परिचय (Introduction)
इन्द्रायण एक लता होती है जो पूरे भारत के बलुई क्षेत्रों में पायी जाती है यह खेतों में उगाई जाती है। इन्द्रायण 3 प्रकार की होती है। पहली छोटी इन्द्रायण, दूसरी बड़ी इन्द्रायण और तीसरी लाल इन्द्रायण होती है। तीनों प्रकार की इन्द्रायण में लगभग 50 से लेकर 100 फल आते हैं।
गुण (Property)
यह दस्त लाने वाली), कफ-पित्तनाशक है तथा यह कामला (पीलिया), प्लीहा (तिल्ली), पेट के रोग, श्वांस (दमा), खांसी, सफेद दाग, गैस, गांठ, व्रण (जख्म), प्रमेह (वीर्य विकार), गण्डमाला (गले में गिल्टी का हो जाना) तथा विष को नष्ट करता है। ये गुण छोटी और बड़ी दोनों इन्द्रायण में होते हैं।
हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)
इन्द्रायण का सेवन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। क्योंकि इसके ज्यादा और अकेले सेवन करने से पेट में मरोड़ पैदा होता है और शरीर में जहर के जैसे लक्षण पैदा होते हैं।
विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)
बालों को काला करना:
- इन्द्रायण के बीजों का तेल नारियल के तेल के साथ बराबर मात्रा में लेकर बालों पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं।
- इन्द्रायण की जड़ के 3 से 5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से बाल काले हो जाते हैं। परन्तु इसके परहेज में केवल दूध ही पीना चाहिए।
- सिर के बाल पूरी तरह से साफ कराके इन्द्रायण के बीजों का तेल निकालकर लगाने से सिर में काले बाल उगते हैं।
- इद्रायण के बीजों का तेल लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
बहरापन (कान से न सुनाई देना):
इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबालकर और छानकर पीने से बहरापन दूर होता है।
दांत के कीड़े:
इसके पके हुए फल की धूनी दान्तों में देने से दांत के कीड़े मर जाते हैं।
अपस्मार (मिर्गी):
इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण को नस्य (नाक में डालने से) दिन में 3 बार लेने से अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर हो जाता है।
कास (खांसी):
इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें कालीमिर्च भरकर छेद को बंद करके धूप में सूखने के लिए रख दें या गर्म राख में कुछ देर तक पड़ा रहने दें, फिर काली मिर्च के दानों को रोजाना शहद तथा पीपल के साथ एक सप्ताह तक सेवन करने से कास (खांसी) के रोग में लाभ होता है।
स्तन के कष्ट:
स्त्रियों के स्तन में सूजन आ जाने पर इन्द्रायण की जड़ को घिसकर लेप करने से लाभ होता है।
पेट दर्द:
- इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट के रोग दूर होते हैं।
- इन्द्रायण के फल में काला नमक और अजवायन भरकर धूप में सुखा लें, इस अजवायन की गर्म पानी के साथ फंकी लेने से दस्त के समय होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
विसूचिका:
विसूचिका (हैजा) के रोगी को इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म पानी के साथ या इसके 2 से 5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ देना चाहिए।
मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन):
- इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीसकर और छानकर 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से पेशाब करते समय का दर्द और जलन दूर हो जाती है।
- 10 से 20 ग्राम लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला को 160 मिलीलीटर पानी में उबालकर इसका चौथाई हिस्सा बाकी रह जाने पर काढ़ा बनाकर उसे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन) का रोग समाप्त हो जाता है।
मासिक-धर्म की रुकावट:
- मासिक-धर्म के रुक जाने पर 3 ग्राम इन्द्रवारूणी के बीज और 5 दाने कालीमिर्च को एक साथ पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर रोगी को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
- इन्दायण की जड़ को योनि में रखने से योनि का दर्द और पुष्पावरोध (मासिक-धर्म का रुकना) दूर होता है।
आंतों के कीड़े:
इन्द्रायण के फल के गूदे को गर्म करके पेट में बांधने से आंतों के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।
विरेचन (दस्त लाने वाला):
इन्द्रायण की फल मज्जा को पानी में उबालकर और छानकर गाढ़ा करके छोटी-2 चने के आकार की गोलियां गोलियां बना लेते हैं। इसकी 1-2 गोली ठण्डे दूध से लेने से सुबह साफ दस्त शुरू हो जाते हैं।
जलोदर (पेट में पानी की अधिकता):
- इन्द्रायण के फल का गूदा तथा बीजों से खाली करके इसके छिलके की प्याली में बकरी का दूध भरकर पूरी रात भर के लिए रख दें। सुबह होने पर इस दूध में थोड़ी-सी चीनी मिलाकर रोगी को कुछ दिनों तक पिलाने से जलोदर मिट जाता है। इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा और फल का गूदा खिलाना भी लाभदायक है, परन्तु ये तेज औषधि है।
- इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम ग्राम को सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम देने से लाभ होता है। ध्यान रहें की अधिक मात्रा में सेवन करने से विशाक्त (जहर) बन जाता है और हानि पहुंचाता है।
- इन्द्रायण को लेने से लीवर (यकृत) की वृद्धि के कारण पेट का बड़ा हो जाने की बीमारी में लाभ होगा।
- इन्द्रायण की जड़ की छाल के चूर्ण में सांभर नमक मिलाकर खाने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
उपदंश (सिफलिस):
- 100 ग्राम इन्द्रायण की जड़ को 500 मिलीलीटर एरण्ड के तेल में डालकर पकाने के लिए रख दें। पकने पर जब तेल थोड़ा बाकी रह जाये तो इस 15 मिलीलीटर तेल को गाय के दूध के साथ सुबह-शाम पीने से उपदंश समाप्त हो जाता है।
- इन्द्रायण की जड़ों के टुकड़े को 5 गुना पानी में उबाल लें। जब उबलने पर तीन हिस्से पानी बाकी रह जाए तो इसे छानकर उसमें बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर शर्बत बनाकर पीने से उपदंश और वात पीड़ा मिटती है।
सुख प्रसव:
- इन्द्रायण की जड़ को पीसकर गाय के घी में मिलाकर भग (योनि) पर मलने से प्रसव आसानी से हो जाता है।
- इन्द्रायण के फल के रस में रूई का फाया भिगोकर योनि में रखने से बच्चा आसानी से हो जाता है।
- इन्द्रायण की जड़ को बारीक पीसकर देशी घी में मिलाकर स्त्री की योनि में रखने से बच्चे का जन्म आसानी से होता है।
सूजन:
- इन्द्रायण की जड़ों को सिरके में पीसकर गर्म करके शोथयुक्त (सूजन वाली जगह) स्थान पर लगाने से सूजन मिट जाती है।
- शरीर में सूजन होने पर इन्द्रायण की जड़ को सिरके में पीसकर लेप की तरह से शरीर पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।
- इन्द्रायण को बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। 200 मिलीलीटर पानी में 50 ग्राम धनिये को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसके बाद इन्द्रायण के चूर्ण को इस काढ़े में मिलाकर शरीर पर लेप की तरह लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
संधिगत वायु (घुटनों वायु का प्रकोप):
- इन्द्रायण की जड़ और पीपल के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से संधिगत वायु दूर होती है।
- 500 मिलीलीटर इन्द्रायण के गूदे के रस में 10 ग्राम हल्दी, काला नमक, बड़े हुत्लीना की छाल डालकर बारीक पीस लें, जब पानी सूख जाए तो चौथाई-चौथाई ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ देने से सूजन तथा दर्द थोड़े ही दिनों में अच्छा हो जाता है।
गर्भधारण (गर्भ ठहराने के लिए):
इन्द्रायण की जड़ों को बेल पत्रों के साथ पीसकर 10-20 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम पिलाने से स्त्री गर्भधारण करती है।
बिच्छू विष:
इन्द्रायण के फल का 6 ग्राम गूदा खाने से बिच्छू का (विष) जहर उतरता है।
सर्पदंश (सांप के काटने) पर:
3 ग्राम बड़ी इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्पदंश में लाभ मिलता है।
बच्चों के डिब्बा (पसली के चलने पर):
बच्चों के डिब्बा रोग (पसली चलना) में इसकी जड़ के 1 ग्राम चूर्ण में 250 मिलीग्राम सेंधानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
कान के घाव:
लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल के तेल के साथ गर्म करके कान के अन्दर के जख्म पर लगाने से जख्म साफ होकर भर जाता है।
सिर दर्द:
- इन्द्रायण के फल के रस या जड़ की छाल को तिल के तेल में उबालकर तेल को मस्तक (माथे) पर लेप करने से मस्तक पीड़ा या बार-बार होने वाली मस्तक पीड़ा मिटती है।
- इन्द्रायण के फलों का रस या जड़ की छाल के काढ़े के तेल को पकाकर, छानकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम उपयोग करने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द), सिर दर्द, पीनस (पुराना जुकाम), कान दर्द और अर्धांगशूल दूर हो जाते हैं।