परिचय (Introduction)
बैंगन का लैटिन नाम-सोलेनम मेलोजिना है। इसे अंग्रेजी भाषा में इगपलेंट नाम से जाना जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही बैंगन सभी जगह होता है। बैंगन की लोकप्रियता स्वाद और गुण के नज़र से ठंड तक ही रहती है। इसलिए पूरे सर्दी के मौसम की सब्जी-भाजियों में बैंगन को राजा के रूप में माना जाता है। गर्मी के महीनों में इसका स्वाद भी बदल जाता है। बैंगन में खासतौर पर 2 किस्में पायी जाती हैं। काले और सफेद काले बैंगन ज्यादा गुणकारी माने जाते हैं। बैगन की एक अन्य किस्म भी है, परन्तु गुण की दृष्टि से यह निम्न किस्म है। ज्यादा बीज वाले बैंगन और नर्म कुंहड़ा जहर का रूप हैं। बैंगन जितने ज्यादा कोमल और मुलायम होते हैं। उतने ही ज्यादा गुण वाले और बलवर्धक माने जाते हैं। गर्मी के महीनों मे पैदा होने वाले ज्यादा बीज वाले बैगन का उपयोग नहीं करना चाहिए। दीपावली के त्यौहार में बैंगन नही खाना चाहिए। ऐसा करना आरोग्य की दृष्टि से फायदेमंद है। शरद के महीने में पित्त का प्रकोप होता है। इसलिए इस ऋतु में पित्तकर बैंगन खाने से अनेकों रोग उत्त्पन्न होते है। बसंत के महीनों में बैंगन को खाने से लाभ होता है।
तेल और हींग में बनायी हुआ बैंगन की सब्जी वायु प्रकृति वालों के लिए बहुत ही फायदेमंद है। कफ (बलगम) प्रकृतिवालों और समप्रकृति वालों के लिए भी सर्दी के मौसम में बैंगन का सेवन गुणकारी है।
गुण (Property)
बैंगन मेदा (आमाशय) को बलवान बनाता है, गांठों को तोड़कर सिख्तयों को नर्म करता है, पेशाब जारी करता है, गर्मी के दर्दों को शांत करता है, बैंगन का सिरा रगड़कर बवासीर में लगाना लाभदायक है, आंबाहल्दी के साथ इसकी सेंक देना हल्दी के साथ इसकी सेंक चोट को लाभ करती है। बैंगन कड़वा है, रुचि को बढ़ाता है, मधुर है, पित्त को पैदा करता है, बल को बढ़ाता है और धातु (वीर्य) को बढ़ाता है। यह दिल के लिए फायदेमंद, भारी और वात रोगों में लाभदायक है। बैंगन नींद लाता है, खांसी पैदा करता है, कफ (बलगम) और सांस को बढ़ाता है। लंबा बैंगन श्रेष्ठ होता है, यह पाचनशक्ति और खून को बढ़ाता है। कच्चा बैंगन कफ (बलगम), पित्त को खत्म करता है। पका बैंगन क्षारयुक्त, पित्तकारक तथा मध्यम बैंगन त्रिदोषनाशक, रक्त-पित्त को निर्मल करने वाला है। आग पर भुने हुए बैंगन का भर्ता पित्त को शांत करता है, वात और पित्त रोग को खत्म करता है। सफेद प्रकार का बैंगन बवासीर वाले रोगी के लिए विशेषरूप से लाभकारी होता है।
हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)
यह पेट में बादी पैदा करता है और बवासीर को बढ़ाता है।
विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)
पसीना अधिक आना :
हाथ की हथेलियों व पैरों के तलवों में पसीना आने पर बैंगन का रस निकाल कर हथेलियों व तलुवों पर लगाने से पसीना आना कम हो जायेगा।
बाला (नारू) रोग :
- बैंगन को सेंककर दही में पीसकर 10 दिनों तक जहां बाला निकल रहा हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
- एक गोल आकार के मोटे बैंगन को भूनकर पीस लें और दही में मिला लें फिर जहां पर बाला निकल रहा हो वहां पर लगातार 10 दिन तक लगाने से बाला रोग में लाभ होता है।
दिल के रोग में :
दिल के रोग में बैंगन का बराबर सेवन करने से लाभ होता है।
मन्दाग्नि (पाचनशक्ति का कमजोर होना) :
बैंगन और टमाटर का सूप पीने से मन्दाग्नि मिटती है और खाना सही से पचने लगता है।
मलेरिया बुखार में :
कोमल बैंगन को आग पर सेंककर रोज सुबह के समय खाली पेट गुड़ के साथ खाने से मलेरिया बुखार में तिल्ली बढ़ गई हो और शरीर पीला पड़ गया हो तो इससे लाभ होता है।
धतूरे के जहर पर :
बैंगन का 40 मिलीलीटर रस पीने से धतूरे का जहर उतर जाता है।
पथरी :
- बैंगन का साग खाने से पेशाब ज्यादा आकर शुरुआत हुई छोटी पथरी गलकर पेशाब के साथ बाहर आ जाती है।
- बैगन को आग में पकाकर उसका बीज निकाल लें। फिर उसका भर्ता बनाकर 15 से 20 दिन खायें। इससे पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।
अनिद्रा :
बैंगन को आग पर सेंककर, शहद में मिलाकर शाम को चाटने से नींद अच्छी आती है। इस प्रयोग को रोज करते रहने से अनिद्रा का रोग में लाभ होता है।
बंद मासिक-धर्म :
मासिक-धर्म कम मात्रा में आता हो या साफ न आता हो तो सर्दियों में बैंगन की सब्जी, बाजरे की रोटी और गुड़ का बराबर मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है। ध्यान रहें गर्म प्रकति की स्त्रियों को यह प्रयोग न करायें।
पेट का भारी होना :
बैंगन को आग पर सेंककर उसमें सज्जीखार मिलाकर पेट पर बांधने से, भारी पेट कुछ ही समय में हल्का हो जाता है।
फोड़े, फुन्सी :
बैंगन की पट्टी फोड़े, फुन्सियों पर बांधने से फोड़े जल्दी पककर फूट जाते हैं।
अंडकोष की सूजन :
बैंगन की जड़ को पानी में मिलाकर अंडकोषों पर कुछ दिनों तक लेप करने से अंडकोषों की सूजन और वृद्धि ठीक नष्ट हो जाती है।
अफारा (गैस का बनना) :
बैंगन की सब्जी में ताजे लहसुन और हींग का छौंका लगाकर खाने से आध्यमान (अफारा, गैस) आदि दूर हो जाती है।
कब्ज (गैस) का बनना:
- बैंगन और पालक का सूप पीने से कब्ज मिट जाती है और पाचन-शक्ति को बढ़ती है।
- बैंगन को धीमी आग पर पकाकर खाने से कब्ज दूर हो जाती है।
कान का दर्द :
बैंगन को आग में भूनकर उसका रस निकाल लें। फिर उसके अंदर नीम का गोंद मिलाकर गुनगुना करके कान में बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है।
जिगर का रोग :
यकृत वृद्धि में रोगी को बैंगन का भर्ता बनाकर खिलाने से बहुत फायदा होता है। भर्ता को लोहे की कड़ाही में सरसों के तेल के साथ बनाएं और इसमें लाल मिर्च का प्रयोग करें इससे जिगर का बढ़ना कम हो जाता है।
जलोदर के लिए :
1 बड़े बैंगन को चीरकर उसके अंदर ठंडा नौसादार रखकर रात में खुली हुई जगह में रख दें। सुबह-सुबह इसे निचोड़कर इस रस की 4 से 5 बूंद रस को बतासे में भरकर रोगी को सेवन कराने से अधिक पेशाब आकर जलोदर (पेट में पानी भरना) के रोग से छुटकारा मिल जाता है।
प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :
ताजे लंबे बैंगन की सब्जी खाने से तिल्ली (प्लीहा) बढ़ने के रोग में आराम मिलता है।
योनि का आकार छोटा होना :
सूखे हुए बैंगन को पीसकर योनि में रखने से योनि सिकुड़कर छोटी हो जाती है।
आन्त्रवृद्धि का बढ़ना :
मारू बैंगन को गर्मराख में भूनकर बीच से चीरकर अंडकोषों पर बांधने से आन्त्रवृद्धि व दर्द दोनों बंद हो जाते हैं। बच्चों की अंडवृद्धि को ठीक करने के लिए यह बहुत ही उपयोगी है।
सूखा रोग :
बैंगन को अच्छी तरह से पीसकर उसका रस निकालकर उसके अंदर थोड़ा सा सेंधानमक मिला लें। इस एक चम्मच रस को रोजाना दोपहर के भोजन के बाद कुछ दिनों तक बच्चे को पिलाने से सूखा रोग (रिकेट्स) में लाभ मिलता है।