तिल के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

तिल का उपयोग भोजन में सर्दी के मौसम में अधिक होता है। रंग भेद से तिल तीन प्रकार का होता है। लाल, काला और सफेद। औषधि के रूप में काले तिल का उपयोग अच्छा माना जाता है। रेबड़ी बनाने के लिए तिल तथा चीनी का उपयोग किया जाता है। भारत में तिल की खेती अधिक मात्रा में की जाती है। तिल की खेती स्वतंत्र रूप में या रूई, अरहर, बाजरा तथा मूंगफली आदि किसी भी फसल के साथ मिश्रित रूप में की जाती है। तिल उत्पादन के क्षेत्र में भारत का प्रमुख स्थान है।

तिल का तेल – तिल का तेल भारी, तर तथा गर्म होता है। यह शरीर में ताकत की वृद्धि करने वाला, मल को साफ करने वाला, शरीर के रंग को निखारने वाला, संभोग करने की शक्ति को बढ़ाने वाला, तिल का तेल कफ, वायु और पित्त को नष्ट करने वाला, रक्तपित्त (खूनी पित्त) को दूर करने वाला, गर्भाशय को साफ और शुद्ध करने वाला, भूख को बढ़ाने वाला तथा बुद्धि को तेज करने वाला होता है। मधुमेह (डायबिटिज़), कान में दर्द, योनिशूल तथा मस्तिष्क के दर्द को समाप्त करने वाला होता है।

गुण (Property)

तिल कफ, पित्त को नष्ट करने वाला, शक्ति को बढ़ाने वाला, सिर के रोगों को ठीक करने वाला, दूध को बढ़ाने वाला, व्रण (जख्म), दांतों के रोग को ठीक करने वाला तथा मूत्र के प्रवाह को कम करने वाला होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने तथा वात को नष्ट करने में लाभकारी होता है। काला तिल अच्छा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। विद्वानों के अनुसार सफेद तिल मध्यम गुण वाला और लाल तिल कम गुणशाली होता है। तिल में पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करने से वीर्य की कमी दूर होती है तथा पेट में वायु बनने की शिकायत दूर होती है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

गर्भवती स्त्री को तिल नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि गर्भ गिरने की आशंका रहती है।