परवल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

परवल का फल कुंदरू के समान आकार होता है। अन्य फलों की तुलना में परवल का साग विशेष पथ्य है। असम, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में यह अधिक मात्रा में होता है।

गुण (Property)

यह पाचक, हृदय के लिए हितकारी, वीर्यवर्द्धक (धातु को बढ़ाने वाला), अग्निदीपक (पाचन क्रिया को बढ़ाने वाला), रक्तविकार (खून की खराबी), खांसी, ज्वर त्रिदोष (कफ, पित्त और कफ) और कृमि (कीड़े) नाशक है। परवल की जड़, पेट को साफ करने वाली है। परवल के प्रयोग से पित्तज्वर, पुराना बुखार, पीलिया, सूजन और पेट के रोग दूर होते हैं। परवल की सब्जी खाने से भोजन पचाने की क्रिया बढ़ जाती है। घी में तलकर बनायी हुई परवल की सब्जी पौष्टिक होती है। आसमानी व पतले कटु परवल का काढ़ा जहर को उतारता है। सिर के गंजेपन पर भी इसको लगाने से लाभ होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

हृदय के रोग:

परवल पाचक, हृदय के लिए हितकारी, वीर्यवर्धक, हल्के, पाचनशक्तिवर्द्धक, चिकना और गर्म है। यह खांसी, रक्ताविकार (खून के रोग), बुखार, कृमि (कीड़े) और त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक है।

खूनी पित्त:

परवल रक्तपित्त, वायु, कफ, खांसी, खुजली, कुष्ठरोग, रक्तविकार (खून के रोग), बुखार और दाह (जलन) नाशक है। इसके गर्भ का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में इलायची, लौंग आदि के साथ रोगी को दिया जाता है।

दस्त लाने के लिए:

परवल का मूल (जड़) पेट को साफ करने वाली है। परवल बेल की टहनी कफ को हरने वाली, पत्ते पित्तनाशक और फल त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) नाशक होते हैं।

कफ के बुखार में:

6 ग्राम मीठे परवल की टहनी सहित पत्ते और 6 ग्राम सोंठ का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ ज्वर मिटता है। कफ आसानी से निकलता है। आम का पाचन होता है और मल की समस्या दूर होती है।

पित्त के बुखार (गर्मी के कारण उत्पन्न बुखार):

  • कड़ुवे परवल और जौ का काढ़ा शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त ज्वर, तृषा (प्यास) और दाह (जलन) समाप्त हो जाती है। कड़वे परवल के जड़ का पानी शर्करा (चीनी) के साथ देने से भी पित्तज्वर में लाभ होता है।
  • परवल, मोथा, नेत्रबाला, लाल, चन्दन, कुटकी, सोठ, पित्त-पापड़ा, खस और अडूसा का काढ़ा बनाकर पीने से पित्त कफ का बुखार और प्यास दूर होती है।
  • कड़वे परवल के पत्ते और धनिये का काढ़ा भी पित्त ज्वर में दिया जाता है। बुखार के रोगी के शरीर पर उसके पत्तों के रस की मालिश (मर्दन) भी करने से आराम मिलता है।

उल्टी:

कड़वे परवल, कड़वा नीम और अडूसा के पत्तों का चूर्ण ठंडे पानी में मिलाकर रोगी को देने से उल्टी होकर पित्त-विकार दूर हो जाते हैं।

प्लीहोदर:

कड़वे परवल का काढ़ा यकृद्राल्युदर (एक पेट का रोग), प्लीहोदर, पीलिया और दूसरे पेट के रोगों में दिया जाता है।

जहर के लिए:

कड़वे परवल को पीसकर रोगी को पिलाने से वमन (उल्टी) होकर पेट का जहर बाहर निकल जाता है।

गंजेपन के रोग में:

कड़वे परवल के पत्तों का रस सिर के गंजेपन पर लगाने से लाभ होता है।

फोड़े:

कडुवे परवल और कडुवे नीम के काढे़ से फोड़ों को धोने से फोड़े साफ होते हैं।

त्वचा के रोग:

परवल का सेवन करने से या परवल के पत्तों के रस की मालिश करने से त्वचा के रोग में लाभ होता है।

आग से जलने पर:

कड़वे परवल का काढ़ा सरसों के तेल में मिलाकर उसमें सरसों से 4 गुना पानी में डालकर उबाल लें। पानी जल जाने पर उतारकर छान लें। इससे अग्नि (आग) से जल जाने पर व्रण (जख्म) पर लगाने से जख्म की पीड़ा, स्राव, दाह (जलन) और फोड़े मिट जाते हैं।

खुजली:

परवल की सब्जी खाने से खुजली, कोढ़, खून की खराबी, आंखों की बीमारियां और पेट के कीड़े दूर होते हैं। पुराने बुखार में भी परवल अधिक लाभदायक है।

सतत बुखार:

परवल या पटोल के पत्ते, इन्द्रजौं, हरड़, नीम, अनन्तमूल, निशोथ और सुगंधबाला को मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से लाभ होता है।