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सहजन के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

सहजन के पेड़ अधिकतर हिमालय के तराई वाले जंगलों में ज्यादा पायें जाते हैं। सहजन के पेड़ छोटे या मध्यम आकार के होते हैं। इसकी छाल और लकड़ी कोमल होती है। सहजन के पेड़ की टहनी बहुत ही नाजुक होती है जो बहुत जल्दी टूट जाती है। इसके पत्ते 6-9 जोड़े में होते हैं। फलियां 6-18 इंच लम्बी 6 शिराओं से युक्त और धूसर होती हैं। सहजन के पेड़ तीन प्रकार के होते हैं जिन पर लाल, काले और सफेद फूल खिलते हैं। लाल रंग के फूल वाले पेड़ की सब्जी खाने में मीठी और सफेद रंग के फूल वाले पेड़ की सब्जी कटु होती है।

गुण (Property)

सहजन का प्रयोग दर्द निवारक दवा बनाने में किया जाता है। इसके फूल और फलियों की सब्जी बनाकर खाते हैं। सहजन की पत्तियों में विटामिन `ए` व `सी` कैरोटिन और एस्कॉर्बिक एसिड के रूप में बहुत मिलता है। इसकी 100 ग्राम पत्तियों में लगभग 7 ग्राम कैरोटिन होता है, जिसे हमारा शरीर विटामिन `ए` में बदल देता है, जो आंखों के रोगों के लिए जरूरी होता है। इसकी मुलायम हरी पत्तियों की सब्जी बनाकर सेवन कर सकते हैं। इसकी पत्तियों को दूसरी सब्जी के साथ मिलाकर भी पका सकते हैं। इसकी सब्जी खाने की ओर कम लोगों का ध्यान जाता है, लेकिन इसके गुण देखते हुए इसकी सब्जी अधिक खानी चाहिए।

यह चटपटा, गर्म, मीठा, हल्का, जलन को शांत करता है, भूख को बढ़ाता है, बलगम को नष्ट करता है, वातनाशक, वीर्यवर्धक, फोड़े-फुंसी को खत्म करता है, गण्डमाला, गुल्म, प्लीहा तथा विद्रधि नाशक है तथा दस्त अधिक लाता है, सहजन के बीज आंखों के लिए लाभकारी तथा सिरदर्द दूर करने वाला है।

इसकी शाखा की एक बहुत अच्छी खासियत है कि इसे जमीन में गाड़ दिया जाये तो इसका पेड़ उग जाता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बार-बार भूख लगना :
10 मिलीलीटर सहजन के पतों का रस, शहद में मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से बार-बार भूख लगने का रोग ठीक हो जाता है।
सहजन के पत्तों का रस शहद के साथ मिला कर रोजाना 2 बार पीने से लीवर और प्लीहा (तिल्ली) से पैदा हुए रोग जैसे बार-बार भूख का लगना आदि रोग दूर हो जाते हैं।

कब्ज :
सहजन के कोमल पतों का साग खाने से कब्ज दूर होकर शौच खुलकर आती है।

मुंह के छाले :
सहजन की छाल का काढ़ा बनाकर गरारे करने से मुंह के छाले, पीड़ा आदि खत्म होती है।

नपुंसकता :
सहजन के फूलों को दूध में उबाल कर रोजाना रात को मिश्री मिलाकर पीने से नपुंसकता दूर होती है।

दांतों में कीडे़ और दर्द :
दांतों में कीड़े लग जाने व तेज दर्द होने पर सहजन की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में 2 या 3 बार कुल्ला करने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में आराम रहता है।

कान का दर्द :
सरसों के तेल में सहजन की जड़ की छाल का रस डालकर थोड़ा सा गर्म करके बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।
सहजन के ताजे पत्तों का रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

कमजोरी :
सहजन की जड़ की छाल, संतरे के छिलके और जायफल की मद्यसारायी रस की 10-15 बूंद सुबह-शाम सेवन करने से स्नायु की कमजोरी मिट जाती है।

पक्षाघात :
संतरे की छाल, सहजन की जड़ की छाल तथा जायफल की मद्यसारीय रस की लगभग 10 से 15 बूंद रोजाना देने से पक्षाघात (लकवे) में बहुत लाभ मिलता है।

घाव में :
सहजने की थोड़ी-सी पत्तियों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव ठीक हो जाता है।
घाव की सूजन पर सहजन की छाल पीसकर लेप करे और 5 ग्राम से 10 ग्राम छाल पीसकर सुबह शाम पीते रहने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है।

भगन्दर :
सहजने का काढ़ा बनाकर उस में हींग और सेंधा नमक डालकर पीने से भगन्दर के रोग मे लाभ होता है। सहजन के पेड़ की छाल का काढ़ा भी पीना भी भगन्दर रोग में लाभकारी होता है।

गुर्दे की पथरी :
सहजन की जड़ का काढ़ा बनाकर गुनगुना करके पीने से पथरी रोग ठीक होता है।
सहजने की सब्जी बनाकर खाने से गुर्दे व मूत्राशय की पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
सहजन तथा वरुण की छाल का काढ़ा बनाकर उस में लगभग आधा ग्राम यवक्षार को मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से पथरी जल्द घुलकर निकल जाती है।

यकृत का बढ़ना :
4 से 8 मिलीलीटर सहजन के नये पेड़ की जड़ की छाल के काढ़े में सुबह-शाम हींग और सेंधा नमक के साथ मिलाकर सेवन करने से यकृत (जिगर) का बढ़ना रुक जाता है।

अधिक नींद और ऊंघ आना :
सहजन के बीज, सेंधा नमक, सरसों और कूठ को 3-3 ग्राम की मात्रा में बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को बकरी के मूत्र में घोंटकर रोगी को सूंघाने से नींद अधिक आने की बीमारी ठीक हो जाती है।

उच्च रक्तचाप :
15 ग्राम सहजन का रस सुबह और इतना ही रस शाम को पीने से उच्च रक्तचाप में बहुत लाभ होता है।

बेहोशी:
सहजन और त्रिकटु के बीजों को अगस्त की जड़ के रस में घोट कर सूंघने से बेहोशी दूर हो जाती है।
सहजन के बीजों के चूर्ण को नाक में डालने से बेहोशी खत्म हो जाती है।

चेहरे के लकवे में :
सहजन के जड़ की छाल, संतरे का छिलका और जायफल का मद्यसारीय रस (एल्कोहोलिक टिनचर) 10 से 15 बूंद पानी में मिलाकर रोजाना 2 से 3 बार पीने से चेहरे के लकवे मे लाभ होता है।

फोड़े-फुंसियों के लिए :
फोड़ा चाहे जैसा भी हो वह न पकता हो और ना ही फूटता हो तो सहजने की सब्जी खाने को दें और इसके पत्तों का रस और जड़ की छाल का लेप बनाकर फोड़े पर बांध दें। इसकों बांधने से फोड़ा बैठ जाता है।

सौंठ के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

सौंठ हर घर में उपयोगी वस्तु है। अदरक पककर जब सूख जाती है तब उसकी सौंठ बनती है। साग-दाल के मसाले में इसका उपयोग होता है। सौंठ में अदरक के सारे गुण मौजूद होते हैं। आम का रस पेट में गैस न करें इसलिए उसमें सौंठ और घी डाला जाता है। सौंठ में उदरवातहर (वायुनाशक) गुण होने से यह विरेचन औषधियों के साथ मिलाई जाती है। सौंठ पाचनतंत्र के लिए उत्तम उपयोगी है। बुढ़ापे में अक्सर पाचनक्रिया धीमी पड़ जाती है, पेट में गैस पैदा होती है, कफ-प्रकोप रहता है। दिल में बेचैनी और हाथ-पैरों में दर्द होता है। ऐसी दशा में सौंठ का चूर्ण अथवा दुग्ध मिश्रित सौंठ का काढ़े का सेवन लाभदायक है। कफ और गैस के सारे रोगों और दिल के रोगियों के लिए सौंठ लाभदायक होती है। सौंठ से `सौभाग्य पाक´ बनाया जाता है और गर्भवती महिलाओं को कोई दोष न हो इस हेतु उसका विशेष रूप से सेवन कराया जाता है। गर्भवती महिलाओं के लिए यह पाक बहुत ज्यादा गुणकारी और उत्तम औषधि है। सौंठ में अनेक गुण रहते हैं। इसलिए सौंठ को विश्व-भैषज और `महौषध´ नाम से जाना जाता है। सौंठ रुचिकारक, पाचक, तीखी, चिकनी, आमवातनाशक और गर्म है। यह पाक में मीठा, कफ, गैस तथा मलबन्ध को तोड़ने वाली है तथा वीर्यवर्धक और आवाज को अच्छा करने वाली है। यह वमन (उल्टी), सांस, दर्द, खांसी, हृदय रोग, (फीलपांव) श्लीपद, सूजन, बवासीर, अफारा व गैस को खत्म करती है। गर्म प्रकृति वालों को सौंठ अनुकुल नहीं रहती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

जुकाम :
सौंठ (सूखी अदरक) और गुड़ को पानी में डालकर पकाने के लिए आग पर रख दें। पकने पर जब पानी चौथाई हिस्सा बाकी रह जाये तो इसे गर्म-गर्म ही छानकर 3 बार में पी जायें। इससे जुकाम में बहुत लाभ होता है।
10-10 ग्राम सोंठ, चिरायता, कटेरी की जड़, अडूसे की जड़ और 6 ग्राम छोटी पीपल को एक साथ मिलाकर 1 कप पानी में डालकर काढ़ा बना लें। पकने पर जब काढ़ा आधा बाकी रह जाये तो इसे उतारकर छानकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
सोंठ, पीपल और कालीमिर्च को बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें। इसमें 1 चुटकी त्रिकुटा को शहद के साथ चाटने से जुकाम में आराम आता है। सोंठ को पानी में डालकर उबाल लें। फिर इसमें शक्कर मिलाकर पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
सोंठ कालीमिर्च और पीपल को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। फिर इसमें 4 गुना गुड़ मिलाकर बेर के आकार की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली दिन में 3 बार लेने से जुकाम और सिर का भारीपन दूर हो जाता है।
सौंठ मिलाकर उबाला हुआ पानी पीने से पुराना जुकाम खत्म होता है। सौंठ के टुकड़े को रोजाना बदलते रहना चाहिए।

पीलिया :
गुड़ के साथ 10 ग्राम सोंठ खाने से पीलिया का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
आधा चम्मच सोंठ का चूर्ण गर्म दूध (क्रीम निकाला हुआ) या गुड़ के साथ सेवन करने से पीलिया रोग में बहुत लाभ होता है।

सर्दी-जुकाम :
सौंठ, तज और सड़ी चीनी का काढ़ा बनाकर पीने से सर्दी-जुकाम में लाभ होता है।

अम्लपित्त :

सोंठ, संचर नमक, भुनी हींग, अनारदाना और अमरबेल आदि को बराबर की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 2 चुटकी सुबह-शाम पानी के साथ पीने से अम्लपित्त (एसिडिटीज) में लाभ होता है।
सोंठ, आंवले और मिश्री का बारीक चूर्ण बनाकर सेवन करने से अम्लपित्त (एसिडिटीज) में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ :
सौंठ के काढ़े में हल्दी और गुड़ मिलाकर पीने से वीर्यस्राव रुकता है। पेशाब में जाने वाला वीर्य भी बंद हो जाता है।

मूत्राशय के रोग :
5 ग्राम सौंठ का चूर्ण बकरी या गाय के लगभग आधा किलो दूध के साथ सेवन करने से दर्द के साथ पेशाब में खून आना बंद हो जाता है।

सभी प्रकार के दर्द :
सौंठ, सज्जीखार और हींग का चूर्ण गर्म पानी के साथ सेवन करने से सारे तरह के दर्द नष्ट हो जाते हैं।

बवासीर :
सौंठ का चूर्ण छाछ में मिलाकर खाने से बवासीर (मस्से) में लाभ होता है।
सोंठ के साथ इन्द्रजव को मिलाकर पानी या दूध के साथ काढ़ा बनायें और इस में शहद मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीयें। इससे खूनी बवासीर ठीक होती है।
सौंठ और गुड़ बराबर मात्रा में लेकर रोजाना सुबह-शाम खाने से बवासीर ठीक हो जाती है।

कमजोरी :
सौंठ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से शरीर की चमक बढ़ती है, मन प्रसन्न रहता है और शरीर मजबूत होता है।

पेचिश :
रोजाना गर्म पानी के साथ सौंठ खाना अथवा सौंठ का काढ़ा बनाकर इसमें 10 मिलीलीटर एरण्ड का तेल डालकर सेवन करने से पेचिश के रोग में लाभ होता है।

हैजा रोग :
सौंठ और बेलफल के गूदे का काढ़ा बनाकर सेवन करने से हैजा रोग में होने वाले पेट दर्द, दस्त और उल्टी में लाभ होता है।

सिर का दर्द :
सौंठ के चूर्ण में 4 गुना दूध मिलाकर सूंघने से किसी भी प्रकार का सिर दर्द दूर हो जाता है।
गर्म पानी में सौंठ को पीसकर कनपटी या ललाट या माथे पर लेप करने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
सौंठ, हर्र, नीम की छाल, आंवला, बहेड़ा और कच्ची हल्दी के रस को बराबर मात्रा में लेकर इसको 8 गुना पानी में एक भाग शेष रहने तक उबालें और इस एक भाग में गुड़ मिलाकर रोज़ाना सुबह-शाम को पीने से कितना भी पुराना सिर का दर्द क्यों न हो खत्म हो जाता है।
थोड़ी मात्रा में सौंठ और 2 लौंग को पीसकर सिर पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
सौंठ को पानी में पीसकर माथे पर लगाने से जुकाम के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर हो जाता है।
सौंठ, किरमाला, पीपल, मिर्च की जड़ तथा सहजना के बीजों को गाय के मूत्र के साथ पीसकर सूंघने से कीड़ों के कारण होने वाला सिर का दर्द दूर हो जाता है।
सौंठ को पानी या दूध में घिसकर नाक से सूंघने से और लेप करने से आधे सिर के दर्द में लाभ होता है।

टायफायड :
3 ग्राम सौंठ को बकरी के दूध में पीसकर सगर्भा (गर्भवती) स्त्री को सेवन कराने से टायफायड बुखार में लाभ होता है।

हिचकी :
सौंठ और गुड़ को गर्म पानी में मिलाकर नाक में उसकी कुछ बूंदे डालने से हिचकी आना बंद हो जाती है।

आंख का फड़कना :
महारास्नादि क्वाथ (काढ़ा) में सोंठ मिलाकर सुबह-शाम पीने से शरीर के किसी अंग की हिलते रहने की शिकायत, फड़कना आदि ठीक होता है। चाहे अंगुलियों की कम्पन हो या पलकों का फड़कना।

कफ-पित्त ज्वर :
सोंठ, गिलोय, छोटी पीपल और जटामासी को पीसकर बनें काढ़े को पीने से कफ-ज्वर में लाभ होता हैं।

पेट की गैस बनना :
10 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम कालीमिर्च, 10 ग्राम सेंधानमक, 10 ग्राम जीरा और सादा जीरा को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। इसमें 5 ग्राम शुद्ध हींग को घी में भूनकर मिला लें। इस चूर्ण को भोजन के बाद 1 चम्मच की मात्रा में पीने से पेट की गैस में लाभ होता हैं।

गर्भपात :
3 ग्राम सोंठ तथा 15 ग्राम लहसुन को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ को 3 दिनों तक सेवन करने से गर्भ गिर जाता है।

हकलाना, तुतलाना :
50-50 ग्राम भुनी सौंठ, ब्राह्मी, गोरखमुण्डी और पीपल पीसकर रख लें। इस 10 ग्राम चूर्ण को शहद में मिलाकर रोजाना सुबह-शाम खायें। इससे जीभ का लगना बंद हो जाता है तथा तुतलापन ठीक हो जाता है।

पथरी :
4 ग्राम सोंठ, 4 ग्राम वरना, 4 ग्राम गेरू, 4 ग्राम पाषाण भेद तथा 4 ग्राम ब्राह्मी को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में आधी चुटकी जवाखार मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।

शहतूत के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

शहतूत और शहतूत का शर्बत दोनों के गुण समान होते हैं। यह जलन को शांत करता है, प्यास को दूर करता है और कफनाशक होता है। यह शरीर में शुद्ध खून को पैदा करता है, पेट के कीड़ों को समाप्त करता है। पाचनशक्ति (भोजन पचाने की क्रिया) बढ़ाता है। जुकाम और गले के रोगों में लाभदायक है। शहतूत का अधिक प्रयोग अच्छा नही है। शहतूत में विटामिन-ए, कैल्शियम, फॉंस्फोरस और पोटेशियम अधिक मात्रा में मिलता हैं। जिनके शरीर में अम्ल, आमवात, जोड़ों का दर्द हो, उन लोगों के लिए शहतूत खासतौर पर लाभदायक है। शहतूत की औषधियों में रंग और सुगंध डालने के लिए शहतूत के रस से बनाया गया शर्बत काम में लिया जाता है। चीन में गुर्दे की कमजोरी, थकान, खून की कमी, अचानक बाल सफेद होने पर शहतूत को दवा की तरह काम में लेते हैं। शहतूत से पेशाब के रोग और कब्ज़ दूर हो जाते हैं। शहतूत का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसका रस सिर में लगाने से बाल घने होते हैं।

गुण (Property)

शहतूत भारी, स्वादिष्ट, शीतल, पित्त तथा वात-नाशक है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

खटमल:
चारपाई पर शहतूत के पत्ते बिछा देने से खटमल भाग जाते हैं।

दूधवर्धक :
शहतूत रोजाना खाने से दूध पिलाने वाली माताओं का दूध बढ़ता है। प्रोटीन और ग्लूकोज शहतूत में अच्छी मात्रा में मिलते हैं।

फोड़ा :
शहतूत के पत्तों पर पानी डालकर, पीसकर, गर्म करके फोड़े पर बांधने से पका हुआ फोड़ा फट जाता है तथा घाव भी भर जाता है।

छाले :
छाले और गल ग्रन्थिशोध में शहतूत का शर्बत 1 चम्मच 1 कप पानी में मिला कर गरारे करने से लाभ होता है।

दाद, खुजली:
शहतूत के पत्ते पीसकर लेप करने से लाभ होता है।

पेशाब का रंग बदलना :
पेशाब का रंग पीला हो तो शहतूत के रस में चीनी मिलाकर पीने से रंग साफ हो जाता है।

लू, गर्मी:
गर्मियों में लू से बचने के लिये रोज शहतूत का सेवन करना चाहिए। इससे पेट, गुर्दे और पेशाब की जलन भी दूर होती है। ऑंतों के घाव और लीवर रोग ठीक होते हैं साथ ही रोज सेवन करने से सिर को मजबूती मिलती है।

मूत्रघात (पेशाब मे धातु आना) :
शहतूत के रस में कलमीशोरा को पीसकर नाभि के नीचे लेप करने से पेशाब मे धातु आना बंद हो जाती है।

कब्ज :
शहतूत के छिलके का काढ़ा बनाकर 50 से लेकर 100 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से पेट के अंदर मौजूद कीड़ें समाप्त हो जाते है।
शहतूत की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट साफ हो जाता है।

मुंह के छाले :
1 चम्मच शहतूत के रस को 1 कप पानी में मिलाकर कुल्ली करने से मुंह के दाने व छाले ठीक हो जाते हैं।

पित्त ज्वर :
पित्त बुखार में शहतूत का रस या उसका शर्बत पिलाने से प्यास, गर्मी तथा घबराहट दूर हो जाती है।

शीतज्वर :
पित्त की बीमारी को दूर करने के लियें गर्मी के मौसम मे दोपहर को शहतूत खाने से लाभ होता है।

दिल की धड़कन :
शहतूत का शर्बत बनाकर पीने से दिल की तेज धड़कन सामान्य होती है।

शरीर में जलन होने पर :
शहतूत का शर्बत पीने से और उसे खाने से शरीर की जलन दूर हो जाती है।

कफ (बलगम) :
50 से 100 मिलीलीटर शहतूत की छाल का काढ़ा या 10 से 50 ग्राम शहतूत के फल का रस सुबह-शाम सेवन करने से कफ (बलगम) खांसी दूर होती है।

गले का दर्द :
शहतूत का शर्बत पीने से गले की खुश्की और दर्द ठीक हो जाता है।

गले के रोग में :
शहतूत का रस बनाकर पीने से आवाज ठीक हो जाती है, गला भी साफ हो जाता है और गले के कई रोग भी ठीक हो जाते हैं।

शरीर को शक्तिशाली बनाना :
गाय को लगभग 1 मिलीलीटर शहतूत के पत्ते सुबह और शाम को खिलाकर उस गाय का दूध पीने से शरीर शक्तिशाली बनता है।

शीशम के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

शीशम की लकड़ी फर्नीचर और मकानों में इस्तेमाल की जाती है। सारे भारत में शीशम के लगाये हुये अथवा स्वयंजात पेड़ मिलते हैं। इस पेड़ की लकड़ी और बीजों से एक तेल मिलता है जो औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है।

गुण (Property)

शीशम, कड़वा, तीखा, सूजन, वीर्य में गर्मी पैदा करने वाला, गर्भपात कराने वाला, कोढ़, सफेद दाग, उल्टी, पेट के कीड़े को खत्म करने वाला, बस्ति रोग, फोड़े-फुन्सियों, खून की गंदगी को दूर करने वाला तथा कफ को नष्ट करने वाला है। शीशम कडवा, गर्म, बस्ति रोग को नष्ट करने वाला, हिचकी, शोथ (सूजन) तथा विसर्प को नष्ट करने वाला है। शीशम सार स्नेहन, तीखा, कड़वा, कषैला, दुष्ट व्रणों का शोधन करने वाला, पेट के कीड़े, बलगम, कुष्ठ रोग को खत्म करने वाला होता है। शीशम, अर्जुन, ताड़, चंदन, सारादिगण, कुष्ठ रोग को नष्ट करता है, प्रमेह और पीलिया रोग को खत्म करता है, कफ (बलगम) और मेद का शोधक है। शीशम, पलाश, त्रिफला, चित्रक यह सब मेदानाशक तथा शुक्र दोष को नष्ट करने वाला है, बवासीर, प्रमेह, पीलिया रोगनाशक है एवं शर्करा को दूर करने वाला है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

मूत्रकृच्छ :
मूत्रकृच्छ (पेशाब करते समय परेशानी) की ज्यादा पीड़ा में शीशम के पत्तों का 50-100 मिलीलीटर काढ़ा दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से लाभ मिलता है।

पूयमेह :
लालामेह और पूयमेह में 10-15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस दिन में 3 बार रोगी को देने से लाभ होता है।

विसूचिका :
सुगंधित और चटपटी औषधियों के साथ शीशम की गोलियां बनाकर विसूचिका (हैजा) में देने से आराम मिलता है।

विसूचिका :
शीशम के पत्तों का रस और शहद मिलाकर इसकी बूंदें आंखों में डालने से दु:खती आंखें ठीक होती है।

स्तनों की सूजन :
शीशम के पत्तों को गर्म करके स्तनों पर बांधने से और इसके काढ़े से स्तनों को धोने से स्तनों की सूजन कम हो जाती है।

उदर दाह :
उदर (पेट) की जलन में 10-15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस रोगी को देने से लाभ होता है। पीलिया के रोग में भी शीशम के पत्तों का रस 10-15 मिलीलीटर सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।

उदर दाह :
हर तरह के बुखार में 20 मिलीलीटर शीशम का सार, 320 मिलीलीटर पानी, 160 मिलीलीटर दूध को मिलाकर गर्म करने के लिए रख दें। दूध शेष रहने पर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

गृघसी (जोड़ों का दर्द) :
शीशम की 10 किलोग्राम छाल का मोटा चूरा बनाकर साढ़े 23 लीटर पानी में उबालें, पानी का 8वां भाग जब शेष रह जाए तब इसे ठंडा होने पर कपड़े में छानकर फिर इसको चूल्हे पर चढ़ाकर गाढ़ा करें। इस गाढ़े पदार्थ को 10 मिलीलीटर की मात्रा में घी युक्त दूध पकाने के साथ 21 दिन तक दिन में 3 बार लेने से गृधसी रोग (जोड़ों का दर्द) खत्म हो जाता है।

रक्तविकार :
शीशम के 1 किलोग्राम बुरादे को 3 लीटर पानी में भिगोकर रख लें, फिर उबाल लें, जब पानी आधा रह जाए तब इसे छान लें, इसमें 750 ग्राम बूरा मिलाकर शर्बत बना लें, यह शर्बत खून को साफ करता है।
शीशम के 3 से 6 ग्राम बुरादे का शर्बत बनाकर रोगी को पिलाने से खून की खराबी दूर होती है।

कष्टार्त्तव (मासिक धर्म का कष्ट का आना) :
3 से 6 ग्राम शीशम का चूर्ण या 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा कष्टार्त्तव ( रोग में दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होता है।

कफ :
10 से 15 बूंद शीशम का तेल सुबह-शाम गर्म दूध में मिलाकर सेवन करने से बलगम समाप्त हो जाता है।

आंवरक्त (पेचिश):
6 ग्राम शीशम के हरे पत्ते और 6 ग्राम पोदीना के पत्तों को पानी में ठंडाई की तरह घोंटकर पीने से पेचिश के रोग में लाभ होता है।

घाव में :
शीशम के पत्तों से बने तेल को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है। यहां तक की कुष्ठ (कोढ़) के घाव में भी इसका उपयोग लाभकारी होता है।

प्रदर रोग :
40-40 ग्राम शीशम के पत्ते और फूल, 40 ग्राम इलायची, 20 ग्राम मिश्री और 16 कालीमिर्च को एक साथ पीसकर पीने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।

वीर्य रोग में :
रात में एक मिट्टी के बर्तन में पानी रखें शीशम के हरे और कोमल पत्तों को रखकर ढक दें। सुबह इन्हें निचोड़कर छान लें और ताल मिश्री मिलाकर खाने से वीर्य रोग में लाभ होता है।

कुष्ठ (कोढ़) :
कुष्ठ रोग में शीशम के तेल को लगाने से या शीशम के पत्तों से बने तेल को लगाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग में आराम आता है।

नाड़ी का दर्द :
शीशम की जड़ व पत्तें और बराबर मात्रा में सैंधा नमक लेकर कांजी में इसका लेप बनाकर लगाने से नाड़ी रोग जल्द ठीक होता है।

शरीफा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

शरीफा एक मीठा फल हैं जिसमें काफी ज्यादा मात्रा में कैलोरी होती है। मधुमेह के रोगियों और मोटे व्यक्तियों को यह फल नहीं खाना चाहिए। शरीफा आसानी से हजम होने वाला और अल्सर व अम्ल पित्त के रोग में ज्यादा लाभकारी होता है। इसमें आयरन और विटामिन सी का एक अच्छा स्रोत है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बालों के रोग :
शरीफा के बीजों को बकरी के दूध के साथ पीसकर बालों में लगाने से सिर के उड़े हुए बाल फिर से उग आते हैं।

जुएं का पड़ना :
शरीफा के बीजों को बारीक पीसकर रात को सिर में लगा लें और किसी मोटे कपड़े से सिर को अच्छी तरह बांधकर सो जाएं। इससे जुएं मर जाती है। इस बात का ध्यान रखें कि यह आंखों तक न पहुंचे क्योंकि इससे आंखों में जलन व अन्य नुकसान हो सकता है।
शरीफा के पत्तों का रस बालों की जड़ो में अच्छी तरह मालिश करने से जुंए मर जाती है।

फोड़ा :
शरीफा के पत्तों को पीसकर फोड़ों पर लगाने से फोड़े ठीक हो जाते है।

शरीर की जलन :
शरीफा सेवन करने या इसके गूदे से बने शर्बत शरीर की जलन को ठीक करता है।

त्रिफला के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

हरड़, बहेड़ा तथा आंवला के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर त्रिफला बनाया जाता है।

गुण (Property)

त्रिफला प्रमेह (वीर्य विकार), कफ, पित्त तथा कुष्ठ को ठीक करता है। यह दस्त लाकर पेट को साफ करने वाला होता है। आंखों के रोग को ठीक करने में यह लाभकारी होता है। यह भूख, रुचि को बढ़ाने वाला और विषम बुखार को नष्ट करने वाला होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

आंखों के रोग :
त्रिफला को शाम को पानी में डालकर भिगो दें। सुबह उठकर इसे छान लें तथा इससे आंखों धोएं इससे हर प्रकार की आंखों की बीमारियां ठीक हो जाती है। त्रिफला के चूर्ण को कुछ घंटे तक पानी में भिगोकर, छानकर उसका पानी पीने से भी गैस की शिकायत नहीं रहती हैं।
त्रिफला के पानी से आंखों को धोने से आंखों के अंदर की सूजन दूर हो जाती है।
लगभग 5 से 10 ग्राम महात्रिफला तथा मिश्री को घी में मिलाकर सेवन करने से आंखों का दर्द, आंखों का लाल होना या आंखों की सूजन आदि दूर होते है।
4 चम्मच त्रिफला का चूर्ण 1 गिलास पानी में मिलाकर अच्छी तरह से छान लें। इस पानी से आंखों पर छीटे मारकर दिन में 4 बार धोएं। इससे लाभ मिलता है और आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
त्रिफला के काढ़े की कुछ बूंदे आंखों में डालने से हर प्रकार के आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
त्रिफला के पानी से रोजाना 2 से 3 बार आंखों को धोने से कनीनिका की जलन दूर होती है। आंखों के रोगों को ठीक करने के लिए 30 ग्राम त्रिफला चूर्ण को रात के समय में 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर रखें। सुबह इसे कपड़े से छानकर आंखों को धोएं।
10 ग्राम त्रिफला, 5-5 ग्राम सेंधानमक और फिटकरी और 100 ग्राम नीम के पत्ते इन सबको लेकर 300 मिलीलीटर पानी में उबालें तथा इसे कपड़े से छानकर आंखों को धोने से आंखों की सूजन ठीक हो जाती है।

मोतियाबिंद :
ठंडे पानी या त्रिफला के काढ़े से आंखों को धोने से मोतियाबिंद दूर होता है। त्रिफला चूर्ण एवं यष्टीमूल चूर्ण को 3 से 6 ग्राम शहद या घी के साथ दिन में 2 बार लेने से मोतियाबिंद ठीक हो जाता है।
मोतियाबिंद को ठीक करने के लिए 6 से 12 ग्राम त्रिफला चूर्ण को 12 से 24 ग्राम घी के साथ दिन में 3 बार लेना चाहिए।

दिनौंधी (दिन में दिखाई न देना) :
त्रिफला के काढे़ में 12 से 24 ग्राम शुद्ध घी मिलाकर इसे 150 मिलीलीटर गुनगुने पानी के साथ दिन में 3 बार लेने से लाभ मिलता है।
त्रिफले के पानी से आंखों को रोजाना धोने और त्रिफले का चूर्ण घी या शहद के साथ सुबह और शाम 3 से 6 ग्राम खाने से दिनौंधी रोग में लाभ मिलता है।
दिनौंधी को ठीक करने के लिए रोजाना सुबह और शाम 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण को ताजे पानी के साथ सेवन करें और त्रिफला के पानी से आंखों और सिर को धोयें।

रतौंधी (रात में न दिखाई देना) :
त्रिफला के पानी से रोजाना सुबह और शाम आंखों और सिर को अच्छी तरह से धोना चाहिए। इससे रतौंधी रोग ठीक होने लगता है।

उच्च रक्तचाप (हाईब्लड़ प्रेशर) :
1 चम्मच त्रिफला के चूर्ण को गर्म पानी के साथ रात के समय में सोने से पहले लेने से लाभ उच्च रक्तचाप समान्य हो जाता है।
10 ग्राम त्रिफला का चूर्ण पानी में मिलाकर रात को किसी बर्तन में रख दें। सुबह इस मिश्रण को छानकर इसमें थोड़ी-सी मिश्री मिला दें और इसे पी लें। इससे उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर) कम होता है।

बालों का झड़ना :
त्रिफला का चूर्ण लगभग 2 से 6 ग्राम तथा लौह की भस्म (राख) 125 मिलीग्राम को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से बालों का झड़ना बंद हो जाता है।

कामला (पीलिया) :
त्रिफला, वासा, गिलोय, कुटकी, नीम की छाल और चिरायता को मिलाकर पीस लें। इस मिश्रण की 20 ग्राम मात्रा को लगभग 160 मिलीलीटर पानी में पका लें। जब पानी चौथाई बच जायें तो इस काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम के समय सेवन करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
त्रिफला, पलाश तथा कुटज को मिलाकर सेवन करने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
पीलिया का उपचार करने करने के लिए 40 मिलीलीटर त्रिफला के काढ़े में 5 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
त्रिफला का रस एक तिहाई कप इतना ही गन्ने का रस मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पीलिया की बीमारी दूर होती है।
हल्दी, त्रिफला, बायबिडंग, त्रिकुटा और मण्डूर को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें। फिर उस चूर्ण को घी और शहद के साथ मिलाकर खाने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
आधा चम्मच त्रिफला का चूर्ण, आधा चम्मच गिलोय का रस, आधा चम्मच नीम का रस। इन सबकों मिलाकर शहद के साथ चाटें। लगभग 12 से 15 दिन तक इसका सेवन करने से रोग ठीक हो जाता है।

टायफाइड :
त्रिफला का काढ़ा लगभग 10-20 मिलीलीटर बुखार आने से 1 घण्टे पहले पीने टायफाइड रोग में लाभ मिलता है।
लगभग 20 मिलीलीटर त्रिफला के काढ़े या गिलोय के रस को पीने से टायफाइड ठीक होने लगता है।

वजन बढ़ाने के लिए :
1 चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात में लगभग 200 ग्राम पानी में मिलाकर रख दें। सुबह के समय इस पानी को उबालें। जब पानी आधा बच जाए तो इसको छानकर रख लें। इसके बाद 2 चम्मच शहद मिलाकर गुनगुना पीने से कुछ ही दिनों में ही कई किलो वजन में बढ़ोत्तरी होती हैं।

मलेरिया का ज्वर :
मलेरिया ज्वर को ठीक करने के लिए त्रिफला और पीपल को बराबर भाग में लेकर चूर्ण बना लें, इसमें शहद मिलाकर चाटने से लाभ मिलता है।
त्रिफला 3 ग्राम, नागरमोथा 3 ग्राम, निशोथ 3 ग्राम, त्रिकुटा 3 ग्राम, इन्द्रजौ 3 ग्राम, कुटकी 3 ग्राम, पटोल के पत्ते 3 ग्राम, चित्रक 3 ग्राम और अमलतास को 3 ग्राम की मात्रा में कूटकर चूर्ण बना लें। जब काढ़ा ठंडा हो जाये तब शहद मिलाकर रोगी को पिलाए इससे मलेरिया बुखार ठीक हो जाता है।

फेफड़ों में पानी भर जाना :
1 ग्राम त्रिफला का चूर्ण और 1 ग्राम शिलाजीत को 7 से 14 मिलीमीटर गाय के मूत्र (पेशाब) में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है।

कब्ज :
कब्ज को दूर करने के लिए त्रिफला का चूर्ण 5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ लेने से लाभ मिलता है।
1 चम्मच त्रिफला के चूर्ण को गर्म पानी के साथ सोने से पहले सेवन करने से कब्ज की समस्या दूर होती है।
त्रिफला का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में लेकर हल्का गर्म पानी के साथ रात को सोते समय लेने से कब्ज दूर हो जाती है।
त्रिफला का चूर्ण 6 ग्राम शहद में मिलाकर रात में खा लें, फिर ऊपर से गर्म दूध पीएं। ऐसा कुछ दिनों तक करने से कब्ज की समस्या खत्म हो जाती है।
त्रिफला 25 ग्राम, सनाय 25 ग्राम, काली हरड़ 25 ग्राम, गुलाब के फूल 25 ग्राम, बादाम की गिरी 25 ग्राम, बीज रहित मुनक्का 25 ग्राम, कालादाना 25 ग्राम और वनफ्शा 25 ग्राम इस सब को पीसकर चूर्ण बना लें। इस मिश्रण को गर्म दूध के साथ लेने से कब्ज समाप्त हो जाती है।
50 ग्राम त्रिफला, 50 ग्राम सोंफ, 50 ग्राम बादाम की गिरी, 10 ग्राम सोंठ और 30 ग्राम मिश्री को अलग-अलग जगह कूट लें। इन सबकों मिलाकर इसमें से 6 ग्राम रात को सोने से पहले सेवन करें।
त्रिफला गुग्गुल की दो-दो गोलियां दिन में 3 बार (सुबह, दोपहर और शाम) गर्म पानी के साथ लेने से पुरानी कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।

पेट की गैस बनना :
त्रिफला और राई को पीसकर चूर्ण बना लें। इसे थोड़ी-सी मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है।

पेट में दर्द :
त्रिफला का चूर्ण 3 ग्राम तथा 3 ग्राम मिश्री को मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
त्रिफला को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इस चूर्ण को गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे पेट का दर्द ठीक हो जाएगा।

पेट के सभी प्रकार के रोग :
200 ग्राम त्रिफला चूर्ण में लगभग 120 ग्राम खांड (कच्ची चीनी) मिला लें। इसमें से 5 ग्राम की मात्रा दिन में सुबह और शाम पानी के साथ लेने से पेट के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।

पेट फूलना :
त्रिफला 10 ग्राम, 20 ग्राम सनाय और 50 ग्राम चूक को कूट छानकर नींबू के रस में मिलाकर छोटी-छोटी एक समान भाग में गोलियां बनाकर छांया में सुखा लें। रात को सोते समय 1 से 2 गोली लेने से पेट हल्का हो जाता है।

मोटापा :
त्रिफला का चूर्ण लगभग 12 से 14 ग्राम की मात्रा में सोने से पहले रात को हल्के गर्म पानी में डालकर रख दें। सुबह इस पानी को छानकर इसमें शहद को मिलाकर सेवन करें। ऐसा कुछ दिनों तक लगातार लेने से मोटापा कम होने लगता है।
त्रिफला, चित्रक, त्रिकुटा, नागरमोथा तथा वायविंडग को मिलाकर काढ़ा बना लें और इसमें गुगुल मिलाकर सेवन करें। इसे कुछ दिनों तक लेने से मोटापा कम होने लगता है।
मोटापा कम करने के लिए त्रिफला का चूर्ण शहद के साथ 10 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार लेने से लाभ मिलता है।
2 चम्मच त्रिफला को 1 गिलास पानी में उबालकर इच्छानुसार मिश्री मिला लें और इसका सेवन करें। इसे रोज लेने से मोटापा दूर होता है।
त्रिफला का चूर्ण और गिलोय का चूर्ण 1-1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटने से मोटापा कम होता है।
त्रिफला और गिलोय को मिलाकर काढ़ा बनाकर शहद के साथ सेवन करने से मोटापा कम होने लगता है।

जुकाम :
जुकाम को ठीक करने के लिए 3 ग्राम त्रिफला के चूर्ण को शहद मिलाकर चाटने से खांसी और जुकाम भी ठीक हो जाता है।

स्तनों के दूध का विकार :
त्रिफला, चिरायता पंचांग (जड़, तना, पत्ता, फल और फूल), कटुकी प्रकन्द, मुस्तकमूल को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, फिर इसी काढ़े को एक दिन में 14 मिली लीटर से लेकर 28 मिली लीटर की मात्रा में सुबह और शाम पीने से स्तनों के दूध के विकारों में लाभ मिलता हैं।

तेजपत्ता के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

तेजपात का पेड़ हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में पाया जाता है। यह सिक्किम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भी पैदा होता है। तेजपात सदा हरा रहने वाला पेड़ है। तेजपात का मसालों में प्रयोग किया जाता है। तेजपात का रंग हरा तथा ऊपरी भाग चिकना होता है। इस पर तीन स्पष्ट शिराएं दिखाई पड़ती है। इसमें लौंग तथा दालचीनी की तरह की खुश्बू होती है। तेजपात को धूप में सुखाकर प्रयोग में लिया जाता है।

गुण (Property)

तेजपत्ता हल्का, तीखा व मीठा होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है। यह वातानुलोमक, मस्तिष्क (दिमाग) को शक्ति देने वाला, पेशाब को साफ करने वाला तथा आमाशय को शक्ति देने वाला होता है। तेजपत्ता में दर्दनाशक तथा एंटी-ऑक्सीडेंड गुण पाए जाते हैं।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

सर्दी-जुकाम :
चाय पत्ती की जगह (स्थान) तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से छीकें आना, नाक बहना, जलन, सिर दर्द दूर होता है।
तेजपात की छाल 5 ग्राम और छोटी पिप्पली 5 ग्राम को पीसकर 2 चम्मच शहद के साथ चटाने से खांसी और जुकाम नष्ट होता है।
1 से 4 ग्राम तेजपत्ता के चूर्ण को सुबह और शाम गुड़ के साथ खाने से धीरे-धीरे जुकाम ठीक हो जाता है।

सिर की जुंए :
तेजपात के 5 से 6 पत्तों को 1 गिलास पानी में इतना उबालें कि पानी आधा रह जाये और इस पानी से प्रतिदिन सिर में मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिए। इससे सिर की जुंए मरकर निकल जाती हैं।

आंखों के रोग :
तेजपत्ते को पीसकर आंख में लगाने से आंख का जाला और धुंध मिट जाती है। आंख में होने वाला नाखूना रोग भी इसके प्रयोग से कट जाता है।

रक्तस्राव (खून का बहना) :
नाक, मुंह, मल व मूत्र किसी भी अंग से रक्त (खून) निकलने पर ठंडा पानी 1 गिलास में 1 चम्मच पिसा हुआ तेजपात मिलाकर हर 3 घंटे के बाद से सेवन करने से खून का बहना बंद हो जाता है।

दमा (श्वास) :
तेजपात और पीपल को 2-2 ग्राम की मात्रा में अदरक के मुरब्बे की चाशनी में छिड़ककर चटाने से दमा और श्वासनली के रोग ठीक हो जाते हैं।
सूखे तेजपात का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में 1 कप गरम दूध के साथ सुबह-शाम को प्रतिदिन खाने से श्वास और दमा रोग में लाभ मिलता है।

खांसी :
लगभग 1 चम्मच तेजपात का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
तेजपात की छाल और पीपल को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें 3 ग्राम शहद मिलाकर चाटने से खांसी में आराम मिलता है।
तेजपात (तेजपत्ता) का चूर्ण 1 से 4 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम शहद और अदरक के रस के साथ सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है
तेजपात (तेजपत्ता) की छाल का काढ़ा सुबह तथा शाम के समय में पीने से खांसी और अफारा दूर हो जाता है।
60 ग्राम बिना बीज का मुनक्का, 60 ग्राम तेजपात, 5 ग्राम पीपल का चूर्ण, 30 ग्राम कागजी बादाम या 5 ग्राम छोटी इलायची को एकसाथ पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद इस चूर्ण को गुड़ में मिला दें। इसमें से चुटकी भर की मात्रा लेकर दूध के सेवन करने से खांसी आना बंद हो जाता है।

अफारा (पेट फूलना) :
तेजपत्ते का काढ़ा पीने से पसीना आता है और आंतों की खराबी दूर होती है जिसके फलस्वरूप पेट का फूलना तथा दस्त लगना आदि में लाभ मिलता है।
तेजपात का चूर्ण 1 से 4 ग्राम की मात्रा सुबह और शाम पीने से पेट में गैस बनने की शिकायत दूर होती है।

पीलिया और पथरी :
प्रतिदिन पांच से छ: तेजपत्ते चबाने से पीलिया और पथरी नष्ट हो जाती है।

गर्भाशय का ढीलापन :
गर्भाशय की शिथिलता (ढीलापन) को दूर करने के लिए तेजपात का प्रयोग करना चाहिए। तेजपात का चूर्ण 1 से 4 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से शिथिलता (ढीलापन) दूर हो जाती है। यदि गर्भाशय के शिथिलता (ढीलापन) के कारण गर्भपात हो रहा हो तो यह शिकायत भी इसके प्रयोग से दूर हो जाती है।

संधिवात (जोड़ों के दर्द) :
तेजपत्ते को जोड़ों पर लेप करने से संधिवात ठीक हो जाता है।

स्तनों को बढ़ाने के लिए :
तेजपात का चूर्ण सुबह तथा शाम सेवन करने से स्तनों के आकार में वृद्धि होती है।
तेजपात का तेल किसी अन्य तेल में मिलाकर उससे स्तनों की मालिश सुबह तथा शाम को करने से स्तन के आकार में वृद्धि होती है।

सिर का दर्द :
लगभग 10 ग्राम तेजपात को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से ठण्ड या गर्मी के कारण होने वाला सिर दर्द में आराम मिलता है।
तेजपात की शाखा का छिलका निकालकर उसको पीसकर कुछ गर्म कर लें और इसे माथे के आगे के भाग में लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

बांझपन :
बांझपन तथा गर्भपात की समस्या से पीड़ित स्त्री को तेजपात का चूर्ण चौथाई चम्मच की मात्रा में 3 बार पानी के साथ प्रतिदिन सेवन कराएं। इससे कुछ महीने गर्भाशय की शिथिलता दूर होकर बांझपन तथा गर्भपात की समस्या दूर हो जाती है।

निमोनिया :
तेजपात, नागकेसर, बड़ी इलायची, कपूर, अगर, शीतल चीनी तथा लौंग सभी को मिलाकर तथा काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से लाभ मिलता है।

हकलाना, तुतलाना :
रुक-रुक कर बोलने वाले या हकलाने वाले व्यक्ति को तेजपात जीभ के नीचे रखकर चूसना चाहिए इससे हकलाना तथा तुतलाना दूर होता है।

कमर का दर्द :
10 ग्राम अजवायन, 5 ग्राम सौंफ तथा 10 ग्राम तेजपात इन सब को कूट-पीसकर 1 लीटर पानी में उबालें। जब यह 100 ग्राम रह जाए तब इसे ठंडा करके पीएं इससे शीत लहर के कारण उत्पन्न कमर का दर्द ठीक हो जाता है।

मोच :
तेजपात और लौंग को एक साथ पीसकर बना लेप बना लें। इस लेप को मोच वाले स्थान पर लगाएं इससे धीर-धीरे सूजन दूर हो जाती है और मोच ठीक हो जाता है।

मधुमेह (शूगर) का रोग :
तेजपात के पत्तों का चूर्ण 1-1 चुटकी सुबह, दोपहर तथा शाम को ताजे पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह रोग ठीक हो जाता है।

टमाटर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

टमाटर का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है। इसे सलाद में डाला जाता है जिसके फलस्वरूप सलाद की पौष्टिक्ता बढ़ जाती है। इसमें कई प्रकार के पौष्टिक गुण पाये जाते हैं जिसके कारण टमाटर की गणना फलों में की जाती है। इस समय टमाटर का प्रयोग सॉस (चटनी) बनाने में अधिक किया जाता है। संतरा और अंगूर से ज्यादा लाभदायक टमाटर होता है। टमाटर में पाये जाने वाले विटामिन गर्म करने से खत्म नहीं होते हैं। भारी वर्षा वाली और शीत ऋतु को छोड़कर किसी भी ऋतु में इसके बीजों की पनीरी बनाकर इसे उगाया जा सकता है। अक्सर वर्ष में 2 बार मई-जून तथा अक्टूबर-नवम्बर मास में टमाटर बोए जाते हैं।

टमाटर में विटामिन ए, बी और सी अधिक पाया जाता हैं। इसमें विटामिन `ए´ ज्यादा पाया जाता है। प्रतिदिन 5 लाल टमाटर का सेवन करने से जितनी विटामिन `ए´ की आवश्यकता शरीर को होता है वह उसे मिल जाता है। टमाटर में बी-कॉम्पलेक्स भी पाया जाता है जो विटामिन का ही एक रूप है। 200 ग्राम टमाटर में 0.18 ग्राम प्रोटीन, 0.4 ग्राम वसा, 7.2 ग्राम कार्बोहाइड्रेट आदि पोषक तत्व होते हैं। 200 ग्राम टमाटर से 40 कैलोरी ऊर्जा शरीर को प्राप्त हो सकती है।

टमाटर में कैल्शियम अन्य फल-सब्जियों की तुलना में ज्यादा पाया जाता है। कैल्शियम हडि्डयों को मजबूत बनाता है। दांतों एव हडि्डयों की कमजोरी दूर करने के लिए टमाटर का सेवन बहुत उपयोगी है।
टमाटर में लोहा तत्व बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है । गर्भावस्था के दौरान लौह तत्व की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। टमाटर में लौह तत्व अंडे की तुलना में 5 गुना अधिक होता है। 1 गिलास टमाटर का रस पीने से रक्तहीनता दूर होकर खून की वृद्धि होती है।

गुण (Property)

पके टमाटर भोजन के साथ लेने से भूख बढ़ती है तथा पाचन शक्ति भी ठीक हो जाती है और खून एवं पित्त से सम्बंधित अनेक रोग दूर हो जाते हैं। टमाटर का रस पीने से तन-मन ताजी हो जाती है तथा सुस्ती दूर हो जाती है। गर्भवती स्त्रियों के लिए एवं मासिकस्राव में शारीरिक एवं मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए टमाटर का रस उत्तम होता है। कम वजन वाले लोग यदि भोजन के साथ पक्के टमाटर खाएं तो उनका वजन बढ़ने लगता है। कमजोर शरीर वाले लोग को भोजन के साथ टमाटर अवश्य खाना चाहिए। टमाटर का सेवन करने से जलन शांत होती है। यह पेट के दर्द को ठीक करता है। यह दस्तावर तथा खून को शुद्व करने वाला होता है और पाचनतंत्र की क्रिया को सुधारने में यह लाभकारी है। यह बवासीर, पीलिया और तेज बुखार को दूर करता है। इसका सेवन करने से कब्जियत दूर होती है। टमाटर पेट के गैस को खत्म करता है। पके टमाटर के रस में पुदीना, अदरक, धनिया और सेंधानमक मिलाकर उबालकर चटनी बना लें और इस चटनी को भोजन के साथ खाने से मुंह का स्वाद अच्छा होता है, भोजन में भूख बढ़ता है, पके टमाटर का रस निकालकर उसमें अदरक और नींबू का रस मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

टमाटर का उपयोग आमवात, अम्लपित, सन्धिवात (जोड़ों के दर्द), सूजन और पथरी के रोगियों को नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उनके लिये हानिकारक होता है। ऐसे रोगियों के लोगों को टमाटर नहीं खाना चाहिए। जिन्हें शीतपित्त का कष्ट हो, शरीर में गर्मी ज्यादा हो, जठर, आंतों अथवा गर्भाशय में उपदंश हो, दस्त लग गए हों उन्हें टमाटर का सेवन नहीं करना चाहिए। टमाटर खाने के बाद पानी (जल) न पीएं। टमाटर में तेजाबी अंश होते हैं जो पेट साफ रखता है। तेज खांसी और पथरी के रोगी को टमाटर नहीं खाना चाहिए क्योंकि यह उनके लिए नुकसानदायक होता है। मांस पेशियों में दर्द, तथा शरीर में सूजन हो तो टमाटर नहीं खाना चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

कब्ज :
कब्ज की बीमारी से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन लगभग 50 ग्राम टमाटर खाने से लाभ मिलता है।
कच्चा टमाटर सुबह और शाम खाने से कब्ज की समस्या दूर होती है। टमाटर खाने से कब्ज खत्म होती है और आमाशय व आंतों की सफाई करता है।
टमाटर के रस में थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर रोजाना खाने से गैस नहीं बनती है और कब्ज दूर हो जाती है।
पक्के टमाटर का रस एक कप पानी में मिलाकर पीने से पुरानी से पुरानी कब्ज़ दूर होती है और आंतों को ताकत भी मिलती है।

पाचन शक्ति में सुधार :
टमाटर को लगातार खाने से कब्ज नहीं होती है और दस्त साफ होता है। यह आंखों के जख्म को दूर करता है। टमाटर बड़ी आंतों को ताकत देता है। पाचनशक्ति को ठीक करता है। टमाटर आमाशय के जहर को बाहर निकालकर उसके रोग को दूर करता है।

शक्तिवर्धक (ताकत को बढ़ाने वाला) :
सुबह के समय नाश्ते में एक गिलास टमाटर के रस में थोड़ा शहद मिलाकर पीने से चेहरा टमाटर की तरह लाल हो जाता है। इसके सेवन से याददाश्त बढ़ती है। टमाटर लीवर तथा फेफड़ों को मजबूती प्रदान करती है।

शिशु शक्तिवर्धक ( शिशु की ताकत को बढ़ाने के लिए) :
बच्चों की माताओं को टमाटर का सेवन करना चाहिए और अपने बच्चों को भी रोज टमाटर का रस पिलायें। इससे बच्चों के शरीर का विकास अच्छा होता है। पाचन शक्ति अच्छी रहती है और दांत भी आसानी से निकल जाते हैं। इसके अलावा शरीर की सुस्ती, पेट के अतिसार (दस्त), पीलिया तथा पेट के रोग आदि में टमाटर लाभदायक है।

अण्डुक पुच्छशोथ :
100 ग्राम लाल टमाटर पर सेंधानमक और अदरक मिलाकर भोजन से पहले सेवन करने से लाभ मिलता है।

कृमिनाशक (पेट के कीड़े) :
लाल टमाटर को काटकर उसमें नमक तथा कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर खाने से पेट के कीड़े मरकर गुदामार्ग से बाहर निकल जाते हैं।
टमाटर के रस में हींग मिलाकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

मुंह के छाले :
जिन लोगों के मुंह में बार-बार छाले होते हों उन्हें टमाटर अधिक सेवन करना चाहिए।
टमाटर के रस को पानी में मिलाकर कुल्ला करें। इससे मुंह के छाले खत्म हो जाते हैं।
आधे गिलास टमाटर के रस को आधे गिलास पानी में मिलाकर कुल्ला करें। इससे मुंह के सभी रोग ठीक होते हैं।

खुजली :
2 चम्मच नारियल के तेल में 1 चम्मच टमाटर का रस मिलाकर इससे शरीर की मालिश करें। इसके बाद गर्म पानी से स्नान करें इससे खुजली खत्म हो जाती है।

बुखार :
बुखार के समय खून में हानिकारक पदार्थ बढ़ जाते हैं। टमाटर का सूप इन पदार्थों को बाहार निकाल देता है। इसलिए रोगी को इसका सेवन करने से बुखार कम हो जाता है। टमाटर शरीर की गर्मी को दूर करता है।

खांसी और बुखार :
टमाटर के टुकड़े को कलई वाले बर्तन में थोड़ी गर्म करें इसके बाद उस पर गोदन्ती की भस्म (राख) छिड़कर खाने से खांसी और ज्वर (बुखार) में लाभ मिलता है।

चर्मरोग (त्वचा) :
टमाटर की खटाई खून को साफ करती है। नींबू में इसी तरह के गुण पाए जाते हैं। टमाटर खट्टा होता है। यह खून को साफ करने वाला होता है। अत: टमाटर का सेवन करने से रक्तदोष दूर होकर त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।
त्वचा पर जब लाल चकत्ते उठे हो, मुंह की हडि्डयां सूज गई हों, दांतों से खून निकलता हो, कई प्रकार के चर्मरोग होने की संभावना हों जैसे- दाद या बेरी-बेरी आदि हो तो टमाटर का रस दिन में 3 से 4 बार पीने से लाभ मिलता है।
कुछ हप्ते तक रोज टमाटर का रस पीने से चर्मरोग ठीक हो जाते हैं।

पीलिया :
टमाटर का रस प्रतिदिन 1 गिलास पीने से पीलिया रोग ठीक होता है।

जीभ का मैलापन :
लगभग 100 ग्राम लाल टमाटर पर सेंधानमक मिलाकर खाने से जीभ का मैलापन नष्ट हो जाता है।

कमजोरी :
टमाटर का सूप प्रतिदिन पीने से भूख बढ़ने लगती है। इसके सेवन के फलस्वरूप खून की कमी दूर होती है तथा थकावट व कमजोरी भी खत्म हो जाती है और चेहरे पर रौनक आ जाती है।
टमाटर का रोजाना सेवन करने से खून की गंदगी दूर हो जाती है और खून साफ हो जाता है जिसके फलस्वरूप शरीर में खून तथा ताकत की वृद्धि भी होती है।

दिमागी कमजोरी :
टमाटर के सेवन से चिड़चिड़ापन और दिमागी कमजोरी खत्म होती है। यह मानसिक थकान को दूर करके मस्तिष्क को संतुलित बनाये रखता है।

मोटापा :
प्रतिदिन कच्चा टमाटर तथा प्याज को काटकर उसमें नींबू का रस व नमक मिलाकर खाने से मोटापन कम होने लगता है। टमाटर मोटे लोगों के लिए लाभकारी होता है क्योंकि यह विजातीय द्रव्यों, पदार्थ और आंतों में रुके भोजन को शरीर से बाहर निकालने में पूरी तरह सहायता करता है।
रतौंधी (रात को दिखाई न देना) : टमाटर का सेवन प्रतिदिन करने से आंखों की रोशनी में वृद्धि होती है। इसके सेवन से रतौंधी दूर हो जाती है।

गठिया (जोड़ों के दर्द) :
गठिया के रोगियों के लिए टमाटर खाना लाभदायक होता है।

मधुमेह (शूगर) :
मधुमेह की बीमारी में टमाटर का सेवन करना बहुत ही गुणकारी होता है। टमाटर की खटाई को सेवन करने से शरीर में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है। इसका सेवन प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में मुधमेह रोग ठीक हो जाता है।

सूखारोग (रिकेट्स) :
सूखारोग से ग्रस्त बच्चे को कच्चे लाल टमाटर का रस 4 बार प्रतिदिन 1 महीने तक पिलाने से बच्चा स्वस्थ्य हो जाता है।

हृदयरोग :
टमाटर के रस में अर्जुन के वृक्ष की छाल और चीनी मिलाकर खाने से हृदयशूल (हृदय का दर्द) और हृदय के रोग ठीक हो जाते हैं।

हडि्डयों की कमजोरी :
हडि्डयों की कमजोरी दूर करने के लियें टमाटर का सेवन उपयोगी है। टमाटर में अन्य सब्जियों की अपेक्षा चूना अधिक पाया जाता है। चूना हडि्डयों को मजबूज बनाता है। अत: टमाटर का सेवन प्रतिदिन करने से हडि्डयों की कमजोरी दूर हो जाती है।

मूत्ररोग :
टमाटर का सेवन प्रतिदिन करने से पेशाब से संबंधित रोग ठीक हो जाते हैं।

दिल का तेज धड़कना :
टमाटर का सूप बीज निकालकर 250 ग्राम लें और अर्जुन के पेड़ की छाल का चूर्ण 2 ग्राम लेकर दोनों को अच्छी तरह मिलाकर सुबह के समय सेवन करें। इससे लाभ मिलेगा।

खून की कमी (एनिमिया) :
टमाटर, पालक, और गाजर का रस आधा-आधा कप प्रतिदिन 40 दिन तक पीने से खून की कमी दूर हो जाती है।

टेसू के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

भारत में टेसू का पेड़ सभी स्थान पर पाए जाते हैं। प्राचीन समय से इसका प्रयोग उपचार के लिए औषधि के रूप में किया जाता है। टेसू के पेड़ 150 से 450 सेंटीमीटर तक ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते लगभग 6 इंच लम्बे होते हैं। इसकी छाल आधा इंच मोटी और खुरदरी होती है। गर्मियों के मौसम में इसकी छाल को काटने पर एक प्रकार का रस निकलता है जो जमने पर लाल गोंद जैसा पदार्थ बन जाता है। पलास के फूल चमकीले लाल व नारंगी रंग के होते हैं।

गुण (Property)

टेसू के फूल का सेवन करने से शरीर को शक्ति मिलती है और प्यास दूर होती है। इसके सेवन से शरीर में खून की वृद्धि होती है, पेशाब खुलकर आता है। कुष्ठरोग, मौसमी बुखार, जलन, खांसी, पेट में गैस बनना, वीर्य सम्बंधी रोग, संग्रहणी (दस्त के साथ आंव आना), आंखों के रोग, रतौंधी, प्रमेह (वीर्य विकार), बवासीर तथा पीलिया आदि रोग इसके सेवन करने से ठीक हो जाते हैं। यह बलगम (कफ) पित्त को कम करता है। पेट के कीड़े को खत्म करता है तथा खून के प्रवाह को कम करता है। इसके गोंद का सेवन करने से एसिडिटी दूर हो जाती है। यह पाचन की शक्ति को बढ़ाता है। इसके पत्ते को सूजन पर लगाने से सूजन कम हो जाती है। यह भूख को बढ़ाता है, लीवर को मजूबूती प्रदान करता है तथा बलगम को कम करता है।

टेसू की जड़ का प्रयोग रतौंधी (रात में दिखाई न देना) को ठीक करने, आंख की सूजन को नष्ट करने तथा आंखों की रोशनी को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

आंखों के रोग :
टेसू की ताजी जड़ का 1 बूंद रस आंखों में डालने से आंख की झांक, खील, फूली मोतियाबिंद तथा रतौंधी आदि प्रकार के आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।

नकसीर (नाक से खून आना) :
टेसू के 5 से 7 फूलों को रात भर ठंडे पानी में भिगोएं। सुबह के समय में इस पानी से निकाल दें और पानी को छानकर उसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर पी लें इससे नकसीर में लाभ मिलता है।

मिर्गी :
4 से 5 बूंद टेसू की जड़ों का रस नाक में डालने से मिर्गी का दौरा बंद हो जाता है।

गलगण्ड (घेंघा) रोग :
टेसू की जड़ को घिसकर कान के नीचे लेप करने से गलगण्ड मिटता है।

अफारा (पेट में गैस बनना) :
टेसू की छाल और शुंठी का काढ़ा 40 मिलीलीटर की मात्रा सुबह और शाम पीने से अफारा और पेट का दर्द नष्ट हो जाता है।

उदरकृमि (पेट के कीड़े) :
टेसू के बीज, कबीला, अजवायन, वायविडंग, निसात तथा किरमानी को थोड़े सी मात्रा में मिलाकर बारीक पीसकर रख लें। इसे लगभग 3 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ देने से पेट में सभी तरह के कीड़े खत्म हो जाते हैं। टेसू के बीजों के चूर्ण को 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से पेट के सभी कीड़े मरकर बाहर आ जाते हैं।

प्रमेह (वीर्य विकार) :
टेसू की मुंहमुदी (बिल्कुल नई) कोपलों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर गुड़ में मिलाकर लगभग 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से प्रमेह नष्ट हो जाता है।
टेसू की जड़ का रस निकालकर उस रस में 3 दिन तक गेहूं के दाने को भिगो दें। उसके बाद दोनों को पीसकर हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन (धातु का जल्दी निकल जाना) और कामशक्ति की कमजोरी दूर होती है

रक्तार्श (खूनी बवासीर) :
टेसू के पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) की राख लगभग 15 ग्राम तक गुनगुने घी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में आराम होता है। इसके कुछ दिन लगातार खाने से बवासीर के मस्से सूख जाते हैं।

अतिसार (दस्त) :
टेसू के गोंद लगभग 650 मिलीग्राम से लेकर 2 ग्राम तक लेकर उसमें थोड़ी दालचीनी और अफीम (चावल के एक दाने के बराबर) मिलाकर खाने से दस्त आना बंद हो जाता है।
टेसू के बीजों का क्वाथ (काढ़ा) एक चम्मच, बकरी का दूध 1 चम्मच दोनों को मिलाकर खाने के बाद दिन में 3 बार खाने से अतिसार में लाभ मिलता है।

सूजन :
टेसू के फूल की पोटली बनाकर बांधने से सूजन नष्ट हो जाती है।

सन्धिवात (जोड़ों का दर्द) :
टेसू के बीजों को बारीक पीसकर शहद के साथ दर्द वाले स्थान पर लेप करने से संधिवात में लाभ मिलता है।

बंदगांठ (गांठ) :
टेसू के पत्तों की पोटली बांधने से बंदगांठ में लाभ मिलता है।
टेसू के जड़ की तीन से पांच ग्राम छाल को दूध के साथ पीने से बंदगांठ में लाभ होता है।

अंडकोष की सूजन :
टेसू के फूल की पोटली बनाकर नाभि के नीचे बांधने से मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) के रोग समाप्त हो जाते हैं और अंडकोष की सूजन भी नष्ट हो जाती है।
टेसू की छाल को पीसकर लगभग 4 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सुबह और शाम देने से अंडकोष का बढ़ना खत्म हो जाता है।

हैजा :
टेसू के फल 10 ग्राम तथा कलमी शोरा 10 ग्राम दोनों को पानी में घिसकर या पीसकर लेप बना लें। फिर इसे रोगी के पेडू पर लगाएं। यह लेप रोगी के पेड़ू पर बार-बार लगाने से हैजा रोग ठीक हो जाता है।

वाजीकरण (सेक्स पावर) :
5 से 6 बूंद टेसू के जड़ का रस प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से अनैच्छिक वीर्यस्राव (शीघ्रपतन) रुक जाता है और काम शक्ति बढ़ती है।
टेसू के बीजों के तेल से लिंग की सीवन सुपारी छोड़कर शेष भाग पर मालिश करने से कुछ ही दिनों में हर तरह की नपुंसकता दूर होती है और कामशक्ति में वृद्धि होती है।

गर्भनिरोध :
टेसू के बीजों को जलाकर राख बना लें और इस राख से आधी मात्रा हींग को इसमें मिलाकर रख लें। इसमें से तीन ग्राम तक की मात्रा ऋतुस्राव (माहवारी) प्रारंभ होते ही और उसके कुछ दिन बाद तक सेवन करने से स्त्री की गर्भधारण करने की शक्ति खत्म हो जाती है।
टेसू के बीज दस ग्राम, शहद बीस ग्राम और घी 10 ग्राम सब को मिलाकर इसमें रुई को भिगोकर बत्ती बना लें और इसे स्त्री प्रसंग से 3 घंटे पूर्व योनिभाग में रखने से गर्भधारण नहीं होता है।

तुलसी के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

तुलसी सभी स्थानों पर पाई जाती है। इसे लोग घरों, बागों व मंदिरों के आस-पास लगाते हैं लेकिन यह जंगलों में अपने आप ही उग आती है। तुलसी की अनेक किस्में होती हैं परन्तु गुण और धर्म की दृष्टि से काली तुलसी सबसे अधिक महत्वपूर्ण व उत्तम होती है। आमतौर पर तुलसी की पत्तियां हरी व काली होती है। तुलसी का पौधा सामान्यत: 1 से 4 फुट तक ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 2 इंच लंबे अंडाकार, आयताकार, ग्रंथियुक्त व तीव्र सुगंध वाली होती है। इसमें गोलाकार, बैंगनी या लाल आभा लिए मंजरी (फूल) लगते हैं। तुलसी के पौधे आमतौर पर मार्च-जून में लगाए जाते हैं और सितम्बर-अक्टूबर में पौधे सुगंधित मंजरियों से भर जाते हैं। शीतकाल में इसके फूल आते हैं जो बाद में बीज के रूप में पकते हैं। तुलसी के पौधे में प्रबल विद्युत शक्ति होती है जो उसके चारों तरफ 200 गज तक प्रवाहित होती रहती है। जिसे घर में तुलसी का हरा पौधा होता है उस घर में कभी वज्रपात (आकाश से गिरने वाली बिजली) नहीं होता है।

हिंदू धर्म में तुलसी को अत्यधिक महत्व दिया गया है। तुलसी की पुजा सभी घरों में की जाती है और इसी लिए तुलसी घर-घर में लगाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस घर में तुलसी के पौधे होते हैं वहां मच्छर, सांप, बिच्छू व हानिकारक कीड़े आदि नहीं उत्पन्न होते।

तुलसी की पत्तियां हाथ जोड़कर या मन में तुलसी के प्रति सम्मान और श्रद्धा रखते हुए जितनी आवश्यकता हो उतनी ही तोड़नी चाहिए। इसकी पत्तियां तोड़ते समय ध्यान रखें कि मंजरी के आसपास की पत्तियां तोड़ने से पौधा और जल्दी बढ़ता है। अत: मंजरी के पास की पत्तियां ही तोड़ना चाहिए। पूर्णिमा, अमावस्या, संक्रान्तिकाल, कार्तिक, द्वादशी, रविवार, शाम के समय, रात एवं दिन के बारह बजे के आसपास तुलसी की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए। तेल की मालिश कराने के बाद बिना नहाए, स्त्रियों के मासिक धर्म के समय अथवा किसी प्रकार की अन्य अशुद्धता के समय तुलसी के पौधे को नहीं छूना चाहिए क्योंकि इससे पौधे जल्दी सूख जाते हैं। यदि पत्तों में छेद दिखाई देने लगे तो कंडे (छाणे) की राख ऊपर छिड़क देने से उत्तम फल मिलता है।

गुण (Property)

आयुर्वेद के अनुसार :आयुर्वेद के अनुसार तुलसी, हल्की, गर्म, तीखी कटु, रूखी, पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली होती है।

तुलसी कीडे़ को नष्ट करने वाली, दुर्गंध को दूर करने वाली, कफ को निकालने वाली तथा वायु को नष्ट करने वाली होती है। यह पसली के दर्द को मिटाने वाली, हृदय के लिए लाभकारी, मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट होना) को ठीक करने वाली, विष के दोषों को नष्ट करने वाली और त्वचा रोग को समाप्त करने वाली होती है। यह हिचकी, खांसी, दमा, सिर दर्द, मिर्गी, पेट के कीड़े, विष विकार, अरुचि (भोजन करने की इच्छा न करना), खून की खराबी, कमर दर्द, मुंह व सांस की बदबू एवं विषम ज्वर आदि को दूर करती है। इससे वीर्य बढ़ता है, उल्टी ठीक होती है, पुराना कब्ज दूर होता है, घाव ठीक होता है, सूजन पचती है, जोड़ों का दर्द, मूत्र की जलन, पेशाब करने में दर्द, कुष्ठ एवं कमजोरी आदि रोग ठीक होता है। यह जीवाणु नष्ट करती है और गर्भ को रोकती है।

यूनानी चिकित्सकों के अनुसार : यूनानी चिकित्सकों के अनुसार तुलसी बल बढ़ाने वाली, हृदयोत्तेजक, सूजन को पचाने वाली एवं सिर दर्द को ठीक करने वाली होती है। तुलसी के पत्ते बेहोशी में सुंघाने से बेहोशी दूर होती है। इसके पत्ते चबाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। तुलसी के सेवन से सूखी खांसी दूर होती है और वीर्य गाढ़ा होता है। इसके बीज दस्त में आंव व खून आना बंद करता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार : वैज्ञानिकों द्वारा तुलसी का रासायनिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसके बीजों में हरे व पीले रंग का एक स्थिर तेल 17.8 प्रतिशत की मात्रा में होता है। इसके अतिरिक्त बीजों से निकलने वाले स्थिर तेल में कुछ सीटोस्टेराल, स्टीयरिक, लिनोलक, पामिटिक, लिनोलेनिक और ओलिक वसा अम्ल भी होते हैं। इसमें ग्लाइकोसाइड, टैनिन, सेवानिन और एल्केलाइड़स भी होते हैं।

तुलसी के पत्ते व मंजरी से लौंग के समान गंधवाले पीले व हरे रंग के उड़नशील तेल 0.1 से 0.3 प्रतिशत की मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें यूजीनाल 71 प्रतिशत, यूजीनाल मिथाइल ईथर 20 प्रतिशत तथा कार्वाकोल 3 प्रतिशत होता है। इसके पत्तों में थोड़ी मात्रा में `केरोटीन` और विटामिन `सी` भी होती है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

चरक संहिता के अनुसार तुलसी के साथ दूध का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे कुष्ठ रोग होने की संभावना रहती है। कार्तिक के महीने में तुलसी के पत्ते पान के साथ सेवन करने से शारीरिक कष्ट हो सकता है। तुलसी का अधिक मात्रा में सेवन करना मस्तिष्क के लिए हानिकारक होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बुखार और जुकाम :
तुलसी की 65 पत्ते और 8 कालीमिर्च को 250 मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह पकाकर छान लें। फिर इसमें दूध व चीनी डालकर चाय की तरह पीएं। इससे बुखार ठीक होता है और जुकाम शांत होता है।
छाया में सुखाई हुई तुलसी की पत्ती 50 ग्राम, बनफ्सा, सौंफ, ब्राहमी बूंटी, लाल चंदन प्रत्येक 30 ग्राम, इलायची व दालचीनी 10-10 ग्राम। इस सभी को कूटकर पानी में मिलाकर चाय बना लें और फिर इसमें दूध व चीनी मिलाकर पीएं। इसके सेवन से सामान्य बुखार, जुकाम और छींके आदि दूर होती है।
तुलसी के 15 पत्ते और 4 कालीमिर्च मिलाकर खाने से जुकाम व बुखार ठीक होता है।

पित्त ज्वर :
पित्त ज्वर से पीड़ित रोगी को यदि अधिक घबराहट हो रही हो तो उसे तुलसी के पत्तों का शर्बत बनाकर पिलाना चाहिए। इससे पित्त ज्वर ठीक होता है।

बुखार (ज्वर) होना :
25 तुलसी के पत्ते, 15 कालीमिर्च, 10 ग्राम अदरक व 10 दालचीनी का 250 मिलीलीटर पानी में उबालकर दिन में 3-4 बार पीने से बुखार ठीक होता है।
20 तुलसी के पत्ते, 20 कालीमिर्च, 9 ग्राम अदरक और 2 ग्राम दालचीनी को 50 मिलीलीटर पानी में पकाकर चाय बना लें। इसमें 25 ग्राम मिश्री या चीनी मिलाकर दिन में 2-3 बार बुखार से पीड़ित रोगी को पिलाएं। इससे सामान्य बुखार दूर होता है।
तुलसी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से अधिक पसीना आकर बुखार उतर जाता है।
तुलसी के 8-10 पत्ते, आधा चम्मच लौंग, आधा चम्मच सोंठ का चूर्ण तथा 1 चम्मच कालीमिर्च का चूर्ण। इन सभी को 1 गिलास पानी में उबालें। जब पानी आधा बच जाए तो इसे छानकर थोड़ी-सी चीनी मिलाकर 3-3 चम्मच की मात्रा में दिन में 3-4 बार पिलाने से बुखार का आना ठीक होता जाता है।
तुलसी के 10 पत्ते, सोंठ 3 ग्राम, लौंग 5, कालीमिर्च 21 और स्वादानुसार चीनी डालकर उबालें। जब आधा पानी शेष रह जाए तो इसे छानकर रोगी को 3-4 बार पिलाएं। इससे बुखार में जल्दी आराम मिलता है।

चेचक (बड़ी माता) :
तुलसी के पत्तों के साथ अजवायन को पीसकर प्रतिदिन सेवन करने से चेचक का बुखार शांत होता है।
नीम की नई पत्तियां व तुलसी के पत्ते को मिलाकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण शहद या मिश्री के साथ मिलाकर सुबह के समय रोगी को दें। इससे चेचक के दाने कम होते हैं और जलन शांत होती है।
चेचक के बुखार से पीड़ित रोगी को तुलसी के बीज व धुली हुई अजवाइन को पीसकर रोगी को पिलाना लाभकारी होता है।
सुबह के समय रोगी को तुलसी के पत्तों का रस आधा चम्मच की मात्रा में पिलाने से चेचक के रोग में लाभ मिलता है।

निमोनिया (ठंड लगकर बुखार होना) :
20 तुलसी के पत्ते और 5 कालीमिर्च को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से निमोनिया रोग ठीक होता है।
20 तुलसी के पत्ते, 5 कालीमिर्च, 3 लौंग, 2 चुटकी हल्दी और एक गांठ अदरक। इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर एक कप पानी में उबालें और जब आधा कप पानी बच जाए तो इसे छानकर निमोनिया के बुखार से पीड़ित रोगी को पिलाएं। इसका सेवन दिन में 2 बार लगभग 10 दिनों तक करने से निमोनिया रोग ठीक होता है।
तुलसी की पत्तियों का रस, सोंठ, कालीमिर्च तथा पीपल का चूर्ण बनाकर सेवन कराने से निमोनिया में आराम मिलता है।

मियादी बुखार :
तुलसी के 10 पत्ते तथा आधा से 1 ग्राम जावित्री को पीसकर शहद के साथ मिलाकर रोगी को चटाने से मियादी बुखार में आराम मिलता है।
काली तुलसी, वन तुलसी और पोदीना बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें और यह काढ़ा दिन में 3 बार 3 से 7 दिनों मियादी बुखार से पीड़ित रोगी को पिलाएं। इससे बुखार उतर जाता है और रोग में आराम मिलता है।

विषम ज्वर :
तुलसी के पत्तों के रस में कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन कराने से विषम ज्वर में लाभ मिलता है।

शीतला (मसूरिका) ज्वर :
तुलसी के पत्तों का रस और अजवायन को पीसकर शरीर पर लेप करने से दबी हुई चेचक (माता) बाहर आ जाती है।

सन्निपात ज्वर :
तुलसी के ताजे पत्ते 25 ग्राम और कालीमिर्च 1 ग्राम को पानी के साथ पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर छाया में सूखा लें। यह 1-1 गोली पानी के साथ सुबह-शाम सेवन कराने से सान्निपात ज्वर में लाभ मिलता है।

हिचकी :
तुलसी के पत्तों का रस 2 चम्मच और शहद 1 चम्मच मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से हिचकी दूर होती है।

कान का दर्द :
तुलसी के पत्तों के रस को हल्का गर्म करके थोड़ा सा कपूर मिलाकर कान में 2-3 बूंद डालने से कान का दर्द समाप्त होता है।
कान से पीब बहने या कान में दर्द होने पर कुछ दिनों तक लगातार कान में तुलसी के पत्तों का रस गर्म करके डालना चाहिए। इससे कान का दर्द ठीक होता है और पीब का बहना बंद होता है।

कान की सूजन व गांठ :
तुलसी के पत्ते और एरण्ड के ताजे मुलायम पत्ते बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें और फिर इसमें थोड़ा सा नमक मिलाकर कान के पीछे लगाएं। इससे कान की सूजन दूर हो जाती है और गांठे ठीक होती है। इसका उपयोग कनफेडा रोग में भी किया जाता है।

तुलसी का तेल बनाने की विधि :
जड़ सहित पूरा तुलसी का पौधा लेते हैं। फिर इसे धोकर मिट्टी आदि साफ कर लेते हैं। फिर इसे कूटकर आधा किलो पानी और आधा किलो तिल का तेल मिलाकर धीमी-धीमी आंच पर पकाते हैं। पानी जल जाने और तेल शेष रहने पर मलकर छानकर सुरक्षित रख लेते हैं। यही तुलसी का तेल होता है।

बहरापन (कम सुनाई देना) :
तुलसी के पत्तों का रस गर्म करके प्रतिदिन कान में डालने से बहरापन दूर होता है।

कनफेड़ा :
तुलसी के पत्ते, अरण्ड के नए पत्ते और थोड़ा सा नमक एक साथ पीसकर लेप करें। इसका लेप करने से कान की फुन्सियां दूर होती है।

दाद :
तुलसी के पत्तों का रस और नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर दिन में 2 से 3 बार दाद पर लगाने से दाद ठीक होता है। इसके उपयोग से खाज-खुजली, मुंहासे, काले धब्बे, झांई आदि त्वचा के रोग ठीक होते हैं।
दाद से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन तुलसी के पत्तों का रस 12 मिलीलीटर की मात्रा में पीना चाहिए।
तुलसी के पत्तों का रस दाद पर लगाने से दाद ठीक होता है।
तुलसी के 100 पत्ते और चौथाई चम्मच नमक को मिलाकर पीस लें और इसमें आधा नींबू निचोड़कर दाद पर लेप करें। इससे दाद व खाज-खुजली ठीक होती है।
तुलसी के 100 पत्ते और लहसुन की 5 कली को एक साथ पीसकर दाद पर लगाने से दाद ठीक होता है।
दाद को साफ करके तुलसी के पत्ते को पीसकर लेप करने से 15 दिनों में दाद नष्ट हो जाता है।

उल्टी होना :
तुलसी के पत्तों का रस और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर पिलाने से उल्टी बंद होती है।
तुलसी के पत्तों का रस पिलाने से उल्टी बंद हो जाती है। पेट में यदि कीड़े होने के कारण उल्टी आती हो तो उसे तुलसी के पत्तों का रस पिलाना चाहिए।
शहद और तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर चाटने से चक्कर आना व उल्टी बंद होती है।
तुलसी का रस, पोदीना और सौंफ का रस मिलाकर पीने से उल्टी बंद होती है।
10 ग्राम तुलसी के पत्तों को 1 ग्राम छोटी इलायची के साथ पीस लें फिर इसमें 10 ग्राम चीनी मिलाकर सेवन करें। इससे पित्त के कारण होने वाली उल्टी दूर हो जाती है।

दांतों का दर्द :
तुलसी के पत्ते, कालीमिर्च और कपूर को पीसकर दर्द वाले दांतों के बीच दबाकर रखने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
कालीमिर्च और तुलसी के पत्तों को पीसकर गोली बना लें और यह गोली दांत के नीचे रखने से दांतों का दर्द नष्ट होता है।
तुलसी के पत्तों का रस पानी में मिलाकर हल्का गर्म करके कुल्ला करें। इससे दांतों का दर्द, मसूढ़ों से खून आना व दांतों के अन्य रोग समाप्त होते हैं।
तुलसी के पत्तों का रस, हल्दी व सेंधानमक मिलाकर पानी में मिला लें और इससे कुल्ले करें। इससे मुंह, दांत तथा गले के सभी विकार दूर होते हैं।

गुहेरी (आंखों की पलकों पर फुंसियां होना) :
आंखों की पलकों पर फुंसियां होने पर तुलसी के पत्ते के रस में लौंग घिसकर लगाएं। इससे फुंसियां समाप्त होती है।

वीर्यवृद्धि (धातु में वृद्धि) :
तुलसी के बीजों का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में पुराने गुड़ के साथ मिलाकार खाएं और इसके बाद 1 कप दूध पीएं। इसका सेवन नियमित रूप से सुबह-शाम नियमित रूप से कुछ महीनों तक लेने से सेक्स सम्बंधी धातु की वृद्धि होती है। इससे नपुंसकता (नामर्दी) और शीघ्रपतन (धातु का शीघ्र निकल जाना) की समस्याएं दूर हो जाती है।
धातुदुर्बलता (वीर्य की कमजोरी) होने पर तुलसी के बीज 60 ग्राम और मिश्री 75 ग्राम को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण प्रतिदिन 3 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ सेवन करें। इससे धातु की कमजोरी दूर होती है।

स्वप्नदोष (नाईटफाल) :
तुलसी की जड़ का काढ़ा 4-5 चम्मच की मात्रा में रात को सोने से पहले नियमित रूप से कुछ सप्ताह तक पीने से स्वप्नदोष से छुटकारा मिलता है।

शीघ्रपतन (धातु का जल्दी निकल जाना) :
तुलसी की जड़ या बीज चौथाई चम्मच की मात्रा में पानी में रात को भिगोकर रख दें और सुबह उसका सेवन करें। इससे शीघ्रपतन दूर होकर वीर्य पुष्ट (गाढ़ा) होता है।