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टिण्डा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

टिण्डा एक प्रकार की सब्जी होती है। टिण्डा में कैलोरी की कम मात्रा पाई जाती है तथा इसमें कम से कम 94 प्रतिशत जल तत्त्व पाया जाता है जिसमें विटामिन सी, सोडियम और क्लोराइड का एक अच्छा स्रोत होता है। टिण्डा की सब्जी बीमारी की स्थिति में खाना अधिक लाभदायक होता है।

प्रकृति (Nature)

टिण्डा की प्रकृति शीतल (ठण्डी) और तर होती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

  1. बुखार (ज्वर) : हल्के ज्वर में टिण्डा की सब्जी का सेवन करने से ज्वर ठीक हो जाता है।

    2. उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर) : टिण्डा उच्च रक्तचाप को कम करता है व मूत्र (पेशाब) लाता है।

    3. शक्तिवर्धक (ताकत बढ़ाने के लिए) : टिण्डा सिर और शरीर को तुरंत शक्ति प्रदान करता है एवं शरीर को मोटा-ताजा और शक्तिशाली बनाता है।

    4. मूत्राशय की पथरी : टिण्डे को पीसकर 50 मिलीलीटर रस निकाल लें और इसमें 0.72 ग्राम जवाखार मिलाकर गुनगुना करके कुछ दिनों तक सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है।

ताड़ के वृक्ष के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

ताड़ (PALMYRA PALM)  दोषों को दूर करने वाला :

ताड़ का वृक्ष बाहर से लाल व अंदर से सफेद रंग का होता है। इसका स्वाद मीठा व बदबूदार होता है। ताड़ का वृक्ष सीधा, लम्बा और मिस्ल नारियल के वृक्ष के समान होता है। ताड़ के वृक्ष में डालियां नहीं होती है। ताड़ के तने से ही पत्ते निकलते हैं। ताड़ नर तथा नारी दो प्रकार के होते हैं। नर वृक्ष पर फूल लगते हैं, नारी वृक्ष पर नारियल की तरह गोल फल लगते हैं। इसके तने को शुरू में ही काटकर जो रस निकाला जाता है, वही ताड़ी के नाम से प्रसिद्ध है।

गुण (Property)

ताड़ संभोग क्रिया की शक्ति को बढ़ाता है व रक्त विकार (खून के दोष) को खत्म करता है। यह शरीर को मोटा व ताकतवर बनाता है। इससे एक प्रकार की शराब बनाई जाती है जिसे ताड़ी के नाम से जाना जाता है। ताड़ी शरीर को बलवान बनाती है तथा नशा लाती है व कफ को नष्ट करती है। इसका सिरका पाचक होता है तथा यह प्लीहा के विकारों को नष्ट करता है। इसका पका हुआ फल पित्त, रक्त तथा कफ को बढ़ाने वाला, मूत्रवर्द्धक (पेशाब को बढ़ाने वाला), तन्द्रा (नींद को लाने वाला) तथा वीर्य की मात्रा को बढ़ाने वाला होता है। इसकी ताजी ताड़ी हल्की, चिकनी तथा मीठी होती है। यह नशा लाने वाली, कफ को बढ़ाने वाली व दस्त लाने वाली होती है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

यह देर में हजम होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

मानसिक उन्माद (पागलपन):
लगभग 14 से 25 मिलीलीटर ताड़ के पत्तों का रस दिन में 2 बार सेवन करने से मानसिक उन्माद, बेहोशी और प्रलाप आदि रोगों में लाभ मिलता है।

उदर रोग (पेट के रोग):
ताड़ के 1 ग्राम फल की जटा भस्म को गुड़ के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से पेट के रोग ठीक हो जाते हैं।

जलोदर (पेट में पानी भर जाना):
ताड़ के फूलों के गुच्छे से प्राप्त रस को निकालकर पीने से पेशाब खुलकर आता है और जलोदर रोग में लाभ मिलता है।

नष्टार्त्तव (मासिकधर्म बंद हो जाना):
लगभग 14 से 28 मिलीलीटर ताड़ के फल की जटा का क्वाथ (काढ़ा) दिन में सुबह और शाम सेवन करने से आराम मिलता है।

डकार आना:
ताड़ के कच्चे गूदे का पानी पीने से डकार, वमन (उल्टी) और उबकाई आना बंद हो जाती है।

हिचकी:
ताड़ के कच्चे बीजों को दूध के साथ सेवन करने से हिचकी दूर होती है।

कालाजार :
हल्के-हल्के बुखार के साथ प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि हो तो ताड़ के फल की जटा भस्म लगभग 3-6 ग्राम की मात्रा सुबह और शाम को रोगी को सेवन कराएं इससे उसका बुखार उतर जाएगा।

अन्ननली में जलन:
ताड़ के फल की जटा भस्म 3 से 6 ग्राम की मात्रा सुबह और शाम सेवन करने से अम्लपित्त के कारण होने वाली अन्ननली की जलन ठीक हो जाती है।

यकृत का बढ़ना:
ताड़ के फल की जटा भस्म 3-6 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम सेवन करने से यकृत वृद्धि और टाइफाइड के बुखार में लाभ मिलता है।

उपदंश (फिरंग):
ताड़ी के हरे पत्तों का रस पीने से सूजन और घाव मिट जाता है।

त्रिकुटा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

पीपल, मिर्च और सोंठ के चूर्ण को त्रिकुटा कहते है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

  1. आभिन्यास बुखार : त्रिकुटु, त्रिफला तथा मुस्तक जड़, कटुकी प्रकन्द, निम्ब छाल, पटोल पत्र, वासा पुष्प व किरात तिक्त के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) और गुडूची को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की बराबर मात्रा लेकर काढ़ा बना लें। इसे दिन में 3 बार लेने से आभिन्यास बुखार ठीक हो जाता है।

    2. सन्निपात बुखार : त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च और पीपल), त्रिफला (हरड़, बहेड़ा और आंवला), पटोल के पत्तें, नीम की छाल, कुटकी, चिरायता, इन्द्रजौ, पाढ़ल और गिलोय आदि को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसका सेवन सुबह तथा शाम में करने से सन्निपात बुखार ठीक हो जाता है।

    3. खांसी : त्रिकुटा के बारीक चूर्ण में शहद मिलाकर चाटने से खांसी ठीक हो जाती है।

    4. कब्ज : त्रिकुटा (सोंठ, काली मिर्च और छोटी पीपल) 30 ग्राम, त्रिफला (हरड़, बहेड़ा और आंवला) 30 ग्राम, पांचों प्रकार के नमक 50 ग्राम, अनारदाना 10 ग्राम तथा बड़ी हरड़ 10 ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 6 ग्राम रात को ठंडे पानी के साथ लेने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।

    5. जिगर (यकृत) का रोग : त्रिकुट, त्रिफला, सुहागे की खील, शुद्ध गन्धक, मुलहठी, करंज के बीज, हल्दी और शुद्ध जमालगोटा को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पिसकर चूर्ण बना लें। इसके बाद भांगरे के रस में मिलाकर 3 दिनों तक रख दें। इसे बीच-बीच में घोटते रहे। फिर इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें और इसे छाया में सुखा लें। इसमें से 1-1 गोली खाना-खाने के बाद सेवन करने से यकृत के रोग में लाभ मिलता है।

    6. जलोदर (पेट में पानी भर जाना) : त्रिकुटा, जवाखार और सेंधानमक को छाछ (मट्ठा) में मिलाकर पीने से जलोदर रोग ठीक हो जाता है।

    7. पेट का दर्द : त्रिकुटा, चीता, अजवायन, हाऊबेर, सेंधानमक और कालीमिर्च को पीसकर चूर्ण मिला लें। इसे छाछ (मट्ठे) के साथ सेवन करने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।

    8. पीलिया : त्रिकुटा, चिरायता, बांसा, नीम की छाल, गिलोय और कुटकी को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। फिर इसे छानकर इसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर सेवन करें। इससे पीलिया कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

    9. बच्चों के रोग : त्रिकुटा, बड़ी करंज, सेंधानमक, पाढ़ और पहाड़ी करंज को पीसकर इसमें शहद और घी मिलाकर बच्चों को सेवन कराने से `सूखा रोग´ (रिकेट्स) ठीक हो जाता है।

तोरई के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

तोरई एक प्रकार की सब्जी होती है और इसकी खेती भारत में सभी स्थानों पर की जाती है। पोषक तत्वों के अनुसार इसकी तुलना नेनुए से की जा सकती है। वर्षा ऋतु में तोरई की सब्जी का प्रयोग भोजन में अधिक किया जाता है।

गुण (Property)

इसकी प्रकृति ठंडी और तर होती है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

तोरई कफ तथा वात उत्पन्न करने वाली होती है अत: जरूरत से अधिक इसका सेवन करना हानिकारक हो सकता है। तोरई पचने में भारी और आमकारक है। वर्षा ऋतु में तोरई का साग रोगी व्यक्तियों के लिए लाभदायक नहीं होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पथरी :
तोरई की बेल गाय के दूध या ठंडे पानी में घिसकर रोज सुबह के समय में 3 दिन तक पीने से पथरी गलकर खत्म होने लगती है।

फोड़े की गांठ :
तोरई की जड़ को ठंडे पानी में घिसकर फोड़ें की गांठ पर लगाने से 1 दिन में फोड़ें की गांठ खत्म होने लगता है।

चकत्ते :
तोरई की बेल गाय के मक्खन में घिसकर 2 से 3 बार चकत्ते पर लगाने से लाभ मिलता है और चकत्ते ठीक होने लगते हैं।

बवासीर :
तोरई सब्जी खाने से कब्ज की समस्या दूर होने लगती है जिसके फलस्वरूप बवासीर ठीक होने लगती है।

पेशाब की जलन :
तोरई पेशाब की जलन और पेशाब की बीमारी को दूर करने में लाभकारी होती है।

आंखों के रोहे तथा फूले :
आंखों में रोहे (पोथकी) हो जाने पर तोरई (झिगनी) के ताजे पत्तों का रस को निकालकर रोजाना 2 से 3 बूंद दिन में 3 से 4 बार आंखों में डालने से लाभ मिलता है।

बालों को काला करना :
तुरई के टुकड़ों को छाया में सुखाकर कूट लें। इसके बाद इसे नारियल के तेल में मिलाकर 4 दिन तक रखे और फिर इसे उबालें और छानकर बोतल में भर लें। इस तेल को बालों पर लगाने और इससे सिर की मालिश करने से बाल काले हो जाते हैं।

बवासीर (अर्श) :
तोरई की सब्जी खाने से कब्ज ठीक होती है और बवासीर में आराम मिलता है।
करवी तोरई को उबाल कर उसके पानी में बैंगन को पका लें। बैंगन को घी में भूनकर गुड़ के साथ भर पेट खाने से दर्द तथा पीड़ा युक्त मस्से झड़ जाते हैं।

योनिकंद (योनिरोग) :
कड़वी तोरई के रस में दही का खट्टा पानी मिलाकर पीने से योनिकंद के रोग में लाभ मिलता हैं।

गठिया (घुटनों के दर्द में) रोग:
पालक, मेथी, तोरई, टिण्डा, परवल आदि सब्जियों का सेवन करने से घुटने का दर्द दूर होता है।

पीलिया :
कड़वी तोरई का रस दो-तीन बूंद नाक में डालने से नाक द्वारा पीले रंग का पानी झड़ने लगेगा और एक ही दिन में पीलिया नष्ट हो जाएगा।

कुष्ठ (कोढ़) :
तोरई के पत्तों को पीसकर लेप बना लें। इस लेप को कुष्ठ पर लगाने से लाभ मिलने लगता है।
तोरई के बीजों को पीसकर कुष्ठ पर लगाने से यह रोग ठीक हो जाता है।

गले के रोग :
कड़वी तोरई को तम्बाकू की तरह चिल्म में भरकर उसका धुंआ गले में लेने से गले की सूजन दूर होती है।

उल्टी कराने के लिए :
तोरई (झिमनी) के बीजों को पीसकर रोगी को देने से उल्टी और दस्त होने लगते हैं।

तिल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

तिल का उपयोग भोजन में सर्दी के मौसम में अधिक होता है। रंग भेद से तिल तीन प्रकार का होता है। लाल, काला और सफेद। औषधि के रूप में काले तिल का उपयोग अच्छा माना जाता है। रेबड़ी बनाने के लिए तिल तथा चीनी का उपयोग किया जाता है। भारत में तिल की खेती अधिक मात्रा में की जाती है। तिल की खेती स्वतंत्र रूप में या रूई, अरहर, बाजरा तथा मूंगफली आदि किसी भी फसल के साथ मिश्रित रूप में की जाती है। तिल उत्पादन के क्षेत्र में भारत का प्रमुख स्थान है।

तिल का तेल – तिल का तेल भारी, तर तथा गर्म होता है। यह शरीर में ताकत की वृद्धि करने वाला, मल को साफ करने वाला, शरीर के रंग को निखारने वाला, संभोग करने की शक्ति को बढ़ाने वाला, तिल का तेल कफ, वायु और पित्त को नष्ट करने वाला, रक्तपित्त (खूनी पित्त) को दूर करने वाला, गर्भाशय को साफ और शुद्ध करने वाला, भूख को बढ़ाने वाला तथा बुद्धि को तेज करने वाला होता है। मधुमेह (डायबिटिज़), कान में दर्द, योनिशूल तथा मस्तिष्क के दर्द को समाप्त करने वाला होता है।

गुण (Property)

तिल कफ, पित्त को नष्ट करने वाला, शक्ति को बढ़ाने वाला, सिर के रोगों को ठीक करने वाला, दूध को बढ़ाने वाला, व्रण (जख्म), दांतों के रोग को ठीक करने वाला तथा मूत्र के प्रवाह को कम करने वाला होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने तथा वात को नष्ट करने में लाभकारी होता है। काला तिल अच्छा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। विद्वानों के अनुसार सफेद तिल मध्यम गुण वाला और लाल तिल कम गुणशाली होता है। तिल में पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करने से वीर्य की कमी दूर होती है तथा पेट में वायु बनने की शिकायत दूर होती है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

गर्भवती स्त्री को तिल नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि गर्भ गिरने की आशंका रहती है।

तम्बाकू के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

तम्बाकू एक तरह से क्षुप (समूह) जातीय वनस्पति है। तम्बाकू का पौधा ज्यादा से ज्यादा 90 सेंटीमीटर ऊंचा होता है। अधिकतर लोग तम्बाकू के पत्तों का सेवन बीड़ी तथा सिगरेट आदि में करते हैं। इसका उपयोग धूम्रपान में करने में अधिक किया जाता है। धूम्रपान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।

गुण (Property)

यह उल्टी लाने वाली होती है तथा श्वास, वात और सूजन को खत्म करती है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

तम्बाकू का ज्यादा मात्रा में खाने से हृदय व श्वास पर हानिकारक प्रभाव होता है। तम्बाकू के सेवन से कई प्रकार के रोग व मृत्यु हो सकती है। तम्बाकू खाने पर चक्कर आने लगते हैं। तम्बाकू को ज्यादा खाने से संभोग क्रिया की शक्ति कम हो जाती है। बालक व युवकों को तम्बाकू पीना और खाना नहीं चाहिए क्योंकि इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

अंडकोष की सूजन :
तंबाकू के पत्तों पर थोड़ा-सा तिल का तेल लगाकर हल्का सा गर्म करके अंडकोषों पर बांधने से सूजन दूर हो जाती है।

दांतों का दर्द :
तम्बाकू की पत्तियों को नमक के साथ बारीक पीसकर रख लें। इस मंजन से प्रतिदिन सुबह-शाम मुंह धोने से दांतों का दर्द ठीक हो जाता है तथा इससे मसूढ़ों की सूजन भी खत्म होती है।
तम्बाकू का मंजन बनाकर मंजन करने से दंतशूल (दांतों का दर्द) नष्ट होता है।

दमा (श्वांसरोग) :
तम्बाकू को जलाकर राख बना लें। इस राख की 250 मिलीग्राम की मात्रा को पान के पत्ते में रखकर प्रतिदिन खाने से दमा रोग ठीक हो जाता है।

खांसी :
पीने वाली तम्बाकू की लकड़ी को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर लें। इस राख की 12 मिलीग्राम मात्रा को 2 मिलीग्राम कालानमक के साथ पीसकर सेवन करने से तेज से तेज खांसी और काली खांसी भी ठीक हो जाती है।

बालों का झड़ना (गंजेपन ) :
तम्बाकू 20 ग्राम तथा कनेर के पत्ते 20 ग्राम को जलाकर राख बना लें और इस राखा को 100 मिलीलीटर सरसों के तेल में मिलाकर गर्म करें। इसके बाद तेल को ठंडा करके सिर में लगायें इससे बाद झड़ना रुक जाता है।

रतौंधी (रात को दिखाई न देना):
देशी तम्बाकू के सूखे पत्तों को पीसकर कपड़े मे छानकर सलाई से सुबह और शाम आंखों में लगाएं। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रतौंधी में लाभ मिलता है।

कमर दर्द :
तंबाकू के पत्तों पर हल्का-सा तेल लगाकर कमर पर बांधने से शीत लहर से उत्पन्न कमर का दर्द ठीक हो जाता है।

धनुष्टंकार :
तम्बाकू के पत्ते को पानी में उबालकर पानी को छानकर पिचकरी द्वारा रोगी के मलद्वार में हल्का पहुंचाया जाए तो धनुष्टंकार में लाभ मिलता है।

गठिया (जोड़ों का दर्द) :
3 लीटर पानी में 1 किलो तम्बाकू भिगो दें। भिगोए हुए पानी में तम्बाकू मसलकर छान लें, फिर इसमें तिल का तेल मिलाकर रोजाना सुबह-शाम मालिश करने से गठिया का दर्द दूर हो जाता है।

पीलिया (पाण्डु) :
तम्बाकू का धूम्रपान करने से पाण्डु रोग में शीघ्र लाभ मिलता है।

बच्चों के अंडकोष की सूजन :
काली तम्बाकू के पत्तें पर एरण्डी का तेल लगाकर इसे आग से सेंके फिर इसे अंडकोष पर बांधे। इस प्रकार से उपचार करने पर अंडकोष की सूजन ठीक हो जाती है।

शरीर में सूजन :
शरीर पर सूजन होने पर तम्बाकू के पत्ते को आग पर सेंककर इससे शरीर की सूजन युक्त स्थान पर सिंकाई करें। ऐसा करने से शरीर के किसी भी स्थान की सूजन दूर हो जाती है।

तरबूज के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

तरबूज गर्मियों के मौसम में होने वाला फल है। तरबूज का फल आकार में गोलाकार  होता है। यह काफी भारी होता है। तरबूज में बीज पाए जाते हैं। इसे खाते समय इसके बीजों को निकाल देना चाहिए। गर्मियों के मौसम में इसके सेवन करने से प्यास शांत होती है। शरीर में गर्मी के प्रभाव को दूर करने के लिए इसका सेवन करना अधिक लाभदायक होता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में शिथिलता आ जाती है इस कारण कुछ लोग इसे अक्ल यानि बुद्धि को नष्ट करने वाला मानते हैं। भोजन करने के एक घंटे बाद इसका सेवन करना लाभकारी होता है।

गुण (Property)

यह वीर्य को बढ़ाने वाला होता है।

तरबूज में पाए जानेवाले तत्त्व

तत्त्व मात्रा (ग्राम में)
कार्बोहाइड्रेट 3.8 प्रतिशत
विटामिन-ई लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम।
कैल्शियम 0.1 प्रतिशत
नियासिन लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग /100 ग्राम।
पानी 95.7 प्रतिशत
प्रोटीन 0.1 प्रतिशत
वसा 0.2 प्रतिशत
विटामिन-बी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग प्रति 100 ग्राम लौह।
फास्फोरस 0.01 प्रतिशत

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

तरबूज का अधिक मात्रा में सेवन करना हानिकारक होता है क्योंकि इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से मस्तिष्क में शिथिलता आ जाती है। तरबूज का रस दमे के रोगियों को नहीं पीना चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

सिर दर्द :
सिर में दर्द गर्मी के कारण हो तो तरबूज के गूदा रस पीए इससे दर्द ठीक हो जाता है।
मिश्री को तरबूज के रस में मिलाकर पीने से सिर दर्द खत्म हो जाता है।

वहम (भ्रम) और पागलपन :
तरबूज का 1 कप रस, 1 कप गाय का दूध व मिश्री 30 ग्राम मिलाकर 1 सफेद कांच की बोतल में भर दें। इस बोतल को रात के समय में खुले आकाश (चांदनी) में किसी सुरक्षित जगह पर रख दें। सुबह के समय में इसे रोगी को पिलाएं। इस प्रयोग को लगातार 21 दिन तक करते रहने से पागलपन व वहम दूर हो जाता है।
10 ग्राम तरबूज के बीजों को छीलकर उसकी गिरी को निकाल लें। इस गिरी को शाम के समय में पानी में डालकर रख दें और फिर सुबह में इन गिरियों को जल में पीसकर थोड़ी सी मिश्री मिलाकर सेवन करने से उन्माद या पागलपन ठीक हो जाता है।

जोड़ों का दर्द:
तरबूज का रस पीने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।

मन (उल्टी) होना :
भोजन के बाद अगर कलेजे में जलन होकर उल्टी आ रही हो तो सुबह-सुबह 1 गिलास तरबूज का रस मिश्री मिलाकर पीने से लाभ मिलता है।

कब्ज :
तरबूज कुछ दिनों तक सेवन करने से पेट की कब्ज की समस्या खत्म हो जाती है।

ज्वर (बुखार) :
यदि धूप में चलने के कारण ज्वर (बुखार) हो जाए तो तरबूज का सेवन करने से बुखार ठीक हो जाता है।

सूखी खांसी :
सूखी खांसी होने पर तरबूज का सेवन करने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है।

इन्द्रिय (लिंग) में घाव और मूत्र में जलन :
तरबूत का रस किसी बर्तन में लेकर उसे रात के समय में ओस में रख दें और सुबह के समय में इसमें चीनी मिलाकर पी जाएं। इसका सेवन प्रतिदिन करने से लिंग का घाव और मूत्र की जलन नष्ट हो जाती है।

नंपुसकता (नामर्दी) :
तरबूज के बीजों की गिरी 6 ग्राम तथा मिश्री 6 ग्राम को एक साथ चबाकर खाने और ऊपर से दूध पीने से शरीर में ताकत की वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप नपुंसकता खत्म होती है।

मुंह के छाले :
तरबूज के छिलके जलाकर उसकी राख को छालों पर लगाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

पेशाब करने में कष्ट (मूत्रकृच्छ या जलन) और पथरी :
तरबूज के बीजों को गर्म पानी मे पीसकर छानकर पी लें। इससे पेशाब करने पर होने वाले कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके सेवन से पथरी गलकर पेशाब के द्वारा बाहर निकल जाती है।
तरबूज की जड़ को ताजे पानी में पीसकर उसे तीन बार छानकर कम से कम 10 दिनों तक रोज खायें इससे पथरी गलकर बाहर निकल जाती है।

जलोदर (पेट में पानी जमा होना) :
तरबूजा को खाने से पेशाब खुलकर आता है जिसके फलस्वरूप जलोदर ठीक हो जाता है।

एलर्जी :
यदि गर्मियों का मौसम चल रहा हो तो तरबूज के रस में कालानमक डालकर पीने से एलर्जी दूर होती है।

उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर) :
तरबूज के बीज की गिरी और सफेद खसखस अलग-अलग पीसकर बराबर मात्रा मिलाकर रख लें। फिर इसमें से 3 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम खाली पेट पानी के साथ लें। इससे रक्तचाप कम होता है और रात में नींद अच्छी आती है। सिर दर्द भी दूर हो जाता है। इसके सेवन से रक्तवाहिनियों की कठोरता घटने लगती है और खून की खराबी भी दूर होती है व रक्तवाहिनियां मुलायम और लचकीली बनने लगती है। इसका प्रयोग आवश्यकतानुसार चार से पांच सप्ताह तक करना चाहिए।
तरबूज के बीजों के रस में एक तत्व होता है जिसे कुरकुर पोसाइट्रिन कहते हैं। इसका असर गुर्दो पर भी पड़ता है। इससे उच्च रक्तचाप कम हो जाता है। इसके अलावा टखनों के पास की सूजन भी ठीक हो जाती है।
1 कप तरबूज के रस में 1 चुटकी सेंधानमक डालकर पीने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) कम होता है।

होंठ फटना :
तरबूजे के बीज को पानी में पीसकर होंठों अथवा जीभ पर मलने से `होठ तथा जीभ का फटना` ठीक हो जाता है।

शरीर में सूजन :
लगभग 50 मिलीलीटर तरबूज के रस में लगभग 2 ग्राम कालीमिर्च के चूर्ण को मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से सूजन (शोथ) दूर हो जाती है।
तरबूज के बीजों का रस या जूस पीने से गुर्दों की खराबी के कारण होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।

उड़द की दाल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

उड़द की दाल का उत्पादन पूरे भारत में होता है। इसकी दाल का रंग सफेद होता है। इसकी दाल व बाजरे की रोटी मेहनती लोगों का प्रिय भोजन है। यह पौष्टिक और शीतल (ठण्डा) होती है। उड़द पाक अपने पौष्टिक गुणों के कारण ज्यादा ही प्रसिद्ध है। इसकी दाल वायुकारक होती है। इसके इस दोष को दूर करने के लिए उड़द में लहसुन और हींग पर्याप्त मात्रा में डालना चाहिए। उड़द खिलाने से पशु स्वस्थ रहते हैं। दूध देने वाली गाय या भैंस को उड़द खिलाने से दूध अधिक मात्रा में देती हैं। इसके पत्तों और डण्डी का चूरा भी पशुओं को खिलाया जाता है।

गुण (Property)

उड़द एक पौष्टिक दाल है। यह भारी, रुचिकारक, मल (पैखाना) रोगी के लिए लाभकारी, प्यास बढ़ाने वाला, बल बढ़ाने वाला, वीर्यवर्धक, अत्यन्त पुष्टिदायक, मल-मूत्र को मुक्त करने वाला, दूध पिलाने वाली माता का दूध बढ़ाने वाला और मोटापा बढ़ाने वाला है। उड़द पित्त और कफ को बढ़ाता है। बवासीर, गठिया, लकवा और दमा में भी इसकी दाल का सेवन करना लाभदायक है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

शक्तिदायक:
उड़द में शक्ति को बढ़ाने (शक्तिवर्द्धक) का गुण है। उड़द का प्रयोग किसी भी तरह से करने पर शक्ति बढ़ती है। रात्रि को 30 ग्राम उड़द की दाल पानी में भिगो दें और सुबह इसे पीसकर दूध व मिश्री के साथ मिलाकर पीने से मस्तिष्क व वीर्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। ध्यान रहें : इसे अच्छी पाचन शक्ति वाले ही इस्तेमाल करें। छिलके सहित उड़द खाने से मांस बढ़ता है। उड़द दाल में हींग का छौंका देने से इसके गुणों में अधिक वृद्धि हो जाती है। भीगी हुई उड़द दाल को पीसकर एक चम्मच देशी घी व आधा चम्मच शहद में मिलाकर चाटने के बाद मिश्री मिला हुआ दूध पीना लाभदायक है। इसका प्रयोग लगातार करते रहने से पुरुष घोड़े की तरह ताकतवर हो जाता है।
उड़द दाल को पानी में भिगोकर और उसे पीसकर उसमें नमक, कालीमिर्च, हींग, जीरा, लहसुन और अदरक मिलाकर उसके `बड़े´ (एक पकवान) बनायें। ये बड़े घी या तेल में डालकर खाने से वायु, दुर्बलता, बेस्वाद (अरुचि), टी.बी. व दर्द दूर हो जाता है। उड़द दाल को पीसकर दही में मिलाकर व तलकर सेवन से पुरुषों के बल और धातु में बढ़ोत्तरी होती है।
उड़द दाल का आटा 500 ग्राम, गेहूं का आटा 500 ग्राम व पीपर का चूर्ण 500 ग्राम लें और उसमें 100 ग्राम घी मिलाकर चूल्हे पर पकाकर 40-40 ग्राम वजन का लड्डू बना लें। रात को सोने के समय एक लड्डू सेवन करके ऊपर से 250 मिलीलीटर दूध पी लें। इसके प्रयोग में खट्टे, खारे व तेल वाले चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए जिससे शरीर क्षीण नहीं होता और शारीरिक ताकत बढ़ती है।

सफेद दाग:
उड़द के आटे को भिगोकर व पीसकर सफेद दाग पर नित्य चार महीने तक लगाने से सफेद दाग खत्म हो जाते हैं।
काले उड़द को पीसकर सफेद दागों पर दिन में 3-4 बार दागों में लगाने से सफेद दागों का रंग वापस शरीर के बाकी रंग की तरह होने लगता है।

गंजापन :
उड़द दाल को उबालकर पीस लें। रात को सोने के समय सिर पर लेप करें। इससे गंजापन धीरे-धीरे दूर होकर नये बाल आने शुरू हो जाते हैं।

मर्दाना शक्ति:
उड़द का एक लड्डू रोजाना खाकर उसके बाद दूध पीने से वीर्य बढ़कर धातु पुष्ट होता है और रति शक्ति (संभोग) बढ़ती है।

हिचकी:
साबूत उड़द जले हुए कोयले पर डालें और इसका धुंआ सूंघे। इससे हिचकी खत्म हो जाती है।
उड़द और हींग का चूर्ण मिलाकर अग्नि में जलाकर इसका धूम्रपान करने से हिचकी में फायदा होता है।

नकसीर, सिरदर्द:
उड़द दाल को भिगोकर व पीसकर ललाट पर लेप करने से नकसीर व गर्मी से हुआ सिरदर्द ठीक हो जाता है।

फोडे़:
फोड़े से गाढ़ी पीव निकले तो उड़द की पट्टी बांधने से लाभ होता है।

पेशाब के साथ वीर्य का जाना :
उड़द दाल का आटा 10 से 15 ग्राम लेकर उसे गाय के दूध में उबालें, फिर उसमें घी डालकर थोड़ा गर्म-गर्म 7 दिनों तक लगातार पीने से मूत्र के साथ धातु का निकलना बन्द हो जाता है।

पेशाब का बार-बार आना:
आंवले का रस, शहद से या अडूसे का रस जवाक्षार डालकर पीने से पेशाब का बार बार आना बन्द होता है।
अगर एक चम्मच आंवले के रस में, आधा चम्मच हल्दी और 1 चम्मच शहद मिलाकर खाये तो पूरा लाभ होता है।

नपुंसकता:
उड़द की दाल 40 ग्राम को पीसकर शहद और घी में मिलाकर खाने से पुरुष कुछ ही दिनों में मैथुन करने के लायक बन जाता है।
उड़द की दाल के थोड़े-से लड्डू बना लें। उसमें से दो-दो लड्डू खायें और ऊपर से दूध पी लें। इससे नुपंसकता दूर हो जाती है।

बालों के रोग:
200 ग्राम उड़द की दाल, 100 ग्राम आंवला, 50 ग्राम शिकाकाई, 25 ग्राम मेथी को कूटकर छान लें। इस मिश्रण में से 25 ग्राम दवा 200 मिलीलीटर पानी के साथ एक घंटा भिगोकर रख दें और इसके बाद इसको मथ-छानकर बालों को धो लें, इससे बालों के रोगों में लाभ होता है।
उड़द की दाल उबालकर पीस लें और इसको रात को सोते समय सिर के गंजेपन की जगह पर लगायें। इससे बाल उग आते हैं।

स्तनों में दूध की वृद्धि:
उड़द की दाल में घी मिलाकर खाने से स्त्रियों के स्तनों में पर्याप्त मात्रा में दूध की वृद्धि होती है।

कमजोरी:
उड़द की दाल का लड्डू रोजाना सुबह खाकर ऊपर से दूध पीने से कमजोरी कम होती है।

मोटापा बढ़ाना:
उड़द की दाल छिलके सहित खाने से शरीर मोटा होता है।

सभी प्रकार के दर्द:
उड़द की दाल की बड़ियां (पकौड़ी) को तेल में पकाकर बना लें, फिर इन बड़ियों को शहद और देशी घी में डालकर खाने से `अन्नद्रव शूल´ यानी अनाज के कारण होने वाले दर्द में लाभ देता हैं।

नकसीर:
उड़द की दाल को भिगोकर पीस लें। इस पिसी हुई दाल को माथे पर लगाने से नकसीर (नाक से खून बहना) बन्द हो जाती है।

गठिया (जोड़ों का दर्द):
उड़द की दाल को अरण्ड की छाल के साथ उबालकर उबले उड़द के दाने चबाने से गठिया में हड्डी के अन्दर होने वाली कमजोरी दूर हो जाती है।

मुंहासे:
उड़द और मसूर की बिना छिलके की दाल को सुबह दूध में भिगो दें। शाम को बारीक से बारीक पीसकर उसमें नींबू के रस की थोड़ी बूंदे और शहद की थोड़ी बूंदे डालकर अच्छी तरह मिला लें और लेप बना लें। फिर इस लेप को चेहरे पर लगा लें। सुबह इसे गर्म पानी से धो लें। ऐसा लगातार कुछ दिनों तक करने से चेहरे के मुंहासे और दाग दूर हो जाते है और चेहरे में नयी चमक पैदा हो जाती है।

सिर का दर्द:
उड़द की दाल को पानी में भिगोकर फुला लें और इसको पीसकर सिर पर लेप की तरह से लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

याददास्त कमजोर होना:
रात को सोते समय लगभग 60 ग्राम उड़द की दाल को पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इस दाल को पीसकर दूध और मिश्री मिलाकर पीने से याददास्त मजबूत होती है और दिमाग की कमजोरी खत्म हो जाती है।

उलटकंबल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

उलटकंबल शीत (ठण्डे) प्रदेश की वनस्पति है लेकिन गर्म प्रदेशों में 3000 फुट से 4000 फुट की ऊंचाई तक उत्तर प्रदेश से लेकर बंगाल, आसाम, खसिया तथा सिक्किम आदि में इसके जंगली व लगाये हुए पौधे मिलते हैं। इसके पौधे में बरसात के सीजन में फूल आते हैं तथा जाड़े के सीजन में फल आते हैं।

गुण (Property)

उलटकंबल तीखा होता है। यह योनिरोग, गर्भाशय के रोग, पेट के रोग, बवासीर, पेट की जलन और मासिक-धर्म की गड़बड़ी से उत्पन्न बांझपन दूर होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

मासिक-धर्म और गर्भाशय के विकार :
उलटकंबल की जड़ की छाल का रस गर्म कर लें। इस रस को 2 मिलीलीटर की मात्रा में रोजाना देने से हर तरह के कष्ट से होने वाले मासिक-धर्म में राहत मिलती है।
उलटकंबल की जड़ की छाल को 6 ग्राम की मात्रा में एक ग्राम कालीमिर्च के साथ पीस लें। इसका सेवन मासिक-धर्म से एक सप्ताह पहले से और जब तक मासिक-धर्म होता रहता है तब तक पीने से मासिक धर्म-नियमित होता है। इससे बांझपन दूर होता है और गर्भाशय को शक्ति प्राप्त होती है।
अनियमित मासिक-धर्म के साथ ही, गर्भाशय, जांघों और कमर में तेज दर्द हो तो उलटकंबल की जड़ का रस 4 मिलीलीटर निकालकर चीनी के साथ सेवन करने से 2 दिनों में ही लाभ होता है।
उलटकंबल की पच्चास ग्राम सूखी छाल को जौ कूटकर 625 मिलीलीटर पानी में काढ़ा तैयार करें। यह काढ़ा उचित मात्रा में दिन में तीन बार लेने से कुछ ही दिनों में मासिक-धर्म उचित समय पर होने लग जाता है। इसका प्रयोग मासिक-धर्म शुरू होने से एक सप्ताह पहले से मासिक धर्म आरम्भ होने तक देना चाहिए।
उलटकंबल की जड़ की छाल का चूर्ण 4 ग्राम और कालीमिर्च के 7 दाने सुबह-शाम पानी के साथ मासिक-धर्म के समय 7 दिनों तक सेवन करें। दो से चार महीनों तक यह प्रयोग करने से गर्भाशय के सभी दोष मिट जाते हैं। यह प्रदर और बांझपन की सर्वश्रेष्ठ औषधि है। पथ्य : भोजन में केवल दूध और चावल लें तथा ब्रह्मचर्य से रहें।

गर्भस्थापना:
उलटकंबल की जड़ की छाल 1.5 ग्राम, पान के डंठल 3 से 4 पीस और कालीमिर्च 3 पीस। इन सबको ताजे पानी के साथ पीसकर 50 मिलीलीटर पानी मिलाकर सुबह खाली पेट लें। इसके मासिक-धर्म के शुरू होने से 7 दिन पहले से प्रयोग करें। इससे गर्भ ठहरता है।

सूजाक:
उलटकंबल के ताजे पत्ते और टहनियों की छाल को एक साथ बारीक पीसकर शीतल जल से छान लें। इसका सेवन सूजाक रोग में बहुत उपयोगी होता है।

बहुमूत्र इक्षुमेह और मधुमेह:
10 से 20 मिलीलीटर उलटकंबल का रस निकालकर सुबह-शाम सेवन करने से रोग में जल्द लाभ होता है।

योनि दर्द:
उलटकंबल की जड़ का रस 5 और 10 मिलीलीटर चीनी को मिलाकर पीने से योनि के दर्द में आराम मिलता है।

बच के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

बच मूल रूप से यूरोप और मध्य एशिया का पौधा है। यह पौधा भारत में कब से उगाया जाता है। इसके बारे में किसी भी प्रकार का कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है। भारत में हिमालय में समुद्र तल से 6,000 फीट की ऊंचाई तक इसके जंगली या कृषिजन्य पौधे मिलते हैं। नाग और मानीपुर की पहाड़ियों में तथा कश्मीर के झीलों व खेतों के किनारे बच बहुत अधिक मात्रा में होता है। बच का सुखाया हुआ मूलस्तम्भ या तने की लकड़ी बाजारों में घोड़बच के नाम से बिकती है। बच की कई जातियां पाई जाती हैं जिनमें बल वच या पारसीक बच प्रमुख हैं।

गुण (Property)

वच अधिक गंधयुक्त, चटपटा-तीखा, उल्टी लाने वाला और पाचनशक्तिवर्द्धक है। यह मलमूत्र को साफ करने वाला है। इसके अतिरिक्त यह पेट दर्द, भूत, हानिकारक कीटाणु, मिर्गी, वात तथा उन्माद और अफारा को दूर वाली औषधि है। यह औषधि बुखार और हृदय की गति को सामान्य करती है तथा गले के रोग एवं सांस की बीमारी में भी लाभकारी है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

बच का अधिक प्रयोग करना नुकसानदायक है। यह गर्म स्वभाव वालों के लिए अधिक नुकसानदायक है और उनमें सिर दर्द पैदा करती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

सूर्यावर्त (सूर्य निकलने के साथ शुरू होने दर्द सिर दर्द) :
बच और पीपल के चूर्ण को सुंघाने से सूर्यावर्त मिटता है।
सिर दर्द में बच के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का लेप बनाकर सिर एवं दर्द वाली जगह पर लेप करने से दर्द में आराम मिलता है।
बच को पानी में पीसकर सिर पर लेप करने से मस्तक का दर्द खत्म होता है।

मस्तिष्क शक्तिवर्द्धक :
बच का चूर्ण, पानी, दूध और घी के को एक साथ मिला लें, फिर इसे लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में सुबह-शाम 1 साल तक या कम से कम 1 महीने तक करने से मनुष्य की स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
10 ग्राम बच के चूर्ण को 250 ग्राम बूरे के साथ पाक बनाकर रोज 10 ग्राम सुबह-शाम खाने से भूलने की बीमारी समाप्त हो जाती है।

गले का दर्द :
बच के लगभग आधा ग्राम चूर्ण को थोड़े गर्म दूध में डालकर दिन में 3 बार पिलाने से गले में जमा हुआ कफ ढ़ीला पड़कर निकल जाता है और गले का दर्द खत्म हो जाता है।

गलगंड:
बच के चूर्ण और पीपल के चूर्ण को शहद में मिलाकर या नीम के तेल में मिलाकर सुंघाने से गलगंडादि रोग खत्म हो जाते हैं।
अपस्मार (मिर्गी) : वच को कपड़े से छानकर चूर्ण बना लें, फिर इसे लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम तक लेकर शहद के साथ सुबह-शाम चटाने से उन्माद और अपस्मार में बहुत लाभ होता है। इस प्रयोग के दौरान केवल चावल और दूध का इस्तेमाल करें।

दमा-खांसी :
25 ग्राम वच को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पानी के साथ उबालें, चौथाई पानी शेष रह जाने पर दिन में 3 खुराक के रूप में सेवन करने से सूखी खांसी, पेट में गैस का बनना और पेट का दर्द खत्म होता है।
बच्चों की खांसी में मां के दूध में वच (बच) को घिसकर पिलाने से लाभ होता है।
दमे के रोगी को वच की 2 ग्राम की मात्रा लेनी चाहिए। उसके बाद हर 3 घण्टे के बाद लगभग आधा ग्राम की मात्रा लेनी चाहिए।
वच के चूर्ण को कपड़े में रखकर सूंघने से प्रतिश्याय समाप्त होता है।

खूनी दस्त :
खूनी दस्त (रक्त अतिसार) तथा ऑवदस्त में वच, धनिया तथा जीरे का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए। तीनों को समान (लगभग 10 ग्राम) मात्रा में लेकर 100 मिलीलीटर पानी में उबालें, 20 मिलीलीटर शेष रहने पर छानकर सुबह-शाम पीयें।
बच की जड़ का काढ़ा बनाकर 30 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से खूनी दस्त एवं आमातिसार खत्म हो जाता है।.

अफारा (पेट में गैस का बनना) :
बच्चों का दर्द युक्त अफारा मिटाने के लिए, बच को पानी में घिसकर पेट पर लेप करना चाहिए।
बच के कोयले को एरण्डी के तेल या नारियल के तेल में पीसकर बच्चे के पेट पर लेप करने से दर्द वाला अफारा खत्म होता है।

बच्चों का अतिसार :
बच को जलाने से प्राप्त कोयले की लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग राख पानी में घोलकर बच्चों को पिलाने से बच्चों का अतिसार समाप्त हो जाता है।

बवासीर :
भांग, बच और अजवायन, तीनों को समान मात्रा में लेकर आग में जलाकर इसकी धूंनी बवासीर में देने से बवासीर का दर्द खत्म हो जाता है। सुख प्रसव (आसानी से प्रजनन) :
पानी में घिसा हुआ वच में एरण्ड का तेल मिलाकर नाभि पर लेप करने से बच्चा सुख पैदा होता है।
प्रसव के बाद कमजोरी मिटाने के लिए वच का 20-20 ग्राम मात्रा में काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

मुंह का लकवा :
लगभग आधा ग्राम वच का चूर्ण और लगभग आधा ग्राम शुंठी का चूर्ण दोनों को शहद में मिलाकर दिन में 2 से 3 बार चाटने से अर्दित रोग (वह रोग जिसमें रोगी का मुंह टेढ़ा हो जाता हैं), यानि मुंह का लकवा खत्म होता है।

बुखार :
बच को पानी में मिलाकर नाक पर लेप करने से जुकाम, खांसी और उससे पैदा होने वाला तेज बुखार ठीक हो जाता है।
हरड़, घी और बच का धुंआ देने से विषम बुखार में लाभ होता है। छोटे बच्चों के बुखार में बच की जड़ को पानी में घिसकर हाथ-पैरों पर लगाने से लाभ होता है।

हकलाने की बीमारी :
रुक-रुक कर बोलने की बीमारी में रोगी को ताजी बच की तना (कांड) का 1 ग्राम का टुकड़ा सुबह-शाम चूसना चाहिए। इसे 3 महीने तक करने से हकलाने की बीमारी में अत्यधिक लाभ मिलता है।

जमाल गोटे का जहर :
वच को आग में जलाकर प्राप्त कोयले का 1 ग्राम राख को पानी में मिलाकर पिलाने से जमाल गोटे का जहर शांत हो जाता है और सभी अन्य रोग भी शांत हो जाते हैं।

अंडकोष का बढ़ना :
बच और सरसों को पानी में पीसकर लेप करने से हर प्रकार की अंडकोष के बढ़ने की बीमारी से कुछ ही दिनों में छुटकारा मिलता है।

पेट के कृमि (कीड़ें) :
2 ग्राम बच के चूर्ण को सेंकी हुई हींग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग के साथ खिलाने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।