गन्ने के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

1961

परिचय (Introduction)

आहार के 6 रसों में मधुर रस का विशेष महत्व है। गुड़, चीनी, शर्करा आदि मधुर (मीठे) पदार्थ गन्ने के रस से बनते हैं। गन्ने का मूल जन्म स्थान भारत है। हमारे देश में यह पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, दक्षिण भारत आदि प्रदेशों में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। संसार के अन्य देशों में जावा, क्यूबा, मारीशस, वेस्टइण्डीज, पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में बहुत अधिक मात्रा में गन्ने का उत्पादन किया जाता है। 1 साल में गन्ने की बुवाई तीन बार जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर में की जाती है। गन्ने को ईख या साठा भी कहते हैं।

गन्ने की अनेक किस्में होती हैं जिसमें सफेद, काली, भूरी आदि होती हैं। लाल गन्ने का रस बहुत मीठा होता है। गन्ना जितना अधिक मीठा होता है उतना ही गुणकारी होता है। कच्चा, अधपका, पका और ज्यादा पका (जरठ) इस प्रकार किस्म भेद के कारण गन्ने के गुणों में अन्तर पड़ जाता है। गन्ने के जड़ में अत्यन्त मधुर, मध्य भाग में मधुर और अग्रभाग में (चोटी पर) तथा गांठों में खारा रस होता है। गर्मी के मौसम में तो गन्ने का रस अमृत के समान लाभकारी होता है।

दांतों के द्वारा गन्ने को चूसने से गन्ने का रस पित्त तथा रक्तविकार का नाश करने वाला, शर्करा के समान शक्तिप्रद, कफ-कारक और जलन को नष्ट करने वाला है। मशीनों या यन्त्रों से पेरकर निकाला हुआ गन्ने का रस- मूल अग्रभाग, जीव जन्तु और गांठों के साथ-साथ पिस जाने से मैलयुक्त होता है। अधिक समय तक रखा रहने के कारण विकृत बनकर जलन भी उत्पन्न करता है। यह मल को रोकता है और पचने में भारी पड़ता है। यन्त्र या मशीनों से निकाला गया रस दाहकारक (जलन) और अफारा (गैस) करने वाला होता है। गर्मियों में गन्ने का ताजा रस निकालकर उसमें नमक डालकर एवं नीबू निचोड़कर पीना बहुत अधिक स्वादिष्ट और लाभकारी होता है।

गुण (Property)

ईख (गन्ना) के पौधे का काण्ड (तना) 180 सेमी से लेकर 360 सेमी तक ऊंचा, गोलाकार एवं गांठयुक्त होता है। इसके पत्ते 90 से 120 सेमी तक लम्बे एवं 6 सेमी से 9 सेमी तक चौडे़ होते हैं।

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

ईख मधुर, ठण्डा तथा चिकना होता है। अत: मधुमेह, बुखार, सर्दी, मन्दाग्नि, त्वचा रोग और कृमि रोगों में छोटे बच्चों के लिए हितकारी नहीं है। इसके अलावा जिन लोगों को जुकाम, श्वास और खांसी की स्थायी तकलीफ बनी रहती है तथा जो कफ प्रकृति वाले व्यक्ति हो तो उन्हें गन्ने का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

गलगण्ड:

2 से 4 ग्राम हरड़ का चूर्ण खाकर ऊपर से गन्ने का रस पीने से गलगण्ड के रोग में लाभ प्राप्त होता है।

स्वरभंग (आवाज का बैठ जाना):

गन्ने को गर्म राख में सेंककर चूसने से स्वरभंग (गला बैठने) के रोग में लाभ होता है।

श्वास:

3 से 6 ग्राम गुड़ को बराबर मात्रा में सरसों के तेल के साथ मिलाकर सेवन करने से श्वास में लाभ प्राप्त होता है।

स्तनों में दूध की वृद्धि:

ईख की 5-10 ग्राम जड़ को पीसकर कांजी के साथ सेवन करने से स्त्री का दूध बढ़ता है।

रक्तातिसार (खूनी दस्त):

गन्ने का रस और अनार का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।

अग्निमान्द्य (अपच):

गुड़ के साथ थोड़ा सा जीरा मिलाकर सेवन करने से अग्निमान्द्य, शीत और वात रोगों में लाभ मिलता है।

अश्मरी (पथरी):

  • अश्मरी (पथरी) को निकलने के बाद रोगी को गर्म पानी में बैठा दें और मूत्रवृद्धि के लिए गुड़ को दूध में मिलाकर कुछ गर्म पिला दें।
  • गन्ने को चूसते रहने से पथरी चूर-चूर होकर निकल जाती है। गन्ने का रस भी लाभदायक है।

वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द):

11 ग्राम गुड़ और बुझा हुआ चूना 500 मिलीग्राम दोनों को एकसाथ पीसकर 2 गोलियां बना लें, पहले एक गोली गर्म पानी से दें। अगर गुर्दे का दर्द शांत न हो तो दूसरी गोली दें।

प्रदर रोग:

  • गुड़ की खाली बोरी जिसमें 2-3 साल तक गुड़ भरा रहा हो, उसे लेकर जला डाले और उसकी राख को छानकर रख लें। इस राख को रोजाना 3 ग्राम सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्तप्रदर कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  • गन्ने का रस पीने से पित्तज प्रदर मिट जाता है।

वीर्यवृद्धि (धातु को बढ़ाने वाला):

गुड़ को आंवलों के 2-4 ग्राम चूर्ण के साथ सेवन करने से वीर्यवृद्धि होती है तथा थकान, रक्तपित्त (खूनी पित्त), जलन, दर्द और मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन होना) आदि रोग नष्ट होते हैं।

कनखजूरा के काटने पर:

कनखजूरा आदि जन्तुओं के काटने या चिपक जाने पर गुड़ को जलाकर लगाने से लाभ होता है।

विभिन्न रोगों में:

5 ग्राम गुड़ के साथ, 5 ग्राम अदरक या सोंठ या पीपल अथवा हरड़ इनमें से किसी भी एक चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से सूजन, प्रतिश्याय (जुकाम), गले के रोग, मुंह के रोग, खांसी, श्वास, अरुचि, पीनस (नजला), जीर्ण ज्वर (पुराने बुखार में), बवासीर, संग्रहणी आदि रोग तथा कफवात जैसे दूसरे रोग भी दूर हो जाते हैं।

दाह (जलन):

गुड़ को पानी में मिलाकर 25 बार कपड़े में छानकर पीने से दाह (जलन) शांत होती है। बुखार की गर्मी की शान्ति के लिए इसे पिलाया जाता है।

कंटक शूल (नुकीली चीजों के पैरों में गड़ जाने का दर्द):

कांटा, पत्थर कांच आदि के पैरों में गड़ जाने पर गुड़ को आग पर रखकर गर्म-गर्म चिपका देने पर लाभ प्राप्त होता है।

नलवात पर:

गुड़ को ताजे गाय के दूध में इतना मिलायें कि वह मीठा हो जाए और फिर खडे़-खड़े ही इसको पी लें। इसके बाद 3 घंटे बाद तक बैठना नहीं चाहिए। उसी समय लाभ मिलता है।

मुंह के छाले, आंखों की दृष्टि और बुखार में:

  • मिश्री के टुकड़े के साथ एक छोटा सा कत्थे का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह के छाले आदि में लाभ प्राप्त होता है।
  • मिश्री को पानी में घिसकर आंखों में लगाने से आंखों की सफाई होती है तथा दृष्टिमान्द्य (आंखों की रोशनी कम होने का रोग) दूर होता है।
  • मिश्री और घी मिले हुए दूध को पीने से ज्वर का वेग (बुखार) कम हो जाता है।

नकसीर (नाक से खून आना):

गन्ने के रस की नस्य (नाक में डालने) देने से नकसीर में लाभ होता है।