अंगूर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

अंगूर एक आयु बढ़ाने वाला प्रसिद्ध फल है। फलों में यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है, क्योंकि यह सभी प्रकार की प्रकृति के मनुष्य के लिए अनुकूल है। निरोगी के लिए यह उत्तम पौष्टिक खाद्य है तो रोगी के लिए बलवर्धक भोजन। जब कोई खाद्य पदार्थ भोजन के रूप में न दिया जा सके तब मुनक्का का सेवन किया जा सकता है। रंग और आकार तथा स्वाद भिन्नता से अंगूर की कई किस्में होती हैं। काले अंगूर, बैगनी रंग के अंगूर, लम्बे अंगूर, छोटे अंगूर, बीज रहित अंगूर को सुखाकर किशमिश बनाई जाती है। काले अंगूरों को सुखाकर मुनक्का बनाई जाती है। अंगूर स्वस्थ मनुष्य के लिए पौष्टिक भोजन है और रोगी के लिए शक्तिप्रद पथ्य है। जिन बड़े-बड़े भयंकर और जटिल रोगों में किसी प्रकार का कोई पदार्थ जब खाने-पीने को नहीं को दिया जाता तब ऐसी दशा में अंगूर दी जाती है। भोजन के रूप में अंगूर कैन्सर, क्षय (टी.बी.), पायरिया, ऐपेण्डीसाटिस, बच्चों का सूखा रोग, सन्धिवात, फिट्स, रक्त विकार, आमाशय में घाव, गांठे, उपदंश (सिफलिस), बार-बार मूत्रत्याग, दुर्बलता आदि में दिया जाता है। अंगूर अकेला खाने पर लाभ करता है, किसी अन्य वस्तु के साथ मिलाकर इसे नहीं खाना चाहिए।

गुण (Property)

  • पके अंगूर : पके अंगूर दस्तावर, शीतल, आंखों के लिए हितकारी, पुष्टिकारक, पाक या रस में मधुर, स्वर को उत्तम करने वाला, कसैला, मल तथा मूत्र को निकालने वाला, वीर्यवर्धक (धातु को बढ़ाने वाला), पौष्टिक, कफकारक और रुचिकारक है। यह प्यास, बुखार, श्वास (दमा), कास (खांसी), वात, वातरक्त (रक्तदोष), कामला (पीलिया), मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कठिनाई होना), रक्तपित्त (खूनी पित्त), मोह, दाह (जलन), सूजन तथा डायबिटीज को नष्ट करने वाला है।
  • कच्चा अंगूर : कच्चे अंगूर गुणों में हीन, भारी, कफपित्त और रक्तपित्त नाशक है।
  • काली दाख या गोल मुनक्का : यह वीर्यवर्धक, भारी और कफ पित्त नाशक है।
  • किशमिश : बिना बीज की छोटी किशमिश मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक (धातु को बढ़ाने वाला), रूचिप्रद (भूख जगाने वाला) खट्टी तथा श्वास, खांसी, बुखार, हृदय की पीड़ा, रक्त पित्त, स्वर भेद, प्यास, वात, पित्त और मुख के कड़वेपन को दूर करती है।
  • ताजा अंगूर : रुधिर को पतला करने वाले छाती के रोगों में लाभ पहुंचाने वाले बहुत जल्दी पचने वाले रक्तशोधक तथा खून बढ़ाने वाले होते हैं।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

मूर्च्छा (बेहोशी) :

  • दाख (मुनक्का) और आंवले को समान मात्रा में लेकर, उबालकर पीसकर थोड़ा शुंठी का चूर्ण मिलाकर, शहद के साथ चटाने से बुखारयुक्त मूर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है। ।
  • 25 ग्राम मुनक्का, मिश्री, अनार की छाल और खस 12-12 ग्राम, जौकूट कर 500 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगो दें, सुबह मसल-छानकर, 3 खुराक बनाकर दिन में 3 बार (सुबह, दोपहर और शाम) सेवन करें।
  • 100-200 ग्राम मुनक्का को घी में भूनकर थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर रोजाना 5-10 ग्राम तक खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है।

सिर में दर्द :

8-10 मुनक्का, 10 ग्राम मिश्री तथा 10 ग्राम मुलेठी तीनों को पीसकर नस्य देने से पित्त के विकार के कारण उत्पन्न सिर का दर्द दूर होता है।

मुंह के रोग :

मुनक्का 10 दाने और 3-4 जामुन के पत्ते मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से कुल्ला करने से मुंह के रोग मिटते हैं।

नकसीर (नाक से खून आना) :

अंगूर के रस को नाक में डालने से नाक की नकसीर (नाक से खून आना) रुक जाती है।

मुंह की दुर्गन्ध :

कफ या अजीर्ण के कारण मुंह से दुर्गन्ध आती है तो 5-10 ग्राम मुनक्का नियमपूर्वक खाने से दूर हो जाती है।

उर:क्षत (सीने में घाव) :

मुनक्का और धान की खीले 10-10 ग्राम को 100 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। 2 घंटे बाद मसल-छानकर उसमें मिश्री, शहद और घी 6-6 ग्राम मिलाकर उंगली से बार-बार चटायें। सीने के घाव में लाभ होता है तथा उल्टी की यह दिव्य औषधि है।

सूखी खांसी :

द्राक्षा, आंवला, खजूर, पिप्पली तथा कालीमिर्च इन सबको बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इस चटनी के सेवन से सूखी खांसी तथा कुकुर (कुत्ता) खांसी में लाभ होता है।

क्षय (टी.बी.) :

घी, खजूर, मुनक्का, मिश्री, शहद तथा पिप्पली इन सबका अवलेह बनाकर सेवन करने से बुखार, खांसी, श्वास, जीर्णज्वर तथा क्षयरोग का नाश होता है।

पित्तज कास :

10 मुनक्का, 30 पिप्पली तथा मिश्री 45 ग्राम तीनों को मिश्रण बनाकर प्रतिदिन शहद के साथ चटाने से लाभ होता है।

दूषित कफ विकार :

8-10 नग मुनक्का, 25 ग्राम मिश्री तथा 2 ग्राम कत्थे को पीसकर मुख में धारण करने से दूषित कफ विकारों में लाभ होता है।

गलग्रंथि :

  • दाख (मुनक्का) के 10 मिलीलीटर रस में हरड़ का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम नियमपूर्वक पीने से गलग्रंथि मिटती है।
  • गले के रोगों में इसके रस से गंडूष (गरारे) कराना बहुत अच्छा है।

मृदुरेचन (पेट साफ रखने) के लिए :

  • 10-20 पीस मुनक्कों को साफकर बीज निकालकर, 200 मिलीलीटर दूध में अच्छी तरह उबालकर (जब मुनक्के फूल जायें) दूध और मुनक्के दोनों का सेवन करने से सुबह दस्त साफ आता है।
  • मुनक्का 10-20 पीस, अंजीर 5 पीस, सौंफ, सनाय, अमलतास का गूदा 3-3 ग्राम तथा गुलाब के फूल 3 ग्राम, इन सबके काढ़े में गुलकन्द मिलाकर पीने से दस्त साफ होता है।
  • रात्रि में सोने से पहले 10-20 नग मुनक्कों को थोड़े घी में भूनकर सेंधानमक चुटकी भर मिलाकर खाएं।
  • सोने से पहले आवश्यकतानुसार 10 से 30 ग्राम तक किसमिस खाकर गर्म दूध पीयें।
  • मुनक्का 7 पीस, कालीमिर्च 5 पीस, भुना जीरा 10 ग्राम, सेंधानमक 6 ग्राम तथा टाटरी 500 मिलीग्राम की चटनी बनाकर चाटने से कब्ज तथा अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) दूर हो जाता है।

पित्तज शूल :

अंगूर और अडू़से का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से पित्त कफ जन्य उदरशूल दूर होता है।

अम्लपित्त :

  • दाख (मुनक्का), हरड़ बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसमें दोनों के बराबर शक्कर मिलायें, सबको एक साथ पीसकर, एक-एक ग्राम की गोलियां बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम शीतल जल के साथ सेवन करने से अम्लपित्त, हृदय-कंठ की जलन, प्यास तथा अपच का नाश होता है।
  • मुनक्का 10 ग्राम और सौंफ आधी मात्रा में दोनों को 100 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। सुबह मसलकर और छानकर पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।

पांडु (कामला या पीलिया) :

  • बीजरहित मुनक्का का चूर्ण (पत्थर पर पिसा हुआ) 500 ग्राम, पुराना घी 2 लीटर और पानी 8 लीटर सबको एक साथ मिलाकर पकाएं। जब केवल घी मात्र शेष रह जाये तो छानकर रख लें, 3 से 10 ग्राम तक सुबह-शाम सेवन करने से पांडु (पीलिया) आदि में विशेष लाभ होता है।
  • अंगूर पीलिया रोग को दूर करने में सहायता करता है।

पथरी :

  • काले अंगूर की लकड़ी की राख 10 ग्राम को पानी में घोलकर दिन में दो बार पीने से मूत्राशय में पथरी का पैदा होना बंद हो जाता है।
  • अंगूर की 6 ग्राम भस्म को गोखरू का काढ़ा 40-50 मिलीलीटर या 10-20 मिलीलीटर रस के साथ पिलाने से पथरी नष्ट होती है।
  • 8-10 नग मुनक्कों को कालीमिर्च के साथ घोटकर पिलाने से पथरी में लाभ होता है।
  • अंगूर के जूस में थोड़े-से केसर मिलाकर पीयें। इससे पथरी ठीक होती है।

मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट) :

  • मूत्रकृच्छ में 8-10 मुनक्कों एवं 10-20 ग्राम मिश्री को पीसकर दही के पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
  • मुनक्का 12 ग्राम, पाषाण भेद, पुनर्नवा मूल तथा अमलतास का गूदा 6-6 ग्राम जौकूटकर, आधा किलो जल में अष्टमांश काढ़ा बनाकर पिलाने से मूत्रकृच्छ एवं उसके कारण उत्पन्न पेट के रोग भी दूर होते हैं।
  • 8-10 नग मुनक्कों को बासी पानी में पीसकर चटनी की तरह पानी के साथ लेने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।

अंडकोषवृद्धि :

अंगूर के 5-6 पत्तों पर घी चुपड़कर तथा आग पर खूब गर्मकर बांधने से फोतों की सूजन बिखर जाती है।

बल एवं पुष्टि के लिए :

  • मुनक्का 12 पीस, छुहारा 5 पीस तथा मखाना 7 पीस, इन सभी को 250 मिलीलीटर दूध में डालकर खीर बनाकर सेवन करने से खून और मांस की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है।