सिंघाड़े के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

1993

परिचय (Introduction)

सिंघाड़े की बेल होती है और इसे तालाबों में लगाई जाती है। इसके बेल में ही सिंघाड़े लगते हैं जो पानी के अन्दर होती है। सिंघाड़े में आयोडीन अधिक होता है। गले के रोग व टांसिल में इसका उपयोग लाभदायक होता है। सिंघाडे़ की बेल जलकुम्भी की तरह तालाबों के मीठे पानी में तैरती रहती है। इसकी बेल लम्बी होती है, इसके पत्ते करेले के पत्तों के समान तीन कोनों वाले होते हैं। सिंघाड़ा तिकोनेकार होता है और इस पर कांटे होते हैं। सिंघाड़े के छिलके मजबूत व कठोर होते हैं। दूध की अपेक्षा सिंघाड़े में 22 प्रतिशत खनिज क्षार अधिक होता है। सिंघाडे अत्यंत ही पौष्टिक होता है। इसके सेवन से शरीर को शक्ति मिलती है और खून बढ़ता है।

सिंघाड़ा लाल व हल्का कालेपन लिए होता है और इसका गूदा सफेद रंग का होता है। इसको सुखाकर आटा भी बनाया जाता है। सिंघाड़े की साग-सब्जी भी बनाई जाती है। इसका उपयोग पौष्टिक पदार्थों में डालने के लिए भी किया जाता है। इसका ज्यादा मात्रा में सेवन करने से शरीर को पर्याप्त पोषण मिलता है और शरीर को सभी तत्व प्राप्त होते हैं। सिंघाड़े का सेवन करने से शरीर में मांस बढ़ता है।

गुण (Property)

सिंघाड़ा ठंडा, मीठा, भारी व कषैला होता है। यह मल को साफ करता है, पित्त के दोष व खून की खराबी को दूर करता है। यह वीर्य बढ़ाता है, वायु (गैस) बनाता है तथा कफ पैदा करता है। सिंघाड़े में गर्भ को पुष्ट करने की शक्ति होती है।

सिंघाड़े का रस ठंडा, भारी, वीर्य बढ़ाने वाला, पौष्टिक तथा पाचन होता है। यह वात, पित्त, बलगम, जलन, रक्तपित्त बुखार और सन्ताप आदि को दूर करता है। सिंघाड़े के सेवन से लिंग मजबूत होता है। सिंघाड़े की बेल का रस जलन को मिटाता है और आंखों के रोगों को दूर करता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

दाद, खाज, खुजली :
नीबू के रस में सूखे सिंघाड़े को घिसकर दाद पर प्रतिदिन लगाएं। इससे पहले तो जलन उत्पन्न होती है और फिर ठंडक महसूस होती है। इसका उपयोग कुछ दिनों तक लगातार करने से दाद ठीक हो जाता है।
सिंघाड़ा, सिंगी की जड़, हाऊबेर और भारंगी की जड़ को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से दाद, खाज, खुजली दूर होती है।
सिंघाड़ा, भिंगी की जड़, झाऊबेर और भारंगी की जड़ 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें और फिर इसमें 10 ग्राम मिश्रण मिलाकर एक कप पानी के साथ उबाल लें। जब पानी उबलकर आधा रह जाए तो इसे छानकर पीएं। इसका सेवन प्रतिदिन 7-8 दिन तक करने से त्वचा की खाज-खुजली दूर होती है।

प्रदर :
सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाकर खाने से श्वेत प्रदर ठीक होता है और सिंघाड़े के आटे की रोटी खाने से रक्तप्रदर ठीक होता है।
सूखे सिंघाडा का चूर्ण बनाकर 3-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोग ठीक होते हैं।
25 ग्राम सिंघाड़ा, 10 ग्राम सोना गेरू और 25 ग्राम मिश्री को एक साथ पीसकर 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। इससे प्रदर में लाभ मिलता है।
सिंघाड़ा का रस निकालकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर ठीक होता है।

गर्भाशय की कमजोरी :
गर्भाशय की कमजोरी के कारण यदि गर्भ न ठहरता हो तो गर्भधारण के बाद प्रतिदिन कुछ सप्ताहों तक ताजा सिंघाड़ा खाना चाहिए। गर्भावती स्त्री को सिंघाड़े की लपसी दिन में 2-3 बार दूध के साथ लेना चाहिए। इससे रक्तस्राव बंद होता है और गर्भपात नहीं होता।

मूत्रकृच्छ :
सिंघाड़े का काढ़ा बनाकर सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी) दूर होता है।

सूजन :
सिंघाड़े की छाल को घिसकर लगाने से दर्द व सूजन खत्म होती है।

नपुंसकता :
सूखे सिंघाड़े को पीसकर घी और चीनी के साथ हलवा बनाकर खाने से कुछ ही सप्ताहों में नपुंसकता दूर होती है।

पेशाब का रुक जाना :
20 ग्राम ताल मिश्री, 15 ग्राम घी और 30 ग्राम सिंघाड़े को मिलाकर ठण्डे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।

सातवें महीने के गर्भ की रक्षा :
सिंघाड़ा, कमलनाल, मुनक्का, मुलहठी, कसेरू और चीनी को मिलाकर पीस लें और इसे दूध के साथ घोलकर सेवन करें। इससे सातवें महीने के गर्भ की रक्षा होती है। इससे योनि का दर्द दूर होता है।

सोते समय पेशाब निकल जाना :
पिसा हुआ सूखा सिंघाड़ा और खांड लगभग 25-25 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रख लें। फिर 1-2 ग्राम मिश्रण पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रात में सोते समय पेशाब का निकल जाना ठीक होता है।

वीर्य की कमी :
सिघाडे़ के आटे में बबूल का गोंद, देशी घी और मिश्री मिलाकर लगभग 30 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ लेने से धातु की कमी दूर होती है।

नकसीर :
जिन लोगों को नकसीर (नाक से खून बहना) का रोग हो उन्हें बरसात के मौसम के बाद कच्चे सिंघाड़े खाना चाहिए।

कुष्ठ (कोढ़) :
सिंघाड़ा, काकड़सिंगी की जड़, हाऊबेर और भारंगी की जड को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 से 4 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन पीने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक होता है।

फीलपांव (गजचर्म) :
सिंघाड़े का काढ़ा बनाकर गाय के पेशाब में मिलाकर पीने से फीलपांव की सूजन दूर होती है।

कमजोरी :
कमजोर व्यक्ति को प्रतिदिन सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाकर खाना चाहिए। इससे शारीरिक शक्ति बढ़ती है।

टांसिल का बढ़ना :
गले में टांसिल होने पर सिंघाड़े को पानी में उबालकर इस पानी से प्रतिदिन कुल्ला करें। इससे टांसिल की सूजन दूर होती है।

गले की गांठ :
सिंघाड़े में बहुत ज्यादा आयोडीन होता है जिसको खाने से गले की गांठ ठीक होती है और साथ ही गले के दूसरे रोग जैसे- घेंघा, तालुमूल प्रदाह, तुतलाहट आदि ठीक होता है।