परिचय (Introduction)
मुलहठी रेशेदार, गन्धयुक्त और बहुत ही उपयोगी होती है। आमतौर पर लोग इसे मीठी लकड़ी के नाम से जानते हैं। भारत में इसे मुलहठी या मुलेठी के नाम से जाना जाता है। मुलहठी ही एक ऐसी वस्तु है, जिसका सेवन किसी भी मौसम में किया जा सकता है। पनवाड़ी इसे पान में डालकर देता है। मुलहठी का प्रयोग मधुमेह की औषधि बनाने में किया जाता है। भारत में यह बहुत ही कम मात्रा में होती है इसलिए यह अधिकांश रूप से विदेशों से आयात की जाती है। मुलहठी की जड़ और रस हमेशा बाजारों में पंसारियों के यहां मिलती हैं।
गुण (Property)
मुलहठी खांसी, जुकाम, उल्टी व पित्त को बंद करती है। मुलहठी अम्लता में कमी व क्षतिग्रस्त व्रणों (जख्मों) में लाभकारी है। अम्लोत्तेजक पदार्थ को खाने पर होने वाली पेट की जलन और दर्द, पेप्टिक अल्सर तथा इससे होने वाली खून की उल्टी में मुलहठी अच्छा प्रभाव छोड़ती है। मुलहठी का उपयोग कड़वी औषधियों का स्वाद बदलने के लिए किया जाता है। मुलहठी आंखों के लिए लाभदायक, वीर्यवर्धक, बालों को मुलायम, आवाज को सुरीला बनाने वाली और सूजन में लाभकारी है। मुलहठी विष, खून की बीमारियों, प्यास और क्षय (टी.बी.) को समाप्त करती है।
हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)
मुलहठी के सेवन के दौरान गर्म प्रकृति के पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)
घाव (जख्म):
- मुलहठी पेट में बन रहे एसिड (तेजाब) को नष्ट करके अल्सर के रोग से बचाती है। पेट के घाव की यह सफल औषधि है। मुलहठी खाने से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। इसका सेवन लंबे समय तक नहीं करना चाहिए। बीच-बीच में बंद कर दें।
- मुलहठी को पीसकर घी के साथ चूर्ण के रूप में हर तरह के घावों पर बांधने से शीघ्र लाभ होता है।
- चाकू आदि के घाव के कारण उत्पन्न तेज दर्द रोगी को बहुत कष्ट देता है। यह दर्द मुलहठी के चूर्ण को घी में मिलाकर थोड़ा गर्म करके लगाने से शीघ्र ही शांत होता है।
कफ व खांसी:
- खांसी होने पर यदि बलगम मीठा व सूखा होता है तो बार-बार खांसने पर बड़ी मुश्किल से निकल पाता है। जब तक गले से बलगम नहीं निकल जाता है, तब तक रोगी खांसता ही रहता है। इसके लिए 2 कप पानी में 5 ग्राम मुलहठी का चूर्ण डालकर इतना उबाल लें कि पानी आधा कप बचे। इस पानी को आधा सुबह और आधा शाम को सोने से पहले पी लें। 3 से 4 दिन तक प्रयोग करने से कफ पतला होकर बड़ी आसानी से निकल जाता है और खांसी, दमा के रोगी को बड़ी राहत मिलती है। यक्ष्मा (टी.बी.) की खांसी में मुलहठी चूसने से लाभ होता है।
- 2 ग्राम मुलहठी पाउडर, 2 ग्राम आंवला पाउडर, 2 चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम खाने से खांसी में लाभ होता है।
नपुंसकता (नामर्दी):
- रोजाना मुलहठी चूसने से नपुंसकता नष्ट हो जाती है।
- 10 ग्राम मुलहठी का पिसा हुआ चूर्ण, घी और शहद में मिलाकर चाटने से और ऊपर से मिश्री मिले गर्म-गर्म दूध को पीने से नपुंसकता का रोग कुछ ही समय में कम हो जाता है।
- 10-10 ग्राम मुलहठी, विदारीकंद, तज, लौंग, गोखरू, गिलोय और मूसली को लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण लगातार 40 दिनों तक सेवन करने से नपुंसकता का रोग दूर हो जाता है।
दाह (जलन):
मुलहठी और लालचंदन पानी के साथ घिसकर शरीर पर लेप करने से जलन शांत होती है।
अम्लपित्त (एसिडिटिज):
- खाना खाने के बाद यदि खट्टी डकारें आती हैं, जलन होती है तो मुलहठी चूसने से लाभ होता है। भोजन से पहले मुलहठी के 3 छोटे-छोटे टुकड़े 15 मिनट तक चूसें, फिर भोजन करें।
- मुलहठी का चूर्ण 1 से 4 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से आमाशय की अम्लपित्त (एसिडिटीज) समाप्त हो जाती है और पेट दर्द मिट जाता है।
कब्ज़, आंव:
- 125 ग्राम पिसी मुलहठी, 3 चम्मच पिसी सोंठ, 2 चम्मच पिसे गुलाब के सूखे फूल को 1 गिलास पानी में उबालें। जब यह ठंडा हो जाए तो इसे छानकर सोते समय रोजाना पीने से पेट में जमा आंव (एक तरह का चिकना सफेद मल) बाहर निकल जाता है।
- 5 ग्राम मुलहठी को गुनगुने दूध के साथ सोने से पहले पीने से सुबह शौच साफ आता है और कब्ज दूर हो जाती है।
पेशाब के रोग:
- पेशाब में जलन, पेशाब रुक-रुककर आना, अधिक आना, घाव और खुजली और पेशाब सम्बंधी समस्त बीमारियों में मुलहठी का प्रयोग लाभदायक है। इसे खाना खाने के बाद रोजाना 4 बार हर 2 घंटे के उंतराल पर चूसते रहना लाभकारी होता है। इसे बच्चे भी आसानी से बिना हिचक ले सकते हैं।
- 1 चम्मच मुलहठी का चूर्ण 1 कप दूध के साथ लेने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है।
हृदय शक्तिवर्धक (शक्ति को बढ़ाने वाला):
ज्यादातर शिराओं और धमनियों पर गलत खान-पान, गलत आदतें और काम का अधिक भार पड़ने से कमजोरी आ जाती है, इससे हृदय को हानि पहुंचती है। इस कारण से अनिंद्रा (नींद का न आना), हाई और लोब्लड प्रेशर जैसे रोग हो जाते हैं। ऐसे में मुलहठी का सेवन काफी लाभदायक होता है।
फेफड़ों के रोग:
- मुलहठी फेफड़ों की सूजन, गले में खराश, सूजन, सूखी कफ वाली खांसी में लाभ करती है। मुलहठी फेफड़ों को बल देती है। अत: फेफडे़ सम्बंधी रोगों में यह लाभकारी है। इसको पान में डालकर खाने से लाभ होता है। टी.बी. (क्षय) रोग में भी इसका काढ़ा बनाकर उपयोग किया जाता है।
विष (ज़हर):
जहर पी लेने पर शीघ्र ही उल्टी करानी चाहिए। तालु को उंगुली से छूने से तुरन्त उल्टी हो जाती है। यदि उल्टी नहीं आये तो एक गिलास पानी में 2 चम्मच मुलहठी और 2 चम्मच मिश्री को पानी में डालकर उबाल लें। आधा पानी शेष बचने पर छानकर पिलायें। इससे उल्टी होकर जहर बाहर निकल आता है।
मांसपेशियों का दर्द:
मुलहठी स्नायु (नर्वस स्टिम) संस्थान की कमजोरी को दूर करने के साथ मांसपेशियों का दर्द और ऐंठन को भी दूर करती है। मांसपेशियों के दर्द में मुलहठी के साथ शतावरी और अश्वगंधा को समान रूप से मिलाकर लें। स्नायु दुर्बलता में रोजाना एक बार जटामांसी और मुलहठी का काढ़ा बनाकर लेना चाहिए।
गंजापन, रूसी (ऐलोपीका):
मुलहठी का पाउडर, दूध और थोड़ी-सी केसर, इन तीनों का पेस्ट बनाकर नियमित रूप से बाल आने तक सिर पर लगायें। इससे बालों का झड़ना और बालों की रूसी आदि में लाभ मिलता है।
बाजीकरण (कामोद्दीपन):
मुलहठी का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से शुक्र वृद्धि और बाजीकरण होता है।