आलू के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

आलू सब्जियों का राजा माना जाता है क्योंकि दुनिया भर में सब्जियों के रूप में जितना आलू का उपयोग होता है, उतना शायद ही अन्य किसी सब्जी का होता होगा। आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन “बी” तथा फॉस्फोरस बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। आलू खाते रहने से रक्त वाहिनियां बड़ी आयु तक लचकदार बनी रहती हैं तथा कठोर नहीं होने पाती। इसलिए आलू खाकर लम्बी आयु प्राप्त की जा सकती है।

आलू को अनाज के पूरक आहार का स्थान प्राप्त है। सभी प्रकार के आलू शीतल, मलरोधक, मधुर, भारी, मल तथा मूत्र को उत्पन्न करने वाले, मुश्किल से पचने वाले और रक्तपित्त को मिटाने वाले हैं। यह कफ और वायु करने वाले, बलप्रद, वीर्यवर्धक और अल्पमात्रा में पाचनशक्तिवर्धक भी हैं। अधिक परिश्रम के कारण उत्पन्न निर्बलता, रक्तपित्त से पीड़ित, शराबी और तेज जठराग्नि वाले लोगों के लिए आलू अत्यंत ही पोषक है।

गुण (Property)

तत्व  –  मात्रा
प्रोटीन  –  1.6%
कार्बोहाइड्रेट  –  22.9%
पानी  –  74.7%
विटामिन-’  –  40 I.U./100 ग्राम
कैल्शियम  –  0.01%
फास्फोरस  –  0.03%
लौह   –  लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

बेरी-बेरी :

बेरी-बेरी का सरलतम् सीधा-सादा अर्थ है-”चल नहीं सकता” इस रोग से जंघागत नाड़ियों में कमजोरी का लक्षण विशेष रूप से होता है। आलू पीसकर या दबाकर रस निकालें, एक चम्मच की मात्रा के हिसाब से प्रतिदिन चार बार पिलाएं। कच्चे आलू को चबाकर रस निगलने से भी यह लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

रक्तपित्त :

यह रोग विटामिन “सी” की कमी से होता है। इस रोग की प्रारिम्भक अवस्था में शरीर एवं मन की शक्ति कमजोर हो जाती है अर्थात् रोगी का शरीर निर्बल, असमर्थ, मन्द तथा पीला-सा दिखाई देता है। थोड़े-से परिश्रम से ही सांस फूल जाती है। मनुष्य में सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता आ जाती है। रोग के कुछ प्रकट रूप में होने पर टांगों की त्वचा पर रोमकूपों के आसपास आवरण के नीचे से रक्तस्राव होने (खून बहने) लगता है। बालों के चारों ओर त्वचा के नीचे छोटे-छोटे लाल चकत्ते निकलते हैं फिर धड़ की त्वचा पर भी रोमकूपों के आस-पास ऐसे बड़े-बड़े चकत्ते निकलते हैं। त्वचा देखने में खुश्क, खुरदुरी तथा शुष्क लगती है। दूसरे शब्दों में-अति किरेटिनता (हाइपर केराटोसिस) हो जाता है। मसूढ़े पहले ही सूजे हुए होते हैं और इनसे खून निकलने लगता है बाद में रोग बढ़ने पर टांगों की मांसपेशियों विशेषकर प्रसारक पेशियों से रक्तस्राव होने लगता है और तेज दर्द होता है। हृदय मांस से भी स्राव होकर हृदय शूल का रोग हो सकता है। नासिका आदि से खुला रक्तस्राव भी हो सकता है। हडि्डयों की कमजोरी और पूयस्राव भी बहुधा विटामिन “सी” की कमी से प्रतीत होता है। कच्चा आलू रक्तपित्त को दूर करता है।

त्वचा की झुर्रियां :

ठंडी सूखी हवाओं से हाथों की त्वचा पर झुर्रियां पड़ने पर कच्चे आलू को पीसकर हाथों पर मलना गुणकारी हैं। नींबू का रस भी इसके लिए समान रूप से उपयोगी है। कच्चे आलू का रस पीने से दाद, फुन्सियां, गैस, स्नायुविक और मांसपेशियों के रोग दूर होते हैं।

आंखों का जाला एवं फूला :

कच्चा आलू साफ-स्वच्छ पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम आंख में काजल की भांति लगाने से पांच से छ: वर्ष पुराना जाला और चार वर्ष तक का फूला तीन महीने में साफ हो जाता है।

मोटापा :

  • आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू को तलकर तीखे मसाले घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख में भूनकर खाना लाभकारी है।
  • सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि सूखे चावलों में 6-7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस प्रकार आलू में अधिक प्रोटीन पाया जाता है। आलू में मुर्गियों के चूजों जैसी प्रोटीन होती है। बड़ी आयु वालों के लिए प्रोटीन आवश्यक है। आलू की प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाली और वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने वाली होती है।

बच्चों का पौष्टिक भोजन :

  • आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं।
  • आलू का रस निकालने की विधि : आलू को ताजे पानी से अच्छी तरह धोकर छिलके सहित कद्दूकस करके इस लुगदी को कपड़े में दबाकर रस निकाल लें। इस रस को 1 घंटे तक ढंककर रख दें। जब सारा कचरा, गूदा नीचे जम जाए तो ऊपर का निथरा रस अलग करके काम में लें।

सूजन :

  • कच्चे आलू को सब्जी की तरह काट लें। जितना वजन आलू का हो, उसके लगभग 2 गुना पानी में उसे उबालें। जब मात्र एक भाग पानी शेष रह जाए तो उस पानी से चोट से उत्पन्न सूजन वाले अंग को धोकर सेंकने से लाभ होगा।
  • नोट : गुर्दे या वृक्क (किडनी) के रोगी भोजन में आलू खाएं। आलू में पोटैशियम की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है और सोडियम की मात्रा कम। पोटैशियम की अधिक मात्रा गुर्दों से अधिक नमक की मात्रा निकाल देती है। इससे गुर्दे के रोगी को लाभ होता है। आलू खाने से पेट भर जाता है और भूख में सन्तुष्टि अनुभव होती है। आलू में वसा (चर्बी) यानि चिकनाई नहीं पाई जाती है। यह शक्ति देने वाला है और जल्दी पचता है। इसलिए इसे अनाज के स्थान पर खा सकते हैं।

उच्च रक्तचाप (हाईब्लड प्रेशर) :

इस बीमारी के रोगियों को आलू खाने से रक्तचाप को सामान्य बनाने में अधिक लाभ प्राप्त होता है। पानी में नमक डालकर आलू उबालें। (छिलका होने पर आलू में नमक कम पहुंचता है।) और आलू नमकयुक्त भोजन बन जाता है। इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप में लाभ करता है क्योंकि आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है।

अम्लता (एसीडिटी) :

आलू की प्रकृति क्षारीय है जो अम्लता को कम करती है। जिन रोगियों के पाचन अंगों में अम्लता की अधिकता है, खट्टी डकारें आती है और वायु (गैस) अधिक बनती है, उनके लिए गरम-गरम राख या रेत में भुना हुआ आलू बहुत ही लाभदायक है। भुना हुआ आलू गेहूं की रोटी से आधे समय में पच जाता है। यह पुरानी कब्ज और अन्तड़ियों की दुंर्गध को दूर करता है। आलू में पोटैशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त को रोकता है।

गुर्दे की पथरी (रीनल स्टोन) :

एक या दोनों गुर्दों में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक मात्रा में पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियां और रेत आसानी से निकल जाती हैं। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो पथरी को निकालता है तथा पथरी बनने से रोकता है।

त्वचा का सौंदर्य:

जले हुए स्थान पर कच्चा आलू पीसकर लगाएं तथा तेज धूप, लू से त्वचा झुलस गई हो तो कच्चे आलू का रस झुलसी त्वचा पर लगाने से सौंदर्य में निखार आ जाता है।

हृदय की जलन :

  • इस रोग में आलू का रस पीएं। यदि रस निकाला जाना कठिन हो तो कच्चे आलू को मुंह से चबाएं तथा रस पी जाएं और गूदे को थूक दें। आलू का रस पीने से हृदय की जलन दूर होकर तुरन्त ठंडक प्रतीत होती है।
  • आलू का रस शहद के साथ पीने से हृदय की जलन मिटती है।

गठिया या जोड़ों का दर्द :

गर्म राख में चार आलू सेंक ले और फिर उनका छिलका उतारकर नमक मिर्च डालकर नित्य खाएं। इस प्रयोग से गठिया ठीक हो जाती है।

आमवात :

पैंट, पाजामे या पतलून की दोनों जेबों में लगातार एक छोटा-सा आलू रखें तो यह प्रयोग आमवात से रक्षा करता है। आलू खाने से भी बहुत लाभ होता है।

कटि वेदना (कमर दर्द) :

कच्चे आलू के गूदे को पीसकर पट्टी में लगाकर कमर पर बांधने से कमर दर्द दूर हो जाता है।

विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल):

यह एक ऐसा संक्रामक रोग है जिसमें सूजनयुक्त छोटी-छोटी फुन्सियां होती हैं, त्वचा लाल दिखाई देती है तथा साथ में बुखार भी रहता है। इस रोग में पीड़ित अंग पर आलू को पीसकर लगाने से फुन्सियां ठीक हो जाती हैं और लाभ होता है।

सब्ज मोतियाबिंद :

कच्चे आलू को ऊपर से छीलकर साफ पत्थर पर घिस लें और सलाई के सहारे आंखों में लगायें इससे आराम आता है।

पेट की गैस बनना :

  • कच्चे आलू को पीसकर उसका रस पीने से आराम मिलता है।
  • कच्चे आलू का रस आधा-आधा कप दो बार पीने से पेट की गैस में आराम मिलता है।

मुंह का सौंदर्य :

कच्चे आलू का रस निकालकर आंखों के काले घेरों पर लगाने से आंखों के नीचे की त्वचा का कालापन दूर हो जाता है।