अमरुद के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

10174

परिचय (Introduction)

अमरूद का पेड़ आमतौर पर भारत के सभी राज्यों में उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश का इलाहाबादी अमरूद विश्वविख्यात है। यह विशेष रूप से स्वादिष्ट होता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 10 से 20 फीट होती है। टहनियां पतली-पतली और कमजोर होती हैं। इसके तने का भाग चिकना, भूरे रंग का, पतली सफेद छाल से आच्छादित रहता है। छाल के नीचे की लकड़ी चिकनी होती है। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के, खुरदरे, 3 से 4 इंच लंबे, आयताकार, सुगंधयुक्त और डंठल छोटे होते हैं।

अमरूद लाल और पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं। बीज वाले  और बिना बीज वाले तथा अत्यंत मीठे और खट्टे-मीठे प्रकार के अमरूद आमतौर पर देखने को मिलते हैं। सफेद की अपेक्षा लाल रंग के अमरूद गुणकारी होते हैं। सफेद गुदे वाले अमरूद अधिक मीठे होते हैं। फल का भार आमतौर पर 30 से 450 ग्राम तक होता है।

आमतौर पर देखा जाता है कि जब लोग फल खरीदने जाते हैं तो उनकी नज़र में केला, सेब, अंगूर तथा आम आदि फल ही पोशक तत्वों से भरपूर नज़र आते हैं। अमरूद जैसा सस्ता तथा सर्वसुलभ फल उन्हें बेकार और गरीबों के खाने योग्य ही लगता है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अमरूद में सेब से भी अधिक पोशक तत्व होते हैं। इसीलिए इसे `गरीबों का सेब´ भी कहा गया है। अमरूद मधुर और रेचक (दस्त लाकर पेट साफ करने वाला) फल है तथा इसके नियमित प्रयोग से मल अवरोध तो दूर होता ही है, साथ ही वात-पित्त, उन्माद (पागलपन), मूर्छा (बेहोशी), मिर्गी, पेट के कीडे़, टायफाइड और जलन आदि का नाश होता है। आयुर्वेद में इसे शीतल, तीक्ष्ण, कसैला, अम्लीय तथा शुक्रजनक (वीर्यवर्द्धक) बताया गया है। यहां सेब और अमरूद में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की तुलना की जा रही है जिससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अमरूद कितना अधिक पौष्टिक है।

गुण

अमरूद में विटामिन सी और शर्करा काफी मात्रा में होती है। अमरूद में पेक्टिन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। अमरूद को इसके बीजों के साथ खाना अत्यंत उपयोगी होता है, जिसके कारण पेट साफ रहता है। अमरूद का उपयोग चटनियां, जेली, मुरब्बा और फल से पनीर बनाने में किया जाता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

शीत प्रकृति वालों को और जिनका आमाशय कमजोर हो, उनके लिए अमरूद हानिकारक होता है। वर्षा के सीजन में अमरूद के अंदर सूक्ष्म धागे जैसे सफेद कीडे़ पैदा हो जाते हैं जिसे खाने वाले व्यक्ति को पेट दर्द, अफारा, हैजा जैसे विकार हो सकते हैं। इसके बीज सख्म होने के कारण आसानी से नहीं पचते और यदि ये एपेन्डिक्स में चले जाए, तो एपेन्डिसाइटिस रोग पैदा कर सकते हैं। अत: इनके बीजों के सेवन से बचना चाहिए। इसकी दो किस्में होती हैं:- पहला सफेद गर्भवाली और दूसरा लाल-गुलाबी गर्भवाली। सफेद किस्म अधिक मीठी होती है। कलमी अमरूद में अच्छी किस्म के अमरूद भी होते हैं। वे बहुत बड़े होते हैं और उसमें मुश्किल से 4-5 बीज निकलते हैं। बनारस (उत्तर प्रदेश) में इस प्रकार के अमरूद होते हैं।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

  • सूखी खांसी : गर्म रेत में अमरूद को भूनकर खाने से सूखी, कफयुक्त और काली खांसी में आराम मिलता है। यह प्रयोग दिन में तीन बार करें। एक बड़ा अमरूद लेकर उसके गूदे को निकालकर अमरूद के अंदर थोड़ी-सी जगह बनाकर अमरूद में पिसी हुई अजवायन तथा पिसा हुआ कालानमक 6-6 ग्राम की मात्रा में भर देते हैं। इसके बाद अमरूद में कपड़ा भरकर ऊपर से मिट्टी चढ़ाकर तेज गर्म उपले की राख में भूने, अमरूद के भुन जाने पर मिट्टी और कपड़ा हटाकर अमरूद पीसकर छान लेते हैं। इसे आधा-आधा ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम मिलाकर चाटने से सूखी खांसी में लाभ होता है।
  • जुकाम : रुके हुए जुकाम को दूर करने के लिए बीज निकला हुआ अमरूद खाएं और ऊपर से नाक बंदकर 1 गिलास पानी पी लें। जब 2-3 दिन के प्रयोग से स्राव (बहाव) बढ़ जाए, तो उसे रोकने के लिए 50-100 ग्राम गुड़ खा लें। ध्यान रहे- कि बाद में पानी न पिएं। सिर्फ 3 दिन तक लगातार अमरूद खाने से पुरानी सर्दी और जुकाम दूर हो जाती है। लंबे समय से रुके हुए जुकाम में रोगी को एक अच्छा बड़ा अमरूद के अंदर से बीजों को निकालकर रोगी को खिला दें और ऊपर से ताजा पानी नाक बंद करके पीने को दें। 2-3 दिन में ही रुका हुआ जुकाम बहार साफ हो जायेगा। 2-3 दिन बाद अगर नाक का बहना रोकना हो तो 50 ग्राम गुड़ रात में बिना पानी पीयें खा लें।
  • पुराने दस्त : अमरूद की कोमल पत्तियां उबालकर पीने से पुराने दस्तों का रोग ठीक हो जाता है। दस्तों में आंव आती रहे, आंतों में सूजन आ जाए, घाव हो जाए तो 2-3 महीने लगातार 250 ग्राम अमरूद रोजाना खाते रहने से दस्तों में लाभ होता है। अमरूद में-टैनिक एसिड होता है, जिसका प्रधान काम घाव भरना है। इससे आंतों के घाव भरकर आंते स्वस्थ हो जाती हैं।
  • घुटनों के दर्द में : अमरूद के कोमल पत्तों को पीसकर गठिया के वेदना युक्त स्थानों पर लेप करने से लाभ होता है।
  • मुंह के छाले : रोजाना भोजन करने के बाद अमरूद का सेवन करने से छाले में आराम मिलता है। अमरूद के पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
  • गठिया रोग : गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 5-6 नई पत्तियों को पीसकर उसमें जरा-सा काला नमक डालकर प्रतिदिन सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है।
  • मलेरिया : मलेरिया बुखार में अमरूद का सेवन लाभकारी है। नियमित सेवन से तिजारा और चौथिया ज्वर में भी आराम मिलता है। अमरूद और सेब का रस पीने से बुखार उतर जाता है। अमरूद को खाने से मलेरिया में लाभ होता है।
  • हृदय : अमरूद के फलों के बीज निकालकर बारीक-बारीक काटकर शक्कर के साथ धीमी आंच पर बनाई हुई चटनी हृदय के लिए अत्यंत हितकारी होती है तथा कब्ज को भी दूर करती है।
  • पुरानी सर्दी : 3 दिनों तक केवल अमरूद खाकर रहने से बहुत पुरानी सर्दी की शिकायत दूर हो जाती है।
  • मुंह का रोग : मुंह के रोग में जौ, अमरूद के पत्ते एवं बबूल के पत्ते। इस सबको जलाकर इसके धुंए को मुंह में भरने से गला ठीक होता है तथा मुंह के दाने नष्ट होते हैं।
  • मधुमेह के रोग : पके अमरूद को आग में डालकर उसे निकाल लें, और उसका भरता बना लें, उसमें अवश्कतानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा, मिलाकर सेवन करें। इससे मधुमेह रोग से लाभ होता है।