परिचय (Introduction
बांस का पेड़ भारत में सभी जगहों पर पाया जाता है। यह कोंकण (महाराष्ट्र) में अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह 25-30 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते लम्बे होते हैं। इसका तना बहुत मजबूत होता है। इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता कि अचानक तोप से वार करने पर भी इस पर कोई असर नहीं होता है। जब बांस 60 वर्ष का हो जाता है तो इसमें बीज आने लगते हैं। प्रत्येक बांस में थोड़ी-थोड़ी दूर पर बीजों के झुण्ड लगते हैं। बीजों के पक जाने पर बांस सूखने लगता है। एक बांस के सूखने से कई बांस सूख जाते हैं। बीस पच्चीस वर्ष बाद नये बीज आ जाते हैं। इसके बीज गेहूं के बीज के समान होते हैं। गरीब और आदिवासी लोग उसकी रोटी बनाकर खाते हैं। बांस से टोकरी, चटाई, सूप, पंखे आदि अनेक वस्तुएं बनाई जाती हैं। इसमें कपूर की तरह का एक पदार्थ निकलता है जिसे वंशलोचन कहा जाता है।
गुण (Property)
बांस की जड़ें शरीर को स्वच्छ और शुद्ध बनाती हैं। इसकी जड़ों को जलाकर बारीक पीसकर चमेली के तेल में मिलाकर यदि हम गंजे सिर में लगाते हैं तो इससे गंजे सिर में आराम मिलता है। शहद के साथ बांस के पत्तों का रस मिलाकर लेने से खांसी खत्म हो जाती है। पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से स्त्रियों में रुका हुआ मासिक-धर्म पुन: शुरू हो जाता है। इसकी जड़ों का अचार बनाकर खाने से वात, कफ और खून के विकार दूर होते हैं तथा पित्त, सफेद दाग, सूजन और शरीर के जख्मों को भर जाते हैं।
बांस के अंकुर रूखे भारी दस्त तथा कफ को बढ़ाते हैं तथा ये वात और पित्त को भी पैदा करते हैं।
बांस के चावल कषैले मीठे और स्वादिष्ट होते हैं। ये शरीर की धातु को गाढ़ा और पुष्ट करते हैं। शरीर को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है। यह कफ, पित्त को खत्म करता है तथा बहुमूत्रता को रोकने के काम आता है।
हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)
बांस फेफड़ों के लिए हानिकारक होता है।
विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)
मूत्राघात (पेशाब के साथ धातु का आना) :
मूत्राघात होने पर (पेशाब में धातु आने पर) चावल के पानी में बांस की राख और चीनी को मिलाकर रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
पारा खा लेने पर :
बांस के थोड़े पत्तों के रस में चीनी डालकर पीने से पारा खा लेने वाले रोगी को लाभ मिलता है।
रक्तजन्य दाह पर (खून में जलन) :
बांस की छाल के काढ़े को ठंडा करके शहद के साथ पीने से रक्तजन्य दाह (खून में जलन) शांत हो जाती है।
बहुमूत्र रोग पर :
बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) के रोग में बांस के हरे और सूखे पत्तों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से आराम मिलता है। रोगी को प्यास लगने पर भी इसे ही पिलाना चाहिए।
बच्चों की खांसी और सांस के लिए :
वंशलोचन का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर देने से बच्चों की खांसी और सांस (दमा) का रोग ठीक हो जाता है। बांस की गांठ को पानी में मिलाकर देने से भी लाभ होता है।
शक्ति के लिए :
दालचीनी, इलायची, छोटी पीपल, वंशलोचन और मिश्री, इन सब चीजों को क्रमानुसार एक दूसरे से दुगुनी मात्रा में लेकर पीस लेते हैं। इसे सितोपलादि चूर्ण कहा जाता है। यह शक्तिवर्द्धक होता है तथा क्षय (टी.बी), बुखार, खांसी के लिए यह बहुत उपयोगी है।
पेशाब साफ न होना :
वंशलोचन, शीतल चीनी (कंकोल) और इलायची का कपडे में छना हुआ चूर्ण बराबर-बराबर तीन चुटकी भर लेकर दूध और मिश्री के साथ लेना चाहिए इससे पेशाब साफ आने लगता है।
विसर्प सुर्खवाद :
बांस की ताजी जड़ को पीसकर लगाने से विसर्प सुर्खवाद में लाभ होता है।
आंख का फड़कना :
बांस की मुलायम पत्तियों का रस लगाने से आंख फड़कना बंद हो जाती है।
खांसी :
6-6 मिलीलीटर बांस का रस, अदरक का रस और शहद को एक साथ मिलाकर कुछ समय तक सेवन करने से खांसी, दमा आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
गुहेरी :
बांस की कोपल (मुलायम पत्तियों) का रस लगाने से आंख की गुहेरी ठीक हो जाती है।
Jumbler कष्टार्तव (मासिक-धर्म का कष्ट से आना) :
बांस के पत्ते तथा बांस की कोमल गांठ का काढ़ा पिलाने से गर्भाशय का संकोचन और आर्तव (मासिक-धर्म) की शुद्धि होती है। इसे 40 ग्राम की मात्रा में प्रत्येक 6 घंटे पर सूखे पानी में घुले पुराने गुड़ के साथ दें। इसे मासिकस्राव से पांच दिन पहले ही पिलाना चाहिए।
बहरापन :
बांस के फूल के रस की 2-3 बूंदे रोजाना 3-4 बार कान में डालने से बहरेपन के रोग में धीरे-धीरे लाभ होने लगता है।
घाव :
बांस के प्रांकुर यानी कोपल का रस निकालकर कीड़े पड़े घाव पर डाला जाये और बाद में इसी की पोटली घाव पर बांधी जायें तो घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
गर्भाशय का संकोचन और शुद्धि :
बांस के पत्तों और कोमल गांठों के काढ़े में रोजाना 40 ग्राम गुड़ मिलाकर 4 बार लेने से गर्भाशय का संकोचन और गर्भाशय की शुद्धि हो जाती है।
रक्तपित्त :
बलगम में खून आने के रोग में बांस के कोमल पत्तों का चूर्ण 1 ग्राम दिन में दो बार लेने से आराम आता है।
गोली लगने पर :
गोली लगे रोगी को कोपस (बांस के प्रांकुर) के रस से घाव को रोजाना साफ करने से घाव फैलता नहीं है और घाव जल्द ही ठीक हो जाता है।
टीके से होने वाले दोष :
बांस की नई पत्तियों को पीसकर घाव पर लेप करने से रोगी सही हो जाता है।
गठिया रोग :
गठिया के रोगी के लिए बांस के कोमल गांठों को पीसकर जोड़ों पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।
दाद के रोग में :
बांस की जड़ को घिसकर दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।