पीपल की जड़ के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

3547

गुण (Property)

पीपरा मूल (पीपल की जड़), उत्तेजक, पाचक, पित्तकारक, वात, उदर (पेट) रोग, प्लीहा-रोग, गुल्म (पेट में वायु की गांठ), कृमि (कीड़े), श्वास (दमा) तथा क्षय (टी.बी.) के रोगों का नाश करता है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

आसानी से प्रसव :

प्रसव के समय पिपरा मूल के साथ दालचीनी का चूर्ण लगभग 1.20 ग्राम में थोड़ी सी भांग का योग देकर प्रसूता को पिलाते हैं। इससे प्रसव (बच्चे का जन्म) आराम से होता है।

योनि का दर्द:

पिप्पली 5 ग्राम, कालीमिर्च 5 ग्राम, उड़द 5 ग्राम, सोये 5 ग्राम, कूठ 5 ग्राम और सेंधानमक 5 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर रूई की बत्ती बनाकर योनि में रखने से योनि के दर्द दूर हो जाता है।

मुर्च्छा (बेहोशी) :

पीपरामूल और सर्पगन्धा को महीन पीसकर चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को लगभग 1 से 2 ग्राम सौंफ के रस के साथ सुबह शाम रोगी को खिलाने से बेहोशी निश्चित रूप से दूर हो जाती है।

दिल की तेज धड़कन:

पीपरा मूल और छोटी इलायची को 25-25 ग्राम की मात्रा में कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3 ग्राम लेकर प्रतिदिन घी के साथ सेवन करने से कब्ज की समस्या से उत्पन्न हृदय रोगों में लाभ होता है।

हृदय की दुर्बलता:

पिप्पली चूर्ण लगभग आधा ग्राम का सेवन शहद के साथ करने से हृदय की दुर्बलता मिटती है साथ ही यह कॉलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में भी पूर्ण सक्षम होता है।

हृदय के रोग:

  • पीपला मूल तथा छोटी इलायची का चूर्ण आधा चम्मच देशी घी के साथ चाटने से हृदय रोग दूर हो जाता है।
  • पिप्पली फल, एलाबीज, वचा प्रकन्द, हींग घी में भुना हुआ, यवक्षार, सेंधानमक, संचर नमक, शुंठी एवं अजमोद फल को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लें, फिर इसके 1 से 3 ग्राम चूर्ण को दाड़िम या बिजौरा या नारंगी के रस या उपयुक्त शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करें।
  • खस के 10 ग्राम चूर्ण में पीपलामूल का 10 ग्राम चूर्ण मिलाकर प्रतिदिन 2 ग्राम मात्रा में गाय के दूध के साथ सेवन करने से हृदय के दर्द में लाभ होता है।

हिस्टीरिया (गुल्यवायु):

5 ग्राम पिपलामूल, 15 ग्राम ईरसा, 20 ग्राम मुरमकी को कूटकर छान लें, फिर इस पानी में मिलाकर चने के बराबर आकार की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसकी 2 गोली दिन में 3 बार पानी के साथ लेने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।

गंडमाला:

6 ग्राम पीपर के चूर्ण को 8 ग्राम शहद में मिलाकर रोगी को चटाने से गंडमाला और कण्ठ शालूक (गले में गांठ) ठीक हो जाती हैं।

गले के रोग :

10-10 ग्राम पीपरामूल, अमलवेत, सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल, तेजपात (तेजपत्ता), समी का दाना, इलायची का दाना, तालीसपत्र, दालचीनी, सफेद जीरा, चित्रक की जड़ की छाल को लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में कम से कम एक साल पुराना गुड़ मिलाकर रख दें। यह चूर्ण 4 ग्राम सुबह शाम गाय के दूध के साथ खाने से बिगड़ा हुआ जुकाम, खांसी और स्वर-भेद (गला बैठ जाना) ठीक हो जाता है।