्ट होता है। किसी भी तरह बथुआ को रोज खाना चाहिए। बथुआ के पराठे भी बनाये जाते हैं जो ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं तथा इसको उड़द की दाल में बनाकर भी खाया जाता है। बथुआ वीर्यवर्धक है।

गुण (Property)

बथुआ जल्दी हजम होता है, यह खून पैदा करता है। इससे गर्म स्वभाव वालों को अत्यंत फायदा होता है। यह प्यास को शांत करता है। इसके पत्तों का रस गांठों को तोड़ता है, यह प्यास लाता है, सूजनों को पचाता है और पथरी को गलाता है। छोटे-बड़े दोनों प्रकार के बथुवा क्षार से भरे होते हैं यह वात, पित्त, कफ (बलगम) तीनों दोषों को शांत करता है, आंखों को अत्यंत हित करने वाले मधुर, दस्तावर और रुचि को बढ़ाने वाले हैं। शूलनाशक, मलमूत्रशोधक, आवाज को उत्तम और साफ करने वाले, स्निग्ध पाक में भारी और सभी प्रकार के रोगों को शांत करने वाले हैं। चिल्ली यानी लाल बथुआ गुणों में इन दोनों से अच्छा है। लाल बथुआ गुणों में बथुए के सभी गुणों के समान है। बथुवा, कफ (बलगम) और पित्त को खत्म करता है। प्रमेह को दबाता है, पेशाब और सुजाक के रोग में बहुत ही फायदेमंद है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पेट के रोग में :

जब तक बथुआ की सब्जी मिलती रहे, रोज इसकी सब्जी खांयें। बथुए का उबाला हुआ पानी पीयें। इससे पेट के हर प्रकार के रोग लीवर (जिगर का रोग), तिल्ली, अजीर्ण (पुरानी कब्ज), गैस, कृमि (कीड़े), दर्द, अर्श (बवासीर) और पथरी आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

पथरी :

1 गिलास कच्चे बथुए के रस में शक्कर मिलाकर रोज पीने से पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।

कब्ज :

बथुआ आमाशय को ताकत देता है और कब्ज को दूर करता है। यह पेट को साफ करता है। इसलिए कब्ज वालों को बथुए का साग रोज खाना चाहिए। कुछ हफ्ते लगातार बथुआ का साग खाते रहने से हमेशा होने वाला कब्ज दूर हो जाता है।

जुंए :

  • बथुआ के पत्तों को गर्म पानी में उबालकर छान लें और उसे ठंडा करके उसी पानी से सिर को खूब अच्छी तरह से धोने से बाल साफ हो जायेंगे और जुएं भी मर जायेंगी।
  • बथुआ को उबालकर इसके पानी से सिर को धोने से जुंए मर जाती हैं और सिर भी साफ हो जाता है।

मासिक-धर्म की रुकावट :

2 चम्मच बथुआ के बीज को 1 गिलास पानी में उबालें। उबलने पर आधा पानी बचने पर इसे छानकर पीने से रुका हुआ मासिक-धर्म खुलकर आता है।

आंखों की सूजन पर :

रोजाना बथुए का साग खाने से आंखों की सूजन दूर हो जाती है।

फोड़े :

बथुए को पीसकर इसमें सोंठ और नमक मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेंकें। सेंकने के बाद इसे फोड़े पर बांध लें इस प्रयोग से फोड़ा बैठ जायेगा या पककर जल्दी फूट जायेगा।

जलन :

आग से जले अंग पर कच्चे बथुए का रस बार-बार लगाने से जलन शांत हो जाती है।

गुर्दे के रोगों में :

गुर्दे के रोग में बथुए का साग खाना लाभदायक होता है अगर पेशाब रुक-रुककर आता हो, या बूंद-बूंद आता हो, तो बथुए का रस पीने से पेशाब खुलकर आता है।

गर्भपात :

बथुआ के 20 बीज को लगभग 200 मिलीलीटर पानी में उबालते हैं। इसके बाद इसके एक चौथाई रह जाने पर इसे पीने से गर्भपात हो जाता है।

दस्त :

बथुआ के पत्तों को लगभग 1 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर उसे 2 चम्मच की मात्रा में लेकर उसमें थोड़ी-सी चीनी मिलाकर 1 चम्मच रोजाना सुबह और शाम पिलाने से दस्त में लाभ मिलता है।

कष्टार्तव (मासिक-धर्म का कष्ट से आना) :

5 ग्राम बथुए के बीजों को 200 मिलीलीटर पानी में खूब देर तक उबालें। उबलने पर 100 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाने पर इसे छानकर पीने से मासिक-धर्म के समय होने वाली पीड़ा नहीं होती है।

बवसीर (अर्श) :

बथुआ का साग और बथुआ को उबालकर उसका पानी पीने से बवासीर ठीक हो जाती है।

जिगर का रोग :

बथुआ, छाछ, लीची, अनार, जामुन, चुकन्दर, आलुबुखारा, के सेवन करने से यकृत (जिगर) को शक्ति मिलती है और इससे कब्ज भी दूर हो जाती है।

आमाशय की जलन :

बथुआ को खाने से आमाशय की बीमारियों से लड़ने के लिए रोगी को ताकत मिलती है।

अम्लपित्त के लिए :

बथुआ के बीजों को पीसकर चूर्ण बनाकर 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ पीने से आमाशय की गंदगी साफ हो जाती है और यह पित्त को बाहर निकाल देता है।

प्रसव पीड़ा :

बथुए के 20 ग्राम बीज को पानी में उबालकर, छानकर गर्भवती स्त्री को पिला देने से बच्चा होने के समय पीड़ा कम होगी।

अनियमित मासिकस्राव :

50 ग्राम बथुआ के बीजों को लेकर लगभग आधा किलो पानी में उबालते हैं। जब यह पानी 250 मिलीलीटर की मात्रा में रह जाए तो उसका सेवन करना चाहिए। इसे तीन दिनों तक नियमित रूप से सेवन करने से माहवारी खुलकर आने लगती है।

पेट के सभी प्रकार के रोग :

बथुआ की सब्जी मौसम के अनुसार खाने से पेट के रोग जैसे- जिगर, तिल्ली, गैस, अजीर्ण, कृमि (कीड़े) और बवासीर ठीक हो जाते हैं।

प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :

बथुए को उबालकर उसका उबला हुआ पानी पीने या कच्चे बथुए के रस में नमक डालकर पीने से तिल्ली (प्लीहा) बढ़ने का रोग ठीक हो जाता है।

नकसीर :

नकसीर (नाक से खून बहना) के रोग में 4-5 चम्मच बथुए का रस पीने से लाभ होता है।

खाज-खुजली :

  • रोजाना बथुए को उबालकर निचोड़कर इसका रस निकालकर पीयें और सब्जी खायें। इसके पानी से त्वचा को धोने से भी खाज-खुजली में लाभ होता है।
  • 4 भाग कच्चे बथुए का रस और 1 भाग तिल का तेल मिलाकर गर्म कर लें जब पानी जलकर सिर्फ तेल रह जाये तो उस तेल की मालिश करने से खुजली दूर हो जाती है।

हृदय रोग :

बथुए की लाल पत्तियों को छांटकर उसका लगभग आधा कप रस निकाल लें। इस रस में सेंधानमक डालकर सेवन करने से दिल के रोगों में आराम आता है।

पीलिया का रोग :

100 ग्राम बथुए के बीज को पीसकर छान लें। 15-16 दिन तक रोजाना सुबह आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।

दाद के रोग में :

बथुए को उबालकर निचोड़कर इसका रस पी लें और इसकी सब्जी खा लें। उबले हुए पानी से त्वचा को धोएं। बथुए के कच्चे पत्तों को पीसकर, निचोड़कर उसका रस निकाल लें। 2 कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर हल्की-हल्की आग पर पका लें। जब रस जल जायें और बस तेल बाकी रह जाये तो तेल को छानकर शीशी में भर लें और त्वचा के रोगों में लम्बे समय तक लगाते रहने से दाद, खाज-खुजली समेत त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

विसर्प-फुंसियों का दल बनना :

बथुआ, सौंठ और नमक को एक साथ पीसकर इसके लेप को गीले कपड़े में बांधकर इसके ऊपर मिट्टी का लेप कर दें और इसे आग पर रख कर सेंक लें। फिर इसे खोलकर गर्म-गर्म ही फुंसियों पर बांध लें। इससे फुंसियों का दर्द कम होगा और मवाद बाहर निकल जायेगी।

जलने पर :

  • बथुए के पत्तों पर पानी के छींटे मारकर पीस लें और शरीर के जले हुए भागों पर लेप करें इससे जलन मिट जाती है और दर्द भी समाप्त होता है।
  • शरीर के किसी भाग के जल जाने पर बथुआ के पत्तों को पीसकर लेप करने से जलन मिट जाती है

बरगद के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction

भारत में बरगद के पेड़ को पवित्र माना जाता है। इसे पर्व या त्यौहार पर पूजा जाता है। इसका पेड़ बहुत ही बड़ा व विशाल होता है। बरगद की शाखाओं से जटाएं लटककर जमीन तक पहुंचती हैं और तने का रूप ले लेती हैं जैसे-जैसे पेड़ पुराना होता जाता है, वैसे-वैसे इसका घेरा बढ़ता ही जाता है। यह भारत में हर जगहों पर मन्दिरों व कुओं के आस-पास पाया जाता है। इसके पत्ते कड़े, मोटे, अंडाकार, निचला भाग खुरदरा, ऊपरी भाग चिकनापन लिए होता है। इन्हें तोड़ने पर दूध निकलता है। बरगद के पेड़ में फूल जाती हुई ठंड में और फल बारिश के महीनों में लगते हैं। फरवरी-मार्च के महीनों में बरगद की पत्तियां गिर जाती है और बाद में नए पत्ते निकलते हैं।पकने पर फलों का रंग लाल हो जाता है। पेड़ की शाखाओं से जटायें लटकने के कारण इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।
गुण (Property)

बरगद का पेड़ कषैला, शीतल, मधुर, पाचन शक्तिवर्धक, भारी, पित्त, कफ (बलगम), व्रणों (जख्मों), धातु (वीर्य) विकार, जलन, योनि विकार, ज्वर (बुखार), वमन (उल्टी), विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) तथा दुर्बलता को खत्म  करता है। यह दांत के दर्द, स्तन की शिथिलता (स्तनों का ढीलापन), रक्तप्रदर, श्वेत प्रदर (स्त्रियों का रोग), स्वप्नदोष, कमर दर्द, जोड़ों का दर्द, बहुमूत्र (बार-बार पेशाब का आना), अतिसार (दस्त), बेहोशी, योनि दोष, गलित कुष्ठ (कोढ़), घाव, बिवाई (एड़ियों का फटना), सूजन, वीर्य का पतलापन, बवासीर, पेशाब में खून आना आदि रोगों में गुणकारी है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

यह गर्म स्वभाव वालों को नुकसान पहुंचा सकता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

चोट लगने पर :

बरगद का दूध चोट, मोच और सूजन पर दिन में 2-3 बार लगाने और मालिश करने से फायदा होता है।

पैरों की बिवाई :

बिवाई की फटी हुई दरारों पर बरगद का दूध भरकर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में वह ठीक हो जाती है।

बच्चों के हरे पीले दस्त में :

नाभि में बरगद़ का दूध लगाने और एक बताशे में 2-3 बूंद डालकर दिन में 2-3 बार रोगी को खिलाने से सभी प्रकार के दस्तों में लाभ होता है।

कमर दर्द :

  • कमर दर्द में बरगद़ के दूध की मालिश दिन में 3 बार कुछ दिन करने से कमर दर्द में आराम आता है।
  • बरगद का दूध अलसी के तेल में मिलाकर मालिश करने से कमर दर्द से छुटकरा मिलता है।
  • कमर दर्द में बरगद के पेड़ का दूध लगाने से लाभ होता है।

स्तनों का ढीलापन:

  • बरगद की जटाओं के बारीक रेशों को पीसकर बने लेप को रोजाना सोते समय स्तनों पर मालिश करके लगाते रहने से कुछ हफ्तों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।
  • बरगद की जटा के बारीक अग्रभाग के पीले व लाल तन्तुओं को पीसकर लेप करने से स्तनों के ढीलेपन में फायदा होता है।

यौनशक्ति और स्तम्भ बढ़ाने हेतु :

बरगद के पके फल को छाया में सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को बराबर मात्रा की मिश्री के साथ मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह खाली पेट और सोने से पहले एक कप दूध से नियमित रूप से सेवन करते रहने से कुछ हफ्तों में यौन शक्ति में बहुत लाभ मिलता है।

बेर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

बेर का पेड़ हर जगह आसानी से पाया जाता है। बेर के पेड़ में कांटें होते हैं। बेर सुपारी के बराबर होती है। बेर की अनेक जातियां हैं। जैसे-जंगली बेर, झरबेर, पेवंदी बेर आदि। इसके पेड़ में बहुत अच्छी लाख लगती हैं। इसकी लकड़ियां हल, गाड़ी आदि बनाने के काम में आती हैं। इसके सूखे पत्ते जानवरों को खिलाने के लिए फायदेमंद होता है। इसकी एक छोटी जाति को महाराष्ट्र में बोरटी कहते हैं।

गुण (Property)

 बेर का गुदा मधुर और बलप्रद होता है तथा खांसी, दमा, प्यास, गैस, उल्टी, जलन और पित्त को खत्म करता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

बेर एक सामान्य फल है। इसको ज्यादा खाने से खांसी होती है। कच्चे बेर कभी नहीं खाने चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बालतोड़ :

बेर के पत्तों को पीसकर लगाने से बालतोड़ का दर्द कम होता है।

स्वर भंग (गले का बैठ जाना) :

  • बेर की जड़ को मुंह में रखना चाहिए, अथवा बेर के पत्तों को सेंककर सेंधानमक के साथ खाना चाहिए इससे लाभ मिलता है।
  • बेर के पेड़ की छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर उसका रस चूसने से दबी हुई आवाज 2-3 दिन में ही खुल जाती है।

आंखों से पानी का बहना :

बेर के बीज को पानी में घिसकर दिन में 2 बार 1-2 महीने तक लगाने से आंखो से पानी बहना बंद हो जाता है।

शरीर के किसी भी भाग में जलन होने पर :

बेर के पत्तों को पीसकर लगाने से शरीर की किसी भी भाग की जलन शांत हो जाती है।

पेशाब करने में परेशानी:

बेर की कोंपल (मुलायम पत्तियां) और जीरे को पीसकर रोगी को देना चाहिए। इससे पेशाब खुलकर आता है।

कंठ सर्प पर (गले के चारों और फुंसियों का घेरा) :

जंगली बेर की छाल को घिसकर दो बार पिलाना चाहिए।

खूनी दस्त :

  • बेर की छाल को दूध में पीसकर शहद के साथ पीना चाहिए, इससे रक्तातिसार (खूनी दस्त) का रोग ठीक हो जाता है।
  • बेर की जड़ और तेल को बराबर मात्रा में लेकर गाय या बकरी के दूध के साथ पिलाना चाहिए, इससे रक्तातिसार (खूनी दस्त) में आराम आता है।
  • बेर को खाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) रोग और आंतों के घाव ठीक हो जाते हैं।

छाती के दर्द या टी.बी में :

20 ग्राम बेर या पीपल की छाल को पानी में पीसकर उसमें चौगुने कद्दू के रस को मिलाकर रोगी को पिलाना चाहिए इससे छाती और टी.बी के रोग में लाभ होता है।

बिच्छू के जहर पर :

  • बेर के पत्ते और उदुम्बर के पत्तों को बारीक पीसकर दंश पर बांधने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
  • बेर के बीज का गर्भ और ढाक के बीज को बराबर मात्रा में मिलाकर आक के दूध में 6 घण्टे तक खरलकर लेप बना लें। इस लेप को घिसकर बिच्छू के कटे स्थान पर लेप करने से बिच्छू का जहर उतरता है।

उल्टी :

  • बेर की गुठलियों के अंदर का भाग, बड़ के अंकुर तथा मधुयिष्ट का काढ़ा, शहद और शक्कर को मिलाकर पीना चाहिए, इससे उल्टी तुरंत ही बंद हो जाती है।
  • 1 ग्राम बेर की जड़ की छाल के चूर्ण को चावल के पानी के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से उल्टी के रोग में आराम मिलता है।

दस्त :

  • बेर के पेड़ के पत्तों का चूर्ण मट्ठे के साथ रोगी को देने से दस्त खत्म हो जाते हैं।
  • बेर के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने हुए काढ़े को 20 से लेकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से दस्तों में लाभ मिलता है।
  • कच्चे बेर को खाने से भी दस्त में आराम मिलता है।
  • बेर के पत्तों को पीसकर आधा चम्मच और आम की गुठली की गिरी थोड़ी-सी गिरी को मिलाकर सेवन करने से दस्तों में लाभ मिलता है।

श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर :

  • बेर के पेड़ की छाल का चूर्ण 5 ग्राम सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर मिटता है। चनाबेर की छाल का चूर्ण गुड़ या शहद के साथ खाने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर में लाभ होता है।
  • 1-3 ग्राम छाल का चूर्ण गुड़ के साथ दिन में दो बार लेने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।

रक्त प्रदर :

  • बेर का चूर्ण गुड़ में मिलाकर सेवन करने से रक्तप्रदर में आराम मिलता है।
  • 10 ग्राम बेर के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च और 20 ग्राम मिश्री को पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।

पेशाब का रुकना :

बेर के पेड़ के मुलायम पत्ते व जीरा मिलाकर पानी में पीसकर उनका भांग जैसा शर्बत बनाकर कपड़े से छानकर खाने से गर्मी के कारण रुका हुआ पेशाब साफ आता है।

चेचक :

  • चेचक में बेर के पत्तों का रस भैंस के दूध के साथ रोगी को देने से रोग का वेग कम होता है। बेर के 6 ग्राम पत्तों के चूर्ण को 2 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर रोगी को खिलाने से भी 2-3 दिन में चेचक खत्म होने लगता है।
  • बेर के पेड़ की छाल और उसके पत्तों का काढ़ा बनाकर छाछ में मिलाकर पशुओं को पिलाने से उनका चेचक का रोग दूर होता है।

मुंह के रोग में :

बेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर दिन में 2-3 बार कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं। कपूरयुक्त किसी औषधि का सेवन करने से मुंह के छाले, दांत के मसूढ़े ढीले पड़ गये हों और मुंह से लार टपकती हो तो बेर के पेड़ की छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ले करना लाभकारी होता है।

फोड़े :

बेर के पत्तों को पीसकर गर्म करके उसकी पट्टी बांधने से और बार-बार उसको बदलते रहने से फोड़े जल्दी पक कर फूट जाते हैं।

पुरानी खांसी :

लगभग 12 से 24 ग्राम बेर की छाल को पीसकर घी के साथ भूने तथा उसमें सेंधानमक मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करें। इससे लाभ होता है।

आंख आना :

बेर की गुठली की फांट को अच्छी तरह से छानकर आंखों मे डालने से नेत्राभिष्यन्द, आंखों का दर्द आदि ठीक हो जाते हैं।

शीतला (मसूरिका) ज्वर :

बेर का चूर्ण गुड़ के साथ रोगी को खिलाने से वात, पित्त तथा हर प्रकार की माता तुरंत पककर ठीक हो जाती हैं।

भांग के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

भांग के स्वयंजात पौधे, भारतवर्ष में सभी जगह पाये जाते हैं। विशेषकर भांग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं बिहार में प्रचुरता से पाया जाता है। भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तथा मादा पौधों की रालीय पुष्प मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है तथा भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमे राल सदृश्य पदार्थ को चरस कहते हैं।
बाहरी स्वरूप :
भांग के वर्षायु, गंधयुक्त, रोमश क्षुप 3-8 फुट ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। भांग के ऊपर की पत्तियां 1-3 खंडों तथा निचली पत्तियां 3-8 खंडों से युक्त होती हैं। निचली पत्तियों में इसके पत्रवृन्त लम्बे होते हैं।

गुण (Property)

भांग बलगम को दूर करती है। यह कड़वी, ग्राही, हल्की, तीखी, गर्म और पित्त को पैदा करने वाली है। भांग के सेवन से मोह और नशा पैदा होता है, यह बेहोशी लाती है, पाचनशक्ति को बढ़ाती है। भांग गले की आवाज को साफ करती है। भांग कुष्ठ (कोढ़) को नष्ट करती है। यह मेधा (बुद्धि) को उत्पन्न करती है तथा बल और वीर्य को बढ़ाती है। भांग अग्निकारक, कफनाशक और रसायन उत्पन्न करने वाली है। यह भोजन में रुचि को पैदा करती है, मल को रोकती है तथा अन्न को पचाती है। इसके सेवन से नींद अधिक आती है, कामशक्ति (सेक्सुवल पावर) को बढ़ाती है, तथा वात और कफ को नष्ट करती है।

गांजा : गांजा पाचक होता है। यह प्यास को पैदा करता है, बल को बढ़ाता है, सेक्स की इच्छा उत्पन्न करता है, मन का उत्तेजित करता है, नींद अधिक लाता है। इसके अधिक उपयोग से गर्भ गिर जाता है। यह आपेक्ष (लकवा) को दूर करने वाला तथा मदकारक (नशे वाला) होता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

भांग का अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में नशा चढ़ता है। जिसकी वजह से शरीर मे कमजोरी आती है, यह पुरुष को नपुंसक, चरित्रहीन और विचारहीन बनाता है। अत: इसका उपयोग सेक्स उत्तेजना या नशे के लिए नहीं करना चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

अनिद्रा :

भांग का ज्यादा सेवन करने से नींद बहुत अच्छी आती है। जिस हालत में अफीम के सेवन से नींद नहीं होती है, उस परिस्थिति में भांग का सेवन अधिक अच्छा होता है, क्योंकि इसके प्रयोग से कोष्ठबद्धता (कब्ज) और मस्तक की पीड़ा नहीं होती है।

मस्तक पीड़ा :

  • भांग के पत्तों को बारीक पीसकर सूंघने से मस्तक की पीड़ा दूर हो जाती है।
  • भांग के पत्तों का रस गर्म करके कान में 2-3 बूंद की मात्रा में डालने से सर्दी और गर्मी की मस्तक की पीड़ा मिट जाती है।

हिस्टीरिया :

250 मिलीग्राम भांग को हींग के साथ देने से स्त्रियों के हिस्टीरिया रोग में बहुत लाभ मिलता है।

सिर के कीडे़ :

भांग के पत्तों का रस माथे पर लेप करने से मस्तक की मुस्सी (रूसी) मिट जाती है और कीडे़ मर जाते हैं।

पेट में दर्द :

भांग और मिर्च के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर गुड़ के साथ आधा ग्राम बनाकर रोगी को देने से पेट दर्द मिट जाता है।

मूत्रकृच्छ :

भांग और खीरा या ककड़ी की मगज को पानी में पीसकर और छानकर ठंडई की तरह रोगी को पिलाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) मिट जाती है।

मासिक-धर्म का कष्ट से आना :

मासिक-धर्म के आने से पहले पेट को दस्त लाने वाली कुछ चीज खाकर साफ कर लेना चाहिए। फिर गांजा को दिन में 3 बार लेते रहने पर दर्द कम हो जाता है और मासिक-धर्म नियमानुसार होने लगता है।

बवासीर :

फूली हुई और दर्दनाक बवासीर पर 10 ग्राम हरी या सूखी भांग और 30 ग्राम अलसी की पोटली बनाकर बांधने से बवासीर का दर्द और खुजली मिट जाती है।

मूत्रेन्द्रिय :

गांजे को अरंडी के तेल में पीसकर मूत्रेन्द्रिय पर लेप करने से ताकत बढ़ती है और इन्द्री का टेढ़ापन दूर हो जाता है।

विसूचिका (हैजा) :

हैजा होने की शुरुआत में 250 मिलीग्राम गांजा या भांग, छोटी इलायची, कालीमिर्च तथा कपूर आधा-आधा घंटे या 1-1 घंटे पर उबालकर ठंडे पानी के साथ देते रहने से हैजे की बीमारी ठीक हो जाती है।

गठिया (जोड़ों का दर्द) :

भांग के बीजों के तेल की मालिश करने से गठिया का रोग दूर हो जाता है।

मलेरिया ज्वर :

1 ग्राम शुद्ध भांग के चूर्ण में 2 ग्राम गुड़ को मिलाकर 4 गोलियां बना लेते हैं। सर्दी का बुखार दूर करने के लिए 1-2 गोली 2-2 घंटे के अंतर से दें या शुद्ध भांग की 1 ग्राम गोली बुखार में एक घंटा पहले देने से बुखार का वेग कम हो जाता है।

घाव :

भांग के पत्तों के चूर्ण को घाव और जख्म पर बुरकाने से घाव जल्द ही भर जाते हैं।

चोट की पीड़ा :

भांग का एक पूरा पेड़ पीसकर नए घाव में लगाने से घाव ठीक होता है। चोट के दर्द को दूर करने के लिए इसका लेप बहुत ही लाभकारी होता है।

कांच निकलना (गुदाभ्रंश) :

भांग के पत्तों का रस निकालकर गुदाभ्रंश पर लगायें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बंद होता है।

कान के कीड़े :

भांग के रस को कान में डालने से कान के कीड़े खत्म हो जाते हैं।

दस्त :

3 ग्राम भांग को 2 ग्राम देशी घी में भूनकर शहद के साथ रात को खाने से पहले पीने से दस्त का आना बंद हो जाता है।

बवासीर (अर्श) :

भांग की पत्तियों को पीसकर टिकिया बना लें। टिकियों को गुदाद्वार पर रखकर लंगोट बांधने से बवासीर ठीक हो जाती है।

सिर का दर्द :

लगभग 240 मिलीग्राम भांग खाने से कफ के कारण होने वाला सिर का दर्द ठीक हो जाता है।

नींद न आना :

पैर के तलुवों पर भांग का तेल मलने से भी नींद आ जाती है।

बाजरा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction

कुछ लोगों के लिए बाजरा कब्जकारक होता है किन्तु जहां पर बाजरा लोगों का मुख्य आहार होता है, वहां यह दोष ध्यान नहीं दिया जाता है जिन्हें बाजरा अनुकूल पड़ जाता है उनके लिए तो बाजरे का टिक्कड़ बहुत ही मीठा लगता है। भैंस के दूध में बाजरे के अतिरिक्त बाजरे की राब, खिचड़ी, सुखली और ढोकली भी बनती है। बाजरे के आटे में घी और गुड़ मिलाकर “कुलेर“ बनाई जाती है। यह एक विशिष्ट पकवान है। दूसरे अनाज के आटे से कुलेर नहीं बनती है। नागपंचमी के दिन लोग नाग लोग कुलेर का नैवेद्य चढ़ाते हैं। बाजरे का होला भी बनाया जाता है।

गुण (Property)

यह शरीर को मोटा करता है तथा आमाशय और धातु की भी पुष्टि करता है। इसके सेवन से शरीर में खुश्की आती है। यह गरमी के दस्तों को रोकता है, पेशाब अधिक मात्रा में लाता है तथा कच्चे गर्भ को गिरा देता है। इसकी पोटली बनाकर सेंक करने से सर्दी से होने वाला दर्द दूर होता है। यह बवासीर की पीड़ा को नष्ट करता है। सिरका के साथ इसका लेप सर्दी से होने वाले सूजनों को मिटाता है। बाजरा दस्तावर, गर्म, श्लेष्मा, बलगम को नष्ट करता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

 इसका अधिक मात्रा में सेवन शरीर में भारीपन लाता है। यह देर से हजम होता है तथा वादी करता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पेट दर्द :

बाजरे के सेवन से बच्चों को दूध पिलाने वाली स्त्री के दूध में वृद्धि होती है तथा नवजात शिशु के पेट दर्द की शिकायत भी नहीं होती है।

घोड़े की पीठ के दाग :

पुरानी बाजरे की बालें जलाकर उसकी राख को पानी के साथ मिलाकर घोड़े की पीठ पर पड़े हुए घावों पर लगाना लाभकारी होता है।

हृदय के लिए लाभकारी :

बाजरा दिल के लिए लाभकारी होता है। यह बलप्रद, पाचन में भारी, पाचनशक्तिवर्द्धक, गर्मी, पित्त प्रकोप को नष्ट करने वाला, स्त्रियों के लिए कामोत्तेजक, मलरोधक व कब्ज करने वाला एवं वीर्य को गर्म करने वाला माना जाता है।

डकार का आना :

बाजरे के दाने के बराबर हींग, गुड़ या केले में मिलाकर खाने से डकार आना बंद हो जाती है।

हैजा :

बाजरे के आटे में पिसी हुई सोंठ तथा पिसा हुआ सेंधानमक मिलाकर मालिश करने से पसीना आना कम हो जाता है।