रूद्राक्ष के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

रूद्राक्ष की उत्पत्ति रूद्राक्ष नामक पेड़ से होती है। इसलिए इसे रूद्र कहते हैं। इसका बीज ही रूद्राक्ष कहलाता है। यह ईंट की तरह लाल तथा सूखा हुआ होता है। संस्कृत में रूद्राक्ष का अर्थ होता है- रूद्र + अक्ष यानी `लाल आंख´। रूद्र यानि शिव (महादेव) की आंख को कहा जाता है। रूद्राक्ष हर व्यक्ति पर अपनी शक्ति का अलग-अलग प्रभाव छोड़ता है। इसकी ऐसी मान्यता है कि यदि इसकी माला को गले में धारण किया जाये तो खुशहाली, सुख-सम्पत्ति और शांति मिलती है। रूद्राक्ष में ऐसा गुण है जो अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करते हैं और बुढ़ापा भी नहीं आने देता है। रूद्राक्ष का प्रयोग हर प्रकार के तनाव से मुक्ति तथा हृदय (दिल) रोगों से बचाव के लिए प्राचीन समय से किया जाता रहा है।

गुण (Property)

रूद्राक्ष शरीर को शक्तिशाली बनाता है, खून के विकार को दूर करता है। धातु को पुष्ट करता है और कीड़ों को मारता है। लकवे की बीमारी तथा बलगम, खांसी व प्रसूती रोगों को नष्ट करता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

रूद्राक्ष पहचाने की कोई असली विधि नहीं है। पौराणिक काल से चली आ रही मान्यताओं के अनुसार कुछ सरल साधन है, जिसे अपनाकर असली रूद्राक्ष को पहचाना जा सकता है। असली रूद्राक्ष दूध या पानी में नहीं तैरता है, बल्कि वह डूब जाता है। यह भी कहा जाता है कि नकली रूद्राक्ष को धागे में बांधकर प्याज के ऊपर लटकाने से वह घूमने लगता है। असली रूद्राक्ष थोड़ा तैलीय, गोल, अपेक्षाकृत अधिक सख्त, उभरे लेकिन स्पष्ट मुंह वाला और प्राकृतिक रूप से छिद्र लिए हुए होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

कफ :
बच्चे की छाती में अगर ज्यादा कफ (बलगम) जम गया हो और कफ (बलगम) निकलने की कोई आशा नज़र न आ रही हो तो ऐसे में रूदाक्ष को घिसकर शहद में मिलाकर 5-5 मिनट के बाद रोगी को चटाने से उल्टी द्वारा कफ (बलगम) निकल जाता है।

हृदय रोग :

हरे एवं ताजे रुद्राक्ष के फलों को लें, इसका छिलका निकालकर काढ़ा बनाएं। इस काढ़े को थोड़ी-सी मात्रा में कुछ महीने तक सेवन करने से हृदय (दिल) के समस्त रोगों में लाभ होता है।