फालसा के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

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परिचय (Introduction)

फालसा के पेड़ बगीचों में भी उगाए जाते हैं। आयुर्वेद में काफी प्राचीन काल से ही फालसों का उपयोग होता चला आ रहा है। फालसा उत्तम पौष्टिक टॉनिक माना जाता है। गर्मी के दिनों में फालसों का सेवन हर उम्र (युवा, बाल, वृद्ध, स्त्री व पुरुष) के व्यक्तियों को लिए लाभकारी है, फालसे शरीर को निरोगी और हष्ट-पुष्ट बनाते हैं।

गुण (Property)

पके फालसे पित्त, दाह (जलन), रक्तविकार, बुखार, क्षय (टी.बी.) और वायु गैस को दूर करता है। पके फालसे मल को रोकने वाले और पौष्टिक होते हैं। कच्चे फालसे पित्तकारक, लघु और वायुनाशक होते हैं तथा पित्त और कफ को दूर करते हैं। फालसा शरीर के दूषित मल को बाहर निकालता है। मस्तिष्क की गर्मी और खुश्की को दूर करता है। हृदय, आमाशय और यकृत (जिगर) को शक्ति देता है। पेशाब में जलन, सुजाक (गिनोरिया) और स्त्रियों के सफेद पानी (श्वेतप्रदर यानि ल्यूकोरिया) में लाभदायक हैं। आमाशय और छाती की गर्मी, बेचैनी, वीर्यस्राव और स्वप्नदोष (नाईटफाल) में अच्छे पके हुए फालसे खाना लाभकारी है।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

अरुचि (भूख का कम लगना) :

सेंधानमक और कालीमिर्च फालसे में डालकर खाने से अरुचि (भूख का कम लगना) रोग दूर होता है।

जलन (दाह):

फालसे का शर्बत बनाकर पीने से शरीर की जलन शांत हो जाती है।

शरीर में दहक (जलन) का होना :

शरीर में दाह (जलन) होने पर पका फालसा शक्कर के साथ मिलाकर खाने से आराम आता है।

हृदय रोग (दिल की बीमारी):

पके हुए फालसे का रस पानी, सौंठ और शक्कर को मिलाकर पीने से दिल के रोग और पित्त विकार में लाभ मिलता है।

लू लगने पर:

500 ग्राम पके हुए फालसों को आधा लीटर पानी में 3-4 घंटे तक भिगोकर रखें। इसके बाद इसे मसलकर कपड़े से छान लें फिर उसमें 500 ग्राम चीनी डालकर उबालें और शर्बत बनाकर साफ बोतलों में रख लें। गर्मियों में इसमें पानी मिलाकर सेवन करने से यह ठंडक देता है, रुचि पैदा करता है और लू के प्रकोप से भी बचाता है।

प्यास:

पके फालसों के रस में पानी मिलाकर पीने से तृषा (प्यास) का रोग दूर होता है।

हिचकी:

फालसे के सेवन से कफ गलकर बाहर निकल जाता है। इससे हिचकी और श्वास रोग में भी लाभ होता है।

गले के रोग में:

फालसे की छाल के कुल्ले करने से गले के रोगों में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट):

फालसे की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट) और प्रमेह का रोग दूर हो जाता है।

घुटनों का दर्द :

  • फालसे के पेड़ की छाल का लेप करने से शारीरिक पीड़ा दूर होती है। इसका लेप करने से आमवात (गठिया) रोग में भी लाभ होता है।
  • फालसे के पेड़ की छाल का काढ़ा सेवन करने से आमवात (गठिया) का रोग मिट जाता है।

वीर्य की कमजोरी:

पके हुए फालसे खाने से धातु की दुर्बलता दूर होती है।

अग्नि मांद्य (अपच):

कच्चे फालसों का सेवन करने से अग्निमांद्य (भूख कम लगना), अतिसार (दस्त), प्रवाहिका (पेचिश, संग्रहणी) आदि रोग मिटते हैं।

मूढ़गर्भ (गर्भ में मरा बच्चा) को निकालने के लिए :

फालसे के पेड़ की मूल (जड़) के लेप को स्त्री की नाभि, बस्ति (नाभि के नीचे का हिस्सा) व योनि पर लेप करने से मूढ़गर्भ या मृतगर्भ (मरा हुआ बच्चा) बाहर निकल आता है।

दिल के रोग :

  • पके फालसे के रस में पानी मिलाकर उसमें शक्कर और थोड़ी-सी सोंठ की बुकनी डालकर शर्बत बनाकर पीने से पित्तविकार यानि पित्तप्रकोप मिटता है। यह शर्बत हृदय (दिल) के रोग के लिए लाभकारी होता है।
  • पके फालसे का सेवन करने से शरीर हष्ट-पुष्ट (मजबूत और ताकतवर) बनता है। यह हृदय रोग और रक्तपित्त में भी काफी हितकारी होता है।

फुंसियां:

फालसे के पत्तों तथा कलियों का लेप करने से फुंसियां समाप्त हो जाती हैं।

गर्मी : फालसे के फल का शर्बत सुबह-शाम खाने से गर्मी दूर होती है और जलन से मुक्ति मिल जाती है।