परिचय (Introduction)
लसोड़े के पेड़ बहुत बड़े होते हैं इसके पत्ते चिकने होते हैं। दक्षिण, गुजरात और राजपूताना में लोग पान की जगह लसोड़े का उपयोग कर लेते हैं। लसोड़ा में पान की तरह ही स्वाद होता है। इसके पेड़ की तीन से चार जातियां होती है पर मुख्य दो हैं जिन्हें लमेड़ा और लसोड़ा कहते हैं। छोटे और बड़े लसोडे़ के नाम से भी यह काफी प्रसिद्ध है। लसोड़ा की लकड़ी बड़ी चिकनी और मजबूत होती है। इमारती काम के लिए इसके तख्ते बनाये जाते हैं और बन्दूक के कुन्दे में भी इसका प्रयोग होता है। इसके साथ ही अन्य कई उपयोगी वस्तुएं बनायी जाती हैं। इसके फल सुपारी के बराबर होते हैं। कच्चा लसोड़ा का साग और आचार भी बनाया जाता है। पके हुए लसोड़े मीठे होते हैं तथा इसके अन्दर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है, जो शरीर को मोटा बनाता है।
गुण (Property)
लसोड़ा पेट और सीने को नर्म करता है और गले की खरखराहट व सूजन में लाभदायक है। यह पित्त के दोषों को दस्तों के रास्ते बाहर निकाल देता है और बलगम व खून के दोषों को भी दूर करता है। यह पित्त और खून की तेजी को मिटाता है और प्यास को रोकता है। लसोहड़ा पेशाब की जलन, बुखार, दमा और सूखी खांसी तथा छाती के दर्द को दूर करता है। इसकी कोपलों को खाने से पेशाब की जलन और सूजाक रोग मिट जाता है। यह कडुवा, शीतल, कषैला, पाचक और मधुर होता है। इसके उपयोग से पेट के कीड़े, दर्द, कफ, चेचक, फोड़ा, विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) और सभी प्रकार के विष नष्ट हो जाते हैं। इसके फल शीतल, मधुर, कड़वे और हल्के होते हैं। इसके पके फल मधुर, शीतल और पुष्टिकारक हैं, यह रूखे, भारी और वात को खत्म करने वाले होते हैं।
हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)
लसोड़ा का अधिक मात्रा में उपयोग मेदा (आमाशय) और जिगर के लिए हानिकारक हो सकता है।
विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)
अतिसार:
लसोड़े की छाल को पानी में घिसकर पिलाने से अतिसार ठीक होता है।
हैजा (कालरा):
लसोडे़ की छाल को चने की छाल में पीसकर हैजा के रोगी को पिलाने से हैजा रोग में लाभ होता है।
दांतों का दर्द:
लसोड़े की छाल का काढ़ा बनाकर उस काढ़े से कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है।
शक्तिवर्द्धक:
लसोड़े के फलों को सुखाकर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को चीनी की चाशनी में मिलाकर लड्डू बना लें। इसको खाने से शरीर मोटा होता है और कमर मजबूत जाती है।
शोथ (सूजन):
लसौड़े की छाल को पीसकर उसका लेप आंखों पर लगाने से आंखों के शीतला के दर्द में आराम मिलता है।
पुनरावर्तक ज्वर:
लसोड़ा की छाल का काढ़ा बनाकर 20 से लेकर 40 मिलीलीटर को सुबह और शाम सेवन करने से लाभ होता है।
प्रदर रोग:
लसोड़ा के कोमल पत्तों को पीसकर रस निकालकर पीने से प्रदर रोग और प्रमेह दोनों मिट जाते हैं।
दाद:
लसोड़ा के बीजों की मज्जा को पीसकर दाद पर लगाने से दाद मिट जाता है।
फोड़े-फुंसियां:
लसोड़े के पत्तों की पोटली बनाकर फुंसियों पर बांधने से फुंसिया जल्दी ही ठीक हो जाती हैं।
गले के रोग:
लिसोड़े की छाल के काढ़े से कुल्ला करने से गले के सारे रोग ठीक हो