परिचय (Introduction)
मूंग की दाल द्विदल धान्य है और समस्त दलहनों में मूंग अपने विशेष गुणों के कारण अच्छी मानी जाती है। रोगियों के लिए मूंग बहुत श्रेष्ठ बताई जाती है। मूंग काले, हरे, पीले, सफेद और लाल अनेक तरह के होते हैं। काली मूंग पचने में हल्की होती हैं। मूंग की खिचड़ी, दाल आदि बनाई जाती है। मूंग की दाल से पापड़, बड़ियां आदि भी बनती हैं। मूंग को उबालकर तरकारी भी बनाई जाती है तथा मूंग के पौष्टिक लड्डू भी बनाए जाते हैं और सर्दियों के मौसम में उनका सेवन किया जाता है।
गुण (Property)
मूंग की अपेक्षा मूंग का पसावन बिल्कुल ही वायुकारक नहीं होता। मूंग का पसावन-वात, पित्त और कफ का शमन करता है। मूंग मल को रोकने वाली और आंखों के लिए हितकारी व बुखार को दूर करने वाली है।
विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)
ज्वर (बुखार):
मूंग को छिलके समेत खाना चाहिए। ज्वर (बुखार) होने पर मूंग की दाल में सूखे आंवले को डालकर पकाएं। इसे रोजाना दिन मे 2 बार खाने से ज्वर ठीक होगा और दस्त साफ आएगा।
कब्ज:
चावल और मूंग की खिचड़ी खाने से कब्ज दूर होता है। मूंग की दाल और चावल की खिचड़ी बनाएं। फिर इसमें नमक मिलाकर और घी डालकर खायें। इससे कब्ज दूर होकर दस्त साफ आता है।
पसीने के अधिक आने पर:
मूंग को सेंककर पीस लें। फिर इसमें पानी डालकर अच्छी तरह से मिलाकर लेप की तरह शरीर पर मालिश करें। इससे पसीना ज्यादा आना बन्द हो जाता है।
आग से जलने पर:
मूंग को पानी के साथ पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम आता है।
शक्ति वर्धक (शक्ति बढ़ाने वाला) :
मूंग के लड्डू खाने से शक्ति बढ़ती है। मूंग को सेंककर आटा बनाएं। आटे के बराबर घी लेकर, कड़ाही में धीमी आंख पर रखें और कलछी से हिलाते जाए। जब आटा कुछ लालिमा पकड़ लें तब, बीच-बीच में उसके ऊपर दूध छिड़कते जाएं। ऐसा करते-करते जब दाने पड़ जाएं तब कड़ाही को चूल्हे से नीचे उतारकर उसमें शर्करा, बादाम, पिश्ते, इलायजी, लौंग और कालीमिर्च का चूर्ण डालकर लड्डू बना लें। मूंग के ये लड्डू शीतल, वीर्यवर्धक और वातशामक है।
आंत्रिक ज्वर (टायफाइड):
रोगी को मूंग की दाल बनाकर देने से आराम आता है। लेकिन दाल के साथ घी और मसालों का प्रयोग बिल्कुल भी न करें।
पेशाब का बार-बार आना:
रात को लोहे के बर्तन में पानी डालकर उसमें 50 ग्राम मसूर की दाल भिगो दें। रोजाना सुबह के समय इस दाल का पानी घूंट-घूंट करके पीने से पेशाब का बार-बार आना कम हो जाता है।
बुखार:
- बनमूंग के पंचांग (पत्ती, तना, फल, फूल और जड़) का काढ़ा 40 मिलीलीटर रोजाना 2 से 3 बार लेने से बुखार उतर जाता है।
- बनमूंग के पत्तों का काढ़ा शरीर को पुष्ट करता है और नींद और जलन को कम करता है।
आंखों का फूला:
मूंग की दाल (धुली हुई और छिलका उतारी हुई) और शंख नाभि के बराबर बारीक चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर आंखों में काजल की तरह लगाने से आंखों का फूला दूर होता है।
पित्त ज्वर:
मूंग और मुलहठी का जूस बनाकर पीने से पित्त बुखार ठीक हो जाता है।
स्तनों के दूध के विकार:
मूंग का सूप सुबह-शाम 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने स्तनों के दूध के रोग नष्ट हो जाते हैं।
कण्ठमाला:
मूंग, जौ और परवल आदि रोगी को खिलाने से कण्ठमाला (गले की गांठों) में आराम आता है।
दाद:
मूंग की दाल को छिलके के साथ इतने पानी में डालकर भिगो लें कि दाल उस पानी को सोख लें। 2 घंटे के भीगने के बाद दाल को पीसकर दाद और खुजली पर लगाने से आराम आता है।
शारीरिक सौन्दर्यता:
नहाने से पहले त्वचा पर निखार लाने के लिए मूंग की दाल को भिगोकर पीस लें। फिर उसमें सन्तरे के सूखे छिलकों को पीसकर मिला लें। इसके बाद इसके अन्दर थोड़ी सी मलाई भी मिला दें यह उबटन (लेप) तैयार हो जायेगा। इस उबटन (लेप) को लगाकर नहाने से त्वचा चमक उठेगी।