नागकेसर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

नागकेसर को नागपुष्प, पुष्परेचन, पिंजर, कांचन, फणिकेसर, स्वरघातन के नाम से जाना जाता है। इसका रंग पीला होता है। नागकेसर खाने में कषैला, रूखा और हल्का होता है। यह एक पेड़ का फूल है। इसकी सुगंध तेज होती है।

गुण (Property)

यह गर्मी को विरेचन (दस्त के द्वारा) बाहर निकाल देता है। तृषा (प्यास), स्वेद (पसीना), वमन (उल्टी), बदबू, कुष्ठ, बुखार, खुजली, कफ, पित्त और विष को दूर करता है। नागकेसर ठड़ी प्रकृति वाले व्यक्तियों के लिए लाभकारी है। यह मोटापे को दूर करके रक्तशोधक (खून को साफ करता है) होता है। दांतों को मजबूत और ताकतवर बनता है।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

नागकेसर गर्म होती है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

खांसी:

  • नागकेसर की जड़ और छाल को लेकर काढ़ा बनाकर पीने से खांसी के रोग में लाभ मिलता है।
  • ऐसी खांसी जिसमें बहुत अधिक कफ आता हो उसमें लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम नागकेसर (पीला नागकेसर) की मात्रा को मक्खन और मिश्री के साथ सुबह-शाम रोगी को सेवन कराने से अधिक कफ वाली खांसी नष्ट हो जाती है।

गुदा पाक:

नागकेसर (पीली नागकेसर) का चूर्ण लगभग आधा ग्राम से 1 ग्राम की मात्रा में मिश्री और मक्खन के साथ मिलाकर रोजाना खिलाएं। इसको खाने से गुदा द्वार की जलन (प्रदाह) दूर होती है।

कांच निकलना (गुदाभ्रंश) :

नागकेसर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को एक अमरूद के साथ मिलाकर बच्चे को खिलायें। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) बन्द हो जाता है।

बांझपन:

नागकेसर (पीला नागकेशर) का चूर्ण 1 ग्राम गाय (बछड़े वाली) के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करें और यदि अन्य कोई प्रदर रोग सम्बन्धी रोगों की शिकायत नहीं है तो निश्चित रूप से गर्भस्थापन होगा। गर्भाधान होने तक इसका नियमित रूप से सेवन करने से अवश्य ही सफलता मिलती है।

गर्भधारण (गर्भ ठहराने के लिए):

पिसी हुई नागकेसर को लगभग 5 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय बछड़े वाली गाय या काली बकरी के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ माहवारी (मासिक-धर्म) खत्म होने के बाद सुबह के समय लगभग 7 दिनों तक सेवन कराएं। इससे गर्भधारण के उपरान्त पुत्र का जन्म होगा।

हिचकी का रोग:

4-10 ग्राम पीला नागकेसर मक्खन और मिश्री के साथ सुबह-शाम रोगी को देने से हिचकी मिट जाती है।

गर्भपात (गर्भ का गिरने) से रोकना:

यदि तीसरे महीने गर्भपात की शंका हो तो नागकेशर के चूर्ण में मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाना चाहिए। इससे गर्भपात की संभावना समाप्त हो जाती है।

बवासीर (अर्श):

  • नागकेसर और सुर्मा को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लें। आधा ग्राम चूर्ण को 6 ग्राम शहद के साथ मिलाकर चाटने से सभी प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
  • नागकेशर का चूर्ण 6 ग्राम, मक्खन 10 ग्राम और मिश्री 6 ग्राम लेकर मिला लें। इस मिश्रण को 6 से 7 दिनों तक रोजाना चाटने से रक्तार्श (खूनी बवासीर) से खून का गिरना बन्द हो जाता है।

खूनी अतिसार:

3 ग्राम नागकेसर के चूर्ण को 10 ग्राम गाय के मक्खन में मिलाकर खाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग कम हो जाता है।

मासिक-धर्म सम्बन्धी परेशानियां:

नागकेसर, सफेद चन्दन, पठानी लोध्र, अशोक की छाल सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, फिर इसमें से 1 चम्मच चूर्ण सुबह-शाम 1 चम्मच ताजे पानी के साथ सेवन करने से मासिक-धर्म के विकारों में लाभ मिलता है।

चोट लगने पर:

नागकेशर का तेल शरीर की पीड़ा और जोड़ों के दर्द में बहुत उपयोगी होता है।

अन्न नली (आहार नली) में जलन:

नागकेसर (पीला नागकेसर) की जड़ और छाल को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसे रोजाना 1 दिन में 2 से 3 बार खुराक के रूप में सेवन करने से आमाशय की जलन (गैस्ट्रिक) में लाभ होता है।

घाव:

नागकेसर का तेल घाव पर लगाते रहने से घाव शीघ्र भर जाता है।

प्रदर रोग:

  • 3 ग्राम नागकेसर का चूर्ण ताजे पानी के साथ सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ होता है।
  • लगभग 40 ग्राम नागकेसर, 30-30 ग्राम मुलहठी और राल, 100 ग्राम मिश्री लेकर कूट-छानकर चूर्ण बना लें। इसे 3-4 ग्राम की मात्रा में मिश्री मिले गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।
  • लगभग 1 चम्मच नागकेसर लेकर प्रतिदिन 20 दिनों तक मठ्ठे के साथ सेवन करने से सफेद प्रदर मिट जाता है।
  • 10-10 ग्राम की मात्रा में नागकेशर, सफेद चन्दन, लोध्र और अशोक की छाल को लेकर सबका चूर्ण बना लें। इसमें से 1 चम्मच चूर्ण दिन में 4 बार ताजे पानी के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
  • नागकेशर को 3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ पीने से श्वेतप्रदर (ल्यूकोरिया) की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
  • नागकेशर का चूर्ण चावलों के साथ सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
  • नागकेशर को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें। इसे आधे ग्राम की मात्रा में रोजाना मठ्ठे के साथ सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है। इससे शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है।
  • आधा से 1 ग्राम पीला नागकेसर सुबह-शाम मिश्री और मक्खन के साथ खाने से सफेद प्रदर और रक्त (खूनी) प्रदर दोनों मिट जाते हैं।
  • नागकेसर (पीलानागकेसर) आधा से एक ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यह औषधि श्वेत (सफेद) प्रदर के लिए भी लाभकारी है।
  • नागकेशर चूर्ण 1-3 ग्राम को 50 मिलीलीटर चावल धोवन (चावल का धुला हुआ पानी) के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्त (खूनी) प्रदर में आराम मिलता है।

शीतपित्त:

  • नागकेसर 5 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम खाने से शीतपित्त में बहुत लाभ होता है।
  • आधा चुटकी नागकेसर को 25 ग्राम शहद में मिलाकर खाने से लाभ होता है।

नाक के रोग:

नागकेसर (पीला नागकेसर) के पत्तों का उपनाह (लेप) सिर पर लगाने से बहुत तेज जुकाम भी ठीक हो जाता है।

वीर्य रोग:

नागकेसर 2 ग्राम को पीसकर मक्खन के साथ खाना चाहिए।

जोड़ों के (गठिया रोग) दर्द में:

  • जोड़ों के दर्द के रोगी को नागकेसर के तेल की मालिश करने से आराम मिलता है।
  • नागकेशर के बीजों के तेल की मालिश करने से गठिया रोग दूर हो जाता है।

हैजा:

बड़ी इलायची, धान की खील, लौंग, पीली नागकेसर, मेंहदी, बेर की गुठली की गिरी, नागरमोथा तथा सफेद चन्दन-इन सबको बराबर मात्रा में लेकर, कूट-पीस छानकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के एक भाग में पिसी हुई मिश्री मिला दें। इस चूर्ण को शहद के साथ चटाने से तीनों दोषों के कारण उत्पन्न भयंकर वमन (उल्टी) भी दूर हो जाती है।

चेहरे के दाग और खाज खुजली:

पीले नागकेसर के तेल को लगाने से खाज-खुजली दूर हो जाती है।