ज्वार के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

ज्वार एक अनाज है। ज्वार के कोमल भुट्टों को भूनकर भी खाया जाता है। ज्वार बहुत ही पौष्टित और स्वादिष्ट होता है। ज्वार 2 किस्म की होती है। सफेद और लाल। ज्वार में चुपड़ी ज्वार, गुन्दगी ज्वार एवं कमलपरू नामक अन्य किस्म भी होती हैं। गुन्दली ज्वार में पोषक तत्त्व होते हैं। कमलपरू के दाने कुछ लालिमा लिए हुए रहते हैं। ज्वार में पोषक तत्त्व और चर्बी की मात्रा बाजरे के बराबर ही है। ज्वार शीतल और रूक्ष होने के कारण वायुकारक है।

गुण (Property)

यह मल को रोकता हैं। रुचि को बढ़ाता है। यह वीर्यवर्द्धक, मलस्तम्भक, पित्तकफनाशक है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

ज्वार बादी पैदा करता है। कमजोर और वात प्रकृति के लोगों को ज्वार का सेवन नहीं करना चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

जलन:

ज्वार का आटा पानी में घोलकर शरीर पर लेप करने से शरीर की जलन दूर हो जाती है।

प्यास:

ज्वार की रोटी को प्रतिदिन छाछ में भिगोकर खाएं। इससे अधिक प्यास लगना कम होता है।

बवासीर (अर्श):

ज्वार की रोटी खाने से मस्से सूख जाते हैं और बवासीर से आराम मिलता है।

मासिक-धर्म विकार:

ज्वार के भुट्टे को जलाकर छान लें। इस राख को 3 ग्राम की मात्रा में पानी से सुबह के समय खाली पेट मासिक-धर्म चालू होने से लगभग एक सप्ताह पहले देना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बन्द कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।

प्यास अधिक लगना:

ज्वार की रोटी को छाछ में भिगोकर खाने से प्यास लगना कम होता है। ज्वार की रोटी कमजोर और वात पित्त के रोगी को न दें।

पेट के अन्दर सूजन और जलन:

  • ज्वार के आटे को पानी में मिलाकर गाढ़ा-गाढ़ा उबालकर रात को सोने से पहले रख लें, उसमें सफेद जीरा को छाछ के साथ मिलाकर पीने से पेट की जलन कम होती है।
  • भुनी हुई ज्वार बताशों के साथ खाने से पेट की जलन कम हो जाती है।

शरीर में जलन:

ज्वार के आटे को पानी में घोल लें और शरीर पर लेप करें। इससे शरीर की जलन मिट जाती है।