चौलाई के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी सब्जी बनाकर खायी जाती है किन्तु इसके सम्पूर्ण लाभ के लिए इसके रस को निकालकर पीना चाहिए। चौलाई की मुख्य रूप से दो किस्में होती हैं। 1. लाल 2. हरी लाल चौलाई के पौधे का तना लालिमा लिए हुए होता है। इसके पत्तों की रेखाएं भी लाल होती हैं। इसके पत्ते लम्बे गोल तथा ज्यादा बड़े न होकर मध्यम आकार के होते हैं। हरी किस्म के चौलाई के पौधों की डण्डी और पत्ते का पूरा भाग हरे रंग का होता है। इसके पत्ते बड़े होते हैं। जल चौलाई इसकी एक कांटेदार किस्म है। इसके गुण कुछ अंशों में बढ़कर परन्तु चौलाई के समान ही होते हैं। औषधि रूप में इसके पंचांग, जड़ और पत्तों का उपयोग होता है।

गुण (Property)

चौलाई में विटामिन `सी´, विटामिन `बी´ व विटामिन `ए´ की अधिकता होती है। विटामिनों की कमी से होने वाले सारे रोगों में चौलाई का रस विशेष लाभ प्रदान करता है। चौलाई का रस शरीर को स्वस्थ करता है तथा शरीर को तरावट देता है। गर्मी को शान्त करती है तथा शुद्ध खून पैदा करती है। यह प्यास को रोकती है। खांसी के लिए लाभदायक होती है तथा पेशाब अधिक मात्रा में लाती है। गर्भावस्था के बाद अथवा अधिक मासिकस्राव या किसी भी कारण से हुए रक्तस्राव (खून बहना) से आई कमजोरी दूर करने में चौलाई का रस बहुत लाभदायक रहता है। शरीर की शिथिलता, कमजोरी दूर करने में, आंखों के रोगों में व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में चौलाई का रस बहुत लाभदायक होता है। यह पेशाब के रोगों को नष्ट करती है और पेशाब की मात्रा भी बढ़ाती है। चौलाई एक बहुत ही उत्तम जहर को खत्म करने वाली सब्जी है यदि भूलवश कोई जहर या जहरीली दवा खा ली गई हो तो चौलाई का 1 गिलास रस उस जहर के असर को खत्म कर देता है। परन्तु ऐसे मामलों में योग्य चिकित्सक की राय भी ले लेनी चाहिए। चौलाई की सब्जी कब्ज को दूर करती है और मुंह के छालों को ठीक कर देती है। चौलाई का कच्चा रस 1 महीने तक नियमित रूप से कम से कम 150 मिलीलीटर तक लेते रहने से बाल टूटकर गिरने, झड़ने बंद हो जाते हैं और नये बाल उगने लगते हैं।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

इसकी सब्जी खाने से देर में हजम होता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

पथरी:

रोजाना चौलाई के पत्तों की सब्जी खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।

रक्तचाप, बलगम, बवासीर और गर्मी के दुष्प्रभाव:

रोजाना चौलाई की सब्जी खाते रहने से रक्तचाप, बलगम, बवासीर और गर्मी के रोग दूर हो जाते हैं।

भूख:

चौलाई की सब्जी भूख को बढ़ाती है।

विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल):

चौलाई (गेन्हारी) साग के पत्तों को पीसकर विसर्प और जलन युक्त त्वचा पर पर लगाने से जलन मिट जाती है।

दमा:

चौलाई की सब्जी बनाकर दमा के रोगी को खिलाने से बहुत लाभ मिलता है। 5 ग्राम चौलाई के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर चटाने से सांस की पीड़ा दूर हो जाती है।

पागल कुत्ते का काटना:

पागल कुत्ते के काटने के बाद जब रोगी पागल हो जाए, दूसरों को काटने लगे, ऐसी हालत में कांटे वाली जंगली चौलाई की जड़ 50 ग्राम से 125 ग्राम तक पीसकर पानी में घोलकर बार-बार पिलाने से मरता हुआ रोगी बच जाता है। यह विषनाशक होती है। सभी प्रकार के विषों व दंशों पर इसका लेप लाभकारी होता है। चौलाई रूखी होती है तथा यह नशा और जहर के प्रभाव को नष्ट कर देती है। चौलाई की सब्जी रक्तपित्त में भी लाभदायक होती है।

कब्ज:

चौलाई की सब्जी खाने से कब्ज में लाभ मिलता है।

गर्भपात की चिकित्सा:

10 से 20 ग्राम चौलाई (गेन्हारी का साग) की जड़ सुबह-शाम 60 मिलीग्राम से 120 मिलीग्राम “हीराबोल“ के साथ सिर्फ 4 दिन (मासिकस्राव के दिनों में) सेवन कराया जाए तो गर्भधारण होने पर गर्भपात या गर्भश्राव का भय नहीं रहता है।

गुर्दे की पथरी:

रोज चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।

बवासीर (अर्श):

चौलाई की सब्जी खाने से बवासीर ठीक हो जाती है।

मासिक-धर्म संबन्धी विकार:

चौलाई की जड़ को छाया में सुखाकर पीसकर छान लेते हैं। इसकी लगभग 5 ग्राम मात्रा की मात्रा को सुबह के समय खाली पेट मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग 1 सप्ताह पहले सेवन कराना चाहिए। जब मासिक-धर्म शुरू हो जाए तो इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। इससे मासिक-धर्म के सभी रोग दूर हो जाते हैं।

प्रदर रोग:

लगभग 3 से 5 ग्राम की मात्रा में चौलाई के जड़ के चूर्ण को चावलों के पानी में शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है।
चौलाई की जड़ को चावल धुले हुए पानी के साथ पीसकर उसमें पिसी हुई रसौत और शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।

रक्तप्रदर:

15 ग्राम वन चौलाई की जड़ का रस दिन में 2-3 बार रोजाना पीने से रक्तप्रदर की बीमारी मिट जाती है।चौलाई (गेन्हारी का साग), आंवला, अशोक की छाल और दारूहल्दी के मिश्रित योग से काढ़ा तैयार करके 40 ग्राम की मात्रा में रोजाना 2-3 बार सेवन करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की पीड़ा भी दूर हो जाती है और रक्तस्राव (खून का बहना) भी बंद हो जाता है।

स्तनों की वृद्धि:

चौलाई (गेन्हारी) की सब्जी के पंचाग को अरहर की दाल के साथ अच्छी तरह से मिलाकर स्त्री को सेवन कराने से स्त्री के स्तनों में बढ़ोत्तरी होती है।

पेट के सभी प्रकार के रोग:

चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से पेट के रोगों में आराम मिलता है।

गठिया रोग:

गठिया के रोगी के जोड़ों का दर्द दूर करने के लिए चौलाई की सब्जी का सेवन करना चाहिए।

उच्चरक्तचाप:

उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए चौलाई, पेठा, टिण्डा, लौकी आदि की सब्जियों का प्रयोग अधिक मात्रा में करना चाहिए, क्योंकि इनमें रक्तचाप को नियन्त्रित करने की शक्ति होती है।

दिल का रोग:

चौलाई की हरी सब्जी का रस पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।

नासूर (नाड़ी) के लिए:

यदि नाड़ी व्रण (जख्म) में ज्यादा दर्द हो और वह पक न रहा हो तो उस पर चौलाई के पत्तों की पट्टी बांधने से लाभ होता है।

नहरूआ (स्यानु):

नहरूआ के रोगी को चौलाई की जड़ को पीसकर घाव पर बांधने से रोग दूर हो जाता है।
चौलाई की सब्जी खाने से नहरूआ के रोगी का रोग दूर हो जाता है।